Rajasthan Gk in Hindi >> राजस्थानी कला >>> राजस्थानी स्थापत्य कला >>राजस्थानी स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषता

शिल्प- सौष्ठव, अलंकृत पद्धति एवं विषयों की विविधता है ।
यह हिन्दू स्थापत्य कला के रूप में जानी जाती है ।
राजपूतों की वीरता के कारण राजस्थान के स्थापत्य में शौर्य की भावना स्पष्टत: दिखाई देती है ।
मधय काल में जब तुर्की के निरंतर आक्रमण होने लगे तो राजस्थानी स्थापत्य में शौर्य के साथ-साथ सुरक्षा की भावना का भी समावेश किया गया और विशाल एवं सुदृढ़ दुर्ग बनवाने आरम्भ कर दिये गए ।
सुरक्षा की दृष्टि से राजपूत शासकों ने अपने निवास भी दुर्ग के भीतर बनवाये तथा पानी का व्यवस्था के लिये जलाशय खुदवाये ।
राजपूत शासकों की र्धम के प्रति अगाध श्रद्धा ने दुर्ग के भीतर मंदिरों का निर्माण भी करवाया । -
17वीं सदी में मुगलों के सम्पर्क से राजपूत एवं मुस्लिम कला का पारस्परिक मिलन हुआ, जिससे हिन्दू एवं मुस्लिम स्थापत्य शैलियों में समन्वय हुआ ।
दोनों शैलियों के समन्वय से राजस्थानी स्थापत्य का रूप निखर आया ।
प्रमुख विशेषाएँ- 1. प्राचीन स्थापत्य- राजस्थान की स्थापत्य कला बहुत प्राचीन है ।
यहाँ पर काली बंगा में सिन्धु घाटी सभ्यता की स्थापत्य कला के प्रमाण उपलब्ध है ।
इसी प्रकार आहड़ सभ्यता की स्थापत्य कला उदयपुर के पास तथा मौर्यकाल में प्रस्पफुटितसभ्यता के चिन्ह बैराठ में मिले है । -
2. सौष्ठव ।
3. अलंकृत पद्धति ।
4. विषयों की विविधता- इससे यहां के शासकों तथा निवासियों की विचारधारओं, अनुभूतियों और उद्देश्यों की जानकारी प्राप्त होती है ।

5. हिन्दु स्थापत्य कला के रूप में- राजस्थान में सबसे प्रमुख स्थापत्य कला राजपूतों की रही है, जिसके कारण सम्पूर्ण राजस्थान किलों मन्दिरों, परकोटों, राजाप्रासादों, जलाशयों उद्योगों, स्तम्भों तथा समाधयिों एवं छतरियों से भर गया है ।
6. शोर्य व सुरक्षाभाव से परिपूर्ण । -
7. हिन्दु व मुस्लिम स्थापत्य का समन्वय- मुगलों के सम्पर्क के पूर्व यहाँ हिन्दू स्थापत्य शैली की प्रधानता रही जिसमें स्तम्भों, सीधे पाटों, ऊंचे शिखरों, अलंकृत आकृतियों, कमल और कलश का महत्व था ।
मुगल काल में राजस्थान की स्थापत्य कला पर मुगलशैली का प्रभाव पड़ा ।
इस शैली कीविशेषताएें थी- नोकदार तिपतिया, मेहराव, मेहरावी डाटदार छतें, इमारतों का इठपहला रूप, गुम्बज, मीनारे आदि ।
दोनों शैलियों के समन्वय से राजस्थानी स्थापत्य का रूप निखरआया ।
हिन्दू कारीगरों ने मुस्लिम आदेशों के अनुरूप जिन भवनों का निर्माण किया हैं उन्हें सुप्रसिद्ध कला विशेषज्ञ पफर्गुसन ने इण्डों-सारसेनिक शैली की संज्ञा दी है । -






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