भारतीय संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत देश के राष्ट्रपति को संसद के
सत्रावसान की अवधि में अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है औऱ इन
अध्यादेशों का प्रभाव व शक्तियां संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के बराबर ही
होती हैं परंतु ये अल्पकालिक होती हैं। संविधान अध्यादेश जारी करने के
लिहाज से कार्यपालिका को सीमित अधिकार ही प्रदान करता है ताकि कार्यपालिका
अति आवश्यक अवसरों पर ही अध्यादेश ला सके। अध्यादेश एक संवैधानिक प्रक्रिया
है जिसके माध्यम से राष्ट्रपति एवं राज्यपाल उस समय कानून लागू करने का
कार्य करते हैं जब संसद अथवा राज्य विधानमण्डल के दोनों सदन या कोई एक सदन
सत्र में न हो तथा कानून लागू करना अति आवश्यक हो गया हो। राष्ट्रपति को
अनुच्छेद-123 के तहत तथा राज्यपाल को अनुच्छेद 213 के तहत अध्यादेश लाने के
अधिकार प्रदान किए गए हैं। सामान्य परिस्थिति में विधायी प्रक्रिया के लिए
अध्यादेश का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि अध्यादेश असामान्य
परिस्थिति में अर्थात् उस स्थिति में लाया जाता है जब संसद के दोनों सदनों
या कोई एक सदन के सत्र में न होने के कारण सामान्य विधायी प्रक्रिया का
अनुसरण किया जाना संभव न हो। राष्ट्रपति किसी भी अध्यादेश को प्रधानमंत्री
के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल की सलाह पर ही जारी करता है। अध्यादेश लाने की
प्रक्रिया न तो सामान्य रूप से कानून बनाने की प्रक्रिया का स्थान ले सकती
है और न ही लेना चाहिए। लोकतंत्र में ऐसी स्थिति संभव है जब लोकसभा में
बहुमत पाने वाली पार्टी को राज्यसभा में बहुमत प्राप्त न हो। ऐसी स्थिति
में कानून पारित करने के लिए संयुक्त सत्र बुलाकर बहुमत प्राप्त कर लेना
कोई रास्ता नहीं होता है। उन्होंने आगे कहा कि वर्ष 1952 से लेकर अभी तक
सिर्फ चार बार संयुक्त सत्र बुलाया गया है। इससे साबित होता है कि विशेष
परिस्थिति में ही इसका उपयोग किया गया है।
अध्यादेेश के प्रयोग की सीमाएं-
क्या है डीसी बधवा बनाम बिहार सरकार का मामला-
डी.सी. बाधवा बनाम बिहार राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की पाँच
जजों की पीठ ने बार-बार अध्यादेश की शक्ति के प्रयोग की आलोचना की तथा कहा
कि यह विधानमण्डल के विधि बनाने की शक्ति का कार्यपालिका के द्वारा अपहरण
है। इस शक्ति का प्रयोग असाधारण परिस्थितियों में किया जाना चाहिए न कि
राजनीतिक उद्देश्य से। ज्ञातव्य है कि डी.सी बाधवा ने अध्यादेश की शक्ति के
दुरुपयोग का उदाहरण देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में यह तथ्य प्रस्तुत किया
कि बिहार राज्य में 1967 से 1981 के बीच कुल 256 अध्यादेश जारी किए गए तथा
उन्हें विधानमण्डल द्वारा अनुमोदित किए बगैर बार-बार जारी करके 14 वर्षों
तक जीवित रखा गया।
गौरतलब है कि 1952 से 2014 के बीच 668 बार अध्यादेश जारी किये गये हैं।
वहीं 1967 से 1981 के बीच बिहार में 256 अध्यादेश जारी हुए जबकि विधानसभा
ने 189 कानून ही बनाए। वहीं यह चौंकाने वाली बात यह है कि 18 जनवरी 1986 को
बिहार के राज्यपाल जगन्नाथ कौशल ने एक दिन में 58 अध्यादेश जारी किया था।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए-1 में 36 और यूपीए-2
में 25 अध्यादेश लाए गए थे। वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा भी अब तक करीब 25
लाए जा चुके हैं।
राज्यपाल के द्वारा लाया जाने वाला अध्यादेश
अनुच्छेद 213 यह उपबन्ध करता है कि जब राज्य का विधानमण्डल सत्र में
नहीं है और राज्यपाल को इस बात का समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियाँ
विद्यमान हैं जिनमें तुरंत कार्यवाही करना अपेक्षित है तो वह अध्यादेश जारी
कर सकेगा। जिन राज्यों में दो सदन हैं उन राज्यों में दोनों सदनों का सत्र
में नहीं होना जरूरी है। राज्यपाल केवल उन्हीं विषयों से संबंधित अध्यादेश
जारी कर सकता है जिन विषयों तक राज्य का विधानमण्डल विधि निर्माण कर सकता
है। राज्यपाल के द्वारा जारी किए गए अध्यादेश को भी राज्य विधानमण्डल के
सत्र में आने के 6 सप्ताह के भीतर विधानमण्डल का अनुमोदन प्राप्त करना
जरूरी है अन्यथा वह निष्प्रभावी हो जाएगा। यद्यपि राज्यपाल को राष्ट्रपति
की ही तरह अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्राप्त है किंतु इस संबंध में
राज्यपाल की इस शक्ति पर कुछ सीमाएँ लगाई गई हैं जो राष्ट्रपति की शक्ति पर
नहीं हैं।
सीमाएँ
जिस विधेयक को विधानमण्डल में प्रस्तुत करने से पहले राष्ट्रपति की
स्वीकृति लेनी पड़ती है उस विषय पर अध्यादेश जारी करने से पूर्व राज्यपाल
को राष्ट्रपति से अनुमति लेनी पड़ेगी। राज्यपाल जिन विषयों पर राष्ट्रपति
का विचार लेना आवश्यक समझता है, उस विषय पर अध्यादेश जारी करने से पहले वह
राष्ट्रपति से परामर्श लेगा।उल्लेखनीय है कि राज्यपाल द्वारा जारी किया गया
अध्यादेश अनुच्छेद-226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय के द्वारा दिए गए किसी भी
निर्णय को अधिभावी (Override) कर सकता है।
The ordinance seeks to destabilize the balance between executive and legislative powers by ignoring arbitrary positions and the rule of law in the constitutional system.
लोकसभा विसर्जित होने पर हंगामी प्रधानमंञी राष्ट्रपती को अध्यादेश जारी करने के लिये आदेशीत कर सकते हैं क्या ?
अध्यादेश क्या है
adhyadesh kise kahte hai
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Adyadesh kya hai