डायन प्रथा : इसे डाकन प्रथा के नाम से भी जाना जाता है। यह एक कुप्रथा थी जो पहले राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में काफी प्रचलित थी। इस प्रथा में ग्रामीण औरतों पर डाकन यानी अपनी तांत्रिक शक्तियों से नन्हें शिशुओं को मारने वाली पर अंधविश्वास से उस पर आरोप लगाकर निर्दयतापूर्ण मार दिया जाता था।
बताया जाता है की इस प्रथा के कारण सैकड़ों स्त्रियों को मार दिया जाता था। इस प्रथा पर सर्वप्रथम अप्रैल 1853 ईस्वी में मेवाड़ में महाराणा स्वरुप सिंह के समय में खेरवाड़ा (उदयपुर) में इसे गैर कानूनी घोषित कर दिया था।
आज के समय में विज्ञान की बात माने को ये सब अंधविश्वास लगता है। लेकिन पौराणिक गाथाओ की माने तो ये सब सच के काफी निकट लगता है। वैसे यह प्रथा मुख्य रूप से राजस्थान में देखने को मिलती थी, मगर पूर्वी उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के कुछ पिछड़े हुए इलाके हैं जहाँ यह कुप्रथा ग़ैरकानूनी होने के बावजूद भी अपने पाँव पसार रही है। असम और बंगाल और झारखंड में यह वीभत्स रूप में आज भी जीवित है।
आम तौर पर किसी महिला को उसकी जाती या संपत्ति हड़पने के विचार से भी डायन कहा जाता है, जिसकी पुष्टि ओझा कहे जानेवाले पुरुष या गुनिया कही जानेवाली औरत द्वारा कराई जाती है। इसके बाद शुरू हो जाता है अत्याचारों का सिलसिला।
किसी महिला को डायन बताने के पीछे जो कारण है, वे इस प्रकार हैं – भूमि और संपत्ति विवाद, अंधविश्वास, अशिक्षा, जागरूकता एवं जानकारी का अभाव, यौन शोषण, भूत-प्रेत, ओझा-गुणी पर विश्वास, आर्थिक स्थिति का ठीक न होना, व्यक्तिगत दुश्मनी, स्वास्थ्य सेवा का अभाव।
बताया जाता है की यह प्रथा असम के मोरीगांव जिले से शुरू हुई और वहीं से डायन प्रथा का चलन शुरू हुआ। यह स्थान सम्पूर्ण भारत में काले जादू की विशेष राजधानी के नाम से जाना जाता है।
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2000 से 2016 के बीच देश के विभिन्न राज्यों में महिलाओं और पुरुषों पर डायन या पिशाच होने का ठप्पा लगा कर 2,500 से ज्यादा लोगों को मार दिया गया। उनमें से ज्यादातर महिलाएं थीं।
इस मामले में झारखंड का नाम सबसे ऊपर है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में वर्ष 2001 से 2014 के बीच डायन होने के आरोप में 464 महिलाओं की हत्या कर दी गई। उनमें से ज्यादातर आदिवासी तबके की थीं। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि एनसीआरबी के आंकड़े तस्वीर का असली रूप सामने नहीं लाते। डायन के नाम पर होने वाली हत्याओं की तादाद इससे कई गुनी ज्यादा है। लेकिन ग्रामीण इलाकों में डायन के खिलाफ लोगों की एकजुटता की वजह से ज्यादातर मामले पुलिस तक नहीं पहुंच पाते।
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