Brahm Samaj Ka Vibhajan ब्रह्म समाज का विभाजन

ब्रह्म समाज का विभाजन



GkExams on 12-07-2022


ब्रह्म समाज के बारें में : सबसे पहले तो आपको बता दे की इसकी स्थापना राजा राममोहन राय ने 20 अगस्त 1828 को की थी। ध्यान रहे की इस प्रकार के समाज (brahmo samaj principles) का लक्ष्य था - दानशीलता, दयालुता, सदाचार को प्रोत्साहित करना और सभी संप्रदायों व भिन्न-भिन्न धर्मावलंबियों और जातियों के बीच बंधुत्व की भावना मजबूत करना।


Brahm-Samaj-Ka-Vibhajan


वैसे यह बात सही है की इस समाज (brahmo samaj notes) ने हमेशा हिन्दू समाज को सुधारने की कोशिश की। इस समाज मे जो बुराइयां घुस आई उन सबको दूर करने की कोशिश की जैसे - सती प्रथा, बहुविवाह, अनमेल विवाह, स्त्री, शिक्षा, नशाखोरी आदि।


ब्रह्म समाज का विभाजन :




उपरोक्त सुधारों को देखते हुए ब्रह्मा समाज का प्रभाव दिन ब दिन बढ़ता ही गया और फिर भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में ब्रह्मा समाज की शाखाएं खुल गयीं। ब्रह्मा समाज (brahmo samaj of india) के दो महत्वपूर्ण नेता देवेन्द्रनाथ टैगोर और केशवचंद्र सेन थे। ब्रह्मा समाज के सन्देश को प्रसारित करने के लिए केशवचंद्र सेन ने मद्रास और बम्बई प्रेसिडेंसी की यात्राएँ की और बाद में उत्तर भारत में भी यात्राएँ कीं।


1866 ई. में ब्रह्मा समाज (conclusion of brahmo samaj) का विभाजन हो गया क्योकि केशवचंद्र सेन के विचार मूल ब्रहम समाज के विचारों की तुलना में अत्यधिक क्रांतिकारी व उग्र थे। वे जाति व रीति-रिवाजों के बंधन और धर्म-ग्रंथों के प्राधिकार से मुक्ति के पक्षधर थे।


राजा राममोहन राय के बारें में :




इनका जन्म 22 मई 1772 को पश्चिम बंगाल में हुगली जिले के राधानगर गांव में हुआ था। राजा राम मोहन राय दिमाग के इतने तेज थे कि महज 15 साल की उम्र में उन्होंने बांग्ला, अरबी, संस्कृत और पारसी भाषा सीख ली थी। आपको बता दे की राजा राममोहन मूर्तिपूजा और रूढ़िवादी हिन्दू परंपराओं के विरुद्ध थे, यही नहीं बल्कि वह सभी प्रकार के अंधविश्वास के खिलाफ थे।


राजा राम मोहन राय (raja ram mohan roy history) सती प्रथा, बाल विवाह जैसी कुरीतियों के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक के जरिए सती प्रथा के खिलाफ तो कानून भी बनवा दिया था। उनका मानना था जब वेदों में सती प्रथा का जिक्र नहीं है तो ये समाज भी नहीं होने चाहिए।


इन सबके अलावा राय हमेशा महिलाओं के हक के लिए भी लड़ते थे। राय ने महिलाओं के संपत्ति में हक जैसे कई अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। कुल मिलाकर बात ये थी की राजा राम मोहन राय समाज को कुरीतियों से आजाद कराना चाहते थे।


इसका नतीजा ये हुआ की 19वीं सदी के सामाजिक और धार्मिक सुधारक राजा राम मोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की जिसका उद्देश्य समाज में प्रचलित सामाजिक बुराइयों से लड़ना था। इसलिए आज प्रतिवर्ष पुरे भारत में राजा राम मोहन राय की जयंती हर्सोल्लास के साथ मनाई जाती है उनके द्वारा किए गए कार्यों को सम्मानित किया जाता है।




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