दासी भारमली की कहानी : इससे पहले आपने मेड़ता के राव विरमदेव और राव जयमल के बारे में पढ़ते हुए जोधपुर के शासक राव मालदेव के बारे में जरुर पढ़ा होगा। अगर नही तो आपको बता दे की राव मालदेव अपने समय के राजपुताना के सर्वाधिक शक्तिशाली शासक थे वे बहुत शूरवीर व धनी व्यक्ति थे उन्होंने जोधपुर राज्य की सीमाओं का काफी विस्तार किया था।
और उनकी सेना में राव जैता व कुंपा नामक शूरवीर सेनापति थे। यदि मालदेव राव विरमदेव व उनके पुत्र वीर शिरोमणि जयमल से बैर न रखते और जयमल द्वारा प्रस्तावित संधि मान लेते जिसमे राव जयमल ने शान्ति के लिए अपने पैत्रिक टिकाई राज्य जोधपुर की अधीनता तक स्वीकार करने की पेशकश की थी।
जयमल जैसे वीर और जैता कुंपा जैसे सेनापतियों के होते राव मालदेव दिल्ली को फतह करने तक समर्थ हो जाते। रावमालदेव के 31 वर्ष के शासन काल तक पुरे भारत में उनकी टक्कर का कोई राजा नही था। लेकिन ये परम शूरवीर राजा अपनी एक रूठी रानी को पुरी जिन्दगी मना नही सके और वो रानी मरते दम तक अपने शूरवीर पति राव मालदेव से रूठी रही।
दरअसल हुआ यूँ की राव मालदेव का विवाह बैसाख सुदी 4 वि.स. 1592 को जैसलमेर के शासक राव लुनकरण की राजकुमारी उमादे (Umade Bhattiyani) के साथ हुआ था। उमादे अपनी सुन्दरता व चतुरता के लिए प्रसिद्ध थी। राजकुमारी उमादे राव मालदेव जैसा शूरवीर और महाप्रतापी राजा को पति के रूप में पाकर बहुत प्रसन्नचित थी।
विवाह संपन्न होने के बाद राव मालदेव अपने सरदारों व सम्बन्धियों के साथ महफ़िल में बैठ गए और रानी उमादे सुहाग की सेज पर उनकी राह देखती-देखती थक गई। इस पर रानी ने अपनी खास दासी भारमली जिसे रानी को दहेज़ में दिया गया था को राव जी को बुलाने भेजा।
दासी भारमली राव मालदेव जी को बुलाने गई, खुबसूरत दासी को नशे में चूर राव जी ने रानी समझ कर अपने पास बिठा लिया काफी वक्त गुजरने के बाद भी भारमली के न आने पर रानी जब राव जी कक्ष में गई और भारमली को उनके आगोस में देख रानी ने वह आरती वाला थाल जो राव जी की आरती के लिए सजा रखा था यह कह कर की अब राव मालदेव मेरे लायक नही रहे उलट दिया।
लेकिन सुबह हुई तब राव मालदेव जी नशा उतरा तब वे बहुत शर्मिंदा हुए और रानी के पास गए लेकिन तब तक वह रानी उमादे (who is the famous by the name of ruthi rani) रूठ चुकी थी। और इस कारण एक शक्तिशाली राजा को बिना दुल्हन के एक दासी को लेकर वापस बारात लानी पड़ी। ये रानी आजीवन राव मालदेव से रूठी ही रही और इतिहास में "रूठी रानी" के नाम से मशहूर हुई।
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