1 ग्रेगोर जॉन मेण्डल
2 मेण्डल का ऐतिहासिक संकरण – मेण्डल का संकरण प्रयोग
3 मेण्डल का संकरण प्रयोग
3.0.1 एक संकर संकरण ( Monohybrid cross) –
3.0.2 द्वि संकर संकरण ( Dihybrid cross) –
3.0.3 बहुसंकर संकरण ( Polyhybrid cross) –
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ग्रेगोर जॉन मेण्डल
ग्रेगोर जॉन मेण्डल का जन्म 22 जुलाई 1822 ई० को आस्ट्रिया के हीन्जेंन्डार्फ नगर में हुआ था | 1840 ई० में जिम्नेजियम से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात तत्कालीन आस्ट्रिया ( अब जेकोस्लोवाकिया ) के ब्रून नगर में आगस्टीनियन चर्च में ग्रेगोर की पदवी के साथ कार्यभार ग्रहण किया |जिसके पश्चात वह ग्रेगोर नाम से ही पहचाने जाने लगे |1851 ई० में चर्च की पादरी पद पर कार्य करते समय उन्हें प्राकृतिक विज्ञान के अध्धयन हेतु वियेना विश्वविद्यालय भेजा गया जहाँ उन्होंने गणित, भौतिक विज्ञान, तथा प्राकृतिक विज्ञान का अध्धयन किया |इसके पश्चात उन्होंने ब्रून नगर के ही एक हाईस्कूल में 14 वर्षों तक प्राकृतिक एवं भौतिक विज्ञान का अध्यापन किया एवं उसी समय पौधों के विभिन्न लक्षणों का अध्धयन किया तथा अपना ऐतिहासिक संकरण किया जिसे मेण्डल का संकरण प्रयोग कहा गया |
मेण्डल का ऐतिहासिक संकरण – मेण्डल का संकरण प्रयोग
ग्रेगोर जॉन मेण्डल ने अपना संकरण प्रयोग 1857 ई० में वाटिका मटर (Piscum sativum) पौधे पर किया एवं अपने प्रयोगों के निष्कर्षो को 1866 ई० में मेण्डल के वंशागति के नियमों (Mendal’s Law of Inheritance) के रूप में प्रकाशित किया | 1884 ई० में उनकी मृत्यु के 16 वर्षो के बाद 1900 ई० में हालैण्ड के ह्यूगो डी ब्रीज, जर्मनी के कार्ल कोरेन्स, तथा आस्ट्रिया के ही ईo वीo स्मैक ने अलग-अलग मेण्डल के प्रयोग को दोहराया तथा उनके नियमो को सत्य पाया | इसी कारण इन तीनो वैज्ञानिको को ‘मेण्डलवाद के पुर्शोधक’ (rediscoverers of Mendelism) तथा मेण्डल को ‘आनुवंशिकी का जनक’ ( father of Genetics) कहा गया |
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मेण्डल का संकरण प्रयोग
ईच्छित लक्षणों की संतान प्राप्ति हेतु आनुवंशिक रूप से भिन्न दो प्राणियों के मध्य अपनायी जाने वाली कृत्रिम परपरागण की क्रियाविधि को संकरण (hybridization) कहते हैं | इस क्रिया में मादा जनक पौधे के पुष्पों के परिपक्वन के पूर्व ही उनके परागकोषों को निकाल देते हैं | इसके पश्चात नर जनक वाले पौधे से परागकण लेकर मादा जनक के वर्तिकाग्र पर छिडककर कृत्रिम परपरागण की क्रिया करायी जाती हैं |
परागकोषों को निकालने की क्रिया विपुंसन (emasculation) कहलाती हैं |
संकरण (hybridization) की क्रियाविधि में जो पौधे प्रयोग किये गए उन्हें जनकीय पौधे (parental generation) कहते हैं |
संकरण (hybridization) की क्रियाधि द्वारा प्राप्त संतान संकर संतान (hybrid) कहलाती हैं |
मेण्डल ने अपने प्रयोग हेतु एकबार में केवल एक ही लक्षण पर विचार किया |
मेण्डल ने अपने प्रयोग को प्रथम पीढ़ी (F 1) तक ही सीमित नही रखा बल्कि द्वितीय पीढ़ी (F2) एवं तृतीय पीढ़ी (F3) तक प्रयोग किया |
मेण्डल ने अपने प्रयोग द्वारा विभिन्न पीढ़ियों में प्राप्त भिन्न-भिन्न उपजातियों का संख्यात्मक लेखा तैयार किया |
मेंण्डल द्वारा चुने गए सात लक्षण निम्न लिखित हैं –
बीज का आकार — गोल (R) या झुर्रीदार (r)
फली का रंग — हरा (G) या पीला (g)
पुष्प का रंग या बीजचोल का रंग — ग्रे या सफेद
बीज पत्र का रंग — पीला (Y) या हरा (y)
फली का आकार — फुला हुआ या संकुचित
पुष्प स्थिति — अक्षीय या शीर्षस्थ
तने की लम्बाई — लम्बा (L) या बौना (l)
मेण्डल ने अपने प्रयोग के अंतर्गत लक्षUजो निम्नलिखित हैं –
एक संकर संकरण ( Monohybrid cross) –
एक जोड़ी विरोधी लक्षणों को ध्यान में रखकर दो भिन्न पौधों के मध्य कराया गया संकरण , एक संकर संकरण कहलाता हैं | जैसे – एक गोल बीज वाले पौधे का संकरण झुर्रीदार बीज वाले पौधे के साथ , या लम्बे तने वाले पौधे का संकरण बौने तने वाले पौधे के साथ |
द्वि संकर संकरण ( Dihybrid cross) –
दो जोड़ी विरोधी लक्षणों को ध्यान में रखकर दो भिन्न पौधों के मध्य कराया गया संकरण , द्वि संकर संकरण कहलाता हैं | जैसे – एक गोल और हरे बीज वाले पौधे का संकरण झुर्रीदार और पीले बीज वाले पौधे के साथ |
बहुसंकर संकरण ( Polyhybrid cross) –
दो से अधिक विरोधी लक्षणों वाले पौधे को ध्यान में रखकर दो भिन्न पौधों के मध्य कराया गया संकरण , एक संकर संकरण कहलाता हैं | लक्षणों की संख्या के आधार पर इन्हें क्रमश: त्रिसंकर (trihybrid), चतुर्संकर(tetrahybrid) , पंचसंकर (pentahybrid) संकरण इत्यादि कहते हैं |
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