उत्तरकालीन Mugal Samrat उत्तरकालीन मुगल सम्राट

उत्तरकालीन मुगल सम्राट



GkExams on 03-02-2019


उत्तर कालीन मुगल साम्राज्य

औरंगजेब की मृत्यु 1707 ई0 में अहमद नगर में हुई उसे दौलताबाद में दफना दिया गया। इस सत्र उसके तीन पुत्र जीवित थे-मुअज्जम, आजम एवं कामबकश औरंगजेब राज्य के बंटवारे के लिए बसीयत लिखा गया जिसये उत्तराधिकार का युद्ध न हो।
वसीयत के अनुसार उसकी इच्छा थी कि इसके सबसे मिले जबकि सबसे छोटे कामबक्श को बीजापुर तथा हैदराबाद के सूबे मिलने थे। औरंगजेब के मृत्यु के समय मुअज्जम अफगानिस्तान में जमरुद नामक स्थान पर था। वह सीधा दिल्ली आया लाहौर के निकट उसने बहादुरशाह के नाम से अपने को बादशाह घोषित कर लिया। आजम ने आगरा पर अधिकार करने के लिए जजाऊ के पास अपना शिविर लगाया फलस्वरूप जजाऊ का युद्ध हुआ।
जजाऊ का युद्ध (1707):- आगरा के पास स्थित इसी स्थान पर बहादुर शाह ने आजम को पराजित कर मार डाला।
बीजापुर का युद्ध (1709):- यह युद्ध बहादुरशाह और कामबक्श के बीच हुआ। इसमें भी बहादुर शाह की विजय हुई। इस प्रकार बहादुर शाह दिल्ली का शासक बना।

बहादुरश्शाह प्रथम (1707-12)

अन्य नाम:- शाह आलम प्रथम
उपाधि:- शाहे-बेखबर
बहादुर शाह ने अपने समकालीन सभी शक्तियों से मेल-मिलाप की नीति अपनायी। मराठों को दक्कखन की सरदेशमुखी दे दी परन्तु चैथ का अधिकार नही दिया केवल सिखों का विरोध बन्दा बहादुर के नेतृत्व में जारी रहा।
बहादुर शाह के दरबार में 1711 ई0 में एक डच प्रतिनिधि मण्डल जोशुआ केटेलार के नेतृत्व में आया। इस प्रतिनिध मण्डल के स्वागत में एक पुर्तगाली स्त्री जुलियाना की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसे ’’बीबी, फिदवा आदि उपाधियाँ दी गयी थी।
1712 में बहादुर शाह की मृत्यु हो गयी इस कारण पुनः गृह युद्ध छिड़ गया। इसी गृह युद्ध के कारण उसका शव दस सप्ताह बाद ही दफनाया जा सका। बहादुर शाह के चार पुत्र थे जहाँदार शाह, अजीम उस शान, रफी उसशान, और जहानशाह। इस उत्तराधिकार संघर्ष में जहाँदार शाह विजयी हुआ क्योंकि उसे अपने सामन्त जुल्फिकार खाँ का समर्थन मिला।

जहाँदार शाह (1712-13)

जहाँदार शाह को गद्दी इसलिए प्राप्त हुई क्योंकि उसे इरानी गुट के जुल्फिकार खाँ का समर्थन प्राप्त था। इसके समय की प्रमुख घटनायें निम्नलिखित है-

  1. जजिया कर समाप्त कर दिया गया।
  2. मराठों को चैथ और सरदेशमुखी इस शर्त पर दी गयी की उसकी वसूली मुगल अधिकारी करेंगे और बाद में उसे मराठें को दे देगें।
  3. जयसिंह को मिर्जा राजा की उपाधि दी।
  4. इसके समय भी केवल शिक्ख ही असन्तुष्ट रहे बाकी सभी वर्गों से इसने मेल-मिलाप की नीति अपनायी।
  5. जहाँदार शाह लालकुँवर नामक पर आसक्त था।

जहाँदार के भतीजे फरुखसियर ने सम्राट के पद का दावा किया और उसके दावे को सैयद-बन्धुओं ने समर्थन दिया। इस प्रकार जहाँदार को पराजित कर उसकी हत्या कर दी गयी तथा फर्रुखसियर शासक बना।

फर्रुखसियर (1713-19)

फर्रुखसियर को गद्दी सैयद बन्धुओं अब्दुल्ला खाँ हुसैन खाँ के कारण प्राप्त हुई। अब्दुल्ला खाँ को वजीर का पद तथा हुसैन को मीर बक्शी का पद मिला।

  1. फर्रुखसियर ने जयसिंह को सवाई की उपाधि दी।
  2. गद्दी पर बैठते ही जजिया को हटाने की घोषणा की तथा तीर्थ यात्री कर भी हटा दिये।

1717 ई0 में एक फरमान के जरिये अंग्रेजों को व्यापारिक छूट प्रदान की गई (दक्षिण में)। इसे कम्पनी का मैग्नाकार्टा कहा गया।
3. 1716 ई0 में बन्दा बहादुर को दिल्ली में फाँसी दे दी गयी।


सैयद बन्धुओं में छोटे भाई हुसैन ने मराठा पेशवा बालाजी विश्वनाथ से एक सन्धि की जिसके तहत दक्षिण का चैथ और सरदेशमुखी वसूलने का अधिकार मराठों को मिल गया। बदले में शाहू 15000 घुड़सवारों के साथ सैयद बन्धुओें को समर्थन देने के लिए तैयार हो गया परन्तु इस सन्धि पर हस्ताक्षर करने से मना करने पर फर्रुखसियर की हत्या कर दी गयी। मुगल साम्राज्य के इतिहास में किसी अमीर द्वारा शासक की हत्या का यह पहला उदाहरण है। इसके बाद रफी-उस-शान के पुत्र रफी उद्दरजात को शासक बनाया गया।

रफीउद्दरजात (28 फरवीर 1719- 4 जून 1719)

यह सबसे कम समय तक शासन करने वाला मुगल शासक था। इसके समय की सबसे प्रमुख घटना निकूसियर का विद्रोह था। निकूसियर औरंगजेब के पुत्र अकबर का पुत्र था। इसकी मृत्यु क्षयरोग से हुई।

रफीउद्दौला (6 जून 1719-17 सितम्बर 1719)

उपाधि:- शाहजहाँ द्वितीय
सैय्यद बन्धुओं ने इसे भी गद्दी पर बैठाया, यह अफीम का आदी था। इसकी मृत्यु पेचिश से हुई।

मुहम्मद शाह (1719-48)

अन्य नाम:- रौशन अख्तर
उपाधि:-रंगीला
मुहम्मद शाह, बहादुर शाह के सबसे छोटे पुत्र जहानशाह का पुत्र था। इसे रंगीला की उपाधि दी गयी थी। इसके काल की प्रमुख घटनायें निम्नलिखित हैं-

  1. सैय्यद बन्धुओं का पतन।
  2. स्वायत्त राज्यों का उदय-जैसे-हैदराबाद, अवध, बंगाल, बिहार आदि।
  3. विदेशी आक्रमण नादिरशाह द्वारा 1739 में।
  4. बाजीराव प्रथम द्वारा 1737 ई0 में दिल्ली पर चढ़ाई।

कुल मिलाकर मुहम्मद शाह के समय में ही प्रान्तीय राजवंशों का उदय हुआ एवं दिल्ली सल्तनत की सत्ता वास्तविक रूप में छिन्न-भिन्न हो गई।

अहमद शाह (1748-54)

मुहम्मद शाह की मृत्यु के बाद उसका एक मात्र पुत्र अहमदशाह गद्दी पर बैठा। इसका जन्म एक नर्तकी से हुआ था। इसके समय में मुगल अर्थ व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई। सैनिकों को वेतन देने के लिए पैसा नहीं बचा। फलस्वरूप कई स्थानों पर सेना ने विद्रोह कर दिया। इसके समय में राजकीय काम-काज इसकी माँ ऊधमबाई देख रही थी। इसी के समय में अहमद शाह अब्दाली ने अपना प्रथम आक्रमण 1747 में किया। इसके वजीर इदामुलमुल्क ने अहमदशाह को गद्दी से हटवाकर जहाँदार शाह के पुत्र आलमगीर द्वितीय को गद्दी पर बैठाया।

आलमगीर द्वितीय

  1. इसी के काल में अब्दाली दिल्ली तक आ गया।
  2. प्लासी के युद्ध के समय यही दिल्ली का शासक था।
  3. इसकी हत्या इसके वजीर इमादुल मुल्क ने कर दी।

शाहजहाँ तृतीय (1758-59)

आलमगीर द्वितीय के समय उसका पुत्र अली गौहर बिहार में था जहाँ उसने शाह आलम द्वितीय के नाम से स्वयं को सम्राट घोषित किया। इसी समय दिल्ली में इमादुलमुल्क ने कामबक्श के पौत्र शाहजहाँ तृतीय को सिंहासन पर बिठा दिया। इस प्रकार पहली बार दिल्ली की गद्दी पर दो अलग-अलग शासक सिंहासनरुढ़ हुए।

शाह आलम द्वितीय (1759-1806)

अन्य नाम:-अली गौहर,

  1. इसी के समय में पानीपत का तृतीय युद्ध 1761 ई0 में हुआ।
  2. बक्सर का युद्ध 1764 ई0 में हुआ। इस युद्ध में पराजय के बाद शाह आलम द्वितीय क्लाइव को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी प्रदान की। इसी के बाद यह अंग्रेजों के संरक्षण में 1765 से 72 तक इलाहाबाद में रहा।
  3. 1772 में मराठा सरदार महाद जी सिंधिया इसे दिल्ली ले आये परन्तु नजीबुद्दौला के पौत्र गुलाम कादिर ने 1788 ई0 में शाहआलम को अन्धा बना दिया।
  4. 1803 ई0 में अंग्रेज सेनापति लेक ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। अब मुगल शासक केवल अंग्रेजों के पेंशनर बनकर रह गये।

अकबर-द्वितीय (1806-37)

  1. इसने राजा राम मोहन राय को राजा की उपाधि।
  2. 1835 ई0 से मुगलों के सिक्के चलने बन्द हो गये।
  3. एमहस्र्ट पहला अंग्रेज गर्वनर जनरल था। जिसने अकबर द्वितीय से बराबरी के स्तर पर मुलाकात की।

बहादुरशाह-द्वितीय (1837-57)

यह अन्तिम मुगल बादशाह था। 1857 ई0 का विद्रोह इसी के समय में हुआ। इसे ही इस विद्रोह का नेता बनाया गया। इसके दो पुत्रों को गोली मार दी गयी। जबकि इसको हुमायूँ के मकबरे से गिरफ्तार कर रंगून निर्वासित कर दिया गया। वहीं 1862 ई0 में इसकी मृत्यु हो गयी।
बहादुर शाह एक अच्छा गजल लेखक था उसने जफर नाम से अनेक शायरी लिखी। उसकी एक प्रसिद्ध नज्म है-

’’न किसी की आँख का नूर हूँ।
न किसी के दिल का करार हूँ।।
जो किसी के काम न आ सका।
मैं वह बुझता हुआ चिराग हूँ।।

मुगल दरबार में विभिन्न गुट

उत्तर कालीन मुगल दरबार में मुख्य रूप से चार गुट कार्य कर रहे थे। इनमें हिन्दुस्तानी अथवा भारतीय, तुरानी, ईरानी और अफगानी प्रमुख थे।
हिन्दुस्तानी गुट:- इस गुट के नेता सैय्यद बन्धु थे।

सैय्यद बन्धु

सैय्यद बन्धु भारतीय इतिहास में राजा बनाने वाले के नाम से विख्यात है। इन्होंने कुल चार लोगों फर्रुखसियर, रफी- उद्दरजात, रफी-उद्दौला एवं मुहम्मद शाह को राजा बनाया।
सैय्यद बन्धु दो भाई अब्दुल्ला खाँ बाराहा (हसन अली) एवं हुसैन अली खाँ बाराह थे। बाराहा शब्द इनके गाँव बाढ़ा से बिगड़ कर बना हुआ शब्द था। यह गाँव पटियाला के समीप था। सैय्यद बन्धुओं में बड़े भाई अब्दुल्ला खाँ को वजीर का पद दिया गया जबकि छोटे भाई हुसैन खाँ को मीर-बक्शी का। सैय्यद बन्धुओं के विरोधी नेताओं में तूरानी दल के चिनकिलच खाँ अमीन खाँ का प्रमुख योगदान था। इन्हीं के प्रयासों से मुहम्मद शाह रंगीला के समय में इन दोनों भाइयों की हत्या कर दी गयी। पहले छोटे भाई को मारा गया फिर बड़े भाई को जहर दे दिया गया।

तुरानी गुट

ये मध्य एशिया के सुन्नी मुसलमान थे सैय्यद बन्धुओं के पतन के बाद मुगल दरबार में इसी गुट का बोल बाला था। इस गुट में निजामुलमुल्क, अमीन खाँ और जकारिया खाँ शामिल थे।

ईरानी गुट

ये शिया मुसलमान थे। इस गुट में जुल्फिकार खाँ, सआदत खाँ अमीर खाँ, इसहाॅक खाँ प्रमुख थे।

अफगानी गुट

इस गुट में ’अली मुहम्मद खाँ एवं मुहम्मद खाँ बंगस प्रमुख थे।

विदेशी आक्रमण

उत्तर कालीन मुगल शासकों के समय में दो विदेशी आक्रमण नादिरशाह और अहमद शाह अब्दाली के हुए।
नादिरशाह का आक्रमण:- नादिरशाह फारस का शासक था। इसे ईरान का नेपोलियन भी कहा जाता है। इसने अपनी जिन्दगी एक चरवाहे के रूप में प्रारम्भ की। 1739 ई0 में भारत को लूटने की इच्छा से उसने आक्रमण किया।
1738 ई0 में काबुल पर अधिकार किया। फिर लाहौर पर कब्जा किया। इस समय काबुल का शासक नासिर खाँ था। फरवरी 1739 में भारतीय क्षेत्र पंजाब पर उसने अपना पहला आक्रमण किया। परणिाम स्वरूप मुहम्मद शाह अपने मीर बक्शी खाने के दौरान तथा निजामुल मुल्क और सआदत खाँ को लेकर करनाल पहुँचा। फलस्वरूप करनाल का प्रसिद्ध युद्ध हुआ।


करनाल का युद्ध (24 फरवरी 1739 ई0):- करनाल का युद्ध केवल तीन घण्टे चला, मुहम्मद शाह का सेना पति रवाने दौरान युद्ध में मारा गया। निजामुलमुल्क की मध्यस्तता से अन्ततः एकशान्ति समझौता हो गया। इससे प्रसन्न होकर मुहम्मद शाह ने निजामुमुल्क को मीर बक्शी का पद प्रदान किया। मीर बक्शी का पद सआदत खाँ भी प्राप्त करना चाहता था। अतः उसने नादिरशाह से भेंट कर उससे दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया तथा 20 करोड़ रूपये मिलने का भरोसा दिलवाया।
नादिरशाह ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। अचानक यह अफवाह फैल गयी कि नादिर शाह की मृत्यु हो गयी। फलस्वरूप नगर में विद्रोह हो गया और नादिरशाह के 700 सैनिक मार दिये गये। इस पर नादिरशाह ने नरसंहार की आज्ञा दे दी। जिसमें लगभग 30,000 व्यक्ति मारे गये। दिल्ली से वापस जाते समय मुहम्मद शाह ने अपनी पुत्री का विवाह नादिरशाह के पुत्र नासिरुल्लाह मिर्जा से कर दिया। इसके अतिरिक्त कश्मीर का क्षेत्र भी उसे प्रदान किया नादिर शाह अपने साथ तख्त-ए-ताउस तथा कोहिनूर हीरा भी ले गया।

अहमद शाह अब्दाली:- नादिरशाह की हत्या हो जाने के बाद अहमदशाह अब्दाली कान्धार का स्वतन्त्र शासक बना उसने काबुल को भी जीत लिया और अफगान राज्य की नींव रखी। भारत पर इसके आक्रमण का उद्देश्य भी धन की प्राप्ति थी।
अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर सात बार आक्रमण किया। इसका पहला आक्रमण 1748 में पंजाब पर असफल रहा। अपने दूसरे आक्रमण में उसने पंजाब के गर्वनर मुइनुलमुल्क को पराजित किया। उसने तीसरा आक्रमण 1752 में पंजाब पर पुनः किया। 1757 ई0 में वह दिल्ली तक चला आया और अपनी वापसी से पहले-

  1. आलमगीर द्वितीय को सम्राट।
  2. इमादुलमुल्क को वजीर तथा
  3. रुहेला सरदार नजीबुद्दौला को मीर बक्शी एवं अपना मुख्य एजेण्ट बनाया।

रघुनाथ राव 1758 में दिल्ली पहुँचा और नजीबुद्दौला को दिल्ली से निकाल बाहर किया फिर पंजाब पहुँचा और वहाँ अब्दाली के पुत्र तैमूर खाँ को निकाल बाहर किया। अहमद शाह अब्दाली ने इस अपमान का बदला लेने के लिये पुनः आक्रमण किया। फलस्वरूप पानीपत का तृतीय युद्ध हुआ। इस युद्ध में विजय के बाद अब्दाली दिल्ली आया और शाह आलम-द्वितीय को सम्राट नजीबुद्दौला को मीर बक्शी और इमादुलमुल्क को वजीर नियुक्त किया। अहमद शाह अब्दाली ने अपना छठा आक्रमण 1764 में पंजाब के शिखों के विरूद्ध किया। जबकि सातवां अन्तिम आक्रमण पंजाब पर ही 1767 में किया गया परन्तु यह असफल रहा।

मुगल साम्राज्य के पतन के कारण

मुगल साम्राज्य के पतन के एक नही अनेक कारण थे। इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण योग्य उत्तराधिकारियों का अभाव था।

  1. अयोग्य उत्तराधिकारी:– औरंगजेब के मृत्यु के बाद उत्तर कालीन मुगल शासक आयोग्य थे। सभी के साथ कुछ-न-कुछ उपनाम जुड़ गये थे इस कारण औरंगजेब द्वारा स्थापित विस्तृत साम्राज्य का पतन होना स्वाभाविक था।
  2. दरबारी गुटबन्दी:- उत्तर-कालीन मुगल शासकों के समय में दरबार में विभिन्न गुट-जैसे-ईरानी, अफगानी, तुरानी आदि कार्य कर रहे थे। इसने भी इस साम्राज्य के पतन में अपना योगदान दिया।
  3. औरंगजेब का उत्तरदायित्व:- औरंगजेब की विभिन्न नीतियों से गैर मुस्लिमों में निराशा व्याप्त थी। इसका खामियाजा उसकी मृत्यु के बाद उत्तर कालीन मुगल शासकों को उठाना पड़ा।
  4. सैनिक अदक्षता:- ब्रिटिश लेखक आरविन ने सैनिक अदक्षता को ही इनके पतन का मूल कारण माना है।
  5. मनसबदारी व्यवस्था में द्वोष:- डा0 सतीश चन्द्र ने अपनी पुस्तक स्ंजवव डनहींसे में मनसबदारी व्यवस्था में आये द्वोष को ही मुगलों के पतन का प्रधान कारण माना। औरंगजेब के समय से ही जमादामी और जमा हासिल के बीच अन्तर लगातार बढ़ता जा रहा था। फलस्वरूप मनसबदारी व्यवस्था चरमरा गयी इससे उनकी सैन्य व्यवस्था भी कमजोर पड़ गयी।
  6. सामाजिक व्यवस्था:- डा0 जदुनाथ सरकार ने लिखा है कि इस समय भारतीय समाज सड़ गया था। जातियां उप जातियाँ में विभक्त हो गई थी मुस्लिम भारतीय मुस्लिम आदि अनेक सामाजिक वर्ग थे जिनके बीच कोई तारतम्य नही था। ऐसे समाज का पतन होना स्वाभाविक था।
  7. कृषि संकट:- डा0 इरफान हबीब ने कृषि संकट को ही मुगल साम्राज्य के पतन का प्रमुख कारण माना है। बर्नियार ने भी उल्लेख किया था कि कृषक लोग अपनी-अपनी जमीन छोड़कर अत्याचारों के कारण भाग जाते थे।

इस प्रकार उपर्युक्त सभी कारणों ने मुगल साम्राज्य के पतन में किसी न किसी प्रकार से योगदान किया।




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