बहुत बहुत धन्यवाद दोस्त
उस समय आक्रमणकारियों के भय से, महिलाएं पर्दा करने के लिए विवश थीं,परंतु अब हम स्वतंत्र हो चुके हैं अभी भी पुरुष समाज महिलाओं को, अपने से नीचे दिखाने और उनका शोषण करने के लिए इस प्रकार की प्रथाओं के लिए मजबूर करते हैं इस प्रकार की को प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए पुरुष समाज अकेला ही दोषी नहीं हैं, अपितु बुजुर्ग महिलाएं भी चाहती है कि घर में उनके बेटों के सामने बहुएं कंधे से कंधे मिला कर ना चलें उनके बेटा और घर के सभी लोग की सेवा करें और चार दिवारी के अंदर घूंघट करती रहे और अपनी अभिव्यक्ति की आजादी से ना रह सके, यदि, स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो उत्तर भारत की सभी सासे घूंघट में बंद एक दासी बहू के रूप में चाहती हैं, जो किसी भी ससुराल जान के सामने स्पष्ट रूप में बोल ना सके बस घूंघट करके बैठी रहे। जो जितना घूंघट करेगी उसको उसी उतना ही सम्मान मिलेगा।, उदाहरण तौर पर ➡ यदि किसी घर में चार बहु है, उनमें से जो सबसे ज्यादा घूंघट करती है और सास ननंद और पति से जितना डरती है या उनकी हां में हां मिलती है तो घर के लोग सर्वाधिक सम्मान उस बहु को देंगे घर ही नहीं अपितु आसपास गली मोहल्ला तथा बड़े परिवार के सभी लोग इस बहू की तारीफ करेंगे वहीं यदि दूसरी तरफ देखा जाए यदि उन्हें में से एक बहू अपने को शिक्षित करने का प्रयास करें तथा इस प्रकार की प्रथाओं का विरोध करेगी तो उसे बहुत ही अपराधिक तरीके से, दृष्टिकोण से देखा जाएगा। , यह सभी बातें मेरे स्वयं के अनुभवों के आधार पर कह रही हूं , मेरी ससुराल राजस्थान के बॉर्डर मध्य प्रदेश मुरैना जिला में है, मैं ग्वालियर की रहने वाली हूं ,मेरी देवरानी राजस्थान गंगापुर सिटी की है, मेरे ससुराल सीजन पर्दा प्रथा की बहुत शौकीन है मेरी देवरानी को इस प्रथा निभाने में कोई परेशानी महसूस नहीं होती वह कभी विरोध नहीं करती परंतु मैं असहज महसूस करती हूं, मुझे घुटन होती है तो घर वाले उसके घूंघट प्रथा के बखूबी निभाने के लिए उसकी प्रशंसा करते हैं। वही मैं पढ़ कर नौकरी प्राप्त चाहती हूं तो घरवाले इसके भी विरोधी हैं परंतु वह देवरानी कभी भी जॉब करने लिए नहीं सोचती है, तो घर वाले उसकी प्रशंसा तथा उसके लिए उपहार लाते रहते हैं तथा मुझे अपमानित करते रहते हैं। इस प्रकार स्पष्ट होता है समाज कभी चाहता ही नहीं है कि महिलाएं शिक्षित हो महिलाएं अपनी आत्मनिर्भरता के लिए खड़ीं हो या फिर महिलाओं से संबंधित कुप्रथाएं कभी समाप्त हो। आज भले ही हमारा देश सतंत्र है परंतु 80 प्रतिशत पुरुषों की सोच सिर्फ यही तक रह जाती है। परंतु यही व्यवहार उनकी बेटियों के साथ होता है तब उन्हें गलत लगता है तब तक बहुत देर हो जाती है।
पर्दा एक इस्लामी शब्द है जो अरबी भाषा में फारसी भाषा से आया। इसका अर्थ होता है "ढकना" या "अलग करना"। पर्दा प्रथा का एक पहलू है बुर्क़ा का चलन। बुर्का एक तरह का घूँघट है जो मुस्लिम समुदाय की महिलाएँ और लड़कियाँ कुछ खास जगहों पर खुद को पुरुषों की निगाह से अलग/दूर रखने के लिये इस्तेमाल करती हैं। भारत में हिन्दुओं में पर्दा प्रथा इसलाम की देन है। इस्लाम के प्रभाव से तथा इस्लामी आक्रमण के समय लुच्चों से बचाव के लिये हिन्दू स्त्रियाँ भी परदा करने लगीं। यह प्रथा मुग़ल शासकों के दौरान अपनी जड़े काफी मज़बूत की। वैसे इस प्रथा की शुरुआत भारत में12वीँ सदी में मानी जाती है। इसका ज्यादातर विस्तार राजस्थान के राजपुत जाति में था।
पर्दा एक इस्लामी शब्द है जो अरबी भाषा में फारसी भाषा से आया है । इसका अर्थ है “ढँकना” या “अलग करना” । पर्दा प्रथा का एक पहलू बुर्का प्रथा है । बुर्का एक तरह का घूंघट है जिसे मुस्लिम समुदाय की महिलाएं और लड़कियां कुछ खास जगहों पर पुरुषों की नजर से खुद को दूर रखने के लिए इस्तेमाल करती हैं। भारत में हिंदुओं के बीच पर्दा प्रथा इस्लाम की देन है । हिंदू महिलाओं ने भी इस्लामी आक्रमण के समय और इस्लाम के प्रभाव के कारण उन्हें बुराइयों से बचाने के लिए घूंघट पहनना शुरू कर दिया था। मुगल शासकों के दौरान इस प्रथा ने अपनी जड़ों को काफी मजबूत किया। वैसे, इस प्रथा की शुरुआत भारत में 12वीं शताब्दी में मानी जाती है । इसका अधिकांश विस्तार राजस्थान की राजपूत जाति में हुआ।
किस मुस्लिम ने शुरू किया और कब???
किस मुसलमान की शुरुआत हुई और कब ?
मुस्लिम सही जवाब है.. मुस्लिम ने ही औरतों को पर्दे में रहने की कुरीति शुरू की थी
मुस्लिम सही उत्तर है । मुस्लिम ही थे जिन्होंने महिलाओं को घूंघट में रखने की प्रथा शुरू की थी।
Thanks a lot dost
Unani ne
यूनानी है
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उस समय आक्रमणकारियों के भय से, महिलाएं पर्दा करने के लिए विवश थीं,परंतु अब हम स्वतंत्र हो चुके हैं अभी भी पुरुष समाज महिलाओं को, अपने से नीचे दिखाने और उनका शोषण करने के लिए इस प्रकार की प्रथाओं के लिए मजबूर करते हैं इस प्रकार की को प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए पुरुष समाज अकेला ही दोषी नहीं हैं, अपितु बुजुर्ग महिलाएं भी चाहती है कि घर में उनके बेटों के सामने बहुएं कंधे से कंधे मिला कर ना चलें उनके बेटा और घर के सभी लोग की सेवा करें और चार दिवारी के अंदर घूंघट करती रहे और अपनी अभिव्यक्ति की आजादी से ना रह सके, यदि, स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो उत्तर भारत की सभी सासे घूंघट में बंद एक दासी बहू के रूप में चाहती हैं, जो किसी भी ससुराल जान के सामने स्पष्ट रूप में बोल ना सके बस घूंघट करके बैठी रहे। जो जितना घूंघट करेगी उसको उसी उतना ही सम्मान मिलेगा।, उदाहरण तौर पर ➡ यदि किसी घर में चार बहु है, उनमें से जो सबसे ज्यादा घूंघट करती है और सास ननंद और पति से जितना डरती है या उनकी हां में हां मिलती है तो घर के लोग सर्वाधिक सम्मान उस बहु को देंगे घर ही नहीं अपितु आसपास गली मोहल्ला तथा बड़े परिवार के सभी लोग इस बहू की तारीफ करेंगे वहीं यदि दूसरी तरफ देखा जाए यदि उन्हें में से एक बहू अपने को शिक्षित करने का प्रयास करें तथा इस प्रकार की प्रथाओं का विरोध करेगी तो उसे बहुत ही अपराधिक तरीके से, दृष्टिकोण से देखा जाएगा। , यह सभी बातें मेरे स्वयं के अनुभवों के आधार पर कह रही हूं , मेरी ससुराल राजस्थान के बॉर्डर मध्य प्रदेश मुरैना जिला में है, मैं ग्वालियर की रहने वाली हूं ,मेरी देवरानी राजस्थान गंगापुर सिटी की है, मेरे ससुराल सीजन पर्दा प्रथा की बहुत शौकीन है मेरी देवरानी को इस प्रथा निभाने में कोई परेशानी महसूस नहीं होती वह कभी विरोध नहीं करती परंतु मैं असहज महसूस करती हूं, मुझे घुटन होती है तो घर वाले उसके घूंघट प्रथा के बखूबी निभाने के लिए उसकी प्रशंसा करते हैं। वही मैं पढ़ कर नौकरी प्राप्त करना चाहती हूं तो घरवाले इसके
भी विरोधी हैं परंतु वह कभी भी जॉब करने Same लिए नहीं सोचती है, तो घर वाले उसकी प्रशंसा तथा उसके लिए उपहार लाते रहते हैं तथा मुझे अपमानित करते रहते हैं। इस प्रकार स्पष्ट होता है समाज कभी चाहता ही नहीं है कि महिलाएं शिक्षित हो महिलाएं अपनी आत्मनिर्भरता के लिए खड़ी हो या फिर महिलाओं से संबंधित को प्रथाएं कभी समाप्त हो