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Hadappa Sabhyata Me Shiksha Ki Sthiti हड़प्पा सभ्यता में शिक्षा की स्थिति

हड़प्पा सभ्यता में शिक्षा की स्थिति



GkExams on 03-02-2019


सामाजिक जीवन :-स्त्री मृणमूर्तियां अधिक मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जाता है की सैन्धव समाज मातृसत्तात्मक था। इस सभ्यता के लोग शांतिप्रिय अधिक थे। भोजन के रूप में सैन्धव सभ्यता के लोग गेहूं,जौ,खजूर एंव भेड़ सूअर मछली आदि का मांस खाते थे । घर में बर्त्तन के रूप में सूती और ऊनी दोनों ही प्रकार के वस्त्रो का प्रचलन था।

पुरुष वर्ग दाढ़ी के शौकीन थे । खुदाई में तांबे के दर्पण,कंघे व उस्तरे मिले है । आभूषणों का प्रयोग स्त्री और पुरुष दोनों ही करते थे । मनोरंजन के साधनों में मछली पकड़ना, शिकार करना , पशु-पक्षियों को लड़ाना, चोपड़, पासा खेलना आदि प्रमुख थे ।

आर्थिक स्थिति :-सिंधु घाटी के लोगों का मुख्य पेशा कृषि कार्य था। गेहूं और जौ उनके प्रमुख फसल थे। चावल के अवशेष केवल लोथल से मिले है । इसके अलावा मटर ,सरसो, तिल तथा कपास की भी खेती होती थी। खेती कार्यो के लिए प्रस्तर एंव कांसे के औज़ार का प्रयोग होता था । कालीबंगा से प्राक सैन्धव अवस्था के एक जूते हुए खेत के साक्ष्य मिले है। बनवाली से मिट्टी का एक हल जैसा खिलौना मिला है। ऐसा प्रतीत होता है की ये लोग लकड़ी के हल का प्रयोग करते थे। सर्वप्रथम कपास की खेती इन्ही लोगो द्वारा की गयी, इसलिए यूनानी लोगो ने इस प्रदेश को सिंडोन कहा है। लोथल से पत्थर की चक्की के दो पाट भी मिले है।

पशुपालन : -मुख्यत: पालतु पशुओ में बैल, भैस, गाय,भेड़,बकरी,कुत्ते,गधे,खच्चर आदि है । हाथी और घोड़े पालने के साक्ष्य प्रमाणित नही हो सके है। लोथल एंव रंगपुर से घोड़े के मृणमूर्तियों के अवशेष मिले है जबकि सुरकोटदा से घोड़े के अस्थिपंजर मिले थे ।

शिल्प एंव उद्धोग धंधे : -
इस समय तांबे में टीन मिलाकर कांसा तैयार किया जाता था। तांबा राजस्थान के खेतड़ी से और टीन अफगानिस्तान से मंगाया जाता था। मोहनजोदड़ों से सूती कपड़े का एक टुकड़ा मिला है। कालीबंगा से मिले मिट्टी के बर्तन के टुकड़े पर कपड़े का छाप मिला है। इस समय की महत्वपूर्ण कलाकृतियों में मुद्रा निर्माण, मूर्ति निर्माण एंव आभूषण निर्माण प्रमुख है। इस समय के मृदमांडों पर गाढ़ी लाल चिकनी मिट्टी पर काले रंग के ज्यामितीय एंव प्रकृति से जुड़े डिजाइन बनाए गए थे।

व्यापार एंव वाणिज्य :-हड़प्पा सभ्यता का आंतरिक और बाह्य व्यापार दोनों ही काफी उन्न्त था। वे व्यापार में धातु के सिक्के का प्रयोग नहीं करते थे बल्कि वस्तु विनिमय प्रणाली पर ही उनके व्यापार आधारित थे। वाट-माप एंव नाप तौल की एक विकसित व्यवस्था प्रचलित थी। वाटों की तौल का अनुपात 1,2,4,8,16,…….320 आदि था। तौल की इकाई संभवत: 16 के अनुपात में थी। मोहनजोदड़ों से सीप का तथा लोथल से हाथी दांत से निर्मित एक-एक पैमाना मिला है।
यातायात के साधनों के रूप में बैलगाड़ी और भैसागाड़ी काफी प्रचलित थे। उल्लेखनीय है कि वे ठोस पहियों का इस्तेमाल करते थे। ये लोग नाव चलाने में कुशल थे। मोहनजोदड़ों के एक मुहर पर नाव का चित्र तथा लोथल से नाव जैसा खिलौना पाया गया है।
हड़प्पा सभ्यता के लोगो का व्यापारिक संबंध राजस्थान, अफगानिस्तान,ईरान,एंव मध्य एशिया के साथ था। हड़प्पावासियों ने लाजवर्द मणि का व्यापार सुदूर देशो के साथ किया था। मेसोपोटामिया से प्राप्त सिंधु सभ्यता से संबन्धित अभिलेख एंव मुहरों पर मेलुहा का जिक्र मिलते है। मेलुहा सिंधु क्षेत्र का ही प्राचीन नाम है। दिलमुन(बहरीन क्षेत्र) और मकन(मकरान तट) व्यापारिक केंद्र मेलुहा एंव मेसोपोटामिया के बीच स्थित है। भारत में लोथल से फारस कि मुहरें मिली है।

राजनैतिक स्थिति :- हड़प्पा संस्कृति की व्यापकता एंव विकास को देखने से लगता है की यह सभ्यता किसी केंद्रीय शक्ति से संचालित होती थी। वैसे यह प्रश्न अभी विवाद का विषय बना हुआ है, फिर भी चूंकि हड़प्पावासी वाणिज्य की ओर अधिक आकर्षित थे,इसलिए ऐसा माना जाता है की संभवत: हड़प्पा सभ्यता का शासन पुरोहित वर्ग के हाथ में था। हंटर महोदय के अनुसार मोहनजोदोड़ों का शासन जनत्न्त्रात्मक था।

धार्मिक जीवन :- हड़प्पा संस्कृति में कहीं से भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले है। भारी मात्रा में मिली मिट्टी की मूर्तियों में से एक स्त्री के गर्भ से एक पौधा निकलता हुआ दिखाया गया है, लगता है ये लोग इसे उर्वरता की देवी मानकर इसकी पूजा किया करते थे। मोहनजोदड़ों से प्राप्त एक सील पर तीन मुख वाला एक पुरुष ध्यान की मुद्रा में बैठा है, उसके सिर पर तीन सींग है, इसके बायीं ओर एक गैंडा और भैंस है तथा दायीं ओर एक हाथी, एक बाघ और हिरण है। यह चित्र पशुपति शिव का है। पत्थर के बने लिंग विशेष और का धार्मिक महत्व था। कूबड़ वाला सांढ इस सभ्यता के लिए विशेष पूजनीय था। पीपल की भी पूजा होती थी। ताबीज भी काफी मात्रा में मिले है। नागपूजा के प्रमाण भी मिले है। लोथल एंव कालीबंगा से हवन कुंडो एंव यज्ञवेदियों का उपलब्ध होना अग्नि पूजा के प्रचलन का द्धोताक है। शवो की अन्त्योष्टि संस्कार में तीन प्रकार के शवोत्सर्ग के प्रमाण मिले है।
1.पूर्ण समाधि कारण में सम्पूर्ण शव को भूमि में दफना दिया जाता था।
2.आंशिक समाधिकरण में पशु-पक्षियों के खाने के बाद शेष बचे भाग को भूमि में दफना दिया जाता था तथा
3.दाह संस्कार में शव को पूर्ण रूप से जला दिया जाता था। लोथल से हमें दो व्यक्तियों के शव एक साथ मिले है। मोहनजोदड़ों के अंतिम स्तर से हमें कुछ सामूहिक नर कंकाल मिले है जो विदेशी आक्रमण की ओर इंगित करता है।

कला प्रतिमाएं :-पत्थर और धातु से बनी अनेक प्रतिमाए हड़प्पायी स्थलो से प्राप्त हुये है। मोहनजोदड़ों की प्रस्तर प्रतिमाओ में सर्वश्रेष्ट दाढ़ी वाले पुरुष की है जो सेलखड़ी (स्टियटाइट) की बनी है। मोहनजोदड़ों, हड़प्पा, चुंहूदड़ो और दैमाबाद से अनेक कांसे की मूर्तियां पाई गयी है जिसमें सर्वोत्तम एक नर्त्तकी है। कांसे के भैंस और बकरी भी मोहनजोदड़ों से पाये गए है। इसके अतिरिक्त अनेक मृण्मूर्तिकाएं लगभग सभी स्थलो से प्राप्त की गयी है।

मुहरें :-सिंधु सभ्यता की सर्वोत्कृष्ठ कलाकृति इन मुहरो को ही माना जाता है। ये सभी सेलखड़ी की बनी है। ये मुख्यत: दो प्रकार के है। एक वर्गाकार जिनपर पशु के चित्र और अभिलेख अंकित है दूसरा आयताकार जिनपर केवल अभिलेख है।
लिपि और भाषा :-हड़प्पाई लिपि चित्रलिपि है,यह क्रमश: दाई ओर से बाईं ओर तथा बाईं ओर से दाईं ओर लिखी जाती थी,इस पध्दति को बोस्ट्रोफेदोन कहा गया है। यह लिपि अभी तक पूर्णरूप से पढ़ी नहीं जा सकी है। चित्र के रूप में लिखा गया प्रत्येक अक्षर किसी ध्वनिभाव अथवा वस्तु का सूचक है।

सिंधु सभ्यता का पतन :-कतिपय इतिहासकारो के अनुसार सिंधु सभ्यता का पराभव आर्यों के आक्रमण के कारण हुआ। इस मत के दो कारण है:-
प्रथम,मोहनजोदड़ों के ऊपरी स्तर पर अनेक कंकालो की प्राप्ति को इस बात का प्रमाण माना गया है की आर्यों ने स्थानीय जनसंख्या का व्यापक संहार कर डाला था ।
दूसरा, वैदिक काल के प्रमुख ग्रंथ ऋग्वेद के अंतर्गत देवता इन्द्र का उल्लेख दुर्ग-संहारक के रूप में किया गया। लेकिन अब यह साबित हो चुका है की मोहनजोदड़ों के ऊपरी स्तर के कंकाल किसी एक ही समय से संबन्धित नहीं रखते। इसलिए उनसे जनसंहार प्रमाणित नहीं होता। ऋग्वेद में दुर्ग संहारक के रूप में इन्द्र के उल्लेख को भी अधिक महत्व नही दिया जाना चाहिए क्यूंकी ऋग्वेद का प्रमाणिक समय भी स्पष्ट नही है।
एक अन्य आधुनिक मत यह है की किसी विवर्त्तनिक विक्षोभ के कारण मोहनजोदोड़ों में सिंधु नदी का पूर्वी बांध टूट गया था, जिससे सिंधु नदी के प्रवाह में बाधा आ गयी और उसके उस भाग में जिसमें मोहनजोदोड़ों स्थित था, वहाँ मिट्टी एकत्रित हो गयी। फलत: कुछ समय उपरांत लोग मोहनजोदोड़ों छोड़कर दूसरे जगह चले गए




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Pooja swami on 15-01-2023

Tambe ka darpan kis jagah se prapt hota hai

Shradha on 23-03-2022

Kya hadppa ke shikshit ya shaksar thye

Pihu on 21-03-2022

Kya Sindhu ghati ke log shikshit the please bataiye please bataiye


Pooja Swami on 09-08-2021

Tambe ka darpan kis sthan se prapt hota hai

Pooja swami on 26-02-2021

Tambe ka darpan kaha se prapt hota h

Nawin joshi on 21-12-2020

Hadappa ka education





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