विधायी शक्ति (Legislative power)
भारत के राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां जिनका प्रयोग अनुच्छेद - 74(1) के तहत मंत्रियों की सलाह पर ही होगा कई प्रकार की हैं तथा उन पर निम्न शीर्षकों के प्रति विचार किया जा सकता है |
संसद का सत्र आहूत करना सत्रावसान विघटन (Session call session session dissolution)
इसके तहत राष्ट्रपति को संसद के सदनों को आहूत करने या उसका सत्रावसान करने तथा लोकसभा का विघटन करने की शक्ति है |
गतिरोध हो जाने पर उसे अनुच्छेद - 85 एवं 108 के अनुसार दोनों सदनों की संयुक्त बैठक भी आहूत करने की शक्ति है |
आरंभिक अभिभाषण (Introductory address)
राष्ट्रपति अनुच्छेद - 87 के अनुसार लोकसभा के साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र के आरंभ में एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और संसद को उसके आह्वान का कारण बताएगा |
सदनों में सदस्यों को नामित करने का अधिकार(Right to nominate members in the Houses)
राष्ट्रपति अनुच्छेद - 80 एक के तहत राज्य सभा में 12 एवं अनुच्छेद - 331 के तहत लोकसभा में दो सदस्यों को नामित कर सकता है |
प्रतिवेदन (Report)
बजट सीएजी का प्रतिवेदन वित्त आयोग की सिफारिश तथा विभिन्न आयोगों के प्रतिवेदन से संबंधित दस्तावेज संसद के समक्ष रखने की शक्ति राष्ट्रपति की है |
विधायक के लिए पूर्व मंजूरी (Former sanction for legislator)
संविधान मे यह अपेक्षा की गई है कि कुछ विषयों पर कानून का निर्माण करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी की आवश्यकता है -
अनुच्छेद - 3 के अनुसार नए राज्यों के निर्माण का वर्तमान राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन करने वाले विधान की सिफारिश करने की अन्यन शक्ति राष्ट्रपति को दी गई है ताकि ऐसा करने के पूर्व प्रभावित राज्यों के विचार प्राप्त कर सकें|
अनुच्छेद - 117 (1) के अनुसार धन विधेयक सदन के पटल पर रखने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति लेना आवश्यक है |
अनुच्छेद - 304 के तहत व्यापार की स्वतंत्रता पर किसी प्रकार का प्रतिबंध अधिरोपित करने वाले विधेयक को सदन के पटल पर रखने के पूर्व राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक है |
विधेयक कानूनी रूप (Bill legal form)
कोई विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ही कानून का रूप लेता है |
वीटो (Veto)
भारत के राष्ट्रपति को संसद द्वारा पारित विधेयक को पर निषेधाधिकार करने का अधिकार इतना प्रभावशाली नहीं है जितना कि अमेरिका में है |
आत्यंतिक वीटो (Ultimate veto)
जब कभी ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होती है कि किसी सरकारी विधेयक को संसद द्वारा पारित कर दिया गया एवं राष्ट्रपति की अनुमति मिलने के पूर्व ही सरकार किसी कारणवश भंग हो गई तथा नहीं सरकार ने उसे रद्द करने की सिफारिश कर दी तो राष्ट्रपति अगर उक्त विधेयक को पारित करना आवश्यक समझे तो उस पर वीटो कर सकता है |
निलंबनकारी वीटो (Suspension veto)
राष्ट्रपति इसका प्रयोग संसद द्वारा पारित विधेयक को एक बार पुनर्विचार करने के लिए भेजकर करता है |
जेबी वीटो (JB veto)
जब राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित विधेयक को न तो पुनर्विचार के लिए वापस भेजता है और ना ही उस पर अनुमति देता है और नहीं अनुमति देने से इंकार करता है इस स्थिति में विधेयक राष्ट्रपति की जेब में पड़ा रहता है और उसे जेबी वीटो कहते हैं |
इस वीटो का प्रथम प्रयोग 1986 ईस्वी में संसद द्वारा पारित भारतीय डाक संशोधन विधेयक 1986 पर हुआ जब तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह मीणा तो इस पर अनुमति दी और नहीं इनकार किया यह अभी भी राष्ट्रपति की जेब में पड़ा हुआ है |
अध्यादेश जारी करने का अधिकार (Right to issue ordinance)
जब संसद का सत्र न चल रहा हो एवं किसी विधान की तुरंत की आवश्यकता हो तो राष्ट्रपति इस परिस्थिति में अध्यादेश जारी कर सकता है ऐसे अध्यादेशों का वही प्रभाव होता है जो किस संसदीय अधिनियम का होता है |
परंतु संसद का सत्र प्रारंभ होने की तिथि से 6 सप्ताह के भीतर इस अध्यादेश को संसद की स्वीकृति मिलना आवश्यक है अन्यथा यह स्वत: निरस्त मान लिया जाता है |
इस अध्यादेश का प्रयोग अनुच्छेद - 352 में वर्णित आपात स्थिति के संदर्भ में नहीं किया जा सकता |
क्षमादान का अधिकार (Right of forgiveness)
भारतीय संविधान भी विश्व के अन्य संविधानों की भांति राष्ट्रीय अध्यक्ष को निम्न सरकार के व्यक्तियों को अनुच्छेद - 72 के तहत क्षमा करने का अधिकार प्रदान करता है -
जिन्हें न्यायालय द्वारा किसी अपराध के लिए विधिवत दंडित किया गया है |
उन सभी मामलों में जिन में कोर्ट मार्शल द्वारा दंड दिया गया है |
उन सभी मामलों में जहां मृत्यु दंड दिया गया है |
इसके तहत राष्ट्रपति दंडित व्यक्ति को पूर्ण क्षमा दे सकता है अथवा उसकी संज्ञा को कम कर सकता है क्षमादान का अधिकार एक अनुग्रह अधिकार है |
Rastpti ki vidhai saktiya