भारत सहित दक्षिण एशिया में, पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत वनस्पति खाद्य तेल को वनस्पपति घी या केवल वनस्पति कहते हैं। प्रायः यह घी का सस्ता विकल्प माना जाता है।भारत में वनस्पति घी मुख्यतः पाम ऑयल से बनाया जाता है। हाइड्रोजनीकरन की प्रक्रिया सपोर्टेड निकल उत्प्रेरक की उपस्थिति में कम या मध्यम दाब (3-10 bar) पर की जाती है। वनस्पति घी में ट्रान्स वसा की मात्रा बहुत अधिक (५०% तक) होती है जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है।[1]
रोजनीकरण (Hydrogenation) का अभिप्राय केवल असंतृप्त कार्बनिक यौगिकों से हाइड्रोजन की क्रिया द्वारा संतृप्त यौगिकों के प्राप्त करने से है। उदाहरण के लिये, हाइड्रोजनीकरण द्वारा एथिलीन अथवा ऐंसेटिलीन से एथेन प्राप्त किया जाता है।
मैलिक अम्ल (maleic acid) में हाइड्रोजन के योग से सक्सीनिक अम्ल (succinic acid) का निर्माण हाइड्रोजनीकरण का अच्छा उदाहरण है:
SuccPdH2.png
अनुक्रम
1 परिचय एवं इतिहास
2 सबस्ट्रेट
3 उत्प्रेरकीय हाइड्रोजनीकरण
4 हाइड्रोजनीकरण का महत्व
4.1 वनस्पति घी
5 सन्दर्भ
परिचय एवं इतिहास
नवजात अवस्था में हाइड्रोजन कुछ सहज अपचेय यौगिकों के साथ सक्रिय है। इस भाँति कीटोन से द्वितीयक ऐल्कोहॉल तथा नाइट्रो यौगिकों से ऐमीन सुगमता से प्राप्त हो जाते हैं। आजकल यह मान लिया गया है कि कार्बनिक पदार्थों का उत्प्रेरक के प्रभाव से हाइड्रोजन का प्रत्यक्ष संयोजन भी हाइड्रोजनीकरण है। ऐतिहासिक दृष्टि से उत्प्रेरकीय हाइड्रोजनीकरण से हाइड्रोजन (H2) तथा हाइड्रोजन साइनाइड (HCN) के मिश्रण को प्लैटिनम कालिख पर प्रवाहित कर मेथिलऐमिन सर्वप्रथम प्राप्त किया गया था। पाल सैवैटिये (1854-1941) तथा इनके सहयोगियों के अनुसंधानों से वाष्प अवस्था में हाइड्रोजनीकरण विधि में विशेष प्रगति हुई। सन् 1905 ई. में द्रव अवस्था हाइड्रोजनीकरण सूक्ष्म कणिक धातुओं के उत्प्रेरक उपयोगों के अनुसंधान आरंभ हुए और उसमें विशेष सफलता मिली जिसके फलस्वरूप द्रव अवस्था में हाइड्रोजनीकरण औद्योगिक प्रक्रमों में विशेष रूप से प्रचलित है। बीसवीं शताब्दी में वैज्ञानिकों ने हाइड्रोजनीकरण विधि में विशेष प्रगति की और उसके फलस्वरूप हमारी जानकारी बहुत बढ़ गई है। स्कीटा तथा इनके सहयोगियों ने निकेल, कोबाल्ट, लोहा, ताम्र और सारे प्लेटिनम वर्ग की धातुओं की उपस्थिति में हाइड्रोजनीकरण का विशेष अध्ययन किया।
हाइड्रोजनीकरण में एथिल ऐल्कोहॉल, ऐसीटिक अम्ल, एथिल ऐसीटेड, संतृप्त हाइड्रोकार्बन जैसे हाइड्रोकार्बनों में नार्मल हेक्सेन (n-hexane), डेकालिन और साइक्लोहेक्सेन विलयाकों का प्रयोग अधिकता से होता है।
सबस्ट्रेट
RCH=CH2 + H2 → RCH2CH3 (R = alkyl, aryl)
प्रायः प्रयुक्त सबस्ट्रेट नीचे दिए गये हैं:
हाइड्रोजनीकरण में प्रयुक्त सबस्ट्रेट और उनके उत्पाद
alkene, R2C=CR2 alkane, R2CHCHR2
alkyne, RCCR alkene, cis-RHC=CHR
aldehyde, RCHO primary alcohol, RCH2OH
ketone, R2CO secondary alcohol, R2CHOH
ester, RCO2R two alcohols, RCH2OH, ROH
imine, RRCNR amine, RRCHNHR
amide, RC(O)NR2 amine, RCH2NR2
nitrile, RCN imine, RHCNH easily hydrogenated further
nitro, RNO2 amine, RNH2
उत्प्रेरकीय हाइड्रोजनीकरण
उत्प्रेरकीय हाइड्रोजनीकरण द्वारा कठिनता से उपलब्ध पदार्थ भी सहज में प्राप्त किए, जा सकते हैं तथा बहुत सी तकनीकी की विधियाँ, जो विशेष महत्व की हैं, इसी पर आधारित हैं। इनमें द्रव ग्लिसराइडों (तेलों) से अर्थ ठोस या ठोस वनस्पति बनाने की विधि अधिक महत्वपूर्ण है। तेल में द्रव ग्लिसराइड रहता है। हाइड्रोजनीकरण से वह अर्थ ठोस वनस्पति में परिवर्तित हो जाता है। मछली का तेल हाइड्रोजनीकरण से गंधरहित भी किया जा सकता है, जो उत्कृष्ट साबुन बनाने के काम आता है। नैफ्थलीन, फिनोल और बेंजीन के हाइड्रोजनीकरण से द्रव उत्पाद प्राप्त किए जाते हैं जो महत्व के विलायक हैं। टर्पीन के उत्प्रेरकीय हाइड्रोजनीकरण से बहुत से महत्व के व्युत्पन्न, विशेषता मेंथोल, कैंफर (कपूर) आदि प्राप्त होते हैं।
यूरोप में, जहाँ पेट्रोल की बड़ी कमी है, भूरे कोयले तथा विंटुमेनी कोयले के उच्च दबाव (700 वायुमंडलीय तक) पर हाइड्रोजनीकरण से पेट्रोलियम प्राप्त हुआ है। अलकतरे के हाइड्रोजनीकरण से भी ऐसे ही उत्पाद प्राप्त हुए हैं। ईंधन तेल, डीज़ल तेल तथा मोटर और वायुयानों के पेट्रोल का उत्पादन इस प्रकार किस जा सकता है। ऐसी विधि एक समय अमरीका में प्रचलित थी पर ऐसे उत्पाद के मँहगे होने के कारण इनका उपयोग आज सीमित है। यदि प्रयोग किया जानेवाला पदार्थ प्रयोगत्मक ताप पर गैसीय हो तो हाइड्रोजनीकरण के लिए उस पदार्थ और हाइड्रोजन के मिश्रण को, जिसमें हाइड्रोजन की मात्रा अधिक रहे, एक नली या आसवन फ्लास्क में रखे उत्प्रेरक से होकर प्रवाहित करने से उत्पाद प्राप्त कर सकते हैं। असंतृप्त द्रवों का हाइड्रोजनीकरण सुगमता से तथा सरल रीति से संपन्न होता है। द्रव तथा सूक्ष्मकणात्मक उत्प्रेरक को एक आसवन फ्लास्क में भली भाँति मिलाकर तैल ऊष्मक में गरम करते और बराबर हाइड्रोजन प्रवाहित करते रहते हैं। यद्यपि इस प्रयोग में हाइड्रोजन अधिक मात्रा में लगता है, क्योंकि कुछ हाइड्रोजन यहाँ नष्ट हो जाता है, फिर भी यह विधि सुविधाजनक है। यदि इसमें एक प्रकार का यंत्र प्रयोग में लावें, जिससे अवशोषित हाइड्रोजन की मात्रा मालूम होती रहे, तो अच्छा होगा तथा इससे रसायनिक क्रिया किस अवस्था में है इसका ज्ञान होता रहेगा। कुछ हाइड्रोजनीकरण दबाव के प्रभाव में शीघ्रता से पूर्ण हो जाता है। इसके लिए पात्र ऐसी धातु का बना होना चाहिए जो दबाव को सहन कर सके।
साधारणत: ताप के उठाने से हाइड्रोजनीकरण की गति बढ़ जाती है। पर इससे हाइड्रोजन का आंशिक दबाव कम हो जाता है, जिसके फलस्वरूप विलायक का वाष्प दबाव बढ़ जाता है। अत: हर प्रयोग के लिए एक अनुकूलतम ताप होना चाहिए। हाइड्रोजनीकरण की गति और दबाव की वृद्धि में कोई सीधा संबंध नहीं पाया गया है। निकेल उत्प्रेरक के साथ देखा गया है कि दबाव के प्रभाव से उत्पाद की प्रकृति भी कुछ बदल जाती है। हाइड्रोजनीकरण पर उत्प्रेरक की मात्रा का भी कुछ सीमा तक प्रभाव पड़ता है। उत्प्रेरक की मात्रा की वृद्धि से हाइड्रोजनीकरण की गति में कुछ सीमा तक तीव्रता आ जाती है। कभी कभी देखा जाता है कि उत्प्रेरक के रहते हुए भी हाइड्रोजनीकरण रुक जाता है। ऐसी दशा में उत्प्रेरक को हवा अथवा ऑक्सीजन की उपस्थिति में प्रक्षुब्ध करते रहने से क्रिया फिर चालू हो जाती है। कुछ पदार्थ उत्प्रेरक विरोधी अथवा उत्प्रेरक विष होते हैं। गंधक, आर्सेनिक तथा इनके यौगिक और हाइड्रोजन सायनाइड उत्प्रेरक विष है। पारद और उसके यौगिक अल्प मात्रा में कोई विपरीत प्रभाव नहीं उत्पन्न करते पर बड़ी मात्रा में विष होते हैं। अम्ल थोड़ी मात्रा में क्रिया की गति को बढ़ाते हैं। आधुनिक अध्ययनों से पता चलता है कि बेंज़ीन का हाइड्रोजनीकरण प्लेटिनम कालिख की उपस्थित में पीएच पर निर्भर करता है, अम्लीय अवस्था में अधिक तीव्र तथा क्षारीय दशा में प्राय: नहीं के बराबर होता है।
उत्प्रेरकों के प्रभाव में इतनी भिन्नता है कि इनके संबंध में कोई निश्चित मत नहीं दिया जा सकता। साधारण हाइड्रोजनीकरण के लिए प्लैटिनम, धातुओं के आक्साइड, पैलेडियम, स्ट्राशियम कार्बोनेट, सक्रियकृत कार्बनचूर्ण और नीकेल विशेष रूप से प्रयुक्त होते हैं। एल्कोहॉल, ऐसीटिक अम्ल, एथिल ऐसीटेट उत्कृष्ट तथा अनुकूल माने जाते है।
हाइड्रोजनीकरण का महत्व
हाइड्रोजनीकरण बड़े महत्व का तकनीकी प्रक्रम आज बन गया है। पाश्चात्य देशों में तेलों में मारगरीन, भारत में तेलों से वनस्पति घी, कोयले से पेट्रोलियम, अनेक कार्बनिक विलायकों, प्लास्टिक माध्यम, लंबी शृंखला वाले कार्बनिक यौगिकों - जिनका उपयोग पेट्रोल या साबुन बनाने में आज होता है - हाइड्रोजनीकरण से तैयार होते हैं। ह्वेल और मछली के तेलों के इस प्रकार हाइड्रोजनीकरण से मारगरीन और मूँगफली के तेल से कोटोजेम, नारियल के तेल से फोकोजेम और मूँगफली के तेल से डालडा आदि बनते हैं। हाइड्रोजनीकरण के लिए एक निश्चित ताप 100 डिग्री सेल्सियस से 200 डिग्री सेल्सियस और निश्चित दबाव 10 से 15 वायुमंडलीय अच्छा समझा जाता है।
एथिलीन सदृश युग्मबंध वाले, ऐसीटिलीन सदृश त्रिकबंध वाले और कीटोनसमूह वाले यौगिक शीघ्रता से हाइड्रोजनीकृत हो जाते हैं। ऐसे यौगिकों में यदि एल्किल समूह जोड़ा जाए तो हाइड्रोजनीकरण की गति उनके भार के अनुसार धीमी होती जाती है। ऐरोमैटिक वलय वाले यौगिक उतनी सरलता से हाइड्रोजनीकृत नहीं होते। उच्च ताप पर हाइड्रोजनीकरण से वलय के टूट जाने की संभावना रहती है। ऐसा कहा जाता कि ट्रांस रूप की अपेक्षा सिस रूप का हाइड्रोजनीकरण अधिक तीव्रता से होता है, पर इस कथन की पुष्टि नहीं हुई है।
वनस्पति घी
R-ch konsa samuh h
Dalda ghee RM value
Vanspti tel +H2 Ni/200°c vanspti ghee
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Vanaspati ghee se dalda kis pirkiriya dwara banta h