Europe Me Samantwad Ke Patan Ke Karan यूरोप में सामंतवाद के पतन के कारण

यूरोप में सामंतवाद के पतन के कारण



GkExams on 08-02-2019


सामंतवाद एक ऐसी मध्ययुगीन प्रशासकीय प्रणाली और सामाजिक व्यवस्था थी, जिसमें स्थानीय शासक उन शक्तियों और अधिकारों का उपयागे करते थे जो सम्राट, राजा अथवा किसी केन्द्रीय शक्तिको प्राप्त होते हैं। सामाजिक दृष्टि से समाज प्रमुखतया दो वर्गों में विभक्त था- सत्ता ओर अधिकारों सेयुक्त राजा और उसके सामंत तथा अधिकारों से वंचित कृशक और दास। इस सामंतवाद के तीन प्रमुखतत्व थे - जागीर, सम्प्रभुता और संरक्षण।

कानूनी रूप से राजा या सम्राट समस्त भूमि का स्वामी होता था। समस्त भूमि विविध श्रेणी केस्वामित्व के सामंतों में और वीर सैनिकों में विभक्त थी। भूमि, धन और सम्पित्त का साधन समझी जातीथी। सामंतों में यह वितरित भूिम उनकी जागीर होती थी। व्यावहारिक रूप में इस वितरित भूमि केभूमिपति अपनी-अपनी भूमि में प्रभुता-सम्पन्न होते थे। इन सामंतों का राजा या सम्राट से यही संबंध थाकि आवश्यकता पड़ने पर वे राजा की सैनिक सहायता करते थे और वार्षिक निर्धारित कर देते थे।समय-समय पर वे भंटे या उपहार में धन भी देते थे। ये सामतं अपने क्षत्रे में प्रभुता-सम्पन्न होते थेऔर वहां शान्ति और सुरक्षा बनाये रखते थे। वे कृषकों से कर वसूल करते थे और उनके मुकदमेसुनकर न्याय भी करते थे।

इस सामतंवाद में कृशकों दशा अत्यतं ही दयनीय होती थी। कृशकों को अपने स्वामी की भूिमपर कृशि करना पड़ती थी और अपने स्वामी को अनेक कर और उपहार देना पड़ते थे। वे अपने स्वामीके लिए जीते और मरते थे। वे सामंतों की बेगार करते थे। सामंत और राजा के आखेट के समयकृशकों को हर पक्रार की सुविधा और सामग्रियां जुटाना पड़ती थी। कृशकों का अत्याधिक शोषण होताथा। उनका संपूर्ण जीवन सामंतों के अधीन होता था। एक ओर कृशकों की दरिद्रता, उनका निरंतर शोषण, उनकी असहाय और दयनीय सामाजिक और आर्थिक स्थिति थी, तो दूसरी ओर सामंतों कीप्रभुता, सत्ता, उनकी शक्ति, उनकी सम्पन्नता और विलासिता मध्ययुगीन यूरोप के समाज की प्रमुखविशेशता थी। मध्ययुग की राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सामंतवाद काप्रचलन हुआ था। कालांतर में सामतं वाद अपनी उपयोगिता खो बैठा। वह विकृत हो गया और समाज केलिए अभिशाप बन गया।

सामंतवाद के पतन के कारण

राजनीतिक कारण

  1. पंद्रहवीं सदी में यूरोप में स्वतंत्र और शक्तिशालीराजतंत्रों की स्थापना हुई। विभिन्न वर्गों के विशेशकर मध्यमवर्ग के सहयोग से राजा की सत्ता औरशक्ति में वृद्धि हुई। राजा को अपनी सम्प्रभुता स्थापित करने के लिए राजा द्वारा प्रसारित सिक्कों केप्रचलन ने भी योगदान दिया। लोग निरंकुश राजतंत्र का समर्थन करने लगे। राजा प्रत्यक्ष रूप से अपनेराज्य में विभिन्न प्रकार के कर भी लगाने लगा। राजा ने अपने अधीनस्थ नौकरशाही व्यवस्था सुदृ़ढ़ करली और प्रशासकीय क्षेत्रों को सामंतों के प्रभाव से मुक्त कर लिया। इससे सामंतों की शक्ति को गहराआघात लगा।
  2. नवीन हथियारों तथा बारूद का आविष्कार - राजाओं ने अपनी स्वयं की सेनाएँस्थापित की ओर उनको नवीन हथियारो, बंदूकों और बारूद से सुसज्जित किया। सांमतों की शक्ति केआधार उनके दुर्ग होते थे और उनके सैनिक धनुशवाण का उपयोग करते थे। किंतु अब राजा की सेनाबंदूकों ओर तोंपों के गोलों की मार से दुर्ग की दीवारें सामंतों की सुरक्षा करने में असमर्थ थी।

सामाजिक कारण

सामतंवादी संस्थाओं और व्यवस्था के स्थान पर नवीन सामाजिक व सांस्कृतिक संस्थाओं औरव्यवस्थाओं का प्रारंभ हुआ। मुद्रण का आविष्कार, विद्या एवं ज्ञान की वृद्धि और जीवन तथा ज्ञान विज्ञानके प्रति नवीन दृष्टिकोण का प्रारंभ हुआ, समाज में नये सिद्धांतो विचारों और आदर्शों का युग प्रारंभहुआ। सामाजिक दृष्टि से यूरोपीय समाज के संगठन एवं स्वरूप में परिवर्तन हुआ, व्यापार वाणिज्य कीउन्नति व धन की वृद्धि के कारण नगरों में प्रभावशाली मध्यम वर्ग का उदय और विकास हुआ। अबकृषि प्रधान समाज का स्वरूप बदल गया और इसका स्थान धन-सम्पन्न जागरूक शिक्षित मध्यम वर्ग नेले लिया।


धार्मिक कारण

यूरोप में आरंभिक मध्यकाल में अनेक धर्म युद्ध हुए। इन धर्म युद्धों में भाग लेने के लिए औरईसाई धर्म की सुरक्षा के लिए अनेक सामंतों ने अपनी भूमि या तो बेच दी या उसे गिरवी रख दिया।इससे उनकी सत्ता व शक्ति का अधिकार नष्ट हो गया। अनेक सामंत इन धर्म युद्धों में वीरगति कोप्राप्त हुए और उनकी भूमि पर राजाओं ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया।

आर्थिक कारण

वाणिज्य व्यापार में वृद्धि -

नई भौगोलिक खोजों और समुद्री मार्गों की खोजों से यूरोप केवाणिज्य व्यापार में खूब वृद्धि हुई। यूरोप के निवासियों को नये-नये देशों का ज्ञान हुआ और वे अन्यदेशों से परिचित हो गये और उनसे व्यापार बढ़ा। पूर्व के देशों की विलास की वस्तुओं की मांग बढ़नेलगी। इससे विदेशों से व्यापार बढ़ा और नवीन व्यापारी वर्ग का उदय हुआ। कुछ व्यापारियों ने इतनाअधिक धन कमा लिया कि वे सामंतों से अधिक धन सम्पन्न और वैभवशाली हो गये। वे सामंतों से हेयसमझे जाने के कारण, सामांतों से ईश्र्या करते थे और सामंतों के विरूद्ध राजा को सहयोग देते थे।

नवीन साधन -

सम्पन्न नगरों का विकास - वाणिज्य, व्यापार, कलाकौशल औरउद्यागे -धंधों के विकास के परिणामस्वरूप यूरोप में अनेकानेक नवीन कस्बों और साधन-सम्पन्नशक्तिशाली नगरों का विकास हुआ। इससे व्यापारियों और मध्य वर्ग की शक्ति ओर प्रभाव में वृद्धि हुई।

व्यापारियों और सामंतों का संघर्ष -

व्यापारियों ने अपने उद्योग’धंधों की वृद्धि औरविकास के लिए गांवों के कृशकों और कृषि दासों को प्रलाभ्े ान देकर नगरों में आकर बसने के लिएप्रेरित किया। यह सांमतों के हितों के विरूद्ध था। इसलिए व्यापारी वर्ग और सामतं वर्ग में परस्पर संघर्शसा छिड़ गया। राजा भी सामंतों के वर्ग से मुक्ति चाहता था। इसलिए उसने व्यापारियों के वर्ग कासमर्थन किया। नया व्यापारिक वर्ग भी अपने व्यापारिक हित-संवर्धन के लिए राजा का समर्थन औरसंरक्षण चाहता था। ऐसी परिस्थिति में व्यापारियों ने राजाओं को सहयोग देकर सामंतों और शक्ति कोकम करने में अपना योगदान दिया।

कृशकों के विद्रोह-

सामंतों के शोषण और अत्याचार से कृषक अत्याधिक क्षुब्ध थे। इसीबीच 1348 इर्. में आई भीषण महामारी से बहतु लागे मारे गये। इससे मजदूरों और कृषकों की भारीकमी हो गयी। अधिक श्रमिकों की माँग बढ़ने से अधिक वेतन की मांग बढ़ी। फलत: खेतिहर मजदूरोंऔर कृशि दामों ने अधिक वेतन ओर कुछ अधिकारों की माँग की। उन्होंने अपनी माँगों के समर्थन मेंविद्राहे किये। कृषकों के इन विद्रोहों का साथ शिल्पियों और निम्न श्रेणियों के कारीगरों और छोटेपादरियों ने दिया।यद्यपि कृषकों के ये विद्रोह दबा दिये गये पर अब कृषक सामंतों पर निर्भर नहीं रहे, क्योंकि वेगाँवों को छोड़कर नगरों की ओर मुड़ गए थे और वहाँ अपना जीवन निर्वाह करने लगे थे। इस प्रकारकृशकों के विद्रोह और ग्रामीण क्षेत्र से उनके पलायन ने सामंतवाद की नींव हिला दी।

सामंतों का पारस्परिक संघर्ष

सामंत अपनी-अपनी सेना रखते थे। यदि एक ओर इनसेनाओं ने अपने सामत और राजा के देश की बाहरी आक्रमणकारियों से सुरक्षा की तो दूसरी ओर इनसेनाओं के बल पर सामंत परस्पर युद्ध भी करते थे। उनके एसे निरंतर संघर्षों और युद्धों से उनकीशक्ति क्षीण हो गयी।




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