Dvitiya Vishwa Yudhh Ke Karan Aur Parinnam द्वितीय विश्व युद्ध के कारण और परिणाम

द्वितीय विश्व युद्ध के कारण और परिणाम



GkExams on 25-11-2018

लगभग बीस वर्षों की ‘शांति’ के बाद 1 सितम्बर, 1939 के दिन युद्ध की अग्नि ने फिर सारेयूरोप को अपनी लपटों में समेट लिया और कुछ ही दिनों में यह संघर्ष विश्वव्यापी हो गया। विगत दोशताब्दियों के इतिहास के अध्ययन के बाद यह प्रश्न स्वाभाविक है कि शांति स्थापित रखने के अथकप्रयासों के बाद भी द्वितीय-विश्व युद्ध क्यों छिड़ गया? क्या संसार के लागे और विविध देशों के शासकयह चाहते थे? नहीं; यह गलत है। समूचे संसार में शायद कोर्इ भी समझदार व्यक्ति ऐसा नहीं था जोयुद्ध की कामना करता हो। ‘बच्चे-बूढ़े स्त्री-पुरूष तथा सभी वगर् की जनता शांति चाहती थी। इसीतरह यूरोप की कोर्इ सरकार युद्ध नहीं चाहती थी। यहाँ तक कि जर्मन सरकार भी युद्ध से बचनाचाहती थी। स्वयं हिटलर भी युद्ध नहीं चाहता था। अन्तिम समय तक हिटलर का यही विचार था किसंकट पैदा करके, धाँस देकर, डरा-धमकाकर पोलैंड से डान्जिंग छीन लिया जाय। वह जानता था कियुद्ध से उसका सर्वनाश हो जायगा। बिना युद्ध किये ही विजय हासिल कर लेना उसकी चाल थी।वास्तव में ‘युद्ध के बिना विजय’ के सिद्धांत पर ही उसकी सारी मान-मर्यादा निर्भर थी। पर ऐसा न होसका। किसी की इच्छा नहीं होने पर भी युद्ध छिड़ गया। ऐसा क्यों हुआ और इसके लिए कानैजिम्मेदार था?
द्वितीय विश्वयुद्ध पूर्ववर्ती युद्धों की तुलना में सर्वाधिक विनाशकारी युद्ध माना जाता है। इस युद्धमें संपत्ति और मानव-जीवन का विशाल पैमाने पर विनाश हुआ, उसका सही आँकलन विश्व के गणितज्ञभी नहीं कर सके। इस युद्ध का क्षेत्र विश्वव्यापी था तथा इसे विनाशकारी परिणामों का क्षेत्र भी अत्यंतव्यापक था।

इस युद्ध में अनुमानत: एक करोड़ पचास लाख सैनिकों तथा एक करोड़ नागरिकों को अपनेजीवन से हाथ धोना पड़ा तथा लगभग एक करोड़ सैनिक बुरी तरह घायल हुए। मानव जीवन की क्षतिके साथ-साथ यह युद्ध अपार आर्थिक क्षति, बरबादी तथा विनाश की दृष्टि से भी अविस्मरणीय है। ऐसाअनुमान है कि इस युद्ध में भाग लेने वाले देशों का लगभग एक लाख कराडे रूपये व्यय हुआ था।अकेले इंग्लैण्ड ने लगभग दो हजार करोड़ रूपये व्यय किया था। जबकि जर्मनी, फ्रांस, पोलैण्ड आदिदेशों के आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाना कठिन है। इस प्रकार इस युद्ध में विश्व के विभिé देश्ज्ञोंकी राष्ट्रीय संपत्ति का व्यापक पैमाने पर विनाश हुआ था।

औपनिवेशिक साम्राज्य का अंत

द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप एशिया महाद्वीप में स्थित यूरोपीय शक्तियों के औपनिवेशिकसाम्राज्य का अंत हो गया। जिस प्रकार प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् बहुत से राज्यों को स्वतंत्रता प्रदानकर दी गयी थी, ठीक उसी प्रकार भारत, लंका, बर्मा, मलाया, मिस्र तथा कुछ अन्य देशों को द्वितीयविश्वयुद्ध के पश्चात् ब्रिटिश दासता से मुक्त कर दिया गया। इसी प्रकार हॉलैण्ड, फ्रांस तथा पुर्तगाल केएशियार्इ साम्राज्य कमजोर हो गये तथा इन देशों के अधीनस्थ एशियार्इ राज्यों को स्वतंत्र कर दियागया। इस प्रकार द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप एशिया महाद्वीप का राजनीतिक मानचित्र पूरी तरहपरिवर्तित हो गया, तथा वहाँ पर यूरोपीय साम्राज्य पूरी तरह समाप्त हो गया।

शक्ति-संतुलन का हस्तांतरण

विश्व के महान राष्ट्रों की तुलनात्मक स्थिति को द्वितीय विश्वयुद्ध ने अत्यधिक प्रभावित कियाथा। इस युद्ध से पूर्व विश्व का नेतृत्व इंग्लैण्ड के हाथों में था, किंतु इसके पश्चात् नेतृत्व की बागडोरइंग्लैण्ड के हाथों से निकलकर अमेरिका व रूस के अधिकार में पहुँच गयी। विश्वयुद्ध में जर्मनी, जापानतथा इटली के पतन के फलस्वरूप रूस, पूर्वी यूरोप का सर्वाधिक प्रभावशाली व शक्तिशाली राष्ट्र बनगया। एस्टोनिया, लेटेविया, लिथूएनिया तथा पोलैण्ड व फिनलैण्ड पर रूस का पुन: अधिकार हो गया।पूर्वी यूरोप में केवल टर्की व यूनान दो राज्य ऐसे थे जो साेि वयत संघ की सीमा से बाहर थे। दूसरी और , पश्चिमी यूरोप के देशों का ध्यान अमेरिका की तरफ आकर्षित हुआ। फ्रांस , इटलीतथा स्पेन ने अमेरिका के साथ अपने राजनीतिक संबंध स्थापित कर लिये। इस प्रकार संपूर्ण यूरोपमहाद्वीप दो परस्पर विरोधी विचारधाराओं में विभाजित हो गया। एक विचारधारा का नेतृत्व अमेरिका कररहा था, जबकि दूसरी विचारधारा की बागडोर रूस के हाथों में थी। पूर्वी यूरोप के देशों पर रूस काप्रभाव स्थापित हो गया, पाकिस्तान, मिस्र, अरब, अफ्रीका आदि रूस की नीतियों से प्रभावित न हुए। इसप्रकार शक्ति का संतुलन रूस एवं अमेरिका के नियंत्रण में स्थित हो गया।

अंतर्राष्ट्रीय की भावना का विकास

द्वितीय विश्वयुद्ध के विनाशकारी परिणामों ने विभिन्न देशों की आँखें खोल दी थी। वे इस बातका अनुभव करने लगे कि परस्पर सहयोग, विश्वास तथा मित्रता के बिना शांति व व्यवस्था की स्थापनानहीं की जा सकती। उन्होंने यह भी अनुभव किया कि समस्याओं का समाधान युद्ध के माध्यम से नहींहो सकता। इसी प्रकार की भावनाओं का उदय प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् भी हुआ था तथा पारस्परिकसहयागे की भावना को कार्यरूप में परिणित करने के लिए राष्ट्र-संघ की स्थापना की गयी थी। किंतुविभिन्न देशों के स्वार्थी दृष्टिकोण के कारण यह संस्था असफल हो गयी और द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारभ्ं ा होगया। किंतु इस युद्ध के समाप्त होने के बाद देशों ने पारस्परिक सहयोग की आवश्यकता एवं महत्व कापुन: अनुभव किया, तथा उन्होनें अपनी समस्याओं को शांतिपूर्ण तरीकों से हल करने का निश्चय कियाताकि युद्ध का खतरा सदैव के लिए समाप्त हो सके तथा विश्व-स्तर पर शांति की स्थापना की जासके। संयुक्त राष्ट्र-संघ, जिसकी स्थापना 1945 र्इ. में की गयी थी, पूर्णत: इसी भावना पर आधारितथा। इस संस्था का आधारभूत लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की भावना कायम करना तथाअंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं मैत्री-भावना का विकास करना था।




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Comments Arvind sharma on 12-10-2022

Ditya visva ka karna va parinama





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