Laghu Udyog Ka Mahatva लघु उद्योग का महत्व

लघु उद्योग का महत्व



Pradeep Chawla on 12-05-2019

लघु उद्योग (छोटे पैमाने की औद्योगिक इकाइयाँ/small scale

industry) वे होती है जो मध्यम स्तर के विनियोग की सहायता से उत्पादन

प्रारम्भ करती हैं। इन इकाइयों मे श्रम शक्ति की मात्रा भी कम होती है और

सापेक्षिक रूप से वस्तुओं एवं सेवाओं का कम मात्रा में उत्पादान किया जाता

है। ये बड़े पैमाने के उद्योगो से पूंजी की मात्रा, रोजगार, उत्पादन एवं प्रबन्ध, आगतों एवं निर्गतो के प्रवाह इत्यादि की दृष्टि से भिन्न प्रकार की होती है। ये कुटीर उद्योगों

से भी इन आधारों पर भिन्न होती हैं- उत्पादन में यंत्रीकरण की मात्रा,

मजदूरी पर लगाये गये श्रमिकों एवं परिवारिक श्रमिकों के अनुपात, बाजार का

भौगोलिक आकार, विनियोजित पूंजी इत्यादि।



लघु उद्योगों का वर्गीकरण तीन प्रकार उद्योगों में किया है- 1. सूक्ष्म उद्योग 2. लघु उद्योग 3. मध्यम उद्योग।



मुख्यतया लघु उद्योगों को इन में विनियोजित राशि के मापदण्डो से

वर्गीकरण किया जाता है। निर्माण उपाय के अर्न्तगत सूक्ष्म उद्योग वह है

जहाँ प्लाण्ट एवं मशीनरी में निवेश 25 लाख रूपये से अधिक नही होता है। लघु

उद्योग वह है जहाँ प्लाण्ट एवं मशीनरी में निवेश 25 लाख रूपये से अधिक

लेकिन 5 करोड़ रूपये से कम होता है। मध्यम उद्योग वह है जिसमें प्लांट एवं

मशीनरी में निवेश पॉच करोड़ रूपये से अधिक लेकिन 10 करोड़ रूपये से कम होता

हो।



सेवा उद्योग

के स्वरूप में एक सूक्ष्म उद्योग वह है जहाँ उपकरणों में निवेश 10 लाख

रूपये से आगे नहीं बढ़ता है और लघु उद्योग, जहाँ उपकरणों में निवेश 10 लाख

रूपये से अधिक लेकिन 2 करोड़ रूपये से अधिक नही है एवं मध्यम उद्योग जहाँं

उपकरणों में निवेश 2 करोड़ रूपये से अधिक लेकिन 5 करोड़ रूपये से कम न हो।



भारतीय आर्थिक विकास में लघु एवं कुटीर पैमाने के उद्योगों ने

महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। लघु पैमाने के उद्योग और कुटीर उद्योग भारत

के विर्निमाण क्षेत्र की संरचना एवं स्वरूप के महत्वपूर्ण भाग है।



भाषा की दृष्टि से यह एक आम प्रवृति रही है कि कुटीर उद्योग, ग्रामीण

उद्योग तथा लघु पैमाने के उद्योगों का आशय एक साथ ही समान रूप से लगाया

जाता है जबकि इनमें आधारभूत अन्तर है। कुटीर उद्योग तो किसी एक परिवार के

सदस्यों द्वारा पूर्ण या अंशकालिक तौर पर चलाया जाता है। इनमें पूंजी निवेश

नाम मात्र का होता है। उत्पादन भी प्रायः हाथ द्वारा किया जाता है।

परम्परागत ढंग से चलने वाली उत्पादन प्रक्रिया में वेतन भोगी श्रमिक नही

होते हैं। लघु उद्योगों में आघुनिक ढंग से उत्पादन कार्य होता है। सवेतन

श्रमिकों की प्रधानता रहती है तथा पूंजी निवेश भी होता है। कतिपय कुटीर

उद्योग ऐसे भी है, जो उत्कृष्ट कलात्मकता के कारण निर्यात भी करते है। अतः उन्हे लघु क्षेत्र में रखा गया था, जिससे उन्हें भी सभी सुविधाएं प्राप्त होती रहे।



10 हजार से कम जनसंख्या वाले ग्रामीण क्षेत्र में स्थापित तथा भूमि,

भवन, मशीनरी आदि में प्रति कारीगर या कार्यकर्ता 15 हजार रूपये से कम स्थिर

पूंजी निवेश वाले उद्योग ग्रामोद्योग के अन्तर्गत आते है। राज्य

ग्रामोद्योग बोर्ड तथा ग्रामोद्योग उद्योग इन इकाइयों की स्थापना संचालन

आदि में तकनीकी एवं आर्थिक सहायता प्रदान करते है।









अनुक्रम



  • 1लघु उद्योगों की आवश्यकता
  • 2लघु उद्योगों के उद्देश्य
  • 3सन्दर्भ
  • 4इन्हें भी देखें
  • 5बाहरी कड़ियाँ






लघु उद्योगों की आवश्यकता

सूक्ष्म,

लघु एंव मध्यम उद्योग देश की सम्पूर्ण औद्योगिक अर्थव्यस्था में एक

महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते है। यह अनुमान किया जाता है कि मूल्य के

अर्थ में यह क्षेत्र निमार्ण की दृष्टि से 39% एवं भारत के कुल निर्यात के

33% के लिए जिम्मेदार है। इस क्षेत्र का लाभ यह है कि इसकी रोजगार क्षमता

न्यूनतम पूंजी लागत पर है। 31 मार्च 2007 की स्थिति के अनुसार यह क्षेत्र

12.84 मिलियन माइक्रो और लघु उपक्रमों के जरिये अनुमानत 31.2 मिलियन

व्यक्तियों को रोजगार देता है। इस क्षेत्र में मजदूरों की तीव्रता वृहद्

उद्योगों की तुलना में करीब 4 गुना ज्यादा अनुमानित की गई है। लघु उद्योगों

की आवश्यकता देश की परम्परागत प्रतिभा व कला की रक्षा हेतु भी आवश्यक है।

अन्य महत्वपूर्ण दृष्टिकोण से लघु उद्योग निर्यात संवर्धन व देश को आत्म

निर्भरता की और जाने हेतु है लघु उद्योग आयात प्रतिस्थापन में सहायक है। वे

निर्यात की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।



वर्तमान परिपेक्ष्य में लघु उद्योग बड़े पैमाने के उद्योगों की अपेक्षा

अधिक निर्यात करते है एवं देश या राष्ट्र के आत्मनिर्भरता में भी लघु

उद्योग आवश्यक है।



लघु उद्योगों के उद्देश्य

1.

लघु उद्योगों का मुख्य उद्देश्य रोजगार के अवसरों में वृद्धि करते हुए

बेरोजगारी एवं अर्ध बेरोजगारी की समस्या का समाधान करना है क्योंकि लघु

उद्यमों के श्रम प्रधान होने के कारण उनमें विनियुक्त पूंजी की इकाई

अपेक्षाकृत अधिक रोजगार कायम रखती है।



2. दूसरा मुख्य उद्देश्य आर्थिक शक्ति का समान वितरण करना है। कुटीर व लघु उद्योगों से आर्थिक सत्ता का विक्रेन्द्रीयकरण होता है।



3. लघु उद्योगों के माध्यम से औद्योगिक विक्रेन्द्रीयकरण सम्भव है। इससे

देश का आर्थिक विकास प्रौद्योगिक सन्तुलन एवं क्षेत्रीय प्रौद्योगिक

विषमता को कम करते हुए सम्भव होता है।



4. श्रम प्रधान तकनीक के कारण श्रमिकों की बहुतायत रहती है। अतः आवश्यक है कि वे औद्योगिक शांति की स्थापना करें।



5. लघु उद्योगों के माध्यम से देश की सभ्यता एवं संस्कृति सुरक्षित रहती

है। अधिकाशतः लधु उद्योगों द्वारा कलात्मक एवं परम्परागत वस्तुओं का

निमार्ण किया जाता है एवं अधिकांशतः ये उद्योग श्रम प्रधान तकनीक पर आधारित

होते है जिससे उद्योगों में पारस्परिक सद्भावना सहकारिता, समानता एवं

भ्रातृत्व की भावना को बल मिलता है।



6. लघु उद्योगों का मुख्य उद्देश्य है कि वे प्राकृतिक साधानों का अनुकूलतम उपयोग करें।



7. मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सादा जीवन उच्च विचार की भावना का सृजन करें।



8. व्यापार संतुलन एवं भुगतान संतुलन को अनुकूल बनाने हेतु आवश्यक है कि ये अत्याधिक विदेशी मुद्रा का अर्जन करें।



9. आम जनता को श्रेष्ठ वस्तुएं उपलब्ध कराना इनका मुख्य उद्देश्य है।



10. भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए इनका उद्देश्य अधिक से अधिक श्रेष्ठ उत्पादन करना है।




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Comments Kutir udyog ka mahatv or suchi on 19-02-2023

Lagu udyog ka mahatv or suchi

Lagu udyog ki suche on 08-05-2020

Uy





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