हमारे देश में भूमि कटाव की समस्या दिन प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है| अतः जल ग्रहण व्यवस्था में भूमि संरक्षण प्रमुख कार्य होता है| इसकी उपयोगिता पर्वतीय जल संग्रहं करने से और अधिक बढ़ जाती है| जल संग्रहण क्षेत्र सामान्यतया ढलानदर होते हैं| इससे ढाल का भूमि क्षरण पर प्रयत्क्ष प्रभाव होता है| ढाल अधिक होने से बहने वाले जल का वेग अधिक हो जाता है| गिरती हुई वस्तु के नियम के अनुसार वेग, खड़े ढाल के वर्गमूल के अनुसार बदलता है| यदि भूमि का ढाल चार गुणा बढ़ जाता है तो बहते हुए जल का वेग लगभग दो गुणा हो जाता है| बहते हुए जल का वेग दो गुणा हो जाने पर जल जिक क्षरण क्षमता चार गुणा अधिक हो जाती है| इस प्रकार जल परिवहन क्षमता 32 गुणा बढ़ जाती है| यही कारण है कि ढलानदार स्थानों में भूक्षरण अधिक होता है| मृदा एंव जल संरक्षण के लिए किये गए उपायों को मुख्यतया दो भागों में बांटा जा सकता है (क) जैविक उपाय (ख) अभियन्त्रिकी उपाय|
(क) जैविक उपाय
(ख) फसलों या वनस्पतियों में सस्य क्रियाओं द्वारा भू-क्षरण को नियंत्रित करने के लिए उपयोग में लाई गई विधियाँ जैविक उपायों के नाम से जाने जाते हैं|
भू-क्षरण को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित जैविक उपायों का प्रयोग किया जाता है:
क) अभियांत्रिकी उपाय
मृदा सतह पर जल संरक्षण करने योग्य अभियान्त्रिकी संरचनाओं का निर्माण मृदा अपरदन को रोकने का एक प्रभावी विकल्प है जो अतिरिक्त वर्षा जल निकास में भी सक्षम होता है| इसके अतिरिक्त निम्नलिखित संरचनाएं सम्मिलित है:
क) बाह्यमुखी सीढ़ीनुमा वेदिकाएं (आउटवर्ड वैंच टेरेसेज) : ये वेदिकाएं मुख्यतया कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जहाँ की मृदा अधिक पारगम्य हो वहां बनाई जाती है, फलस्वरुप मृदा वर्षा जल को पूर्णतया सोख लेती है जिससे अप्रवाहित जल की मात्रा कम हो जाती है| अतिरिक्त वर्षा जल के सुरक्षित निकास के लिए स्वस्थ बंधों का निर्माण भी किया जाता है|
ख) समतल सीढ़ीनुमा वेदिकाएं (लेवल वैंच टेरेसेज): माध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों में जहाँ भूमि समतल तथा मृदा अधिक पारगम्य हो वहां इन वेदिकाओं का निर्माण किया जाता हैं| ऐसा करने से वर्षा जल वितरण सामान्य हो जाता है और अधिकांशतः वर्षा जल मृदा के अंदर प्रवेश कर जाता है जिससे वर्षा जल अप्रवाह में काफी कमी आ जाती है|
ग) अन्तर्मुखी सीढ़ीनुमा वेदिकाएं (इनवर्ड वैंच टेरेसेज): मुख्यतया अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इन वेदिकाओं की उपयोगिता अधिक होती है जहाँ अधिकांशतः वर्षा जल का खेत से सुरक्षित निकास आवश्यक होता है| उनमें एक उपयुक्त निकास नाली का निर्माण किया जाता है जिसे अंत में एक उपयुक्त निकासद्वार से जोड़ दिया जाता है| इन्हें पर्वतीय सीढ़ीनुमा वेदिकाओं के नाम से भी जाना जाता है|
मृदा एंव जल संरक्षण के उपयुक्त एंव प्रभावी उपायों जैसे जैविक तथा अभियांत्रिकी का संयुक्त प्रयोग अत्यधिक लाभदायक होता है| अतः इन दोनों का एक साथ प्रयोग करने की पुरजोर सिफारिश की जाती है|
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