लाख कीट का वैज्ञानिक नाम ‘टैकार्डिया लैका’ है। यह एक रेंगने वाला छोटा कीट है, जो अपने चूसक मुखांग को पौधों के ऊतकों में घुसाकर रस चूसता है, आकार में बढ़ता है और अपने पिछले भाग से लाख का स्राव करता है।
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जनसत्ता
July 10, 2016 02:00 am
जानकारीः कीट से लाख
लाख कीट का वैज्ञानिक नाम ‘टैकार्डिया लैका’ है। यह एक रेंगने वाला छोटा कीट है, जो अपने चूसक मुखांग को पौधों के ऊतकों में घुसाकर रस चूसता है, आकार में बढ़ता है और अपने पिछले भाग से लाख का स्राव करता है। इसका अपना शरीर ही अंत में लाख के कोष्ठ में बंद हो जाता है। लाख वास्तव में कीट की सुरक्षा के लिए होता है, न कि भोजन के लिए। औद्योगिक लाख वास्तव में मादा द्वारा अपनी सुरक्षा के लिए स्रवित किया जाता है। नर कीट चमकीले क्रीम रंग का लाख स्रवित करता है। मादा कीट नर से बड़ी चार से पांच मिलीमीटर लंबी होती है। मादा का शरीर लाख के बने एक कोष्ठ में बंद रहता है। मादा का जीवन काल नर से लंबा होता है और यह जीवन भर लाख का स्राव करती रहती है। इस प्रकार लाख का अधिकांश भाग मादा द्वारा ही स्रवित किया जाता है।
लाख कीट के एक से अधिक पोषक पौधे होते हैं। भारत में बबूल, बेर, कुसुम, पलाश, घोंट, खैर, पीपल, गूलर, पकरी, पुतकल, आम, साल, शीशम, अंजीर आदि वृक्ष लाल कीट के पोषक हैं। लाख की गुणवत्ता पोषक पौधे की किस्म पर निर्भर करती है। खैर, कुसुम और बबूल के वृक्षों पर पले कीटों से उत्तम प्रकार का लाख बनता है। पलाश और बेर पर एक विशेष प्रकार के लाख का उत्पादन होता है, जिसे ‘कुसुमी लाख’ कहते हैं।
लाख का उत्पादन एक जटिल प्रक्रिया है। लाख कीट के संरोपण, वृंदन और कीटों से लाख एकत्रण इस प्रक्रिया के अंग हैं। लाख के उत्पाादन में पहला चरण लाख कीट का संरोपण है। संरोपण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा तरुण कीट अपने पोषक पौधे पर भली भांति व्यवस्थित हो जाता है। कीट पर लाख का आवरण चढ़ना या लाख का स्रवण होना वृंदन कहलाता है। जब लाख पूरी तरह परिपक्व हो जाता है, तब अधिकांश लाख प्राप्त कर लिया जाता है। इसका कुछ भाग पोषक पौधे पर ही छोड़ दिया जाता है। वह शाखा जिस पर कीट और अंडे रहते हैं, उसे लाख भ्रूण टहनी कहते हैं और इस लाख को भू्रण लाख या टहनी लाख कहते हैं। सबसे पहले भू्रणलाख को टहनी से खुरच कर छुड़ाते हैं। इस खुरचे हुए लाख में अनेक अशुद्धियां जैसे लाख कीट के मृत भाग, अंडे, रंजक आदि होते हैं। इस लाख को हाथ से खरल द्वारा कूटा जाता है और इस पदार्थ को हवा में सुखाकर कणों के रूप में प्राप्त कर लिया जाता है, इसे बीज लाख कहते हैं।
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इस बीज लाख को पानी में भिगोकर, धोकर, धूप में सुखाकर, रंग उड़ाकर, कपड़े के थैलों में भरकर, आग की आंच के ऊपर लटकाकर पिघलाते हैं। गर्म करते समय थैलों को घुमाते रहते हैं, जिससे लाख निचुड़कर बाहर आ जाता है। लाख की अशुद्धियां थैले में ही रह जाती है। इन्हें किर्री लाख कहते हैं। निचोड़े हुए लाख को बटननुमा ढांचों के चारों ओर ठंडा करके जमने देते हैं, इन्हें अब बटन लाख या शुद्ध लाख कहते हैं। इस शुद्ध लाख को जब एक पतली चादर के रूप में फैला देते हैं तब इसे चादरलाख या पत्तर लाख कहते हैं। इस लाख की पत्तर को जब पानी में घोलते हैं तब सफेद या नारंगी रंग का लाख बनता है, इसे लाख कहते हैं। वास्तव में शल्क लाख, बीज लाख को पीले आर्सेनिक के साथ एक निश्चित अनुपात में उबालने से बनता है। इसलिए शल्क लाख ही लाख का शुद्धतम रूप है। लाख की किस्म पोषक पौधे पर निर्भर करती है। कुसुमी लाख सर्वश्रेष्ठ लाख माना जाता है और ढाक का लाख सबसे सस्ता और निम्नस्तर का होता है। लाख की किस्म त्और रंग पोषक पौधे में उपस्थित गोंद और रेजिनों पर निर्भर करती है।
तेज प्रकाश, तेज वायु, उच्च तापमान, अधिक नमी, भारी वर्षा, गिलहरी, चूहे, बंदर, परभक्षी पक्षी और जंतु, परजीवी जीव आदि लाख के कीट और लाख को हानि पहुंचाने वाले कारक हैं।
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