साख नियंत्रण:-
1. बैंक दर:- वह दर होती है जिस पर व्यापारिक बैंक केन्द्रीय बैंक से ऋण प्राप्त करते हैं। यह व्याज दर से भिन्न होता है। बैंक दर वह होती है जिस पर केन्द्रीय बैंक बिलों की पुनर्कटौती करता है। साख नियंत्रित करते समय केन्द्रीय बैंक इस दर को बढ़ा देते हैं जबकि साख विस्तार के समय बैंक दरों को घटा दिया जाता है।
2. खुले बाजार की क्रियायें :- इससे तात्पर्य प्रतिभूतियों के क्रय विक्रय से होता है जब केन्द्रीय बैंक को साख नियंत्रण करना होता है तो वह प्रतिभूतियां को व्यापारिक बैंक के पास विक्रय करके नकद मुद्रा को अपने पास रख लेते हैं। जिससे व्यापारिक बैंक साख सृजन करने में सक्षम नहीं रह जाते है। और साख विस्तार की प्रक्रिया के दौरान केन्द्रीय बैंक इन सरकारी प्रतिभूतियों को पुनः क्रय करके नकद मुद्रा व्यापारिक बैंकों को देते है ।
रेपो एवं रिवर्स रेपो खुले बाजार की क्रियाओं की तरह केन्द्रीय बैंक के तरलता प्रबंध के उपकरण हैं। परन्तु इनका सम्बन्ध अत्यन्त अल्प अवधि से होता है।
जब कोई इस विकल्प के साथ किसी प्रतिभूति को बेंचता है कि उसे एक निश्चित अवधि के बाद क्रय कर लेगा तो इसे रेपो कहा जाता है। और इसकी विपरीत स्थिति को रिवर्स रेपो कहते हैें। रिवर्स एवं रेपो की दर में वृद्धि होने से तरलता की मात्रा में कमी पायी जाती है।
परिवर्तनीय कोष अनुपात:– व्यापारिक बैंको को अपनी जमा का एक निश्चित अनुपात जो 3 से 15 प्रतिशत हो सकता है केन्द्रीय बैंक के पास रखना पड़ता है। जिसे ब्त्त् कहा जाता है। इसी प्रकार प्रत्येक व्यापरिक बैंक को अपनी जमा का एक निश्चित अनुपात नकद के रूप में रखना पड़ता है। जो सामन्यतः 25 से 40 प्रतिशत तक होता है। इसे वैधानिक तरलता अनुपात कहते है। यद्यपि भारत में जनवरी 2007 ई0 से SLR की न्यूनतम सीमा को समाप्त कर दिया गया है। साख नियत्रित करने के लिए केन्द्रीय बैंक CRR rFK SLR में वृद्धि कर देता है।
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