‘संसदीय’ शब्द का अर्थ ही ऐसी लोकतंत्रात्मक राजनीतिक व्यवस्था है जहाँ
सर्वोच्च शक्ति लोगों के प्रतिनिधियों के उस निकाय में निहित है जिसे
‘संसद’ कहते हैं। भारत के संविधान के अधीन संघीय विधानमंडल को ‘संसद’ कहा
जाता है। यह वह धुरी है, जो देश के शासन की नींव है। भारतीय संसद
राष्ट्रपति और दो सदनों—राज्यसभा और लोकसभा—से मिलकर बनती है।
वैसे तो भारत का संसद का अंग होता है, फिर भी वह दोनों में से किसी भी सदन में न तो बैठता है, न ही उसकी चर्चाओं में भाग लेता है।
समय समय पर संसद के दोनों सदनों को बैठक के लिए आमंत्रित करता है। दोनों
सदनों द्वारा पास किया गया कोई विधेयक तभी कानून बन सकता है जब राष्ट्रपति
उस पर अपनी अनुमति प्रदान कर दे। इतना ही नहीं, जब संसद के दोनों सदनों का
अधिवेशन न चल रहा हो और राष्ट्रपति को महसूस हो कि इन परिस्थितियों में
तुरंत कार्यवाही जरूरी है तो वह अध्यादेश जारी कर सकता है। इस अध्यादेश की
शक्ति एवं प्रभाव वही होता है जो संसद द्वारा पास की गई विधि का होता है।
लोकसभा के लिए प्रत्येक आम चुनाव के पश्चात अधिवेशन के शुरू में और हर साल के पहले अधिवेशन के प्रारंभ में
एक साथ संसद के दोनों सदनों के सामने अभिभाषण करता है। वह सदनों की बैठक
बुलाने के कारणों की संसद को सूचना देता है। इसके अलावा वह संसद के किसी एक
सदन अथवा एक साथ दोनों के समक्ष अभिभाषण कर सकता है। इसके लिए वह सदस्यों
की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकता है। उसे संसद में उस समय लंबित किसी विधेयक
के संबंध में संदेश या कोई अन्य संदेश किसी भी सदन को भेजने का अधिकार है।
जिस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया हो वह सदन उस संदेश में लिखे
विषय पर सुविधानुसार शीघ्रता से विचार करता है। कुछ प्रकार के विधेयक
राष्ट्रपति की सिफारिश प्राप्त करने के बाद ही पेश किए जा सकते हैं अथवा उन
पर आगे कोई कार्यवाही की जा सकती है।
जैसा कि इसके नाम से पता चलता है,
राज्यों की परिषद है। यह अप्रत्यक्ष रीति से लोगों का प्रतिनिधित्व करती
है। राज्यसभा के सदस्य का चुनाव राज्य विधान सभाओं के चुने हुए विधायक करते
हैं। प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों की संख्या ज्यादातर उसकी जनसंख्या पर
निर्भर करती है। इस प्रकार, के राज्यसभा में 5 सदस्य हैं, के राज्यसभा में 31 सदस्य हैं। , , , आदि छोटे राज्यों के केवल एक एक सदस्य हैं। में 250 तक सदस्य हो सकते हैं। इनमें
द्वारा मनोनीत 12 सदस्य तथा 238 राज्यों और संघ-राज्य क्षेत्रों द्वारा
चुने सदस्य होते हैं। इस समय राज्यसभा के 245 सदस्य हैं। राज्यसभा के
प्रत्येक सदस्य की कार्यावधि छह वर्ष है। उपराष्ट्रपति, संसद के दोनों
सदनों के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किया जाता है। वह राज्यसभा का पदेन
सभापति होता है। उपसभापति पद के लिए राज्यसभा के सदस्यों द्वारा अपने में
से किसी सदस्य को चुना जाता है।
के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा सीधे वोट डालकर किया जाता है। 18 साल और
उससे अधिक आयु का हर एक भारतीय नागरिक मतदान करने का हकदार होगा। लोक सभा
के अधिकतम 530 सदस्य राज्यों से चुनाव क्षेत्रों की प्रत्यक्ष रीति से चुने
जाएंगे। अधिकतम 20 सदस्य संघ राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करेंगे।
इसके अतिरिक्त, राष्ट्रपति
समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए दो से अनधिक सदस्य मनोनीत कर सकता है।
इस प्रकार सदन की अधिकतम सदस्य संख्या 552 हो, ऐसी संविधान में परिकल्पना
की गई है। लोक सभा में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए
जनसंख्या-अनुपात के आधार पर स्थान आरक्षित है। आरंभ में यह आरक्षण दस वर्ष
के लिए था। नवीनतम संशोधन के अंतर्गत अब यह पचास वर्ष के लिए अर्थात सन
2000 तक के लिए हैं।
में सदन की कार्यावधि पाँच वर्षों की है। पाँच वर्षों की अवधि समाप्त हो
जाने पर सदन खुद भंग हो जाता है। कुछ परिस्थतियों में संसद को पूर्ण
कार्यावधि समाप्त होने से पहले ही भंग किया जा सकता है। की स्थति में संसद लोक सभा की कार्यावधि बढ़ा सकती है। यह एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं हो सकती।
संसद के दोनों सदनों को, कुछ मामलों को छोड़कर सभी क्षेत्रों में समान शक्तियां एवं दर्जा प्राप्त है। कोई भी गैर-वित्तीय विधेयक
बनने से पहले दोनों में से प्रत्येक सदन द्वारा पास किया जाना आवश्यक है।
राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने, उपराष्ट्रपति को हटाने, संविधान में संशोधन
करने और उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने जैसे
महत्वपूर्ण मामलों में राज्यसभा को लोक सभा के समान शक्तियां प्राप्त है।
राष्ट्रपति के अध्यादेशों, आपात की उदघोषणा और किसी राज्य में संवैधानिक
व्यवस्था के विफल हो जाने की उदघोषणा और किसी राज्य में संवैधानिक व्यवस्था
के विफल हो जाने की उदघोषणा को संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखना
अनिवार्य है। किसी धन विधेयक और संविधान संशोधन विधेयक को छोड़कर अन्य किसी
भी विधेयक पर दोनों सदनों के बीच असहमति को दोनों सदनों द्वारा संयुक्त
बैठक में दूर किया जाता है। इस बैठक में मामले बहुमत द्वारा तय किए जाते
हैं। दोनों सदनों की ऐसी बैठक का पीठासीन अधिकारी लोकसभा का अध्यक्ष होता
है।
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