मृत्यु दंड के समर्थकों का तर्क है कि मानव जीवन बड़ा ही महत्वपूर्ण है और निर्दोषों की रक्षा करना समाज का अधिकार ही नहीं, उसका कर्तव्य भी है. निर्दोषों की रक्षा का एक तरीक़ा यह है कि जघन्य अपराध के आरोपियों को ऐसी सजा मिले, जो दूसरों के लिए एक उदाहरण हो, उन्हें ऐसे अपराध करने से रोकने का काम करे. पूरे देश में फिरौती के लिए अपहरण की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए कुछ दिनों पहले ही सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधीशों को अपहरणकर्ताओं को कड़ी से कड़ी सजा देने की सलाह दी थी. न्यायालय ने कहा था कि क़ानून फिरौती के लिए अपहरण की कुछ ख़ास स्थितियों में मृत्यु दंड तक की इजाज़त देता है और इसके लिए अपहृत व्यक्ति की हत्या कोई आवश्यक शर्त नहीं है. न्यायमूर्तिद्वय एच एस बेदी एवं जे एम पांचाल की खंडपीठ ने कहा था, आंकड़ों पर नज़र डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि फिरौती के लिए अपहरण सारे देश में एक लाभदायक उद्योग का रूप लेता जा रहा है और इसके ख़िला़फ कड़े से कड़े क़दम उठाने की ज़रूरत है तथा इसकी कुछ ज़िम्मेदारी अदालतों के ऊपर भी है. सर्वोच्च न्यायालय की इस सलाह के बाद अपहरणकर्ताओं के ख़िला़फ कड़े दंड के प्रावधानों की शुरुआत हो सकती है, क्योंकि न्यायालय ने दो ऐसे अपराधियों की मृत्यु दंड की सजा बरक़रार रखी, जिन्होंने होशियारपुर में एक 16 वर्षीय छात्र का फिरौती के लिए अपहरण करने के बाद उसकी हत्या कर दी थी.
न जाने कब से मृत्यु दंड राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक विवाद का विषय रहा है, लेकिन इसके बावजूद अब तक इसका कोई आख़िरी परिणाम नहीं निकल पाया है. विचारक, न्यायाधीश, न्यायविद और समाज का बुद्धिजीवी वर्ग इस मुद्दे पर एकमत नहीं है. वह भी तब, जबकि सदियों से मृत्यु दंड का प्रावधान कई देशों की न्याय व्यवस्था का एक अभिन्न अंग रहा है. हालांकि भौगोलिक और ऐतिहासिक वजहों से इसके स्वरूप में भिन्नता देखने को मिलती है. भारतीय न्याय व्यवस्था न्याय के सुधारक और निवारक सिद्धांतों का मिश्रण है. दंड विधान का एक लक्ष्य जहां अपराधियों को अपराध करने से रोकना है, वहीं इसका दूसरा लक्ष्य उन्हें सुधरने का मौक़ा देना भी है. इन्हीं मूलभूत उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए विधायिका ने अपराध दंड संहिता में धारा 354(3) को जगह दी है. यह उपधारा वास्तव में मृत्यु दंड की सजा सुनाने की हालत में न्यायालय द्वारा इसकी ख़ास वजहों को स्पष्ट करने की एक आवश्यक शर्त बताती है. इस तरह 1973 के बाद से दंड संहिता में संगीन अपराधों की हालत में आजीवन कारावास का प्रावधान है, जबकि विशेष परिस्थितियों में मृत्यु दंड की सजा भी दी जा सकती है.
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Ha
Aprad ke liye mrityu dand aavasyak hai ya nahi
Mratyu dand dena kitna shahi he bhartiya samvidhan ki mulyatmak me ese spasht krte vaikalpik ki aur dhyan spasht kijiye
हत्या के लिए मृत्यु दंड कंहा तक सही है?
भारतीय दंड संहिता में किन किन अपराधों के लिए मृतुदण्ड का प्रावधान है। उदाहरण द्वारा स्पस्ट करे कि मृतुदण्ड सम्बधनिक है कि नही।
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Kya has Apradh ke liye Mrityudand aavashyak hai