उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण में जापान का उत्कर्ष एवं यूरोपीयकरण एशिया तथा नवीन साम्राज्यवाद के इतिहास में एक युगांतरकारी घटना माना जाएगा। मेईजी पुनःस्थापना ने देश में एक नया जागरण पैदा किया और जापान में पश्चिमीकरण तथा सुधारों की एक लहर दौड़ पड़ी। कुछ ही वर्षां में जापान देखते-देखते एक अत्याधुनिक राष्ट्र बन गया। अब कसी भी समुन्नत यूरोपीय राज्य से उसकी तलना की जा सकती थी।
जापान ने शुरू में अपना आधुनिकीकरण आत्मरक्षा के उद्देश्य से किया था। यह उस अनुभव का परिणाम था कि जब तक जापान स्वयं अपने को यूरोपीय राज्यों को समकक्ष नहीं बना लेगा, तब तक परिश्चम के अन्य देश उसे चैन से नहीं रहने देंगे और उसकी स्वतंत्रता भी समाप्त कर देंगे। लेकिन, उन्नीसवी सदी के अंत में जापान का वह उद्देश्य समाप्त हो गया। अब जापान में हर क्षेत्र में पाश्चात्य जगत का अनुकरण करने की लालसा जगी। यह लालसा राष्ट्रीय जीवन में परिवर्तन तक सीमित न रही, वरन् साम्राज्यवादी जीवन की ओर भी बढ़ गई, जिसके फलस्वरूप यूरोपीय देशों तथा अमेरिका की तरह वह भी साम्राज्यवादी देश हो गया।
जापान के आधुनिकीकरण का सबसे महत्वपूर्ण पहलू उसका अपूर्व औद्योगिक विकास था। जापान में बड़े-बड़े कल-कारखाने खुले और बहुत बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन प्रारंभ हुआ। इस तरह, जापान का औद्योगिकीकरण हुआ और वह एक उद्योग प्रधान देश बन गया। आधुनिक उद्योगीकरण साम्राज्यवाद का सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्ररेक त्व रहा है। एक औद्योगिक देश को कई तहर की चीजों की आवश्यकता होती है। उद्योग धंधे चलाने के लिए सर्वप्रथम कच्चे माल की आवश्यकता होती है। फिर, कच्चे माल से सामान तैयार कर उन्हें बेचने के लिए बाजार की भी आवश्यकता होती है। जापान एक छोटा सा देश है और उसके औद्योगिक साधन अत्यंत सीमित हैं। अपने उद्योग धंधों के लिए वह स्वयं अपने देश में प्राप्त कच्चे माल से सं तुष्ट नहीं हो सकता था; क्योंकि वह बहुत ही अपर्याप्त था। कच्चे माल के लिए वह दूसरे दशों पर आश्रित था। यही बात औद्योगिक चीजों को बेचने क लिए बाजार के साथ भी थी। जब उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा तो चीजों के खपत की समस्या आई। इन दोनों बातों के लिए जापान को दूसरे देशों पर निर्भर करना था।
कच्चे माल और बाजार की उपलब्धि के लिए साम्राज्यवादी जीवन का प्रारंभ आवश्यक हो गया। इन दोनों चीजों की प्राप्ति बाहरी पिछड़े देशों पर राजनीतिक प्रभुता कर ही की जा सकती है। कोई भी देश चाहे कितनी भी पिछड़ा क्यों न हो, इस तरह स्वेच्छापूर्वक अपना आर्थिक शोषण नहीं होने देगा। ऐसी स्थिति में पिछड़े देशों को अपना बाजार बनाने के लिए और वहाँ के कच्चे माल द्वारा अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए उन पर राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करना आवश्यक बन गया। राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने का एक उपाय था - युद्ध। अतएव, इस परिस्थिति में जापान को युद्ध का सहारा लेना पड़ा और इस तरह उसके साम्राज्यवादी जीवन का आरंभ हुआ।
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