Chattishgadh Ki Lok Kala छत्तीसगढ़ की लोक कला

छत्तीसगढ़ की लोक कला



GkExams on 04-07-2021

1. हरेली : यह मुख्य रूप से किसानों का पर्व है। यह पर्व श्रावण मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह छत्तीसगढ़ अंचल में प्रथम पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह हरियाली के उल्लास का पर्व है। इस पर्व में धान की बुवाई के बाद श्रावण मास की अमावस्या को सभी लौह उपकरणों की पूजा की जाती है। इस दिन बच्चे बांस की गोड़ी बनाकर घूमते एवं नाचते हैं। इस दिन जादू-टोने की भी मान्यता है। इस दिन बैगा जनजाति के लोगों द्वारा फसल को रोग मुक्त करने के लिए ग्राम देवी-देवताओं की पूजा-पाठ भी की जाती है। इस पर्व के अवसर पर लोग नीम की टहनियां अपने घरों के दरवाजों पर लगाते हैं।





2. भोजली : यह पर्व रक्षा बन्धन के दूसरे दिन भाद्र मास में मनाया जाता है। इस दिन लगभग एक सप्ताह पूर्व बोए गए गेहूँ, धान आदि के पौधे रूपी भोजली का विसर्जन किया जाता है। इस अवसर पर भोजली के गीत गाए जाते हैं। भोजली का आदान-प्रदान किया जाता है। ‘ओ देवी गंगा, लहर तुरंगा’ भोजली पर्व का प्रसिद्ध गीत है।





3. हलषष्ठी : इस पर्व को हर छठ एवं कमरछट के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन महिलाएं भूमि में सगरी (गड्ढ़ा या कुंड) बनाकर शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना करती है, उपवास करती है तथा अपने पुत्र की लम्बी आयु की कामना करती है। इस दिन पसहेर चावल, दही एवं अन्य 6 प्रकार की भाजी, लाई, महुआ आदि का सेवन किया जाता है। पसहेर धान बिना जुती जमीन, पानी भरे गड्ढ़ों आदि में स्वतः उगता है। कमरछट के दिन उपवास रखने वाली स्त्रियों को जुते हुए जमीन में उपजे किसी भी चीज का सेवन वर्जित रहता है।





4. पोला : यह पर्व भाद्र मास में मनाया जाता है। इस दिन किसान अपने बैलों को सजाकर पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन बैल दौड़ प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती है। इस दिन बच्चे मिट्टी के बैलों को सजाकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं तथा उससे खेलते हैं।





5. अरवा तीज : यह पर्व विवाह का स्वरूप लिए हुए राज्य की अविवाहित लड़कियों द्वारा वैशाख मास में मनाया जाता है। इस पर्व में आम की डालियों का मंडप बनाया जाता है।





6.छेरछेरा : यह पर्व पौष माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह पर्व ‘पूषपुन्नी’ के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व के अवसर पर बच्चे नई फसल के धान मांगने के लिए घर-घर अपनी दस्तक देते हैं। ये उत्साहपूर्वक लोगों के घर जाकर ‘छेरछेरा’ कोठी के धान ला हेरते हेरा’ कहकर धान मांगते हैं, जिसका अर्थ ‘अपने भंडार से धान निकालकर हमें दो’ होता है। यह पर्व पहले काफी महत्वपूर्ण माना जाता था परन्तु समय के साथ-साथ यह पर्व वर्तमान में अपना महत्व खोता जा रहा है। इस दिन लड़कियां छत्तीसगढ़ अंचल का प्रसिद्ध ‘सुआ नृत्य’ करती है।





7. मेघनाद : यह पर्व फाल्गुन माह में राज्य के गौंड आदिवासियों द्वारा मनाया जाता है। कहीं-कहीं यह पर्व चैत्र माह में भी मनाया जाता है। अलग-अलग तिथियों में मनाने का उद्देश्य अलग-अलग स्थानों के पर्व में सभी की भागीदारी सुनिश्चित करना है। गौंड आदिवासी समुदाय के लोग मेघनाद को अपना सर्वोच्च देवता मानते हैं। मेघनाद का प्रतीक एक बड़ा सा ढांचा आयोजन के मुख्य दिवस के पहले खड़ा किया जाता है।





यहीं मेघनाद मेला आयोजित होता है। इस ढ़ाचे के चार कोनों में चार एवं बीचों-बीच एक कुल 5 खम्भे होते हैं, जिसे गेरू एवं तेल से पोता जाता है। मेघनाद का सम्पूर्ण दांचा गोंडों के खंडेरादेव का प्रतीक माना जाता है। पारम्परिक रूप से इस आयोजन में खंडेरादेव का आह्वान किया जाता है और मनौतियां मानी जाती है। मनौती मानने की प्रकिया कठिन होती है। इसके लिए मनौती लेने वाले को मेघनाद के ढांचे के बीच स्थित खम्भे में उल्टा लटकाकर धूमना होता है।





यह इस पर्व का मुख्य विषय भी है। इस पर्व के अवसर पर गांव में मेले का माहौल बन जाता है। संगीत एवं नृत्य का क्रम स्वमेव निर्मित हो जाता है। मेघनाद के ढांचे के निकट स्त्रियां नृत्य करते समय खंडेरादेव के अपने शरीर में प्रवेश का अनुभव करती है। यह आयोजन जनजाति में आपदाओं पर विजय पाने का विश्वास उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।





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7.तीजा : यह छत्तीसगढ़ का परम्परागत त्योहार है। इस त्योहार के अवसर पर भाद्र मास में माता-पिता अपनी ब्याही लड़कियों को उसके ससुराल से मायके लाते हैं। तीजा में स्त्रियां निर्जला उपवास रखती है। दूसरे दिन स्त्रियां शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना के पश्चात अपना उपवास तोड़ती है।





8. अक्ति : इस पर्व के अवसर पर लड़कियां पुतला-पुतली का विवाह रचाते है। इसी दिन से खेतों में बीज बोने का कार्य प्रारम्भ होता है।





9. बीज बोहानी : यह कोरबा जनजाति का महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व कोरवा जनजाति के लोगों द्वारा बीज बोने से पूर्व काफी उत्साह से मनाया जाता है।





10.आमाखायी : यह बस्तर में घुरवा एवं परजा जनजातियों द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। इस जनजाति के लोग यह त्योहार आम फलने के समय बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।





11. रतौना : यह बैगा जनजातियों का प्रमुख त्योहार है। इस त्योहार का संबंध नागा बैगा से है।





12. गोंचा : यह बस्तर क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण आयोजन है। बस्तर में आयोजित होने वाले रथयात्रा समारोह को ‘गोंचा’ के नाम से जाना जाता है।





13. नवान्न : यह पर्व नई फसल पकने पर दीपावली के बाद मनाया जाता है। कहीं-कहीं इसे ‘छोटी दीपावली’ भी कहते हैं। इस अवसर पर आदिवासी साज वृक्ष, माता भवानी, रात माई, नारायण देव एवं होलेरा देव को धान की बालिया चढ़ाते हैं।





14. सरहुल : यह ओरांव जनजाति का महत्वपूर्ण पर्व है। इस अवसर पर प्रतीकात्मक रूप से सूर्य देव और धरती माता का विवाह रचाया जाता है। इस अवसर पर मुर्गे की बलि भी दी जाती है। अप्रैल माह के प्रारंभ में जब साल वृक्ष फलते हैं तब यह पर्व ओरांव जनजाति और ग्राम के अन्य लोगों द्वारा उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। मुर्गे को सूर्य तथा काली मुर्गी को धरती माता का प्रतीक मान कर उसे सिन्दूर लगाया जाता है, तथा उनका विवाह सम्पन्न कराया जाता है। बाद में मुर्गे व मुर्गी की बलि चढ़ा दी जाती है।





15. मातर : यह छत्तीसगढ़ के अनेक हिस्सों में दीपावली के तीसरे दिन मनाया जाने वाला एक मुख्य त्योहार है। मातर या मातृपूजा कुल देवता की पूजा का त्योहार है। यहां के आदिवासी एवं यादव समुदाय के लोग इसे मनाते हैं। ये लोग लकड़ी के बने अपने कुल देवता खोडहर देव की पूजा-अर्चना करते हैं। राउत लोगों द्वारा इस अवसर पर पारम्परिक वेश-भूषा में रंग-बिरंगे परिधानों में लाठियां लेकर नृत्य किया जाता है।





16. जेठवनी : इस पर्व में तुलसी विवाह के दिन तुलसी की पूजा की जाती है। 17. देवारी : छत्तीसगढ़ में दीपावली के त्योहार को देवारी के नाम से जाना जाता है।





17. दशहरा : यह प्रदेश का प्रमुख त्योहार है। इसे भगवान राम की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर शस्त्र पूजन एवं दशहरा मिलन होता है पर बस्तर क्षेत्र में यह दन्तेश्वरी की पूजा का पर्व है। बस्तर का दशहरा अपनी विशिष्ठता के लिए जाना जाता है। यह बस्तर का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। यह बस्तर में लम्बी अवधि तक मनाया जाता है।





18. गौरा : छत्तीसगढ़ में गौरा पर्व कार्तिक माह में मनाया जाता है । इस पर्व के अवसर पर स्त्रियां शिव एवं पार्वती का पूजन करती है। अन्त में शिव-पार्वती की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। जनजाति के लोग इस अवसर पर भीमसेन का प्रतिमा तैयार करते हैं। मालवा क्षेत्र में ऐसा ही पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है, जहां यह ‘गणगौर’ के नाम से जाना जाता है।





19. गोवर्धन पूजा : इस पर्व का आयोजन कार्तिक माह में दीपावली के दूसरे दिन किया जाता है। यह पूजा गोधन की समृद्धि की कामना से की जाती है। इस अवसर पर गोबर की विभिन्न आकृतियाँ बनाकर उसे पशुओं के खुरों से कुचलवाया जाता है।





20. नवरात्रि : माँ दुर्गा की उपासना का यह पर्व चैत्र एवं आश्विन दोनों माह में 9-9 दिन मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ अंचल के दंतेश्वरी, बम्लेश्वरी, महामाया आदि शक्तिपीठों पर इस दौरान विशेष पूजन होता है। आश्विन नवरात्रि में माँ दुर्गा की आकर्षक एवं भव्य प्रतिमाएं जगह-जगह स्थापित की जाती है।





21. गंगा दशमी : यह त्योहार सरगुजा क्षेत्र में गंगा के पृथ्वी पर अवतरण की स्मृति में मनाया जाता है। यह त्योहार जेठ माह की दशमी को मनाया जाता है। आदिवासी एवं गैर आदिवासी दोनों ही समुदाय के लोगों द्वारा यह त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार में पति-पत्नी सामूहिक रूप से पूजन करते हैं।





22. लारूकाज : ‘लारू’ का अर्थ दुल्हा और ‘काज’ का अर्थ अनुष्ठान होता है। इस तरह ‘लारूकाज’ का अर्थ ‘विवाह उत्सव’ है। यह सूअर के विवाह का सूचक है । गोंडों का यह पर्व नारायण देव के सम्मानार्थ आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर नारायण देव को सूअर की बलि भी चढ़ायी जाती है। वर्तमान समय में बलि के अनुष्ठान की परम्परा समाप्त हो रही है। सुख-समृद्धि एवं स्वास्थ्य के लिए 9 से 12 वर्षों में एक बार इसका आयोजन प्रत्येक परिवार के लिए आवश्यक समझा जाता है। एक परिवार का आयोजन होते हुए भी इसमें समुदाय की भागीदारी होती है। यह पर्व क्षेत्रीय आधार पर विभिन्नता लिए हुए है व इसमें समयानुसार परिवर्तन भी होता है। पारिवारिक आयोजन होने के कारण इसकी सामुदायिक भागादारी अन्य पर्वो की अपेक्षा सीमित होती है।





23. करमा : यह ओरांव, बैगा, बिंझवार, आदि जनजातियों का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व कठोर वन्य जीवन और कृषि संस्कृति में श्रम के महत्व पर आधारित है। ‘कर्म की जीवन में प्रधानता’ इस पर्व का महत्वपूर्ण संदेश है। यह पर्व भाद्र माह में मनाया जाता है। यह प्रायः धान रोपने व फसल कटाई के बीच के अवकाश काल का उत्सव है। इसे एक तरह से अधिक उत्पादन के हेतु मनाया जाने वाला पर्व भी कहा जा सकता है। इस अनुष्ठान का केन्द्रीय तत्व ‘करम वृक्ष’ है। करम वृक्ष की तीन डालियां काट कर उसे अखाड़ा या नाच के मैदान में गाड़ दिया जाता है तथा उसे ‘करम राजा’ की संज्ञा दी जाती है।


GkExams on 12-06-2021


छत्तीसगढ लोक कला संस्कृति


छत्तीसगढ में लोक जीवन कौशल जो की समाज द्वारा मान्य है लोक संस्कृति कहलाती है इसके अंतर्गत लोकगीत , लोकनृत्य नाटक , छत्तीसगढ़ी पर्व और पर्व छत्तीसगढ़ी गहने और व्यंजन है

लोकगीत


पंडवानी


महाभारत कथा का छत्तीसगढ़ी लोकरूप पंडवानी है
पंडवानी के रचियता - सबल सिंह चौहान है
पंडवानी गीत अंतरास्ट्रीय स्तर पर विख्यात है
पंडवानी के लिए किसी विशेष मौके की जरुरत नहीं होती है
शैली ( दो तरह के प्रसिद्ध है )
वेदमती शैली - केवल गायन कार्य होता है
मुख्य कलाकार - 
  • रितु वर्मा
  • झाडूराम देवांगन
  • पनाराम निषाद
  • रेवा राम साहू

  • कापालिक शैली -

    इसमें गायन और नृत्य दोनों होता है
    मुख्य कलाकार
  • तीजनबाई
  • शांति बाई
  • उषाबाई

  • मुख्य वाद्य यंत्र - 1 तम्बूरा , 2 करतल ,  
    अंतरास्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले अभिनेता
    1 झाडूराम देवांगन
    2 तीजन बाई
    3 रितु वर्मा

    ददरिया


    छत्तीसगढ के लोकगीतों का राजा कहा जाता है
    प्रश्न उत्तर शैली पर आधारित होता है
    फ़सल बोते वक्त युवक युवतिया अपने मन की बात को पहुँचते है
    ये श्रृंगार प्रधान होता है
    ददरिया को प्रेम गीत के रूप में भी जाना जाता है
    बैगा जनजाति ददरिया गीत के साथ नृत्य भी करते है
    अभिनेता -
    1 लश्मण मस्तुरिया
    2 दिलीप सडांगी
    3 केदार यादव

    पंथी गीत -


    ये छत्तीसगढ क्षेत्र में सतनामी मज़हब द्वारा गाया जाने वाला एक विशेष लोकगीत है
    पंथी नृत्य में नृत्य कलाकार कलाबाजी करते है
    पंथी गीत के अन्तिम वक्त में पिरामिड बनाते है
    गीतकार -
    1 देवदास बंजारे ( पन्थीनृत्य के जनक )
    देवदास जी ने इस को अंतरास्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त करवाई है
    वाद्य यन्त्र - मांदर , झांझ

    चंदैनी गायन -


    चंदैनी गायन छत्तीसगढ क्षेत्र में लोरिक और चंदा के जीवन पर आधारित है
    अभिनेता - चिंता दास
    वाद्यंत्र - टिमकी , ढोलक

    भरथरी गीत -


    इस को परंपरागत शैली में राजा भरथरी और महारानी पिंगला के बैराग्य जीवन का वर्णन किया है
    गायक - सुरुजबाई खाण्डे
    वाद्यंत्र - एकतारा , सारंगी

    डोला मारू -


    ये डोला और मारू का प्यार संदर्भ गायन है परन्तु ये राजस्थानी परंपरागत शैली है
    मुख्य कौशल कार - सुरुजबाई खाण्डे

    बाँस गीत - -


    ये एक दुःख का करुण गीत है राउत जाती द्वारा गाया जाता है
    बाँस गीत में महाभारत के पात्र कर्ण और मोरध्वज व्शीतबसंत का वर्णन है
    इसमें कथा गायन के साथ मोठे बाँस के तकरीबन एक Meter लंबे सजे धजे बाँस न|मक वाद्य का प्रयोग होता है इसलिए इस को बाँस गीत कहा जाता है
    इसमें रागी गायक और वादक तीनो होते है
    अभिनेता - केजूराम यादव , नकुल यादव


    भोजली गीत


    रक्षा बंधन के दूसरे दिन भादो महीने कृष्ण पक्ष के पहले दिन होता है
    भोजली गीत में गंगा का नाम बार बार आता है

    सुआ गीत -


    सुआ गीत सुआ नृत्य के वक्त गयी जाती है
    ये गीत औरतों के विरह को व्यक्त करती है
    सुआ गीत दीवाली के सुरु से दीपावली के अन्तिम दिवस तक चलती है 




    सम्बन्धित प्रश्न



    Comments Jishesh das on 03-04-2024

    छत्तीसगढ़ लोक चित्रकला

    Megha on 05-11-2023

    Chhattisgarh ki lok kala ka naam bataiye

    Yachna on 27-10-2023

    Chhattisgarh ke lok kala ka naam


    Disha Bag on 16-10-2023

    Chattisgarh ke lok kala ka naam btaye

    Riya on 14-10-2023

    छत्तीसगढ़ के लोक कलाओ के नाम

    Ved on 30-09-2023

    छत्तीसगढ़ के लोक कला के नाम

    Laxman bandhe on 26-09-2023

    Chatisgarh ka lok kala ka name bataye


    Radha nishad on 27-08-2023

    Chhattisgarh ke lok kala ke naam



    Questions on 11-01-2020

    Chattisgarh ka lok kala ka name

    Aman on 13-02-2020

    छत्तीसगढ़ के लोक कलाओं की सूची बनाकर वर्णन

    nanutarak7@gmail.com on 10-03-2020

    Chhattisgarh ke lokkalao ka varnan kijiye

    Sheetal sahu on 23-04-2020

    Chattisgarah ke lok kala ka naam bataye


    Bhushan mehar on 14-05-2020

    Chattishgar ke lokgit

    Pushpa urov on 16-06-2020

    Chattisgardh ki log klao ke bare mai विस्तार से बताइए

    Gautam Nishad on 20-06-2020

    Chhattisgarhi lok kala ke bare mein likhen

    Bhagwati sonwani on 11-07-2020

    Lok kla ka naam bataiye koi 10

    Banty on 10-08-2020

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    Dev yadav on 30-10-2020

    Chhatisgarh KO lokkalaon me bare me vistar she samjhauye


    Nirmal on 09-11-2020

    Cg ka lok kala ka nema

    Shrishti Sahu on 03-12-2020

    Chhattisgarh ke lok kala

    Muskan on 13-12-2020

    Chattisgarh ke lok Kala ka name

    अंकित शाह अंकित शाह on 11-02-2021

    छत्तीसगढ में पचलित लौक कलाऔ की सूची तथा गायको

    के नाम

    Rahul on 21-02-2021

    छत्तीसगढ़ के दो लोक कलाओ के बारे में विस्तार से वर्णन कीजिए

    Lok kala ka nam 10 on 26-02-2021

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    Utkarsh on 02-03-2021

    छत्तीसगढ़ के 5 लोक कला का नाम

    Lok Kala ka nam on 12-03-2021

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    Rakhi jurri on 30-04-2021

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    Tanu on 13-05-2021

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    Priyanka shori on 28-05-2021

    छत्तीसगढ़ मैं प्रचलिक लोक कलाओ के ऐसे ही केला और गावको के नाम लिकये

    Cg ka lok kala ka nam on 13-06-2021

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    N on 23-06-2021

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    Ritu Patel on 09-07-2021

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    Anisha patel on 13-09-2021

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    Jageshwsri sahu on 27-09-2021

    Chattishgadh ka 10 lok kala ka naam

    Anisha Patel on 02-10-2021

    Chhattisgarh ki 10 lok kala ka naam bataiye

    Ratnapatel on 11-10-2021

    Cg ke lokkla ke name

    Gajendra on 18-10-2021

    छत्तीसगढ़ के लोक कला का नाम

    Kanchan on 11-11-2021

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    Aadi on 23-12-2021

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    Devnath Sahu on 02-02-2022

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    Chhabi banjare on 23-02-2022

    Lok kala ka name kya hai

    Roshan kumar on 27-02-2022

    छत्तीसगढ़ के लोक कलाओं की सूची बनाकर वर्णन कीजिए

    Minakshi on 08-04-2022

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    Taniya bharti on 09-05-2022

    छतीसगड के लोक कला के १० नाम

    rinku on 21-05-2022

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    Vishakha on 07-06-2022

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    मोहित on 15-06-2022

    छत्तीसगढ़ के किन्हीं दो लोककलाओं के बारे मे विस्तार से लिखिए

    Pooja Sahu on 25-08-2022

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    Om on 26-09-2022

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    Rajend on 28-11-2022

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    Lucky on 18-01-2023

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    lok kala on 26-01-2023

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    Lok kala ka naam any ¹⁰ on 07-02-2023

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    Sumit dhruw on 16-03-2023

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    Anju on 16-04-2023

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    Nikesh vanjare on 20-04-2023

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    CG ka lokh kala ka 10 name on 19-07-2023

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    Sheetal on 12-08-2023

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