पुलिस ने शांति भंग करने की आशंका के मद्देनजर अन्ना हजारे को गिरफ्तार किया था। बाद में उन्हें रिहा भी कर दिया गया। इस दौरान उनकी गिरफ्तारी पर कई तरह के सवाल उठे। पुलिस का कहना है कि कानूनी प्रावधानों के तहत यह गिरफ्तारी हुई, जबकि अन्ना के समर्थकों का कहना है कि पुलिस की यह कार्रवाई पूरी तरह से अलोकतांत्रिक और मूल अधिकारों का उल्लंघन है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि हमारे मूल अधिकार क्या हैं।
हमारे हैं कुछ मूल अधिकार
जानकार बताते हैं कि संविधान में हर नागरिक को मूल अधिकार मिले हुए हैं, जिनके उल्लंघन पर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 12 से लेकर 35 तक मूल अधिकारों का प्रावधान किया गया है। अनुच्छेद-19 के तहत हर नागरिक को विचार और अभिव्यक्ति का अधिकार मिला हुआ है। इसके तहत धरना-प्रदर्शन आदि भी शामिल हैं। लेकिन यह पूर्ण अधिकार नहीं है, बल्कि इसके लिए अपवाद भी बनाए गए हैं और इसके तहत सरकार रीजनेबल रिस्ट्रिक्शन (उचित प्रतिबंध) लगा सकती है।
अधिकारों की है सीमा भी
अनुच्छेद-21 के तहत आजादी के अधिकार की बात कही गई है, लेकिन यहां भी प्रावधान है कि सरकार कानूनी प्रक्रिया के तहत अधिकार को सीमित कर सकती है। अगर कोई शख्स किसी मामले का आरोपी है तो उसे जेल भेजा जा सकता है और यहां आजादी का अधिकार खत्म हो जाता है। इसी तरह दूसरे अधिकारों पर भी कानूनी प्रक्रिया के तहत रोक लगाई जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील डी. बी. गोस्वामी ने बताया कि कानूनी प्रक्रिया की भी सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में व्याख्या की है। मेनका गांधी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अधिकार पर रोक निष्पक्ष और जायज होनी चाहिए। वहीं केशवानंदन भारती बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि स्टेट (सरकार) किसी भी शख्स के मूल अधिकार की गारंटी देता है।
सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि एहतियातन हिरासत कानून तभी लागू किया जा सकता है, जब शांति को तुरंत खतरा हो और जिस शख्स को गिरफ्तार किया जाना है, उसके संज्ञेय अपराध करने की संभावना हो। ऐसा नहीं हो तो गिरफ्तारी मूल अधिकार का उल्लंघन मानी जाएगी और गिरफ्तार करने वाली एजेंसी पर मूल अधिकार के हनन का मामला बनेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा-107/151 एहतियातन हिरासत की बात करती है, न कि दंडात्मक। धारा-151 का इस्तेमाल तभी हो सकता है, जब जांच एजेंसी को लगे कि अमुक शख्स संज्ञेय अपराध करने जा रहा है। कानूनी जानकार बताते हैं कि सरकार के पास ऐसे अधिकार हैं, जिसके तहत वह मूल अधिकार को सीमित कर सकती है लेकिन जब मामला कोर्ट में जाता है तब कोर्ट तय करता है कि उचित प्रतिबंध के तहत जो कार्रवाई की गई है, वह कितनी सही है।
खटखटाएं कोर्ट का दरवाजा
मूल अधिकारों का उल्लंघन होने पर अदालत का दरवाजा खटखटाया जा सकता है। इसके लिए दो तरह की याचिकाएं होती हैं - एक प्राइवेट इंट्रेस्ट लिटिगेशन और दूसरी पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन। प्राइवेट इंट्रेस्ट लिटिगेशन में जिसका अधिकार प्रभावित होता है, वह खुद याचिका दायर कर सकता है। इसके लिए उसे संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में और अनुच्छेद-226 के तहत हाई कोर्ट में याचिका दायर करने का अधिकार है। इसके लिए याचिकाकर्ता को अदालत को यह बताना होता है कि उसके मूल अधिकार का कैसे उल्लंघन हो रहा है? वहीं जनहित याचिका दायर करने के लिए याचिकाकर्ता को यह बताना होगा कि आम लोगों के मूल अधिकारों का कैसे उल्लंघन हो रहा है।
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