Dakshinn Bharateey Taal Paddhati दक्षिण भारतीय ताल पद्धति

दक्षिण भारतीय ताल पद्धति



GkExams on 21-11-2018

दक्षिणी ताल लिपि पद्धति – यह ताल लिपि भारत के दक्षिणी भाग में जन्मी तथा विकसित हुई | यह ताल लिपि मुख्य रूप से 7 तालों (ध्रुव, मठ, रूपक, झंप, त्रिपुट/आदि, अठ तथा एक) पर निर्भर है जिस कारण इसे ‘सप्त-तालम’ भी कहा जाता है | इन 7 तालों में लघु की संख्या में बदलाव करके 35 तालों का सिधांत मन जाता है | इस पद्धति में काल, अंग, जाति तथा विसर्जितम को आधार मानकर ताल का निर्माण किया जाता है |

  • काल – संगीत में जिस समय में गायन, वादन या नृत्य हो रहा हो उसे काल की परिभाषा दी गयी है | इस ताल लिपि में ताल को 2 तरीके से नापा जाता है:- 1. अक्षरम; 2. मात्रा | अक्षरम को छोटी इकाई की तरह माना जाता है तथा मात्रा को बड़ी | 4 अक्षरम से 1 मात्रा का निर्मित होती है तथा कुछ मात्राओं के जोड़ से ताल का निर्माण होता है | लघु की गिनती में बदलाव होने से मात्राओं की संख्या बढ़ या घट जाती है |
  • अंग – जिस प्रकार उत्तरी ताल पद्धति में विभाग होते हैं ठीक उसी प्रकार दक्षिणी पद्धति में अंग होते है – ताल के अंग | दक्षिणी ताल पद्धति में 6 अंग माने जाते है- अणुद्रुत, द्रुत, लघु, गुरु, प्लुत, काकपद जिनकी मात्रा संख्या क्रमश: 1,2,4,8,12,16 है | इनमे से लघु ही केवल ऐसा अंग है जिसकी मात्रा संख्या में बदलाव करके ताल की जाति को बदला जा सकता है | वर्तमान समय में केवल अणुद्रुत, द्रुत तथा लघु का ही प्रयोग देखने मिलता है और गुरु, प्लुत तथा काकपद का प्रयोग नहीं होता |
  • जाति – दक्षिणी पद्धति में लघु की शक्ति में बदलाव करके ताल की जाति को बदला जाता है | इस बदलाव के कारण ही 7 तालें 35 तालों का रूप धारण करती हैं | वर्तमान समय में 5 जातियां हैं- तिस्र जाति, चतुश्र जाति, खंड जाति, मिश्र जाति तथा संकीर्ण जाति |
  • विसर्जितम – दक्षिणी ताल पद्धति में मात्राओं को निशब्द हस्त क्रिया के द्वारा दर्शाने की विधि को ही विसर्जितम कहा जाता है | जिस प्रकार उत्तरी पद्धति में ताली तथा खाली का स्थान होता है ठीक उसी प्रकार दक्षिणी ताल पद्धति में ताली तथा विसर्जितम प्रयोग होते हैं | इसके तीन प्रकार माने गये हैं – पताक विसर्जितम, कृष्या विसर्जितम तथा सर्पनी विसर्जितम |

  • पताक विसर्जितम – इस क्रिया में हाथ को ऊपर की और उठाते हुए मात्रा को गिना जाता है |
  • कृष्या विसर्जितम - इस क्रिया में हाथ को दांए से बांइ तरफ ले जाते हुए मात्रा को गिना जाता है |
  • सर्पनी विसर्जितम - इस क्रिया में हाथ को बांए से दांइ तरफ ले जाते हुए मात्रा को गिना जाता है |

इस प्रकार हम देखते हैं कि यह दोनों ताल पध्तियाँ चाहे एक ही सांगीतिक अदारे का हिस्सा हैं परन्तु फिर भी यह एक दुसरे से काफी अलग हैं | इनका प्रयोग, बनावट, विस्तार, आदि में भिन्नता है | फिर भी यह भारतीय संगीत के एक सिक्के के दो पहलुओं की तरह जुड़े हुए हैं | भारतीय संगीत पद्धति वर्तमान समय में पूरे विश्व की सबसे अधिक विकसित तथा सटीक पध्तियाँ हैं | इनके राग, ताल सब भिन्न हैं पर फिर भी कई मायनों में यह एक दुसरे से जुडी हुई हैं | जैसे कि यह दोनों ही सुर, ताल, राग के घेरे में हैं, दोनों ही थाटों का प्रयोग करते हैं |


इनमे कुछ बातें अलग भी है जैसे दक्षिणी ताल पद्धति 35 तालों के दायरे में रहती है जबकि उत्तरी पद्धति में तालों की संख्या असीमित है, जिसमे मात्रा के सवाए, आधे तथा पौने हिस्से का प्रयोग भी होता है परन्तु दक्षिणी ताल पद्धति में पूर्ण मात्रा ही प्रयोग होती है | दक्षिणी पद्धति में रचना को अधिक महत्व दिया जाता है जबकि उत्तरी पद्धति में सुर विस्तार को अधिक महत्व दिया जाता है |






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Comments गणेश ताल on 29-04-2024

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