राजस्थान लोकजीवनशब्दावली
1. बिजूका – (अडवो, बिदकणा) – खेत मेंपशु-पक्षियों से फसल की रक्षा करने के लिए मानव जैसी बनाई गयी आकृति
2. उर्डो, ऊर्यो, ऊसरडो, छापर्यो - ऐसा खेत जिसमे घासऔर अनाज दोनों में से कुछ भी पैदा न होता हो
3. अडाव – जब लगातार काम में लेने से भूमि की उपजाऊशक्ति कम हो जाने पर उसको खाली छोड़ दिया जाता है
4. अखड, पड़त, पडेत्या – जो खेत बिना जुता हुआ पड़ा रहता है
5. पाणत – फसल को पानी देने की प्रक्रिया
6. बावणी – खेत में बीज बोने को कहा जाता है
7. ढूँगरा, ढूँगरी – जब फसल पक जाने के बाद काट ली जाती उसकोएक जगह ढेर कर दिया जाता है
8. बाँझड – अनुपजाऊ भूमि
9. गूणी – लाव की खींचने हेतु बैलो के चलने काढालनुमा स्थान
10. चरणोत – पशुओं के चरने की भूमि
11. बीड – जिस भूमि का कोई उपयोग में नहीं लिया जाता हैजिसमें सिर्फ घास उगती हो
12. सड़ो, हडो, बाड़ – पशुओं के खेतों में घुसने से रोकने केलिए खेत चारो तरफ बनाई गयी मेड
13. गोफन – पत्थर फेकने का चमड़े और डोरियों से बना यंत्र
14. तंगड-पट्टियाँ – ऊंट को हल जोतते समय कसने की साज
15. चावर, पाटा, पटेला, हमाडो, पटवास – जोते गए खेतों कोचौरस करने का लकड़ी का बना चौड़ा तख्ता
16. जावण – दही जमाने के लिए छाछ या खटाई की अन्य सामग्री
17. गुलेल – पक्षी को मारने या उड़ाने के लिए दो –शाखी लकड़ी पर रबड़ की पट्टी बांधी जाती जसमे में बीच में पत्थर रखकर फेंका जाता है.
18. ठाण – पशुओं को चारा डालने का उपकरण जो लकड़ी या पत्थरसे बनाया जाता है
19. खेली – पशुओं के पानी पिने के लिय बनाया गया छोड़ा कुंड
20. दंताली – खेत की जमीन को साफ करना तथा क्यारी याधोरा बनाने के लिए काम में ली जाती है
21. लाव – कुएँ में जाने तथा कुएँ से पानी को बाहरनिकालने के लिए डोरी को लाव कहा जाता है
22. रेलनी – गर्मी या ताप को कम करने के लिए खेत में पानीफेरना
23. नीरनी – मोट और मूँग का चारा
24. नाँगला – नेडी और झेरने में डालने की रस्सी
25. सींकळौ – दही को मथने की मथनी के साथ लगा लोहेका कुंदा
26. लूण्यो – मक्खन. इसको “घीलडी” नामक उपकरण मेंरखा जाता है
27. ओबरी – अनाज व उपयोगी सामान को रखने के लिय बनाया गयामिट्टी का उपकरण (कोटला)
28. नातणौ- पानी, दूध, छाछ को छानने के काम आने वालावस्त्र
29. थली – घर के दरवाजे का स्थान
30. नाडी – तलाई – पानी के बड़े गड्डो को तलाई आय नाडीकहा जाता है
31. मेर – खेत में हँके हुए भाग के चरों तरफ छोड़ी गयीभूमि
32. जैली – लकड़ी का सींगदार उपकरण
33. रहँट – सिंचाई के लिए कुओं से पानी निकालने का यंत्र
34. सूड – खेत जोतने से पहले खेत के झाड-झंखाड को साफकरना
35. लावणी – किसान द्वारा फसल को काटने के लिए प्रयुक्तकिया गया शब्द
36. खाखला – गेंहू या जौ का चारा
37. दावणा – पशु को चरते समय छोड़ने के लिए पैरों मेंबांधी जाने वाली रस्सी
38. हटडी – मिर्च मसाले रखने का यंत्र
39. कुटी – बाजरे की फसल का चारा
40. ओरणी – खेत में बीज को डालने के लिए हल के साथ लगाईजाती है इसको “नायलो” भी कहते है
41. पराणी, पुराणी – बैलो या भैसों को हाकने की लकड़ी
42. कुदाली, कुश – मिट्टी को खोदने का यंत्र
43. ढींकळी – कुएँ के ऊपर लगाया गया यंत्र जो लकड़ीका बना होता है.
44. चडस – यह लोहे के पिंजरे पर खाल को मडकर बनाया जाताहै जो कुओं से पानी निकालने के काम आता है
45. चू, चऊ – हल के निचे लगा शंक्वाकार लोहे कायंत्र
46. पावड़ा – खुदाई के लिए बनाया गया उपकरण
47. तांती – जो व्यक्ति बीमार हो जाता है उसके सूत या मोलीका धागा बाँधा जाता है यह देवता की जोत के ऊपर घुमाकर बांधा जाता है
48. बेवणी – चूल्हे के सामने राख (बानी) के लिए बनाया गयाचौकोर स्थान
49. जावणी – दूध गर्म करने और दही जमाने की मटकी
50. बिलौवनी – दही को बिलौने के लिए मिट्टी का मटका
51. नेडी – छाछ बिलौने के लिए लगाया गया खूंटा या लकड़ी कास्तम्भ
52. झेरना – छाछ बिलोने के लिए लकड़ी का उपकरण इसको “रई” भीकहते है
53. नेतरा, नेता – झरने को घुमाने की रस्सी
54. छाजलो – अनाज को साफ करने का उपकरण
55. बांदरवाल – मांगलिक कार्यों पे घर के दरवाजे परपत्तों से बनी लम्बी झालर
56. छाणों- सुखा हुआ गोबर जो जलाने के काम आता है
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