SamajShastra Me Samajik Parivartan Ke Prakar समाजशास्त्र में सामाजिक परिवर्तन के प्रकार

समाजशास्त्र में सामाजिक परिवर्तन के प्रकार



Pradeep Chawla on 16-10-2018


समाज शिक्षा के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित करता है तो ठीक उसी प्रकार शिक्षा भी समाज को प्रत्येक पक्ष पर प्रभावित करती है, चाहे आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक स्वरूप हो।



शिक्षा व समाज का स्वरूप-शिक्षा का नया प्रारूप समाज के स्वरूप् को बदल देती है क्योंकि शिक्षा ही समाज में परिवर्तन का साधन है। समाज प्राचीनकाल से आत तक निरन्तर विकसित एवं परिवर्तित होता चला आ रहा है क्येांकि जैसे-जैसे शिक्षा का प्रचार-प्रसार होता गया इसने समाज में व्यक्तियों के प्रस्थिति, दृष्टिकोण, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाजों पर असर डाला और इससे सम्पूर्ण समाज का स्वरूप बदलता है l



शिक्षा व सामाजिक सुधार एवं प्रगति-शिक्षा समाज के व्यक्तियों को इस योग्य बनाती है कि वह समाज में व्याप्त समस्याओं, कुरीतियों ग़लत परम्पराओं के प्रति सचेत होकर उसकी आलोचना करते है और धीरे-धीरे समाज में परिवर्तन हेाता जाता है। शिक्षा समाज के प्रति लेागों को जागरूक बनाते हुये उसमें प्रगति का आधार बनाती है। जैसे शिक्षा पूर्व में वर्ग विशेष का अधिकार थी जिससे कि समाज का रूप व स्तर अलग तरीके का या अत्यधिक धार्मिक कट्टरता, रूढिवादिता एवं भेदभाव या कालान्तर में शिक्षा समाज के सभी वर्गों के लिये अनिवार्य बनी जिससे कि स्वतंत्रता के पश्चात् सामाजिक प्रगति एवं सुधार स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है। डयूवी ने लिखा है कि-शिक्षा में अनिश्चितता और अल्पतम साधनों द्वारा सामाजिक और संस्थागत उद्देश्यों के साथ-साथ, समाज के कल्याण, प्रगति और सुधार में रूचि का दूषित होना पाया जाता है।



समाज की रचना मनुष्य ने की है और समाज का आधार मानव क्रिया है ये-अन्त: क्रिया सदैव चलती रहेगी और शिक्षा की क्रिया के अन्तर्गत होती है इसीलिये शिक्षा व्यवस्था जहां समाज से प्रभावित हेाती है वहीं समाज को परिवर्तित भी करती है जैसे कि स्वतंत्रता के पश्चात् सबके लिये शिक्षा एवं समानता के लिये शिक्षा हमारे मुख्य लक्ष्य रहे हैं इससे शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ और समाज का पुराना ढांचा परिवर्तन होने लगा। आध्यात्मिक मूल्यों के स्थान पर भौतिक मूल्य अधिक लोकप्रिय हुआ। सादा जीवन उच्च विचार से अब हर वर्ग अपनी इच्छाओं के अनुरूप जीना चाहता है। शिक्षा ने जातिगत व लैंगिक असमानता को काफी हद तक दूर करने काप्रयास किया और ग्रामीण समाज अब शहरी समाजों में बदलने लगे और सामूहिक परिवारों का चलन कम हो रहा है। शिक्षा के द्वारा सामाजिक परिवर्तन और इसके द्वारा शिक्षा पर प्रभाव दोनों ही तथ्य पूर्णतः अपने स्थान पर स्पष्ट है।



हमरे जीवन में स्कूली शिक्षा का भी बहुत महत्त्व और प्रभाव होता है। एक बच्चा पारिवारिक परिवेश से समाज में विलेयता की ओर स्वंयम और समाज के उतथान की ओर एक कदम बढ़ाता है। पारिवारिक संस्कारो से युक्त होकर देश समाज की संस्कर्ति को सीखता है, प्रयोग करता है। समाज में सवयंम की हिस्सेदारी निर्धारित करने हेतु अनथक परिश्रम और समाज के प्रति संवेदनशीलता मुख्यता जीवन का उद्देश्य होना आरंभ हो जाता है। भारतीय संस्कृति में हमेशा से शिक्षा और शिक्षक का विशेष महत्त्व रहा है, माता-पिता की आज्ञा और अध्यापक के वचनो का सीधा प्रभाव केवल भारत देश में ही दिखाई प्रतीत होता है। अध्यापक द्वारा कहे गए वचन छात्र के लिए जीवन भर उत्साह और एक ऊर्जा का संचरण करते रहते है। ये भारत देश की संस्कृति ही है जहाँ अध्यापक के वचनो की सत्यता और महतत्व का माता-पिता द्वारा बनाये गए मानक भी पीछे होकर छात्र जीवन में बच्चे की प्राथमिकता पर आ जाते हैं। अतः शिक्षा और शिक्षक समाज का एक अभिन्न और महत्त्वपूर्ण अंग है जिसका दायित्व समाज की परिस्थितियों के अनुसार निर्धारित होता है।




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Comments Sannu on 29-12-2023

Saamajic parivrtan ka niskurs

Arun on 20-02-2022

Samajik parivartan me parivar ki bhumika





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