यकृत में जो पाचक रस बनता है उसे ‘पित्त’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में पित्त यकृत से बनने वाला रस है। यह पाचन में सहायता करता है। यह कुछ गाढ़ा सा हरा, मायल, पीला तरल पदार्थ (Greenish Yellow Liquid) होता है। इसकी प्रतिक्रिया क्षारीय होती है और स्वाद कड़वा होता है। आपेक्षिक गुरुत्व 1.026 से 1.032 तक होता है। यह 24 घण्टे में 30 से 40 औंस तक निकला करता है।
जैसा कि स्पष्ट किया जा चुका है कि पित्त बनता रहता है और पित्ताशय में एकत्रित होता रहता है । वहाँ इसमें म्यूसिन (Mucin) मिल जाता है । पित्ताशयिक श्लेष्मिक कला उसमें से जलीयांश बाई कार्बोनेट तथा क्लोराइड का पुन: शोषण कर लेती है। अंग्रेजी माप के अनुसार 24 घण्टे में 500 से 1000 सी०सी० पित्त बनता है। पित्त में जलीयांश 86% और घनांश 14% होता है। घनांश में सेन्द्रिय घटक 13% से कुछ अधिक होते हैं और शेष निरिन्द्रय घटक होते हैं :-
सेन्द्रिय घटक (Organic)
(1) Bile Salts
(क) Sodium Glycocholate (ख) Sodium Taurocholate
(2) Bile Pigments
(क) Bilirubin (ख) Biliverdin
(3) Lipoids
(4) Neutral Fat
(5) Mucin
(6) Nucleo Protein
निरेिन्द्रय घटक (Inorganic)
(1) Sodium Chloride
(2) Sodium Bicarbonate
(3) Phosphates of Calcium, Magnesium and Iron
इस तरह का पित्त पक्वाशय से आता है और वहाँ पर आमाशय से प्राप्त आहार पर क्रिया करता है । पित्त अपनी क्षारीय प्रतिक्रिया द्वारा आमाशय से अम्लीय क्रिया के भोजन को तटस्थ (Neutral) कर देता है। ऐसा करने से उस आहार पर क्लोम रस की प्रक्रिया हो सकती है। यह आन्त्र की गति को बढ़ाता है – जिससे वहाँ भोजन अधिक समय तक पड़ा न रह सके और उसमें सड़ान्ध की क्रिया न हो सके। पित्त विशेषकर वसा (Fat) के पाचन एवं शोषण में सहायक होता है । पित्त के लवण विटामिन K तथा लोह के शोषण में सहायता करते हैं। पित्त शरीर के उत्पन्न कुछ विषों को, औषधियों को, निरिन्द्रय लवणों को तथा कुछ अंश तक कोलेस्ट्रोल को शरीर से बाहर निकालता है। पित्त जब आन्त्र में पहुँचता है तो पित्त के बाइल पिगमेन्ट्स पर तटस्थ कीटाणुओं की प्रक्रिया होती है। कीटाणुओं की प्रक्रिया के प्रभाव से ही बाइलपिगमेन्ट्स परिवर्तन स्वरूप जो अंश बनते हैं उनकी उपस्थिति से ‘मल’ का रंग भूरा हो जाता है तथा मूत्र का रंग (Straw Colour) का हो जाता है।
संक्षेप में तथा सरलतम शब्दों में
यह क्लोम रस के साथ मिलकर आहार रस को क्षारीय कर देता है।
क्लोम रस (Pancreatic Juice) के साथ मिलकर यह उसकी वसा विश्लेषक शक्ति (steapsin) बढ़ाकर वसा के पचाने में सहायता देता है।
इसमें (पित्त में) कीटाणु नाशक गुण होता है। इसलिए यह आँतों के हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट कर देता है।
यह आँत की सड़ांध को कम करता है। जब आँतों में पित्त नहीं पहुँचता है, तब सड़ान्ध अधिक हो जाती है जिससे विष्ण (मल) में बदबू अधिक हो जाती है।
यह आँतों की कृमिवत गति (Peristalic Movement) को बढ़ाता है, जिससे आहार रस नीचे को धकेला जा सकता है। फलस्वरूप कोष्ठबद्धता अर्थात् कब्ज का रोग (Constipation) नहीं होने पाता है।
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गेसिटक रस क्या है उसका कार्य लिखो?
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