वैसे तो राज्य और केंद्र सरकारों ने महिला सशक्तिकरण पर मुख्य फोकस करके अपनी प्राथमिकताओं में जोड़कर नए आयाम देने का भरसक प्रयास किया है, पर सरकारो के इतने प्रायासों के बावजूद वर्तमान समाज में नारी वह स्थान नहीं प्राप्त कर पायी है जहाँ उसे होना चाहिए।
नारी शक्ति के बिना इस संसार में मनुष्य कुछ भी नहीं कर सकता है क्योंकि बिना नारी शक्ति उसकी दशा बिना इन्जन वाली गाड़ी जैसी होती है। इस धरती पर सबसे पहले नारी शक्ति के रूप में माँ दुर्गा भवानी का अवतरण हुआ है। नारी शक्ति की ही अगुवाई व निर्देशन में ब्रह्मा विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुयी और नारी शक्ति की ही देखरेख में ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना शुरू की।
नारी शक्ति को अगर इस सृष्टि का मूल कहा जायेगा तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी। यहीं कारण है कि नारी को शक्ति व देवी स्वरूपा माना जाता है, कहा गया है कि-“यत्र नारी पूज्यन्ते, रम्यते तत्र देवता “। मतलब जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ पर देवताओं का वास होता है। बिना नारी वाले घर को भूतों का डेरा बताया गया है, और कहा गया है ” बिन घरनी घर भूत का डेरा”।ऐसी मान्यता है कि जिस घर में नारी का आदर सम्मान नहीं होता है वहाँ पर लक्ष्मी का निवास नहीं होता है इसके बावजूद नारी आदिकाल से उपेक्षित होती चली आ रही है जबकि समय-समय पर इसकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
एक समय था जब नारी को अपने पति की मौत के बाद उसे उनके साथ जिंदा जलकर सती हो जाना पड़ता था। इस कुप्रथा से निजात दिलाने हेतु राजा राममोहन राय ने नारी हित में पहली बार ठोस कदम उठाया और सती प्रथा पर रोक लगा दी गयी ।
एक समय था समाज में कुप्रथाओ के वाहक कुछ विशेष वर्ग के पुरुषों ने नारी को समाजिक सुख सुविधाओं व शिक्षा से दूर रखा और नारी गुलामी की प्रतीक बन गई। नारी को समाजिक गतिविधियों में शामिल होने की छूट नहीं थी और उसे बाहर कौन कहे अपने घर के अंदर भी अपना चेहरा घूघंट में छिपाकर रखना पड़ता था।
त्रेता युग में नारी ही थी जिसने देवासुर संग्राम में राजा दशरथ की जान बचाई थी और वह नारी स्वरूपा ही थी जिसने असुरों से देवताओं की रक्षा की। आज हम भले ही विकसित होकर चाँद पर पहुँच गये हो लेकिन नारी आज भी विकास की मुख्यधारा में पूर्ण रूपेण शामिल नहीं हो सकी है। एक तरफ आज जहाँ नारी अंतरिक्ष की यात्रा कर हर स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है वहीं कुछ देशों में आज भी औरतों को गुलाम बनाकर रखा जा रहा है। आतंकवादी एवं नक्सलवादी इनका शोषण कर इन्हें खिलौना व अपनी ढाल बनाये हुये है। जब तक इनके शरीर में ताकत रहती है तब तक इन्हें प्रयोग किया जाता है और बाद में गुलाम के तौर पर बेच दिया जाता है।
इधर सरकार की तरफ से नारी उत्थान की दिशा में की गयी पहल के परिणाम स्वरूप इनकी भागीदारी शिक्षा से लेकर सुरक्षा क्षेत्र तक में होने लगी है। इसके बावजूद अभी भी नारी शक्ति की जगह भोग्या बनी हुई है और दहेज व तीन तलाक जैसी परम्पराएं उसके उत्थान में बाधा खड़ी किये हुये हैं। नारी के पास सबसे बेश कीमती उसकी आबरू होती है और उसके चले जाने के बाद उसके पास कुछ नहीं बचता है।
आजकल नारी की आबरू लूटने वाले गली-गली घूम रहे हैं और सरकार को एन्टी रोमियो अभियान चलाना पड़ रहा है। ध्यान रखें कि बीसवीं सदी को नारी सदी माना जा रहा है और समय परिवर्तन के साथ नारी की भूमिका में भी बदलाव हो रहा है। वह समय दूर नहीं है जब नारी पुरूष की जगह खुद ले लेगी और जो बर्ताव अब तक उसके साथ पुरूषों ने किया है वहीं व्यवहार अब आने वाले समय में उनके साथ होने वाला है। शिक्षा का विस्तार नारी के उत्थान में मील का पत्थर साबित हो रहा है इसलिए जरूरी हो गया है कि हर बच्ची अथवा नारी शक्ति को शिक्षा और सुरक्षा की मुख्यधारा से जोड़ा जाए ।
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