यहां न प्रकाश है न अंधकार है न धूप है न छांह है न कोहराम है न सन्नाटा
अंधी घाटी का तो कोई छोर भी नहीं
सयानों के बीच सूर्य के विषय में अनेक अफ़वाहें फैलती हैं
कुछ लोग कहते हैं कि आजकल वह नहीं उगता
पैरों में चिपटी हुई जोंकों को खींच फेंकने की अब हिम्मत नहीं है
कभी हमने कोशिश की थी लेकिन सिर्फ़ उनकी दुम टूट कर रह गई थी
रक्तवाहिनी शिराओं में उनके दांत ढूंढना बहुत मुश्किल है
और अब तो खास तकलीफ़ भी नहीं होती
अंधी घाटी में में इससे भी बड़े खतरे हैं
स्याह धुंधलके में मैंने नीले नाखून और बैंगनी मसूढ़े देखे हैं
और रेंगने की ध्वनि सुनी है
मेरे समीप से अभी कुछ सरका है
जिसकी बदबू भरी साँस मेरे पेट के गढ़े तक पहुँची है
हमें अब उबकाई तक नहीं आती
अंधी घाटी में किसी भी बात के आदी होने में वक्त नहीं लगता
हमें सुनाई देती हैं भयावह फुसफुसाहटें विक्षिप्त अट्टहास
और हजारों आदिम सरीसृपों के कीचड़ में खिसकते
पैरों की चिपचिपाहट
छंछूदरों की तरह
एक-दूसरे हाथों में हाथ दिए
(हाथ जो कोढ़ी हैं और हाथ जो अब सिर्फ़ डंठल रह गए हैं)
हम अंधी घाटी के तिलचट्टी फर्श पर घिसटते हैं
और जब थर्राते हुए पीछे देखते हैं
तो देखते हैं कि फिर एक साथी यकायक ग़ायब हो जाता है
सिर्फ एक गूंजती हुई बर्फीली चीख डूबती है
और भयावह फुसफुसाहटों विक्षिप्त अट्टहास
और खिसकते पैरों की चिपचिपाहट की ध्वनि
गहरी होती जाती है और कुछ देर बाद आती है
छीन झपट की आवाज़, तिकोने दांतों से तोड़ी जा रही
गोश्त और खून लगी हडि्डयों के तड़कने की आवाज़
हमारे दिलों पर मौत की दस्तक और धैर्यहीन हो जाती है
मुझे मालूम है अंधी घाटी का दस्तूर यही है कि रोया न जाए
लेकिन हम उस आखिरी चीख को सुनते हैं
और जोंक लगे भारी शोणितहीन क़दमों से भागने का यत्न करते हैं
खून चूसती हुई जोंकें यदि हंस सकतीं तो इस मूर्खता पर अवश्य हंसतीं
अंधी घाटी के अंतहीन अंधकार में कोई भागकर कहां जाए
सयानों ने कई रास्ते बताए थे
किंतु हर बार कुछ दूर जाने पर हमारी ठोकरों से कई कंकाल उखड़ आए
और हमें लौटना पड़ा
पहले कभी सयाने सूर्य का ज़िक्र करते थे
और हमारी मोतियाबंदी आंखों में कुछ चमक उठता था
हमारे हाथों में कोंपलें उगने लगती थीं
हम उसांसे भरते थे और ऊपर यूं देखते थे
कि यदि दृष्टि कगारों तक पहुंचे तो सूर्य को पीकर ही लौटे
जब वे सूर्य की बातें करते तो ऊपर उंगलियां उठाई जातीं
टोलिया बनती और दबे स्वरों में मंत्रणा होती
किंतु सयानों का रुख बदला
और अब वे कहते हैं कि अंधी घाटी ही हमारा प्रारब्ध है
उजियाला नामक कोई वस्तु ही नहीं है और यदि है भी
तो वह हमारे लिए खतरनाक साबित हो सकती है
(वे शायद धीरे धीरे अंधे होते जा रहे हैं)
अंधी घाटी की पहाड़ियों के शिखरों पर बैठे पहरेदार गिद्ध
हम पर प्रतीक्षामयी ऊबी हुई दृष्टि डालते हैं
कंदराओं में सुनता हूं लाखों झिल्लीदार पंखों की फड़फड़ाहट
नुकीली चट्टानों के नीचे हरी आंखें चमकती हैं
तिलचट्टी फर्श पर क़दम महसूस करते हैं व्यस्त दीमकों की दिनचर्या
मृत्युहासी नरमुंडों से गिरे हुए केशों के आसपास उगी काई में
देखता हूं
रेंगते हुए बैंगनी और कत्थई चकत्ते
और अंधी घाटी की छत पर
पीली दृष्टि देखती हैं लाखों जाल
जिन पर हमारी सांसे धुंआ बनकर जम गई हैं
दैत्याकार मकड़ियों की पलकहीन पुतलियों में
हमारे दयनीय भयविक्षिप्त बौने अष्टावक्र प्रतिबिम्ब हमें तकते हैं
यहां
नीचे
सयानों ने नई अर्चना आरम्भ कर दी है
वे दैत्याकार मकड़ियों को अर्ध्य देते हैं
(जालों में झूलते हुए वे मक्खियों के अवशेष नहीं हैं)
और पहरेदार गिद्धों की छाया को चूमते हैं
वे स्वयं पीछे रहकर स्वत: को समर्पित करते हैं
और अंधी घाटी के देवताओं को जयकारते हुए
`कगारों के पार जीवन नहीं है´
कहकर मृत्यु को स्वीकारते हैं
और जो भृकुटियां तानते हैं, ऊपर इंगित करते हैं, टोलियां बनाते हैं
और दबे स्वरों में मंत्रणा करते हैं
उन्हें धिक्कारते हैं, उनके विषय में दारूण भविष्यवाणी करते हैं
अथवा शाप देते हैं
किंतु टोलियां बड़ी होती जाती हैं
दबे स्वर विस्तृत ध्वनि बनते जाते हैं
और जब हम पीछे देखते हैं तो देखते हैं
फिर कोई साथी यकायक ग़ायब हो जाता है
हम थर्राते हुए ठिठकते हैं
लेकिन वह चीख नहीं सुन पाते
न ही देवताओं के जयजयकार में उसका कंठ
शायद इसीलिए कुछ दिनों से धुंधली असूर्यम्पश्या आंखें देखती हैं
दैत्याकार मकड़ियों के जालों में हलचल
पहरेदार गिद्ध रोमहीन व्यग्र गरदनें झुकाकर नीचे कुछ खोजते हैं
लगता है
कोई वह जो सयानों में ईमान न ला सका
भाग निकला है शिखरों की ओर
सूर्य की टोह लेने
Andhi ghati kise kahte hai
Andhi ghaty kise Kate h
Andhi ghati kise kahate hai?
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Andhi ghati kise kahate hai?