Shiksha Ka Yogdan शिक्षा का योगदान

शिक्षा का योगदान



GkExams on 27-07-2022


शिक्षा का योगदान (Education in hindi) : जब हम शिक्षा (education development in india) शब्द के प्रयोग को देखते हैं तो मोटे तौर पर यह दो रूपों में प्रयोग में लाया जाता है, व्यापक रूप में तथा संकुचित रूप में। शिक्षा से ही हर किसी का विकास होता है तथा इस काम में सहयोग करना देश के विकास में योगदान देना है।


Shiksha-Ka-Yogdan


हमारे देश के संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जी ने कहा था की शिक्षा ही आपको हमेशा इज्जत की जिंदगी जीने को दे सकती है। आपको लोग किस नजर से देखते है जब आप शिक्षित हो जाओगे तो लोग उस नजर से नही देखेंगे जैसे आप सोचते हो। इसलिए आपका शिक्षित होना अतिआवश्यक है।


शिक्षा ही वहीँ हथियार है जिससे आज हम तकनीक के ज़माने में काफी आगे बढ़ चुके है। इसलिए इसमें कोई दो राय नही है की किसी भी राष्ट्र के विकास की गति उसके नागरिको के बीच शिक्षा (education development essay) के प्रसार से होती है। इसके अलावा शिक्षा ही एक ऐसा साधन है जिसका व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है।


शिक्षा के प्रकार (Types of education) :




व्यवस्था की दृष्टि से देखें तो शिक्षा के तीन रूप होते हैं, जो निम्नलिखित प्रकार से है....


1. औपचारिक शिक्षा :




वह शिक्षा जो विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में चलती हैं, औपचारिक शिक्षा कही जाती है। इस शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियाँ, सभी निश्चित होते हैं। यह योजनाबद्ध होती है और इसकी योजना बड़ी कठोर होती है। इसमें सीखने वालों को विद्यालय, महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय की समय सारणी के अनुसार कार्य करना होता है।


इसमें परीक्षा लेने और प्रमाण पत्र प्रदान करने की व्यवस्था होती है। इस शिक्षा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। यह व्यक्ति में ज्ञान और कौशल का विकास करती है और उसे किसी व्यवसाय अथवा उद्योग के लिए योग्य बनाती है। परन्तु यह शिक्षा बड़ी व्यय-साध्य होती है। इससे धन, समय व ऊर्जा सभी अधिक व्यय करने पड़ते हैं।


2. निरौपचारिक शिक्षा :




वह शिक्षा जो औपचारिक शिक्षा की भाँति विद्यालय, महाविद्यालय, और विश्वविद्यालयों की सीमा में नहीं बाँधी जाती है। परन्तु औपचारिक शिक्षा की तरह इसके उद्देश्य व पाठ्यचर्या निश्चित होती है, फर्क केवल उसकी योजना में होता है जो बहुत लचीली होती है। इसका मुख्य उद्देश्य सामान्य शिक्षा का प्रसार और शिक्षा की व्यवस्था करना होता है। इसकी पाठ्यचर्या सीखने वालों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर निश्चित की गई है।


3. अनौपचारिक शिक्षा :




यह इस प्रकार की शिक्षा है जिसकी कोई योजना नहीं बनाई जाती है जिसके न उद्देश्य निश्चित होते हैं न पाठ्यचर्या और न शिक्षण विधियाँ और जो आकस्मिक रूप से सदैव चलती रहती है, उसे अनौपचारिक शिक्षा कहते हैं। यह शिक्षा मनुष्य के जीवन भर चलती है और इसका उस पर सबसे अधिक प्रभाव होता है।


मनुष्य जीवन के प्रत्येक क्षण में इस शिक्षा को लेता रहता है, प्रत्येक क्षण वह अपने सम्पर्क में आए व्यक्तियों व वातावरण से सीखता रहता है। बच्चे की प्रथम शिक्षा अनौपचारिक वातावरण में घर में रहकर ही पूरी होती है। जब वह विद्यालय में औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने आता है तो एक व्यक्तित्त्व के साथ आता है जो कि उसकी अनौपचारिक शिक्षा का प्रतिफल है।



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