Koshika Ke Karya कोशिका के कार्य

कोशिका के कार्य



GkExams on 25-12-2018

सभी जीव जीवन की संरचनात्मक व कार्यात्मक इकाइयों से मिलकर बनते हैं जिन्हेंकोशिकाए कहा जाता हैं। कुछ प्राणी जैसे प्रोटोजोआ, बैक्टीरिया व कछु शैवाल एक हीकोशिका के बने होते हैं जबकि कवक, पौधे और जंतु अनेक कोशिकाओं से मिलकर बने होतेहैं। मानव शरीर लगभग एक ट्रिलियन (108) कोशिकाओं से मिलकर बना हैं।

कोशिकाओं आकार वा संरचना में भिन्न-भिन्न होती हैं क्योंकि वे विभिन्न कार्यो कोकरने के लिए अनुकूलित होती हैं लेकिन सभी कोशिकेओं के मूलभूत अवयत समान होते हैं।इसमें आप सभी केशिकाओं की मूलभूत संरचना के बारे में अध्ययन करेंगे। आपकोशिका विभाजन के प्रकार तथा निहित प्रक्रियाओं के बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।।

कोशिका तथा कोशिका सिद्धांत -

एन्टानॅ वानॅ ल्यूवेनहाके द्वारा सूक्ष्मदशीर् का आविष्कार कर लिए जाने के बाद, रॉबर्टहुक ने सन्1665 में कार्क के एक टकु डे को माइक्रोस्कोप से देखा और पाया कि यहछोंटे-छोटे उपखंडो से मिलकर बना था जिसे हिन्दी में कोशिका और अंग्रेजी में सेल कहाजाता हैं। सन् 16872 में ल्यूवेनहोक ने बैक्टीरिया शुक्राणु व लाला रूधिर कणिकाए देखीजो सभी कोशिकाए थी। सन् 1831 में इंग्लैड़ के एक वैज्ञानिक रॉबर्ट हुक ने देखा कि सभीकोशिकाओं के मध्य में एक लिकाय जाया जाता हैं जिसे उन्होने केन्द्रक (Nucleus), कहाजाता हैं।

कोशिका सिद्धांत -

1831 में एम.जे श्लीडन व थियोडोर श्वानॅ ने कोशिका सिद्धांत का प्रतिपादन कियाजिसके अनुसार :-
  1. सभी जीव कोशिकाओं के बने होते हैं।
  2. कोशिका ही जीवन की संरचनात्मक एवं कार्यात्मक इकार्इ हैं, और
  3. कोशिकाए, पहले से ही विद्यमान कोशिकाओं से उत्पन्न होती हैं।
कोशिकाओं में आकृति आरै आकार की दृष्टि से काफी विविधता पाइर् जाती हैं।जंतअुाें की तंत्रिका-कोशिकाओं में लंबे- लबें पव्रर्ध बने होते हैं इनकी लंबार्इ कर्इ फीट तकहो सकती हैं। पेशी कोशिकाए लबोत्तरी होती हैं। शतुरमुर्ग [Ostrich], का अंड़ा सबसे बडीकोशिका, [75 mm] हैं। कुछ पादप कोशिकाओं में मोटी भित्ति होती हैं। विभिन्न जीवों मेंकोशिकाओं की संख्या में भी व्यापक विभिन्नता पाइर् जाती हैं।

कोशिका -

कोशिका को जीवद्रव्य की एक ऐसी इकार्इ के रूप में परिभाषित किया जा सकता हैं,जो एक प्लाज्मा झिल्ली से घिरी हो और जिसमें एक केन्द्रक हो। जीवद्रव्य जीवन पद्र ानकरने वाला द्रव्य हैं जिसमें कोशिकाद्रव्य व केन्द्रक विद्यमान होते हैं। कोशिकाद्रव्य में अनेककोशिका-अंगक होते हैं जैसे राइबोसोम, माइटोकॉन्ड्रिया, गॉल्जी-बॉडी, प्लास्टिड (लवक)लाइसोसोम एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम। पादप कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में अनेकरिक्तिकाए अंबनवसमे, पार्इ जाती हैं जिनमें अजीवित पदाथर् जैसे क्रिस्टल, वर्णक आदि पाएजाते हैं बैक्टीरिया में न तो कोशिका अंगक पाए जाते हैं और न ही स्पष्ट निर्मित केन्द्रक,लेकिन प्रत्येक कोशिका के तीन मुख्य अवयव होते हैं।
  1. प्लाज्मा झिल्ली [Plasma membrane],
  2. कोशिका द्रव्य [Cytoplasm],
  3. DNA

कोशिकाओं के प्रकार -

कोशिकावैज्ञानिक काशिकाओं को दो मूलभतू किस्मों में बाटॅते हैं। उनके भेदों को(सारणी) में दर्शाया गया हैं। वे जीव जिनमें एक स्पष्ट रूप से निर्मित केन्द्रक नहीं होताप्रोकैरियोट कहलाते हैं जैसे बैक्टीरिया। अन्य सभी में स्पष्ट रूप से निर्मित केन्द्रक होता हैंजो कि केन्द्रक झिल्ली से घिरा रहता हैं। इन्हे यूकेरियोट कहते हैं।

यूकैरियोटिक व प्रोरियोटिक कोशिकाओं में अंतर-

यूकैरियोटिक कोशिकाप्रोरियोटिक कोशिका
1. केन्द्रक सुस्पष्ट, असके उपर
निमिर्त केन्दी्रय झिल्ली होती हैं।
1. केन्द्रक स्पष्ट नहीं होता, यह एक केन्द्रक
क्षेत्र ‘केन्द्रकभ’ के रूप में होता हैं। इसमें
केन्द्रक झिल्ली नहीं होती।
2. दोहरी झिल्ली वाले कोशिकांगक
जैसे - माइटोकॉण्ड्रिया एंडोप्लाज्मिक
रेटिकुलम, गाल्जी बॉड़ी मौजूद
होते हैं।
2. एकत्र झिल्ली वाले कोशिका पिंड़
जैसे- मीसोसोम मौजूद होते हैं
माइटोकॉण्ड्रिया, एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम
और गाल्जी बॉडी नहीं होते।
3. राइबोसोम 80 S 3. राइबोसोम 70 S
4. कोशिका में दो स्पष्ट क्षेत्र, अथार्त
कोशिकाद्रव्य और केन्द्रक होते हैं।
4. एसेे कोइर् क्षेत्र नहीं होते।

पादप कोशिका तथा जंतु कोशिका में अंतर -

पादप कोशिकाजंतु कोशिका
1. कोशिका झिल्ली के चारों ओर
सेलुलोज की बनी कोशिका भित्ति
होती हैं।
1. कोर्इ कोशिका भित्ति नहीं होती।


2. रिक्तिकाए आम तारै पर बडे़
आकार की होती हैं।

2. रिक्तिकाए आमतौर पर नहीं होती यदि
होती भी हैं तो सामान्यतया छोटे आकार
की होती हैं।
3. प्लास्टिड़ मौजूद होते हैं।
3. प्लास्टिड नहीं होते हैं।
4. गाल्जीबॉड़ी, डिक्टिआसोम
[dictyosomes], नामक इकाइयों
के रूप में होती हैं।
4. गाल्जीबॉड़ी सुिवकसित होती हैं।

5. सेंट्रिओंल नहीं होते।5. मौजूद होते हैं।

कोशिका के घटक -

कोशिका के मुख्य अवयव (1) कोशिका-झिल्ली (2) कोशिका दव्र व (3) केन्द्रक होतेहैं।

1. कोशिका झिल्ली (प्लाज्मा झिल्ली)-

प्रत्येक कोशिका की एक सीमा होती हैं जिसे कोशिका-झिल्ली या प्लाज्मा झिल्लीया प्लाज्मोमा कहते हैं। यह एक सजीव झिल्ली होती हैं। जतु-कोशिकाओं में यह सबसेबाहरी परत हैं। लेकिन पादप कोशिकाओं में, कोशिका झिल्ली के बाहर पार्इ जाती हैं।यह लचीली होती हैं और अंदर या बाहर की आरे मुड़ सकती हैं।

प्लाज्मा झिल्ली प्रोटीन व लिपिड की बनी होती हैं। प्रोटीन व लिपिड के विन्यास केअनेक मॉडल प्रस्तुत किए गए हैं सिंगर व निकलसन (1972) द्वारा दिया गया तरल मोजेकमॉडल व्यापक रूप से स्वीकृत मॉडल हैं।

तरल मोजेक मॉडल के अनुसार :-
  1. प्लाज्मा झिल्ली फॉस्फोलिपिड अणुओं की दोहरी परत होती हैं जिसके भीतरअनेक प्रकार के प्रोटीन अंत: स्थापित रहते हैं।
  2. प्रत्येक फॉस्फोलिपिड अणु के दो छोर होते हैं। एक बाहरी जलरागी सिरेअथार्त जल को अपनी आरे आकर्षित करने वाला छारे और केंन्द्र की ओर निर्दिष्ट भीतरीअर्थात जलभीरू जल को विकसित करने वाला छोर।
  3. प्रोटीन के अणु दो प्रकार से व्यवस्थित रहते हैं।
    1. परिधीय प्रोटीन : ये लिपिड की दोहरी परत के बाहरी व अंदरूनी सतहों परविद्यमान होते हैं।
    2. आंतरिक प्रोटीन : ये प्रोंटीन लिपिड की परत को भीतर से पूरी तरह से याआंशिक रूप से भेदते हुए स्थित होते हैं।

कार्य : -

  1. प्लाजमा झिल्ली कोशिका के भीतर सभी भागों को घेरे रखती हैं।
  2. यह कोशिका को आकृति प्रदान करती हैं (जंतु कोशिकाओं में) उदाहरण लालरूधिर कोशिकाओं अस्थि कोशिकाओं आदि की विशिष्ट आकृति प्लाज्मा झिल्ली के कारणही होती हैं।
  3. इसमें से हाके र विशिष्ट पदार्थ कोशिका के भीतर या बाहर आ जा सकते हैंलेकिन सभी पदार्थ नहीं। अत: इसे चयनात्मक रूप से पारगम्य [Selectively permeable] कहा जाता हैं।
छोटे अणुओं का परिवहन- (जैसे ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, पानी, खनिज आयन,आदि) छोटे अणु प्लाज्मा झिल्ली के आर-पार तीन विधियों से परिवहन करसकते हैं।
  1. विसरण- विभिन्न पदार्थो के अणु अपनी उच्चतर सांद्रता के क्षेत्र से अपनीनिम्नतर साद्रता वाले क्षत्रे में चले जाते हैं। इसके लिए उर्जा की आवश्कता नहीं होती,उदाहरण किसी कोशिका में ग्लकूाजे का अवशोषण।
  2. परासरण- एक अथर्पारगम्य झिल्ली के माध्यम से जल अणुओं का अपनीउच्चतर सांद्रणता वाले क्षेत्र से अपनी निम्नतर सांद्रता वाले क्षेत्र में चले जाना। परासरण मेंकोर्इ उर्जा व्यय नहीं होती। इस प्रकार की गति सांद्रण प्रवणता की अनुदिश होती हैं।
  3. सक्रिय परिवहन- जब कुछ अणुओं की गति की दिशा विसरण की गति केविपरीत होती हैं अर्थात् अपनी निम्नतर साद्रता के क्षत्रे से उच्चतर सांद्रता के क्षेंत्र की ओर,तब इसमें केाशिका को सक्रिय पय्रास करना पडत़ा हैं जिसमें उर्जा की आवश्कता होती हैं।यह ऊर्जा (एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट)।TP से पा्र प्त होती है सक्रिय परिवहन किसी कैरियरअणु (वाहक अणु) द्वारा भी हो सकता हैं।
बडे़ अणुओं का परिवहन- बडे़ अणुओं के परिवहन के लिए झिल्ली अपना स्वरूप व आकृति बदल लेती है यहदो प्रकार से होता हैं।
  1. एंडोसाइटोसिस [endocytosis],
  2. एक्सोसाइटोसिस [exocytosis],

एंडोसाइटोसिस दो प्रकार का होता हैं-

एंडोसाइटोसिसपिनोसाइटोसिस
1. ठोस पदार्थो को ग्रहण 1. तरल बुिदकाओं को ग्रहण करना
2. झिल्ली कण के चारों ओर बाहर की
तरफ घेरा सा बनाकर एक गुहा
बना लेती है इस प्रकार कण को
चारों और से घेर लेती हैं।
2. झिल्ली भीतर की तरफ घेरा सा बनाकर
प्यालेनुमा संरचना लेती हैं जिसके
भीतर बुदिकाए चूस ली जाती हैं।

कोशिका झिल्ली पदार्थो को कोशिका के अंदर आने- जाने का नियंत्रण करते हैं। यदिकोशिका झिल्ली अपना सामान्य कार्य नहीं कर पाती हैं तो कोशिका मर जाती हैं।

कोशिका भित्ती -

बैक्टीरिया और पादप कोशिकाओं में सबसे बाहर का आवरण, जो कि प्लाज्माझिल्ली के बाहर होता है उसे कोशिका भित्ति कहते हैं।बैक्टीरिया की कोशिका-भित्ति पेप्टिडोग्लाइकानॅ की बनी होती हैं। नीचे पादपकोशिका भित्ति की सरंचना व कार्य का वर्णन किया गया हैं।
(1) संरचना- सभी पादप कोशिकाओं में पाइर् जाने वाली सबसे बाहरी, निर्जीव परत हैं-
  1. स्वयं कोशिका द्वारा स्रावित होते हैं।
  2. पादपों में सेलुलोज की बनी होती हैं लेकिन इसमें अन्य रासायनिक पदार्थ भी मौजूद होसकते हैं जैसे पेक्टिन व लिग्निन आदि।
  3. कोशिका-भित्ति को बनाने वाले पदार्थ सभांग नहीं होते, बल्कि महीन रेशों अथवा तंतुओंके रूप में होते हैं जिन्हे सूक्ष्मतंतु [microfibrils], कहते हैं।
(2) कार्य- कोशिका-भित्ति कोशिका के भीतरी कोमल अंगो की सुरक्षा करती हैं।
  1. कड़ी होने के कारण, यह कोशिका को आकृति प्रदान करती हैं
  2. कड़ी होने के कारण, यह कोशिका को फूलने नहीं देती और अनेक प्रकार से लाभकारीहोती हैं।
  3. इसमें होकर जल तथा अन्य रसायन कोशिका से बाहर आरै उसके भीतर मुक्त रूप सेआ जा सकते हैं।
  4. समीपवर्ती कोशिकाओं की प्राथमिक भित्ति में छिद्र होते हैं जिनसे एक कोशिका काकोशिकाद्रव्य दूसरी कोशिका के केाशिकाद्रव्य से जडुा़ रहता हैं। ये कोशिका द्रव्यीय ततु जोएक कोशिका को दूसरी कोशिका से जोड़ते हैं प्लाज्मोडेस्मा [Plasmodesma], नाम से जानेजाते हैं।
  5. दो समीपवतीर् कोशिकाए एक दूसरे से एक जोड़ने वाले पदार्थ से बधी रहती हैं इसे मिडीललेमेला कहते हैं जाे कैल्सियम पकेट का बना होता हैं।

2. कोशिकाद्रव्य तथा कोशिका अंगक -

कोशिकाद्रव्य में अनेक कोशिका अंगक होते हैं -
  1. वे कोशिका अंगक जो उर्जा का आबद्ध व निर्मुक्त करते हैं- उदाहरणमाइटोकॉण्ड्रिया और क्लोरोप्लास्ट (हरित लवक)।
  2. जो स्त्रावी हैं या संश्लेषण व परिवहन में सहायता करते हैं जैसे-गॉल्जीपिंड, राइबोसोम व एन्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम।
  3. गतिशीलत के लिये अंगक-सिलिया तथा फ्लैजेला।
  4. आत्मघाती [suicidal], थैलियो उदाहरण-लायसोसोम।
  5. केन्द्रक (न्यूक्लियस) जो कोशिका की समस्त गतिविधियों को नियंत्रितकरता हैं और आनुवांिशक पदार्थ का वाहक हैं।

1. माइटोकॉण्ड्रिया -

माइटोकॉण्ड्रिया सुक्ष्मदश्रीय, सुत्राकार व लगभग 0.5 से लेकर 1.0 माइक्रॉन वालेआकार के होते हैं।
  1. इनकी संख्या प्रति कोशिका सामान्यत: कुछ सैकड़ो से लेकर कुछ हजार तक हो सकतीहैं।
संरचना -माइटोकॉण्ड्रिया की ऑंतरिक संरचना की सामान्य रूप-रेखा जैसा कि इलैक्ट्रॉनसुक्ष्मदश्रीय में दिखार्इ देती हैं।
  1. भित्ति दोहरी झिल्ली की बनी हैं।
  2. भीतरी भित्ति क्रिस्टी [Cristae], नामक संरचनाओं के रूप में अंतर्वलित होती हैं, जो किमैट्रिक्स नाम अंदरूनी उपखंड में प्रक्षेपित रहते हैं।
कार्य - पाइरूविक अम्ल (ग्लूकोज का विघटन उत्पाद) का ऑक्सीकरण करके उर्जा कामोचन करता हैं जो कि।TP के रूप में संचित हो जाती हैं ताकि आवश्यकता पड़ने पर तुरंतइस्तेमाल की जा सके। इस प्रक्रिया का कोशिकाकीय श्वसन भी कहते हैं।

2. प्लास्टिड (लवक)-

केवल पादप कोशिकाओं में पये जाते हैं। ये रंगहीन अथवा रंगीन हो सकते हैं। इसतथ्य के आधार पर तीन प्रकार के प्लास्टिड हो सकते हैं।
  1. ल्यूकोप्लास्ट [Leucoplast], . सफेद अथवा रंगहीन।
  2. क्लोमोप्लास्ट [Chromoplast], . नीले, लाल, पीले इत्यादि।
  3. क्लोरोप्लास्ट [chloroplast], . हरें।

3. क्लोरोप्लास्ट (हरितलवक) -

  1. सभी हरे पादप कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में पाए जाते हैं।
  2. इनकी सख्या 1 से 1008 तक कुछ भी हो सकती हैं
  3. सामान्यत: डिस्क जैसे या गोलाकार (जैसे कि सामान्य पौधों की कोशिकाओं में) कुछपौधें में प्याले नुमा, जैसे शैवाल- क्लैमाइडोमानेास
  4. संरचना दोहरी झिल्ली की बनी भित्ति-अर्थात बाहरी भित्ति, असंख्य स्टैक (चट्टे) समूहजिन्हे गे्रनम कहते हैं जो पटलिकाओं द्वारा परस्पर जडु़े रहते हैं।
  5. कोष-जैसे थाइलैकाइॅड मिलकर गैन्रम बनाते हैं।क्लोरोप्लास्ट के अंदर एक तरल माध्यम स्ट्रोमा भरा रहता हैं।
कार्य- क्लोरोप्लास्ट ही वह स्थल हैं जहाँ प्रकाश- संश्लेषण की क्रिया सम्पन्न होती हैं।माइटोकॉण्ड्रिया और क्लोरोप्लास्ट में समानताएदोनो में ही अपना-अपना DNA (आनुवंशिक पदार्थ) और साथ ही अपना-अपनाRNA (प्रोटीन संश्लेषण के लिये) अपने ही किस्म के कोशिकागं क अधिक संख्या में बनासकते हैं।चूकि क्लोरोप्लास्ट व माइटोकॉड्रिया में अपना DNA (आनुवंशिक पदार्थ) व स्वयं केराइबोसामे होते हैं उन्हें अर्द्ध स्वतंत्र अथवा अर्द्धस्वायत अंग कहते हैं क्योंकि इनका स्वतंत्रंअस्तित्व नहीं होता हैं।

एंडोप्लाज्मिक रेटिकूलम, गॉल्जी बाडी और राइबोसोम -

एंडोप्लाज्मिक रेटिकूलम [ER], और गॉल्जी पिडं के उपर केवल एक ही झिल्ली होतीहैं। झिल्ली की सरंचना प्लाज्मा झिल्ली के समान ही (लिपिड-प्रोटीन) संरचना होती हैं।लेकिन राइबोसामे में झिल्लियां नहीं होती हैं। राइबासेोम कोशिका में पदार्थो के संश्लष्े ाण मेंलगे रहते हैं, गॉल्जी पिंड स्रवण में तथा एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम उत्पादों के परिवहन वसंग्रहण में लगे हरते हैं। ये तीनों कोशिका अंगक एक साथ कार्य करते हैं।

एंडोप्लाज्मिक [ER], तथा गॉल्जी पिंड़ के एक इलेक्ट्रॉन सूक्षमवंशी में देखे गएआरेख दिखाए गए हैं। एंडोप्लास्पिक रेटिकुलम में विद्यमान राइबोसोम पर ध्यान दें।

एंडोप्लाज्मिकगॉल्जी पिंड़राइबोसोम
संरचना -
झिल्लियों का एक जातक जिसकी
मोटार्इ 50-60 A होती हैं। यह
दो प्रकार का होता हैं खुरदरा
[RER], अथार्त जिसके उपर
राइबोसोम संलग्न होते है और
चिकना अर्थात [RER], जिस पर
राइबोसामे नहीं होते,



समस्त कोशिका द्रव्य में कोशिका -
झिल्ली औरकेन्द्रीय झिल्ली
के साथ भी जुड़े होते हैं।






कार्य -
आंतरिक ढॉचा, अखण्ड़ और
अभिक्रिया सतह प्रस्तुत करता हैं,
इंजाइम तथा अन्य पदार्थो को
समस्त कोशिका में लाता हो जाता
हैं, खुरदरे पर प्रोटीन संश्लेषण
होता हैं जबिक चिकने पर
स्टीरॉइड़ों का संश्लेषण होता हैं
तथा इसमें कार्बोहाइट संचित रहते
हैं।
झिल्ली कोश का एक स्टेक होती
हैं जिसमें झिल्ली की मोटार्इ नही
होती हैं जो ER में होती हैं।


इनके आकार और आकृति में
काफी विविधता पार्इ जाती हैं।




जंतु कोशिकाओं में केन्द्रक के
चारों ओर 3 से लेकर 7 तक की
संख्या में स्थित होते हैं। पादप
कोशिकाओं में इनकीसंख्या काफी
अधिक होती है और समस्त
कोशिका के भीतर छितर होते
है इन्हें डिक्टिओसमे कहते हैं।



इसमें एंजाइयों का संश्लेषण और
स्त्राव होता हैं। यह झिल्लीयों
के रूपांतरण में योगदान करता
हैं ताकि झिल्लीयों से निर्मित
लाइसोसोम एक्रोसोम और
डिक्टियोसोम बन सकें, तथा
पेक्टिन, श्लेष्म जैसे भित्ति तत्वों
का संश्लेषण करता हैं।
गोलाकार होते है। जिनका व्यास
लगभग150.250 A तक
होता हैं और ये बडे़
अणुओं, RNA तथा
प्रोटीन (राइबोन् यू
-क्लिओं प्रोटीन) के बने
होते हैं।


ये या ताे कोशिकाओं में
मुक्त कणों के रूप में
स्थित होते हैं अथवा
ER पर संलग्न होते हैं
या केन्द्रक के भीतर
केन्द्रिक [Nucleolus], में
संचित भी हो सकते हैं।
यूकैरियोटिक कोशिकाओं
में 80S किस्म के
राइबासेोम होते हैं जबिक
प्रोकैरियोटिक
कोशिकाओं में 70 S
किस्म के होते हैं। (S=
राइबासेोमों को मापने की
स्वेडवर्ग इकार्इ)।



प्रोटीन संश्लेशण


सूक्ष्मकाय -

कोशिका में छोटी-छोटी कोष जसैी संरचनाए भी होती हैं जो अपनी-अपनी झिल्लियांसे घिरी होती हैं। ये सरंचनाएं विभिन्न प्रकार की होती हैं जिनमें हम तीनों के बारे में अध्ययन करेगें-लाइसोसोम, परॉक्सीसोम और ग्लाइक्सीसोम।

1. लाइसोसोम -लाइसोसोम प्राय: सभी जंतु कोशिकाओं और कुछ गैर-हरे पौधों की कोशिकाओं मेंपाए जाते हैं। ये अंतराकोशिकीय पाचन में सहायता करते हैं।लाइसोसोम के कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं।
  1. झिल्लीमय कोष जो गाल्जी बॉडी से मुकलित होकर अलग हो जाते हैं।
  2. एक कोशिका में सैकड़ों की संख्या में हो सकते हैं।
  3. इनके भीतर अनके एजाइम (लगभग 40) मौजूद होते हैं।
  4. वे पदार्थ, जिन पर एंजाइमों की अभिक्रिया होती है लाइसोसोमों के भीतर पहुंचजाते हैं।
  5. लाइसोसोम को आत्मघाती थैलियां कहते हैं क्योंकि इनमें विद्यमान एजाइम कोशिकाके क्षतिग्रस्त या मृत होने पर उसके पदार्थ को पचा सकतें हैं।
2. परऑक्सीसोम -पादप तथा जंतु कोशिका दोनों पाए जाते हैं। ये तत्वों के ऑक्सीकरण में भाग लेतेहैं जिसके परिणामस्वरूप हाइड्रोजन परऑक्साइड का निर्माण होता हैं।
इनमें बहुधा क्रिस्टल पदाथर् (न्यूिक्लऑइड़ जो कि यरेट ऑक्सीडेज़ -किस््रटल काबना होता हैं केन्द्र में विद्यमान रहता हैं।
  1. ये पिडं अधिकांशत: गोलाकार या अंडाकार होते हैं आरै आकार में माइटोकॉण्ड्रियातथा लाइसोसोम के बराबर होते हैं।
  2. ये सामान्यत: एण्डोप्लाज्मिक रेडीकुलम से घनिष्ठता से संबंधित होते हैं।
  3. ये कोशिकाओं में वसा उपापचय का कार्य करते हैं।
3. ग्लाइऑक्सीसोम -
  1. ये सूक्ष्मकाय पादप कोशिकाओं में विद्यमान रहते हैं और आकृति में परऑक्सीसोम केसमान होते हैं।
  2. ये यीस्ट कोशिकाओं और विशेष कवकों व पादपों के तेलीय बीजों में पाये जाते हैं।
  3. क्रियात्मक रूप से इनमें वसा अम्ल उपापचय के एंजाइम पाए जाते हैं जो अंकुरण केदौरान लिपिडो को कार्बोहाइड्रेटों में बदल देते हैं

सिलिया [Cilia], और फलैजेला [Flagella], -

  1. कुछ एककोशिक जीव जैसे पैरामीशियम तथा युग्लीना क्रमश: सिलिया तथा फलैजेलाकी सहायता से पानी में तैरते हैं।
  2. बहुकोशिकीय जीवों के कुछ जीवित उतकों (एपिथीलियमी उतकों) में सिलिया होतेहैं। ये सिलिया आपनी गति द्वारा तरल पदार्थ में एक धारा उत्पन्न कर देते हैं ताकि येएक निश्चित दिशा में गति कर सके।
  3. सिलिया छोटे आकार की पतवारों की भॉति गति करते हैं और फलैजेला कोड़े कीभॉंित गति करते हैं।
  4. दोनो ही संकुचनशील प्रोटीन टय् बुिलन से बने होते हैं और सूक्ष्मनलिकाओं के रूपमें विद्यमान होते हैं।
  5. सूक्ष्मनलिकाओं का विन्यास 9+2 कहा जाता हैं अर्थात दो केंद्रीय सूक्ष्मनलिकाएंऔर उनके चारों ओर स्थित 9 सूक्ष्मनलिकाओं का समचुचय।

सेंट्रिओल -

यह सभी जंतु कोशिकाओं में केन्द्रक की ठीक बाहर की ओर स्थित होता हैं यहबले नाकार होता हैं और इसकी लंबाइ 0.5 mm होती हैं तथा इसके उपर झिल्ली नहीं होती।इसमें परिधीय नलिकाओं के 9 समुच्च्य होते हैं। लेकिन केंद्र में कोर्इ नलिका नहीं होती।पत्रयेक समुच्च्य में तीन-तीन नलिकाएं होती हैं जो एक निश्चित कोण पर व्यवस्थित रहतीहैं। इनमें DNA अपना RNA और होता हैं। अत: यह अपनी प्रतिकृति स्वयं बना सकता हैं।
कार्य- सेंन्ट्रिओल कोशिका विभाजन मेंसहायता करता हैं वे कोशिका (विभाजन) के समयनिर्मित होने कार्य-सेंन्ट्रिओल कोशिका विभाजन मेंसहायता करता हैं वे कोशिका (विभाजन) के समयनिर्मित होने वाली सचूी तर्कु [spindle], काे दिशा प्रदान करते हैं।

3. केन्द्रक-

  1. यह सबसे बड़े आकार का कोशिका अंगक होता हैं और कोशिका जब विभाजन नहींकर रही होती हैं तब स्पष्ट रूप से दिखार्इ देता हैं।
  2. रंजक से रंगने पर रंग धारण ग्रहण करता हैं, अधिकतर गोलाकार होता हैं, श्वेतरूधिर कोशिका का केंन्द्रक पालियुक्त [lobed], होता हैं।
  3. प्रत्येक कोशिका में अधिकांशत: केवल एक ही केन्द्रक होत हैं [uninucleate], लेकिनकुछ कोशिकाओं में एक-से अधिक केन्द्रक हो सकते है (बहु केन्द्रकीय)।
  4. दुहरी परत की केन्द्रकीय झिल्ली होती हैं जो कि केन्द्रकद्रव्य काे चारों ओर से घेरेरहती हैं। केन्द्रकद्रव्य में क्रोमैटिन जालक और एक केन्द्रिका होता हैं।

कार्य -

  1. कोशिका को क्रियाशील रूप में बनाए रखता हैं।
  2. विभिन्न कोशिकाओं के कार्यकलाप में समन्वय बनाए रखता हैं।
  3. टटू -फटू की मरम्मत में सहायता करता हैं
  4. कोशिका-विभाजन में पत्यक्ष रूप से भाग लेता हैं ताकि आनवुांशिक रूप से समानसंतति कोशिकाएं बन सकें। इस विभाजन को माइटोसिस (सम सूत्री विभाजन) कहतेहैं।
  5. अन्य प्रकार के कोशिका विभाजन अर्धसूत्री विभाजन द्वारा- युग्मकों के उत्पादन मेंभाग लेता हैं।
  6. केन्द्रक के विभिन्न भागों का वर्णन नीचे किया जा रहा हैं।

केन्द्रकीय झिल्ली -

  1. दोहरी परत की झिल्ली होती हैं जिसमें बड़ी संख्या में छिद्र मौजूद होते हैं।
  2. प्लाज्मा-झिल्ली की भांित लिपिड व प्रोटीन से मिलकर बनी होती हैं। इसकीबाहरी झिल्ली के ऊपर राइबोसोम लगे रहते हैं जिनके कारण बाहरी परतखुरदरी होती हैं।
  3. छिद्र बडे़ अणुओं को केन्द्रक के भीतर बाहर लाने ले जाने का कार्य करते हैं औरझिल्लियॉं आनुवांशिक पदार्थ का शेष कोशिका से संपर्क बनाए रखती हैं।

क्रोमेटिन -

  1. केन्द्रकीय झिल्ली के अंदर एक जैलीनुमा पदार्थ कैरियोलिम्फ या न्युक्लिओप्लाज्मपाया जाता हैं जिसमें प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होता हैं।
  2. कैरियोलिम्फ मे सूत्र जैसी संरचनाए जालक का निर्माण करते हैं। जिन्हे क्रोमेटिनफाइब्रिल कहते हैं। ये संघनित होकर सुस्पष्ट निकायों का निर्माण करते हैं, जिन्हेगुणसूत्र कहते हैं। ऐसा कोशिका विभाजन के दौरान होता हैं। गुणसूत्र का अभिरंजितकरने पर दो भाग क्रोमेटिन पदार्थ में स्पष्ट पहचाने जा सकते हैं। गहनतर क्रोमेटिनपदार्थ (हेटरोक्रोमेटिन) व शेष भाग जी हल्का अभिरंजन ग्रहण करता हैं उसेयूक्रोमेटिन कहते हैं। हटे रोक्रोमेटिन आनवु ंि शक रूप से कम सक्रिय होता हैं औरयूक्रोमेटिन आनुवंशिक रूप से सक्रिय होता हैं।
  3. किसी भी जीव के गुणसूत्रों की संख्या निश्चित होती हैं। कोशिका विभाजन मेंगुणसूत्र इस प्रकार विभाजित होते हैं कि संतति कोशिकाओं का समान मात्रा मेंआनुवंशिक पदार्थ प्राप्त हो सके

केन्द्रिका -

  1. झिल्ली रहित गोलाकार काय जो शुक्राणुओं तथा कुछ शैवालों के अलावा सभीयूकेरियोटिक कोशिकाओं में विद्यमान रहते हैं।
  2. इनकी सख्या एक से लेकर कुछेक तक होती हैं। ये समान रूप से अभिरंजितहोते हैं व अभिरंजन गहरा होता हैं
  3. भीतर तथा प्रोटीनें भडारित होती हैं। कोशिका -विभाजन के दारैान लुप्त होजाता हैं और सतंति कोशिका में फिर से दिखार्इ दे जाता हैं
  4. केन्द्रक की संश्लेषी और कोशिकाद्रव्य एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं और यहपक्र ्रम केन्द्रक और कोशिकाद्रव्य के बीच हानेे वाली अभिक्रिया के बराबर ही होताहैं।

कोशिका के अणु -

कोशिका और इसके कोशिकाअंगक कार्बनिक रसायनों जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रट,न्यकू लीइक अम्ल तथा वसाआें से निर्मित होते है इसलिए इनको जैव अणु कहना ठीक हीहोगा। अकार्बनिक अणु जैसे जल व खनिज भी कोशिका में विद्यमान रहते हैं।

जल -

  1. जल के विशिष्ट भौतिक व रासायनिक गुणों के कारण पृथ्वी में जीवन संभव हुआ।
  2. यह प्रोटोप्लाज्म (जीवद्रव्य)का पम्रुख अवयव हैं।
  3. यह एक माध्यम हैं जिसमें कर्इ उपापचयी अभिक्रियाए संपन्न होती हैं।
  4. यह सार्वत्रिक विलायक हैं जिसमें अधिकतर पदार्थ घुल जाते हैं।
  5. यहा कोशिकाओं की स्फीति [turgidity], के लिए उत्तरदायी हैं।

कोशिका विभाजन -

एक अकेली कोशिका बार-बार विभाजित होती है और एक बहुकाेिशकीय जीव कानिर्माण करती है। एककोशिकीय बैक्टीरिया ओर प्रोटोजोआ विभाजित होकर अपनी संख्यामें वृद्धि करते हैं। क्षतिग्रस्त ऊतकाें के स्थान पर नइर्- नइर् कोशिकाएँ बन जाती है जोकोशिका विभाजन से ही उत्पन्न होती हैं। इस प्रकार सभी जीवों में कोशिका-विभाजन एकमहत्वपूर्ण क्रिया है। इस पाठ में आप कोशिका विभाजन की दो विधियों व उनमें निहितप्िरक्रयाओं का अध्ययन करेंगे।



बहुकोशिकीय जीवों में अधिकतर कोशिकाओं में वृद्धि आरै फिर विभाजन होता है,लेकिन जंतुओं की तंत्रिका-कोशिकाएँ, पेशीय-कोशिकाएँ तथा पादपों की रक्षक कोशिकाएँविभाजित नहीं होती हैं।सभी जीवों की सभी कोशिकाओं में कोशिका-विभाजन की प्रक्रिया पा्रय: एक समानहोती हैं। कोशिकाएँ वृद्धि की प्रावस्था से गुजरती हैं, तदुपरांत वे विभाजन से पवूर् गुणसूत्रोंकी संख्या दागे ुनी कर देने में सक्षम हो जाती हैं। कोशिका के जीवन काल में होने वाली येपा्र वस्थाएँ कोशिका-चक्र के रूप में होती हैं।

कोशिका-चक्र

विभाजित हो रही कोशिका को जनक कोशिका कह सकते हैं और इससे उत्पन्न होनेवाली कोशिकाओं को संतति कोशिकाएँ। इससे पहले कि सतंति कोशिका में और आगेविभाजन हो, उसमें वृद्धि होना-आवश्यक है ताकि उसका आकार अपनी जनक कोशिक केबराबर हो जाय।

हम किसी कोशिका के जीवन काल में दो मुख्य प्रावस्थाएँ देख सकते हैं।
  1. अतंरावस्था- वह अवधि जिसमें कोशिका में विभाजन नहीं हो रहा हो (वृिद्ध प्रावस्था)
  2. विभाजनकारी प्रावस्था-जिसे M प्रावस्था भी कहते हैं (M माइटोसिस)
(i) अंतरावस्था- दो उत्तरोत्तर कोशिका विभाजनों के बीच के अंतराल कोअंतरावस्था कहते हैं प्रावस्था जिसमें कोशिका में विभाजन नहीं हो रहा हाे कोशिका चक्रमें यह सबसे लबी अवधि होती हैं। अंतरावस्था को तीन प्रमुख कालों में विभाजित किया गयाहै G1 S व G2

G1 (Gap1) प्रावस्था अर्थात् पहली वृद्धि प्रावस्था-यह सबसे लंबी प्रावस्था है। इसपा्रवस्था में बड़ी मात्रा में प्रोटीन और RNA का संश्लेषण होता है।

S या संश्लेषी पा्रवस्था-यह अगली प्रावस्था है। बड़ी मात्रा में का संश्लेषण होता हैं।एक गुणसूत्र में DNA अणु का एकल दोहरे सर्पिल तंतु होता हैं। प्रावस्था के पश्चात ् प्रत्येकगण्ुासूत्र में DNA के दो अणु हो जाते हैं। इस प्रकार दो क्रोमेटिड सेन्ट्रोमेयर द्वारा एक-दूसरेसे जुड े़ रहते हैं और एकल गुणसूत्र बनाते हैं।


G2(GAP2) प्रावस्था-इस प्रावस्था के दौरान और अधिक प्रोटीन का संश्लेषण होताहै। कोशिकाद्रव्यी कोशिकाअंगक जैसे माइटोकॉन्ड्रिया, गॉल्जी बॉडी दुगुनी संख्या में बनजाते हैं। एकल सेन्ट्रोसोम के भीतर स्थित सेन्ट्रिओल भी दो सेन्ट्रीओलों में बंट जाता है।

(ii) M- प्रावस्था या विभाजनकारी प्रावस्था -इस प्रावस्था का निरूपण संकेत द्वारा किया जाता है (मियोसिस या माइटोसिस कोदर्शाता है) सूत्रीविभाजन होने से क्रोमेि टड अलग-अलग हो जाते हैं और संतति क्रोमोसोमबनात े हैं। संतति क्रोमोसामे सतं ति कन्े द्रकों में चल े जाते हैं और कोशिकाद्रव्य बंटकर दो एकसमान संतति-कोशिकाओं का निर्माण करता है।

कोशिका विभाजन के प्रकार -

कोशिक विभाजन दो प्रकार का होता है।
  1. सूत्री विभाजन- वृद्धि व जनन के लिए, प्रतिस्थापन के लिए। सूत्री विभाजन मेंसंतति कोशिकाएँ पूर्ण रूप से जनक कोशिका के समान होती है।
  2. अर्धसूत्री विभाजन-यह लंैि गक जनन द्वारा यग्ुमक (गैमीट) के निर्माण के दौरानहोता है। यह जनन ग्रंथि में होता हैं। इसमें परिणामी कोशिकाएं मादा में (अडं ाणु) तथा नर(शुक्राणु) जनक कोशिका के आधी संख्या में गुणसूत्र धारण करती हैं।

1. सूत्री विभाजन (माइटोसिस)

सूत्री विभाजन माइटोसिस को 4 प्रावस्थाओं में बाँटा जासकता है।
  1. पवूर् ावस्था
  2. मध्यावस्था
  3. पश्चावस्था
  4. अंत्यावस्था
ये प्रावस्थाऐं न्यूक्लिस के अंदर होने वाले परिवर्तनों के संकेत देती है।पहले केन्द्रक विभाजित होता है और तदपु रातं परू ी कोशिका विभाजित होती है।केन्द्रक के विभाजित हाने े पर दो सतं ति कन्े दक्र बन जाते हैं (कैरियो काइनेसिस), कोशिकाद्रव्य के विभाजित होने से दो संतति कोशिकाएँ बन जाती है (साइटोकाइनेसिस)।

1. पूर्वावस्था- इसमें तीन उपप्रावस्थाएॅं होती हैं :
  1. आरंभिक पूर्वावस्था [Early prophase]
    1. सेंट्रिओल कोशिका के विपरीत ध्रुवों की ओर पहुचने लगते है
    2. गुणसूत्र लंबे सूत्र के रूप में दिखायी देते है
    3. केन्द्रक की सुस्पष्टता कम होने लगती हैं।
  2. मध्य पूर्वास्था
    1. गुण सूत्र का संघनन पूरा हो जाता हैं,
    2. प्रत्येक क्रोमोसोम अब दो क्रोमोटिंडों का बना होता हैं, जो अपने-अपनेसेंट्रोमियरो पर परस्पर जुड़े रहते हैं।
    3. प्रत्येक क्रोमेटिड़ में नव प्राकृतिक DNA संतति अणु विद्यमान रहता हैं।
  3. परवर्ती पूर्वावस्था [Late prophase]
    1. सेंट्रिओंल ध्रुवों पर पॅंहचु जात े हैं।
    2. कुछ वर्कु-तंतु ध्रुव से लेकर कोशिका के विशुवत भाग तक फैल जात े है
    3. कंन्द्रकीय झिल्ली लुप्त हो जाती हैं
    4. कंन्द्रिका दृष्टिगोचर नहीं होती।
2. मध्यस्था [Metphase]
  1. गुणसूत्र अब कोशिका के मध्यभाग की ओर गति करते हैं।
  2. प्रत्येक गुणसूत्र सेंट्रोमियर द्वारातर्कु-तंतु के साथ जुड़ा होता हैं।
  3. प्रत्येक क्रोमेंटिड में अब एक-एकसेंट्रोमियर होता हैं और यह अब गुणसूत्रकहलाता हैं।
  4. आधी संख्या के गुणसूत्र (संततिक्रोमैटिड) एक धु्रव की आरे गति करते हैंऔर दूसरे आधी संख्या में गुणसूत्र दसू रेध्रुव की ओर गति करते हैं।
  5. साइटोकाइनेसिस आरं भ हो जाताहैं क्योंकि अब जंतु कोशिकाओं में विदलनखांॅच [cleavage furrow], बनना पा्र रंभहो जाती हैं।
3. अंत्यवस्था [Telophase],
  1. गणु सूत्र अब कार मे रिटन जानक कानिमार्ण करना प्रारभं कर देता हैं जैसा कि केन्दक्रमें होता हैं।
  2. प्रत्येक संतति केंन्द्रक के चारोंओर केंन्द्रकीय झिल्ली बन जाती हैं।
  3. केन्द्रिका फिर से दिखायी देनेलग जाती हैं।

साइटोकाइनेसिस -

यह कोशिकाद्रव्य के दो भागों में विभाजित होने की प्रकिया हैं। इसकी शुरूआतअत्यावस्था के आरंभ में ही आरंभ हो जाती हैं और अंत्यावस्था समाप्त होते-होते यह प्रकिया पूरी हो जाती हैं। पादप कोशिका व जतं ु कोशिका के साइटोकाइनेसिस में अंतरहोता हैं। पादप कोशिका भित्ति झिल्ली का अंतवर्ल न कोशिका भिित्ती की परिधि से अंदरकी ओर होता हैं। पादप कोशिका में फै्रग्मोप्लास्ट (कोशिका पट्ट) कोशिका के केंद्र में बननाप्रारंभ होता हैं और तब परिधि को ओर विस्तारित होता हैं।

समसुत्री विभाजन का महत्व -

यह एक समसूत्री विभाजन हैं और इससे बनने वाली दो संतति कोशिकाएँ सभीदृष्टियों में समान ही होती हैं। इन संतति कोशिकाओं में उतने ही तथा उसी प्रकार केगुणसूत्र पॅंहुचते हैं जो कि जनक-कोशिका में होते हैं।
  1. एक कोशिकीकीय जीवों में जनन की यही एक मात्र विधि हैं।
  2. इसी प्रक्रिया द्वारा जंतुओं और पौधों में निरतंर अधिकाधिक कोशिकाओं के बढत़ े रहनेके कारण वृद्धि होती हैं।
  3. वृद्धि द्वारा यह मरम्मत में भी योगदान देती हैं, उदाहरण के लिये घाव के भरने मेंक्षतिग्रस्त भागों के फिर से बनने में (जैसे छिपकली की कटी हुइर् पूछॅं ) सामान्य102टूट-फटू के दौरान नष्ट हो गयी कोशिकाओं के प्िर तस्थापन में (जैसा कि त्वचा कीसतही कोशिकाओं अथवा लाल रूधिर कोशिकाओं के मामले में)।

2. अर्धसूत्री विभाजन -

इस विभाजन को न्यूनकरी विभाजन [Reduction division], भी कहते हैं। इसकोशिका-विभाजन में जनक कोशिका की सामान्य गुणसूत्र संख्या संतति कोशिकाओं मेंघटकर आधी रह जाती हैं। उदाहरण के लिए मनुष्य में सामान्य गुणसत्रू सख्ं या 46 (23जोड़ी) होती है लेकिन अर्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप सतं ति कोशिकाओं में यहसंख्या घटकर आधी अर्थात 23 रह जाती हैं।

अर्धसूत्री विभाजन जनन कोशिकाओं में होता हैं उदाहरण के लिए नर के वृशण मेंऔर मादाओं के अंडाशयों में, और पौधौ के परागकोशों की पराग जनक कोशिकाओं मेंऔर अंडाशयों की मेगास्पोर जनक कोशिकाओं में होता हैं।

अर्ध गुणसूत्री विभाजन का महत्व:-

  1. किसी भी जाति में गुणसत्रू ों की संख्या पीढ़ी-दर-पीढ़ी नियत बनी रहती हैं।
  2. यदि ये युग्मक सूत्री विभाजन के जरियें बने होते तो अगली पीढ़ी में यग्ुमनजसे बनने वाली संतति में गुणसूत्र की संख्या दुगुनी हो जाती।
  3. पत््यके सजीव प्राणी की कायिक कोशिकाओं में गुणसत्रू ों की संख्या निश्चितहोती हैं। उदाहरण के लियें, प्याज की कोशिकओं में 16 होते है आल ू में 48,घोड़े में 64, मनुष्य में, 46 इसलिए इनकी संख्या को स्थिर रखने के लिएजनकों की जनन कोशिकाएँ एक विशिष्ट किस्म के विभाजन द्वारा बटती हैंजिसे अर्धसूत्री विभाजन कहते हैं।

अर्द्ध-सूत्री विभाजन की क्रियाविधि:-

गुणसूत्री विभाजन की खास बात यह हैं कि इसमें न्यूक्लियस व कोशिकाद्रव्य क्रमश:दो बार विभाजित होता हैं (अर्धसूत्री विभाजन i और ii) जबकि गुणसूत्र एक ही बार बंटतेहैं। अर्धगुणसूत्री विभाजन की प्रावस्थाओं का प्रवाह आरेख नीचे दर्शाया गया हैं।- गुणसूत्री आंरभ होने से पहले की अंतरावस्था [interphases], गुणसत्रूत्री विभाजनआरंभ होने से पहले की अंतरावस्था के समान ही होती हैं। S प्रावस्था में पत््र येक गुणसत्रूका DNA दुगुना हाकेर दो DNA अणु प्रदान करता हैं और इसलिए एक गुणसूत्र में दोक्रोमाेिटडस् पाए जाते हैं। अर्धसूत्री विभाजन I -अर्धसूत्रीकरण में भी चार अवस्थाएॅ होती हैं।
  1. पूर्वावस्था,
  2. मध्यावस्था,
  3. पश्चावस्था तथा
  4. अंत्यास्था
पूर्वावस्था I- अर्धसूत्री विभाजन I की पूर्वावस्था सूत्री विभाजन कीपूर्वावस्था से कही अधिक लंबी अवधि तक चलती हैं।

[i], लेप्टोटीन
  1. क्रोमोसोम सघन व स्थूलन (गाढ़ा बनने) के परिणामस्वरूप लंबे व पतले सूत्रों के रूप में स्पष्ट दिखार्इ देतेहैं।
  2. प्रत्येक गुणसूत्र अब दो क्रोमैटिड़ो का बना होता हैं औरये दोनों क्रोमैटिड़ सेन्ट्रोमियर के द्वारा परस्पर जुड़े रहतेहैं लेकिन ये आसानी से दिखार्इ नहीं देते।
[ii] जाइगोटीन
  1. समान अथवा समजात [homologous], क्रोमोसोम एक छारे पर से पास-पासआकर परस्पर युग्मन आरंभ कर देते हैं। इस युग्मन को [bivalent],सिनैप्सिस कहते हैं।
  2. समजात गुणसूत्र की प्रत्येक जोड़ी को युगली गुणसूत्र [bivalent], कहते हैं।
[iii], पैकीटीन
  1. संकुचन के कारण क्रोमोसोम लघुत्तर औरस्थूलतर होते जाते हैं।
  2. युगली गुणसूत्र नामक इकार्इ चार क्रोमैटिड़ोकी बनी होती हैं। अत: इसे चतुष्क [tetrad], कहतेहैं।
  3. पैकिटीन अवस्था के समाप्त होते-होते जीनविनिमय [crossing over], होना प्रारंभ हो जाता हैंअथार्त विजातीय क्रोमैटिड़ो के बीच सभी क्रोमैटिड़ोका टूटना और उनका विनिमय आरंभ हो जाता हैं।
  4. विनिमय व पुनर्योजन बिंदु X आकश्ति कादिखार्इ देता हैं, और इसे काइज्मा [Chiasma] कहतेहैं, या संक्रमण [point of crossing over]कहते हैं।
[iv], डिप्लोटीन -समजात गुणसूत्र पृथक होना प्रारंभ कर देते है
  1. एक समजात युग्म के दो विजातीय क्रोमैटिड़एक या अधिक बिन्दुओं पर जुड़े रहते हैं। इन बिंदुओंको किएज्मेटा [Chiasmata] कहते हैं,
  2. किऐज्मेटा पर ही समजात गुणसूत्रों के बीच क्रोमैटिड़ो के खंड़ा े का (जीवो का) विनिमय होता हैं।इस प्रक्रिया को जीनीय पुनर्सयोजन [genetic recombination], कहते हैं।
[v], डायाकाइनैसिस
  1. युग्मी गुणसत्रू के समजात गुणसूत्र एक दूसरे से दूर हटने लगते हैं।
  2. केन्द्रयीय झिल्ली व केन्द्रका लुप्त त हो जाते हैं।
  3. तर्कु निर्माण [Spindle formation], पूर्ण हो जाता हैं।
[vi], मध्यावस्था
  1. युगली गुणसूत्र अपने आपकोविषुवत रेखा पर व्यवस्थित कर लेते हैं,
  2. तुर्क-तंतु गुणसूत्रो के सेंन्ट्रोमियरोंके साथ जुड़ जाते हैं।
[vii], पश्चावावस्था
  1. तुर्क तंतु छोटे होने लगते हैं।
  2. समजात गुणसूत्रों के सेन्ट्रोमियरतर्कु-तंतुओं के साथ-साथ विपरीत ध्रुवोंकी ओर खिचत ें जाते हैं (सेंट्रोमियर काविभाजन नहीं होता)
  3. इस प्रकार जनक केन्द्रक के गुणसूत्रो काआधा भाग एक ध्रुव पर पॅहुच जाता हैंऔर शेष आधा भाग विपरीत धु्रव पर,
  4. गुणसूत्रों का प्रत्येक समुच्चय, जो किसीएक ध्रुव पर पहँचु ता है पैतृक और मातृकगुणसूत्रों के मिले-जुले भागों का बनाहोता हैं।
[viii], अंत्यावस्था
  1. पृथक हुये गुणसूत्र केन्द्रक बना देते हैं।
  2. संतति में गुणसूत्रों की संख्या जनक केन्द्रक के गुणसूत्रों की आधी होती हैंएक कोशिका के गुणसूत्रो के परू े समुच्चयमें यग्मित गुणसूत्र या द्विगुणित समुच्चय[Diploid set], होता हैं (2n)।
  3. संततिकोशिकाए अब अगुणित [Haploid], कहलाती हैं [n], या इनमें गुणसूत्रों काकेवल एक समुच्चय होता हैं,
  4. केन्द्रिका फिर से दिखार्इ देती हैं व केन्द्रकीय झिल्ली बन जाती हैं।
  5. संतति केन्द्रकों में दूसरा अर्धसूत्री विभाजन आरंभ हो जाता हैं।दूसरे अर्धसूत्री विभाजन की भी चार अवस्थाएॅं हैं :
    1. पूर्वावस्था II
    2. मध्यावस्था II
    3. पश्चावस्था
    4. अंत्यावस्था II
[i] पूर्वावस्था II
  • गुणसूत्र छोटे हाके र फिर से दिखार्इदेने लगते हैं। दो क्रोमैिटड एकलसेट्रोमियर से जुड़ जाते हैं।
  • तर्कु-निर्माण आरभ हो जाता हैं।
  • केन्द्रिका और केन्द्रिकीय झिल्ली फिरसे लुप्त होने लगती हैं।
[ii], मध्यावस्था II
  • प्रत्येक गुणसूत्र का सेन्ट्रमियर विभाजित होजाता हैं।
  • क्रोमैटिड़ो को अपने-अपने सेन्टा्र ेि मयर मिलजाते हैं वे संतति गुणसूत्र बन जाते हैं औरविपरीत ध्रुवों की ओर गति करने लगते हैं।
[iii], अंत्यावस्था II
  • ध्रुवों पर पहंॅ चु ने के बाद गुणसूत्र अपने आपकोअगुणित संतति केन्द्रक के रूप में व्यवस्थितकर लेते हैं।
  • केन्द्रिका और केन्द्रकीय झिल्ली फिर सेदिखार्इ देने लगती हैं।

साइटोकाइनेसिस -

  1. यह दो उत्तरोत्तर अवस्थाओं में होता हैं पहले ता े अर्धसत्रू ी विभाजन-I के बाद,और दूसरा अर्धसूत्री विभाजन II के बाद अथवा कुछ मामलों में यह केवल अर्ध-I गुणसूत्र के बाद ही होता हैं।
  2. इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप चार अगुणित कोशिकाएँ बन जाती हैं।

अर्धसूत्री विभाजन का महत्व -

  1. यह स्पीशीज के लैगक जनन के दौरान उनमें गुणसूत्रों की संख्या नियत बनायेरखने में मदद करता हैं।
  2. गुणसूत्री विभाजन गैंमीटो के निर्माण (गैमीटजनन या युग्मक जनन, Gametogenesis)के दौरान होती हैं और इसके दौरान गैंमीटो में गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित (2n)से घटकर अणुतिणत ख्द, रह जाती हैं। ये अगुणित गैमीट निषेचन के बाद संलयितहोकर द्विगुणित जीव का निर्माण करते हैं।
  3. पूर्वावस्था के नए संयोग स्थापित होते हैं। इसके परिणामस्वरूप संतति में मॉ बापदोना ें के गुणों का समावेश नए जीन पनु र्सयोजन के कारण होता हैं।

सूत्री विभाजन व अर्धसूत्री विभाजन की तुलना -

सूत्री विभाजनअर्धसूत्री विभाजन
कोशिका केवल एक बार विभाजन
होता हैं।


कोशिका विभाजन दो बार होता हैं।
अर्धसूत्री विभाजन-I और
अर्धसूत्री विभाजन- II
कायिक कोशिकाओं में
होता हैं।
जनन कोशिकाओं में होता हैं।
पूर्वावस्था सरल होती हैं।



पूर्वावस्था जटिल होती हैं जिसमें
पांचॅ उपअवस्थाएॅं लेप्टोटीन, जाइगोटीन,
पैकीटीन,ड़िप्लोटीन और डाइकाइनेसिस
होती हैं।
सिनैलिप्स नही होता।


पूर्वास्था के दौरान समजात गुणसूत्रों
का सिनैप्सिस होता हैं।
पूर्वास्था के दौरान गुणसूत्रों के दो
क्रोमोटिडो के बीच खंडो का विनिमय
नही होता
दो समजात गुणसूत्रों के क्रोमोटिडो
के बीच जीन विनियम के दारै ान
खंडों का विनियम होता हैं।
प्रत्येक गुणसूत्र दो क्रोमेटिडो का बना
होता हैं जा े एक सेन्ट्रोमियर के जरिये
जुड़े रहते हैं।
प्रत्येक युगल गुणसत्रू में चार क्रोमेटिडो
और दो सेन्ट्रोमियर होते हैं।

गुणसूत्र पूर्वावस्था के आरंभ में ही
द्विगुणीत हो जाते हैं।


पूर्वावस्था I में गुणसूत्र एकल रूप में
दिखार्इ देते हैं (हांलाकि अंतरावस्था I
में DNA का प्रतिकृतियन पहले ही
हो चुका होता हैं)।
मध्यावस्था में सभी सेन्ट्रोमियर
एक ही अनक्रुमित होते है

मध्यावस्था I में सेन्ट्रोमियर दो तलों में
तल पर अनुक्रमित होते हैं। जा े
कि एक दूसरे के समांतर होते हैं
मध्यावस्था प्लेट द्विगुणित
गुणसूत्रों से बनी होती हैं।
मध्यावस्था प्लेट युग्मित गुणसूत्रों
की बनी होती हैं।
सेन्ट्रोमियर विभाजन पश्चावस्था
में होता हैं।


सेन्ट्रोमियर पश्चावस्था I में विभाजित
नहीं होती सेन्ट्रोवियर पश्चावस्था II में
ही विभाजित होते हैं।
तर्कु-तंतु अंत्यावस्था में पूरी तौर
पर लुप्त हो जाते हैं
तुर्क-तंतु अंत्यावस्था I में पूरी तौर
से लुप्त नहीं होते हैं।
केन्द्रिका अत्यास्था में पनु : दिखार्इ
देने लगती हैं।
केन्द्रिका अंत्यावस्था I में पूरी तौर से
लुप्त नहीं होते।
सूत्री विभाजन के अंत में गुणसूत्र की
सख्या में कोर्इ परिर्वतन नहीं होता।
गुणसूत्र की सख्या द्विगुणित घटकर
अगुणित रह जाती हैं।
संतति कोशिकाओं की जीनी संरचना
पूर्णतया जनक कोशिकाओंकी जीनी
संरचना के समान होती हैं।


संतति कोशिकाओं की जीनी संरचना
जनक कोशिकाओं की जीनी संरचना से
भिन्न होती हैं।सतंति कोशिका के गुणसूत्रों
में पतै ृक व मातृक दोना ेंप्रकार के जीन
होते हैं।
माइटोसिस अपेक्षाकृत अल्पावधिक
होता हैं।
मीओसिस अपेक्षाकृत दीर्घावधिक
होता हैं।

कैरियोटाइप -

गुणसूत्र केवल मध्यस्था [Metaphase], में ही दिखार्इ देते हैं। तब उनकी फोटोखीचीं जाती हैं और उनके आकार के अनुसार उन्हें काटकर जोडे़ बना लिए जात े हैं। इसविन्यास को कैरियोटाइप कहा जाता हैं।




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