मनुष्य इस सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना है । खाना, बैठना, रहना आदि प्रक्रियाएँ तो सभी जीव करते हैं परंतु मनुष्य में चिंतन क्षमता आ जाने से वह विशिष्ट हो गया है । अपनी बुद्धि और विचारशीलता से वह अपनी समस्त कामनाओं को साकार रूप दे सकता है ।
मनुष्य की इसी सोच व विचारधारा ने उसे पंख प्रदान कर दिए हैं । वह निरंतर नवीन अनुसंधान व आविष्कार करता रहा है । सफलताओं ने उसके साहस व उत्साह को चौगुना कर दिया है । आज वैज्ञानिक प्रगति के कारण औद्योगीकरण की प्रक्रिया इतनी तीव्र हो गई है कि उसे वातावरणीय सामंजस्य वनाए रखने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है ।
बढ़ते औद्योगीकरण से वातावरण में प्रदूषण की मात्रा इतनी बढ़ गई है कि पर्यावरण के संतुलन का खतरा मँडराने लगा है । औद्योगिक विकास का सबसे अधिक प्रभाव महानगरों एवं अन्य घनी आबादी वाले शहरों में देखने को मिलता है । शहरों व महानगरों में जनसंख्या घनत्व अधिक होने से मोटर वाहनों, गाड़ियों व दुपहिया वाहनों आदि की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है ।
ये वाहन अपने धुएँ में कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी विषैली गैस छोड़ते हैं जो हमारी श्वाँस प्रक्रिया में बाधक बनती हैं तथा साथ ही अनेक वीमारियों को जन्म देती हैं । वायु प्रदूषण फैलने से वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है ।
एक सर्वेक्षण के अनुसार जापान की राजधानी ‘टोक्यो’ को विश्व का सबसे प्रदूषित शहर घोषित किया गया है । टोक्यो में आज स्थिति यह है कि वहाँ ऑक्सीजन का अनुपात इतना अधिक प्रभावित हुआ है कि वहाँ जगह-जगह ऑक्सीजन के सिलिंडर लगाए गए हैं जिससे आवश्यकता पड़ने पर मनुष्य ऑक्सीजन ले सकता है ।
विश्व के दूसरे सबसे अधिक प्रदूषित शहर लंदन में प्रदूषण की मात्रा इतनी अधिक है कि यदि यातायात संचालक को चार घंटे लगातार यातायात संचालन करना पड़े तो वह 100 से भी अधिक सिगरेट के तुल्य प्रदूषित वायु ग्रहण कर लेता है । हमारे देश के महानगरों की स्थिति भी अधिक अच्छी नहीं है । देश की राजधानी दिल्ली की यह स्थिति है कि लोग यहाँ प्रदूषित वायु और जल की उपलब्धता के मध्य ही जीने के लिए विवश हैं ।
यातायात के साधनों के अतिरिक्त बड़े-बड़े कारखाने, मिलें आदि न केवल वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं अपितु जल प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण आदि के लिए भी उत्तरदायी हैं । कल-कारखानों से निकला रासायनिक अवशेष पानी के साथ बहकर नदियों में प्रक्षेपित हो जाता है जिससे स्वच्छ जल प्रदूषित हो जाता है । जिसके फलस्वरूप मनुष्य को पीने के लिए साफ पानी नहीं मिल पाता है तथा साथ ही जलीय जंतुओं का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाता है ।
औद्योगिक विकास के चलते लोगों का गाँवों से शहर की ओर पलायन जारी है जिससे शहरों का जनसंख्या घनत्व बढ़ता ही चला जा रहा है । इन परिस्थितियों में नगरों व महानगरों के विस्तार की आवश्यकता पड़ती है । लोगों को मकान प्रदान करने व उनकी अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बड़ी मात्रा में वृक्षों का कटाव होता है ।
कच्चे माल की आपूर्ति के लिए मनुष्य बड़े-बड़े जंगलों का सफाया कर रहा है जिससे वायु प्रदूषण को और बढ़ावा मिल रहा है क्योंकि वृक्ष ही ऐसा माध्यम हैं जो वायु को शुद्ध करते हैं । इसके साथ ही वन्य जीव-जंतुओं के संरक्षण की समस्या भी उत्पन्न होती जा रही है । जंतुओं की अनेक प्रजातियाँ मनुष्य की स्वार्थ-लोलुपता व औद्योगीकरण की भेंट चढ़ गईं तथा कई और लुप्त होने के कगार पर हैं ।
नि:संदेह संदेह जो औद्योगिक विकास हुए हैं या जो औद्योगिक प्रगति मनुष्य ने विगत वर्षों में की है उसे न तो रोका जा सकता है और न ही रोकने की आवश्यकता है क्योंकि औद्योगीकरण मनुष्य की आवश्यकता है । आटश्यकता इस बात की है कि हम अपनी औद्योगिक प्रगति एवं प्रकृति के साथ तालमेल स्थापित करें ।
यदि प्रकृति और हमारे औद्योगीकरण के बीच सामंजस्य स्थापित नहीं होता है तो हमारी यह प्रगति व्यर्थ है क्योंकि प्राकृतिक असंतुलन हमें विनाश की ओर ले जाएगा । संपूर्ण मानव सभ्यता खतरे में पड़ जाएगी । अत: हमें अपने औद्योगिक विकास को नियंत्रण में रखना होगा । दूसरे शब्दों में, हमें अपनी मशीनों व उत्पाद को इस प्रकार नियंत्रित करना होगा कि वे हमारे सहज जीवन को प्रभावित न करें ।
पर्यावरण को सुरक्षित व संतुलित रखने के लिए आवश्यक है कि विषाक्त गैसों, रसायनों व अन्य हानिकारक अवशेष उत्पन्न करने वाले कारखानों को नगर से दूर खुले स्थानों पर विस्थापित करें । नगरों के गंदे जल को नदियों में प्रक्षेपित न करें । वृक्षारोपण पर विशेष ध्यान दें तथा इसकी जागरूकता हेतु जनजागृति अभियान चलाएँ । विश्व स्तर पर परमाणु हथियारों का बहिष्कार हो ताकि युद्ध की विभीषिका से मानव जाति को बचाया जा सके ।
हालाँकि परमाणु अस्त्रों के बगैर भी आधुनिक युद्ध ऐसे खतरनाक हथियारों से लड़े जा रहे हैं जिनसे वातावरण में भारी प्रदूषण फैलता है । रेडियो एक्टिव तत्वों की भरमार हो जाती है जिनसे पूरा सजीव जगत प्रभावित होता है । पेट्रोलियम पदार्थों से निकला धुआँ वर्तमान युग की एक बड़ी समस्या है । इन सभी समस्याओं का निदान मानव अपनी बुद्धि का प्रयोग करके कर सकता है ।
मनुष्य इस सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना है । खाना, बैठना, रहना आदि प्रक्रियाएँ तो सभी जीव करते हैं परंतु मनुष्य में चिंतन क्षमता आ जाने से वह विशिष्ट हो गया है । अपनी बुद्धि और विचारशीलता से वह अपनी समस्त कामनाओं को साकार रूप दे सकता है ।
मनुष्य की इसी सोच व विचारधारा ने उसे पंख प्रदान कर दिए हैं । वह निरंतर नवीन अनुसंधान व आविष्कार करता रहा है । सफलताओं ने उसके साहस व उत्साह को चौगुना कर दिया है । आज वैज्ञानिक प्रगति के कारण औद्योगीकरण की प्रक्रिया इतनी तीव्र हो गई है कि उसे वातावरणीय सामंजस्य वनाए रखने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है ।
बढ़ते औद्योगीकरण से वातावरण में प्रदूषण की मात्रा इतनी बढ़ गई है कि पर्यावरण के संतुलन का खतरा मँडराने लगा है । औद्योगिक विकास का सबसे अधिक प्रभाव महानगरों एवं अन्य घनी आबादी वाले शहरों में देखने को मिलता है । शहरों व महानगरों में जनसंख्या घनत्व अधिक होने से मोटर वाहनों, गाड़ियों व दुपहिया वाहनों आदि की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है ।
ये वाहन अपने धुएँ में कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी विषैली गैस छोड़ते हैं जो हमारी श्वाँस प्रक्रिया में बाधक बनती हैं तथा साथ ही अनेक वीमारियों को जन्म देती हैं । वायु प्रदूषण फैलने से वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है ।
एक सर्वेक्षण के अनुसार जापान की राजधानी ‘टोक्यो’ को विश्व का सबसे प्रदूषित शहर घोषित किया गया है । टोक्यो में आज स्थिति यह है कि वहाँ ऑक्सीजन का अनुपात इतना अधिक प्रभावित हुआ है कि वहाँ जगह-जगह ऑक्सीजन के सिलिंडर लगाए गए हैं जिससे आवश्यकता पड़ने पर मनुष्य ऑक्सीजन ले सकता है ।
विश्व के दूसरे सबसे अधिक प्रदूषित शहर लंदन में प्रदूषण की मात्रा इतनी अधिक है कि यदि यातायात संचालक को चार घंटे लगातार यातायात संचालन करना पड़े तो वह 100 से भी अधिक सिगरेट के तुल्य प्रदूषित वायु ग्रहण कर लेता है । हमारे देश के महानगरों की स्थिति भी अधिक अच्छी नहीं है । देश की राजधानी दिल्ली की यह स्थिति है कि लोग यहाँ प्रदूषित वायु और जल की उपलब्धता के मध्य ही जीने के लिए विवश हैं ।
यातायात के साधनों के अतिरिक्त बड़े-बड़े कारखाने, मिलें आदि न केवल वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं अपितु जल प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण आदि के लिए भी उत्तरदायी हैं । कल-कारखानों से निकला रासायनिक अवशेष पानी के साथ बहकर नदियों में प्रक्षेपित हो जाता है जिससे स्वच्छ जल प्रदूषित हो जाता है । जिसके फलस्वरूप मनुष्य को पीने के लिए साफ पानी नहीं मिल पाता है तथा साथ ही जलीय जंतुओं का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाता है ।
औद्योगिक विकास के चलते लोगों का गाँवों से शहर की ओर पलायन जारी है जिससे शहरों का जनसंख्या घनत्व बढ़ता ही चला जा रहा है । इन परिस्थितियों में नगरों व महानगरों के विस्तार की आवश्यकता पड़ती है । लोगों को मकान प्रदान करने व उनकी अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बड़ी मात्रा में वृक्षों का कटाव होता है ।
कच्चे माल की आपूर्ति के लिए मनुष्य बड़े-बड़े जंगलों का सफाया कर रहा है जिससे वायु प्रदूषण को और बढ़ावा मिल रहा है क्योंकि वृक्ष ही ऐसा माध्यम हैं जो वायु को शुद्ध करते हैं । इसके साथ ही वन्य जीव-जंतुओं के संरक्षण की समस्या भी उत्पन्न होती जा रही है । जंतुओं की अनेक प्रजातियाँ मनुष्य की स्वार्थ-लोलुपता व औद्योगीकरण की भेंट चढ़ गईं तथा कई और लुप्त होने के कगार पर हैं ।
नि:संदेह संदेह जो औद्योगिक विकास हुए हैं या जो औद्योगिक प्रगति मनुष्य ने विगत वर्षों में की है उसे न तो रोका जा सकता है और न ही रोकने की आवश्यकता है क्योंकि औद्योगीकरण मनुष्य की आवश्यकता है । आटश्यकता इस बात की है कि हम अपनी औद्योगिक प्रगति एवं प्रकृति के साथ तालमेल स्थापित करें ।
यदि प्रकृति और हमारे औद्योगीकरण के बीच सामंजस्य स्थापित नहीं होता है तो हमारी यह प्रगति व्यर्थ है क्योंकि प्राकृतिक असंतुलन हमें विनाश की ओर ले जाएगा । संपूर्ण मानव सभ्यता खतरे में पड़ जाएगी । अत: हमें अपने औद्योगिक विकास को नियंत्रण में रखना होगा । दूसरे शब्दों में, हमें अपनी मशीनों व उत्पाद को इस प्रकार नियंत्रित करना होगा कि वे हमारे सहज जीवन को प्रभावित न करें ।
पर्यावरण को सुरक्षित व संतुलित रखने के लिए आवश्यक है कि विषाक्त गैसों, रसायनों व अन्य हानिकारक अवशेष उत्पन्न करने वाले कारखानों को नगर से दूर खुले स्थानों पर विस्थापित करें । नगरों के गंदे जल को नदियों में प्रक्षेपित न करें । वृक्षारोपण पर विशेष ध्यान दें तथा इसकी जागरूकता हेतु जनजागृति अभियान चलाएँ । विश्व स्तर पर परमाणु हथियारों का बहिष्कार हो ताकि युद्ध की विभीषिका से मानव जाति को बचाया जा सके ।
हालाँकि परमाणु अस्त्रों के बगैर भी आधुनिक युद्ध ऐसे खतरनाक हथियारों से लड़े जा रहे हैं जिनसे वातावरण में भारी प्रदूषण फैलता है । रेडियो एक्टिव तत्वों की भरमार हो जाती है जिनसे पूरा सजीव जगत प्रभावित होता है । पेट्रोलियम पदार्थों से निकला धुआँ वर्तमान युग की एक बड़ी समस्या है । इन सभी समस्याओं का निदान मानव अपनी बुद्धि का प्रयोग करके कर सकता है ।
आधुनिक ओधोगिकरण के सूत्रपात का श्रेय कौनसे ऊर्जा संसाधन को जाता है ?
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औद्योगिकरण से लाभ एवं हानि