बाबर द्वारा स्थापित मुग़ल साम्राज्य अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब के शासनकाल में मध्याह्न सूर्य की तरह अपनी प्रखर किरणों से भारतीय इतिहास को चकाचौंध कर डाला. परन्तु औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य रूपी सूर्य धीरे-धीरे अस्ताचल की ओर बढ़ने लगा. विशाल मुग़ल साम्राज्य पहले की तुलना में केवल छायामात्र रह गया. मुग़ल साम्राज्य रूपी वृक्ष की शाखाएँ एक-एक कर टूटने लगी और आगे चलकर मुग़ल साम्राज्य की ठूँठ की तरह दिखाई देने लगा. बाबर द्वारा स्थापित साम्राज्य विघटनकारी तत्त्वों के फलस्वरूप सड़-गल गया. उसकी आत्मा पहले ही निकल चुकी थी. अंतिम जनाजा 1862 ई. में बहादुरशाह जफ़र के साथ दफना दी गई. मुग़ल साम्राज्य के उत्कर्ष का विवरण जितना रोचक और रोमांचक है उसके पतन की कहानी उतनी ही दर्दनाक है. मुग़ल साम्राज्य के पतन (The Decline of Mughal Empire in Hindi) में जिन तत्त्वों का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से हाथ था उनका विवरण इस प्रकार है :-
मुग़ल साम्राज्य एकतंत्र शासन-प्रणाली पर आधारित था. शासक के व्यक्तित्व और चरित्र के अनुसार साम्राज्य का विकास अथवा ह्रास होता था. योग्य, अनुभवी और दूरदर्शी सम्राटों के युग में मुग़ल साम्राज्य का विकास अकबर से लेकर औरंगजेब तक हुआ. इन शासकों के प्रयत्न के फलस्वरूप मुग़ल साम्राज्य का विस्तार हुआ और साम्राज्य की सुरक्षा एवं प्रतिष्ठा पर कोई आँच नहीं आई. औरंगजेब की मृत्यु के बाद बहादुरशाह प्रथम से लेकर बहादुरशाह द्वितीय तक सभी मुग़ल शासक नामधारी शासक रह गये थे. उनमें योग्यता, दृढ़ इच्छाशक्ति और दूरदर्शिता का अभाव था. बहादुरशाह प्रथम बुढ़ापे की अवस्था में गद्दी पर बैठा था. उसमें सफल शासक के सभी गुणों का अभाव था. वह अपने पुत्रों को अविश्वास की दृष्टि से देखता था. व्यावहारिक ज्ञान, कूटनीति और युद्ध-कला की शिक्षा देने के बदले मुग़ल शाहजादा शाही दरबार में रहकर राग-रंग में लिप्त रहते थे. यही कारण था कि औरंगजेब के बाद मुग़ल वंश में कोई योग्य शासक नहीं हुआ जो विघटनकारी तत्त्वों पर नियंत्रण रखकर मुग़ल साम्राज्य को पतन से बचा सकता था.
मुगल शासकों के द्वारा सरदारों की व्यवस्था संगठित की गई थी. योग्यता के आधार पर सरदारों की नियुक्ति होती थी. सरदार देश के अन्दर के भी थे और कुछ विदेशी भी थे. मुग़ल साम्राज्य के निर्माण, विस्तार और प्रशासनिक संगठन को सुदृढ़ एवं व्यापक बनाने में सरदार वर्ग की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण थी. प्रारम्भ में सरदार मुग़ल सम्राटों के प्रति भक्ति का भाव रखते थे और उनपर सम्राट का पूर्ण नियंत्रण रहता था. मुग़ल दरबार में दलबंदी जहाँगीर के शासनकाल से प्रारम्भ हुई. उस समय दलबंदी के परिणामस्वरूप मुगलों के हाथ से कांधार निकल गया. शाहजहाँ और औरंगजेब के शासनकाल में भी अमीरों के बीच परस्पर ईर्ष्या और फूट के भाव थे जो युद्ध-भूमि में कभी-कभी स्पष्ट हो जाते थे.
मुग़ल साम्राज्य के पतन का एक कारण शांति और सुरक्षा का अभाव था. मुग़ल साम्राज्य की स्थापना सैनिक शक्ति के बल पर हुई थी. बाबर और हुमायूँ को भारतीय जनता विदेशी मानती थी. परन्तु अकबर ने राजपूतों के साथ वैवाहिक एवं मित्रता का सम्बन्ध काम कर आम लोगों के बीच मुगलों के प्रति स्नेह और सद्भावना का बीज अंकुरित किया था. अकबर के उत्तराधिकारी के रूप में जहाँगीर और शाहजहाँ ने उसके मीठे फल को चख कर पूर्ण लाभ उठाने की चेष्टा की. परन्तु औरंगजेब की अदूरदर्शिता और संदेहशील प्रवृत्ति के कारण पुनः भारतीय जनता का एक बहुत बड़ा भाग मुगलों का विरोधी बन गया. राजपूत, मराठा, जाट, सिख और सतनामियों के विद्रोह के कारण मुग़ल साम्राज्य की शान्ति नष्ट हो चुकी थी. इन शक्तियों को पूर्णतया नियंत्रित अथवा कुचलने में औरंगजेब ने आंशिक सफलता ही प्राप्त की थी. परन्तु बहादुरशाह प्रथम के बाद पुनः विघटनकारी शक्तियों का उदय हुआ और मुग़ल साम्राज्य में अराजकता छा गई.
आंतरिक असंतोष का लाभ उठाने का प्रयास विदेशी आक्रमणकारियों ने किया. मुग़ल साम्राज्य का सैनिक अभियान कंदहार, बल्ख, बदख्शां में असफल हो गया था. पर्याप्य धन-जन की हानि उठाने के बावजूद मुग़ल साम्राज्य में एक इंच भूमि का विस्तार नहीं हुआ. इन असफलताओं से मुगलों की सैनिक कमजोरी स्पष्ट हो गई थी. जबतक फारस गृह-युद्ध में उलझा रहा, मुग़ल साम्राज्य पर कोई विदेशी आक्रमण नहीं हुआ परन्तु 1736 ई. में गृह-युद्ध से मुक्त होने के बाद नादिरशाह ने मुग़ल साम्राज्य की आंतरिक दुर्बलता का लाभ उठाकर सैनिक अभियान की तैयारी प्रारम्भ कर दी. नादिरशाह ने 1738 ई. में भारतीय सीमा में प्रवेश किया. उस समय मुग़ल सम्राट मुहम्मदशाह पर यह आरोप लगाया गया कि उसने फारस को राजदूत के साथ दुर्व्यवहार किया है और नादिरशाह के साथ हुई प्रतिज्ञाओं की अवेहलना की है. नादिरशाह को काबुल लेकर पंजाब तक आने में कोई कठिनाई नहीं हुई. विलासी और अकर्मण्य मुहम्मदशाह की आँखें तब खुलीं जब वह पानीपत से 20 मील दूर कर्नाल में पहुँच चुका था. 1739 ई. में मुग़ल सेना को बुरी तरह पराजित कर उसने मुहम्मदशाह को बंदी बना लिया. मुहम्मदशाह को बंदी बनाकर नादिरशाह दिल्ली पहुँचा. कुछ विरोधी तत्त्वों ने नादिरशाह की मृत्यु की झूठी खबर फैलाकर कुछ फारसी सैनिकों को मार डाला. क्रोधित नादिरशाह ने दिल्ली में कत्ले आम की आज्ञा दी. नादिरशाह की क्रूरता और लूट से मुग़ल साम्राज्य की आर्थिक रीढ़ टूट गयी और काबुल, सिंध और पंजाब पर फारस वालों का अधिकार हो गया.
औरंगजेब के बाद योग्य सम्राट न होने के कारण साम्राज्य का पतन हो गया जिसके मुख्य कारण निम्न हैं-
डॉं. आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव के अनुसार - ‘‘औरंगजेब की दक्षिण नीति बिल्कुल असफल रही ।’’
Mugal samrajy ke patan per historyens ke views
Aurangzeb ki death ke bad badshao ki neetiyon me vyapak parivartan hue explain kijiye? 200 words me
Ajit yadav Aman Yadav
Mugal samraj ka patan
Ekta pranali ko explain kijiye.25 Marks ka question hai
मुगल साम्राज्य के पतन के कारणों पर प्रकाश डाले
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निर्मला उपन्यास में प्रेम चन्द्र ने नारी सभ्यता के बारे me सांचेप में बताइए निर्मला का चरित्र करें
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1707 isvi ke pakshat Mugal Samrajya ka vighatan
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