Mugal Samrajy Ka Patan pdf मुगल साम्राज्य का पतन pdf

मुगल साम्राज्य का पतन pdf



GkExams on 17-11-2018

बाबर द्वारा स्थापित मुग़ल साम्राज्य अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब के शासनकाल में मध्याह्न सूर्य की तरह अपनी प्रखर किरणों से भारतीय इतिहास को चकाचौंध कर डाला. परन्तु औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य रूपी सूर्य धीरे-धीरे अस्ताचल की ओर बढ़ने लगा. विशाल मुग़ल साम्राज्य पहले की तुलना में केवल छायामात्र रह गया. मुग़ल साम्राज्य रूपी वृक्ष की शाखाएँ एक-एक कर टूटने लगी और आगे चलकर मुग़ल साम्राज्य की ठूँठ की तरह दिखाई देने लगा. बाबर द्वारा स्थापित साम्राज्य विघटनकारी तत्त्वों के फलस्वरूप सड़-गल गया. उसकी आत्मा पहले ही निकल चुकी थी. अंतिम जनाजा 1862 ई. में बहादुरशाह जफ़र के साथ दफना दी गई. मुग़ल साम्राज्य के उत्कर्ष का विवरण जितना रोचक और रोमांचक है उसके पतन की कहानी उतनी ही दर्दनाक है. मुग़ल साम्राज्य के पतन (The Decline of Mughal Empire in Hindi) में जिन तत्त्वों का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से हाथ था उनका विवरण इस प्रकार है :-

कमजोर उत्तराधिकारी

मुग़ल साम्राज्य एकतंत्र शासन-प्रणाली पर आधारित था. शासक के व्यक्तित्व और चरित्र के अनुसार साम्राज्य का विकास अथवा ह्रास होता था. योग्य, अनुभवी और दूरदर्शी सम्राटों के युग में मुग़ल साम्राज्य का विकास अकबर से लेकर औरंगजेब तक हुआ. इन शासकों के प्रयत्न के फलस्वरूप मुग़ल साम्राज्य का विस्तार हुआ और साम्राज्य की सुरक्षा एवं प्रतिष्ठा पर कोई आँच नहीं आई. औरंगजेब की मृत्यु के बाद बहादुरशाह प्रथम से लेकर बहादुरशाह द्वितीय तक सभी मुग़ल शासक नामधारी शासक रह गये थे. उनमें योग्यता, दृढ़ इच्छाशक्ति और दूरदर्शिता का अभाव था. बहादुरशाह प्रथम बुढ़ापे की अवस्था में गद्दी पर बैठा था. उसमें सफल शासक के सभी गुणों का अभाव था. वह अपने पुत्रों को अविश्वास की दृष्टि से देखता था. व्यावहारिक ज्ञान, कूटनीति और युद्ध-कला की शिक्षा देने के बदले मुग़ल शाहजादा शाही दरबार में रहकर राग-रंग में लिप्त रहते थे. यही कारण था कि औरंगजेब के बाद मुग़ल वंश में कोई योग्य शासक नहीं हुआ जो विघटनकारी तत्त्वों पर नियंत्रण रखकर मुग़ल साम्राज्य को पतन से बचा सकता था.

अमीरों की दलबंदी

मुगल शासकों के द्वारा सरदारों की व्यवस्था संगठित की गई थी. योग्यता के आधार पर सरदारों की नियुक्ति होती थी. सरदार देश के अन्दर के भी थे और कुछ विदेशी भी थे. मुग़ल साम्राज्य के निर्माण, विस्तार और प्रशासनिक संगठन को सुदृढ़ एवं व्यापक बनाने में सरदार वर्ग की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण थी. प्रारम्भ में सरदार मुग़ल सम्राटों के प्रति भक्ति का भाव रखते थे और उनपर सम्राट का पूर्ण नियंत्रण रहता था. मुग़ल दरबार में दलबंदी जहाँगीर के शासनकाल से प्रारम्भ हुई. उस समय दलबंदी के परिणामस्वरूप मुगलों के हाथ से कांधार निकल गया. शाहजहाँ और औरंगजेब के शासनकाल में भी अमीरों के बीच परस्पर ईर्ष्या और फूट के भाव थे जो युद्ध-भूमि में कभी-कभी स्पष्ट हो जाते थे.

शान्ति और सुरक्षा का अभाव

मुग़ल साम्राज्य के पतन का एक कारण शांति और सुरक्षा का अभाव था. मुग़ल साम्राज्य की स्थापना सैनिक शक्ति के बल पर हुई थी. बाबर और हुमायूँ को भारतीय जनता विदेशी मानती थी. परन्तु अकबर ने राजपूतों के साथ वैवाहिक एवं मित्रता का सम्बन्ध काम कर आम लोगों के बीच मुगलों के प्रति स्नेह और सद्भावना का बीज अंकुरित किया था. अकबर के उत्तराधिकारी के रूप में जहाँगीर और शाहजहाँ ने उसके मीठे फल को चख कर पूर्ण लाभ उठाने की चेष्टा की. परन्तु औरंगजेब की अदूरदर्शिता और संदेहशील प्रवृत्ति के कारण पुनः भारतीय जनता का एक बहुत बड़ा भाग मुगलों का विरोधी बन गया. राजपूत, मराठा, जाट, सिख और सतनामियों के विद्रोह के कारण मुग़ल साम्राज्य की शान्ति नष्ट हो चुकी थी. इन शक्तियों को पूर्णतया नियंत्रित अथवा कुचलने में औरंगजेब ने आंशिक सफलता ही प्राप्त की थी. परन्तु बहादुरशाह प्रथम के बाद पुनः विघटनकारी शक्तियों का उदय हुआ और मुग़ल साम्राज्य में अराजकता छा गई.

विदेशी आक्रमण

आंतरिक असंतोष का लाभ उठाने का प्रयास विदेशी आक्रमणकारियों ने किया. मुग़ल साम्राज्य का सैनिक अभियान कंदहार, बल्ख, बदख्शां में असफल हो गया था. पर्याप्य धन-जन की हानि उठाने के बावजूद मुग़ल साम्राज्य में एक इंच भूमि का विस्तार नहीं हुआ. इन असफलताओं से मुगलों की सैनिक कमजोरी स्पष्ट हो गई थी. जबतक फारस गृह-युद्ध में उलझा रहा, मुग़ल साम्राज्य पर कोई विदेशी आक्रमण नहीं हुआ परन्तु 1736 ई. में गृह-युद्ध से मुक्त होने के बाद नादिरशाह ने मुग़ल साम्राज्य की आंतरिक दुर्बलता का लाभ उठाकर सैनिक अभियान की तैयारी प्रारम्भ कर दी. नादिरशाह ने 1738 ई. में भारतीय सीमा में प्रवेश किया. उस समय मुग़ल सम्राट मुहम्मदशाह पर यह आरोप लगाया गया कि उसने फारस को राजदूत के साथ दुर्व्यवहार किया है और नादिरशाह के साथ हुई प्रतिज्ञाओं की अवेहलना की है. नादिरशाह को काबुल लेकर पंजाब तक आने में कोई कठिनाई नहीं हुई. विलासी और अकर्मण्य मुहम्मदशाह की आँखें तब खुलीं जब वह पानीपत से 20 मील दूर कर्नाल में पहुँच चुका था. 1739 ई. में मुग़ल सेना को बुरी तरह पराजित कर उसने मुहम्मदशाह को बंदी बना लिया. मुहम्मदशाह को बंदी बनाकर नादिरशाह दिल्ली पहुँचा. कुछ विरोधी तत्त्वों ने नादिरशाह की मृत्यु की झूठी खबर फैलाकर कुछ फारसी सैनिकों को मार डाला. क्रोधित नादिरशाह ने दिल्ली में कत्ले आम की आज्ञा दी. नादिरशाह की क्रूरता और लूट से मुग़ल साम्राज्य की आर्थिक रीढ़ टूट गयी और काबुल, सिंध और पंजाब पर फारस वालों का अधिकार हो गया.




GkExams on 12-05-2019

औरंगजेब के बाद योग्य सम्राट न होने के कारण साम्राज्य का पतन हो गया जिसके मुख्य कारण निम्न हैं-


औरंगजेब के अयोग्य उत्तराधिकारी- औरगं जेब के उत्तराधिकारी अयोग्य थे, वे नाम मात्र के सम्राट थे । औरंगजेब के बाद उसका बेटा मुअज्जम बहादुरशाह के नाम से आगरा की गद्दी पर बैठा उसमें शासनात्मक क्षमता की कमी थी यद्यपि वह हिन्दू तथा राजपूतों के प्रति उदार था परन्तु उपर से दुर्बल तथा वुद्ध था, उसका पुत्र जहोंदारशाह भी कमजोर शासक सिद्ध हुआ । परिणामस्वरूप उसका भार्इ फर्रूखसियार उसकी हत्या कर स्वयं ही गद्दी पर बैठ गया ।

मुुगल सरदारों में पारस्परिक द्वेष भाव- सम्राट की दुबर्ल ताओं का लाभ उठाकर मुगल सरदार अनेक गुटों में विभक्त हो गये थे । नूरानी, र्इरानी, अफगानी तथा हिन्दुस्तानी सरदारों के अलग-अलग गुट थे, वे पारस्परिक द्वेष भाव से ग्रसित थे । प्रत्येक गुट अपना वर्चस्व कायम करना चाहता था, उनकी गृहबन्दी तथा खीचातानी से मुगल साम्राज्य कमजोर हो गया था ।

मनसबदारी प्रथा मे बार-बार परिवर्तन- अकबर ने मनसबदारी प्रथा लागू की तथा औरंगजेब ने मनसबदारों की संख्या दुगुनी कर दी, पर आय में किसी प्रकार की वृद्धि नहीं हुर्इ । इसके अलावा मनसबदारों के उपर पाबंदिया थी, वे भी समाप्त कर दी गर्इ । उनका निरीक्षण करना बन्द हो गया । औरंगजेब के मरते ही वे जागीरों की मांग करने लगे ताकि उसकी आय बढ़ सके। मनसबदारों की ताकत बढ़ गर्इ तथा व े सम्राट पर अपन े रिश्तदे ारों का े वजीर बनान े हेत ु दबाव डालने लगे, क्योंकि वजीर ही जागीरें बांटता था । मनसबदारी प्रथा में भ्रष्टाचार आ गया था, जिससे मुगल सेना दुर्बल हो गर्इ थी । सेना की शक्ति मुगल साम्राज्य की धुरी थी । उसकी कमजोरी से मुगल साम्राज्य हिल उठा । अयोग्य सम्राट अपने साम्राज्य की रक्षा न कर सके ।

निरंकुश शक्ति पर आधारित साम्राज्य- मुगल साम्राज्य के अधिकांश शासक निरंकुश थे । उन्होंने न तो मंत्रिमण्डल के परामर्श से काम किया, न जनता की इच्छा पूरी की। वह एकमात्र सैनिक शक्ति पर आधारित थी । सम्राट, साम्राज्य की आय का एक बड़ा भाग सेना में ही खर्च कर देते थे, इससे जन कल्याणकारी कार्यो की उपेक्षा हुर्इ । सत्ता तथा शक्ति पर आधारित राज्य कब तक चलता सैनिक शक्ति के कमजोर पड़ते ही मुगल साम्राज्य का पतन हो गया ।

मुगल सेेना का अघ: पतन- मुगल सेना दिन ब दिन अनुशासनहीन होती गर्इ बड़े-बड़े सरदार भ्रष्ट हो गये । उनमें लड़ने का उत्साह जाता रहा । सेना के प्रशिक्षण के लिए कोर्इ वैज्ञानिक व्यवस्था नहीं की गर्इ । नौ सेना के विस्तार की भी उपेक्षा की गर्इ । सैनिक साज-सामान पर जोर नहीं दिया गया । यूरोपिय देशों में जहाज बन गए थे, परन्तु भारत में उसकी नकल भी नहीं की जा सकी । सीमा सुरक्षा पर भी कोर्इ विशेष ध्यान नहीं दिया गया ।

मुहम्मदशाह की अकुुशलता- मुहम्मदशाह 30 वर्षो तक मुगल सामा्र ज्य का शासक बना रहा, परन्तु राजकीय अकुशलता के कारण वह साम्राज्य में नवीन प्राण नहीं फूंक सका वह स्वयं विलासी था तथा अच्छे वजीरों की सलाह न मानकर स्वाथ्र्ाी तथा भ्रष्ट लोगों के हाथों का खिलौना बना रहा । निजात-उल-मुल्क जो उसका वजीर था, सम्राट की गलत नीतियों से तंग आकर अपना पद छोड़ दिया तथा 1724 र्इ. में हैदराबाद चला गया । वैसे मुगल साम्राज्य ढहने वाला था परन्तु इस घटना ने उसे सदा के लिए ढहा दिया ।

शक्तिशाली सूूबेदारोें की महत्वाकांक्षा- बंगाल, हैदराबाद, अवध तथा पजं ाब प्रान्तों के सूबेदार अपने प्रदेशों को सम्राट की अधीरता से मुक्त करने का प्रयत्न करने लगे थे । अवसर पाकर ये सूबेदार स्वतंत्र शासक बन बैठे, जिससे मुगल साम्राज्य एकदम शक्तिहीन हो गया ।

साम्राज्य की विशालता- आरैगंजेब घोर साम्राज्यवादी था उसने बीजापुर तथा गोलकुण्डा तक अपने साम्राज्य को विस्तृत कर लिया था । औरंगजेब के पश्चात् उसके उत्तरा- धिकारियों के लिए इतने बड़े साम्राज्य की सुरक्षा करना असम्भव ही सिद्ध हुआ ।

मुगल सम्राटो का व्यक्तित्व व चरित्र- परिवर्ती मुगल सम्राटों से विलासप्रियता, हरम में स्त्रियों से संपर्क के प्रति उदार थे । सुन्दरी का सानिध्य पाकर प्रशासनिक कामकाज के प्रति उनका मोहभंग होने लगा जिससे स्वाभाविक रूप से अव्यवस्था प्रभावी हो गयी और प्रशासन में उदासीनता आ गर्इ तथा कमजोर हो गये ।

लोकहित का अभाव- निरंकुश अनियन्त्रित राजतंत्र के दोष मुगल साम्राज्य में आ गये शासकों ने प्रजा के बौद्धिक, भौतिक, नैतिक, सांस्कृतिक प्रगति के लिए कार्य नहीं किया । प्रशासन भ्रष्ट, चापलूस, बेर्इमान लोगों के हाथों में चला गया, व्यापार व्यवसाय, कला, संगीत, स्थापत्य को सहारा मिलना बंद हो गया जो मुगल साम्राज्यके पतन का कारण बना ।

मराठों का उत्कर्ष- दक्षिण में मराठों और मुगलों का संघर्ष बराबर चलता रहा, इसमें मराठा विजयी हुऐ और मुगल साम्राज्य पतन की ओर अग्रसर हुआ ।

    औरंगजेब की दुर्बलता

    औरंगजेब की धार्मिक नीति- औरगं जेब की धार्मिक नीति अनुदार थी । गैर मुस्लिम जनता उससे असन्तुष्ट थी । उसने मन्दिरों को तोडकर तथा मूर्तियों को अपवित्र कर हिन्दुओं की धार्मिक भावना को चोट पहुचार्इ तथा जजिया और तीर्थयात्रा जैसे अपमानजनक कर लगाये । हिन्दुओं को उसने उच्च पदों से भी वंचित कर अपमानित किया, राजपूतों से शत्रुता की । वह योग्य हिन्दू तथा राजपूतों की कार्यकुशलता का उपयोग नहीं कर सका । मुसलमानों में भी शिया और सुफी मतावलम्बी उससे नाराज थे । उनके साथ भी वह द्वेषपूर्ण नीति का पालन करता था ।

    मराठों, राजपूतोंं एवं सिक्खों के साथ दुर्व्यवहार- औरगंजेब ने मराठों को समझने में गलती की मुगल शासकों ने शिवाजी को अपमानित कर तथा शम्भाजी की हत्या कर राजनीतिक भूल की । इस गलती के कारण औरंगजेब लम्बे समय तक दक्षिण में पड़ा रहा तथा युद्ध में व्यस्त रहा । इसी तरह गुरू तेगबहादुर तथा गुरू गोविन्द सिंह के पुत्र की हत्या कर उसने वीर जाति को सदा के लिए अपना दुश्मन बना लिया । मारवाड़ तथा मेवाड़ के पीछे भी उसने अपनी शक्ति का अपव्यय किया । राजपूत की विश्वनीय शक्ति का साम्राज्य के हित में उपयोग नहीं किया जा सका ।

    औरंगजेब का शंकालु स्वभाव- औरगंजेब स्वभाव से शंकाल ु था उसने विद्राहे के डर से अपने बेटों को भरपूर सैनिक प्रशिक्षण नहीं दिया । अशक्त तथा अनुभवहीन शहजादे विशाल मुगल साम्राज्य का सही हिफाजत नहीं कर सके ।

    औरंगजेब की दक्षिण नीति- औरंगजेब ने बीजापरु तथा गोलकुण्डा के मुसलमान राज्यों को मुगल साम्राज्य में मिलाकर भयंकर गलती की । इससे मराठे सीधे मुगल साम्राज्य में घुलकर लूटपाट करने लगे, बीच में कोर्इ रूकावट ही नही रहीं । औरंगजेब की नीति के कारण उसे दक्षिण में एक लम्बे और पीड़ादायक युद्ध में फंस जाना पड़ा । इससे मुगल साम्राज्य को सैनिक प्रशासनिक और आर्थिक रूप से खोखला बना दिया। दक्षिण में औरंगजेब के पडे़ रहने से उत्तरी भारत के शासकों में गुटबन्दी आ गर्इ । तथा वे एक दूसरे के खिलाफ कार्य कर साम्राज्य की शक्ति को क्षीण करने लगे ।
      डॉं. आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव के अनुसार - ‘‘औरंगजेब की दक्षिण नीति बिल्कुल असफल रही ।’’

      आर्थिक कारण

      जनता की उपेक्षा- मुगल सम्राट निरन्तर साम्राज्य विस्तार में लगे रहे । लोगों के आवश्यकताओं पर उन्होंने कभी विचार नहीं किया, जन कल्याणकारी कार्यो की ओर उनका ध्यान ही नहीं गया । औरंगजेब ने अपने 50 वर्षो के कार्यकाल में न तो यातायात की व्यवस्था की और न शिक्षा व स्वास्थ्य की ओर ध्यान दिया । औरंगजेब ने कृषि के विकास हेतु कोर्इ भी उल्लेखनीय प्रयास नहीं किया । केवल युद्धों के नाम पर किसानों से भू-राजस्व वसूल किया । जागीरदारों की जागीरदारी भी बदली जाने लगी इससे जागीरदार कम से कम समय में अधिक से अधिक पाने का प्रयत्न करने लगे, परिणामस्वरूप वे किसानों पर जोर जुल्म करने लगे । किसानों के असन्तोष से उत्पादन कम होने लगा था । इससे राजस्व की हानि होने लगी थी ।

      कृषि की अवनति- कृषि की उन्नति की आरे मुगल साम्राज्य का बिल्कुल ध्यान नहीं गया । कृषि आय का मुख्य स्त्रोत था, फिर भी उपेक्षित रहा । कृषि की अवनति से किसान भी गरीब बने रहे । तथा बढती गरीबी से निराश होकर किसानों ने भी समय-समय पर विद्रोह किये। सतनामी, जाट, सिक्खों के विद्रोहों ने भी किसानों को नुकसान पहुंचाया । वे डाकू लुटेरों के चपेट में भी आए । कहीं-कहीं तो किसानों तथा जमीदारों ने भी डाकू तथा लुटेरों के जत्थे बना लिए थे । इस प्रकार मुगल साम्राज्य में कानून तथा व्यवस्था समाप्त हो गयी थी ।

      राजकोष का रिक्त होना- मुगल काल के सभी शासकों ने अपनी महत्वाकांक्षा की तृप्ति के लिए दीर्घकालीन खर्चीले युद्ध किये । इसके परिणामस्वरूप राजकोष रिक्त हो गया । औरंगजेब के शासन के अन्तिम वर्षो में सैनिकों को वेतन देने के लिए भी पैसा नहीं था ।




      सम्बन्धित प्रश्न

      मुगल साम्राज्य का पतन का कारण
      मुगल साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारण ?
      सैययद् बंधुओं ने मराठों के सहयोग से किस मुगल सम्राट को सत्ताच्युत कर हत्या कर दी -


      Comments Goldi pal on 29-06-2023

      Make in India karkaram aarmbh Kiya gya

      Muskan on 28-05-2023

      Mugal samrajy ke patan per historyens ke views

      Lovey tiwari on 16-01-2023

      Aurangzeb ki death ke bad badshao ki neetiyon me vyapak parivartan hue explain kijiye? 200 words me


      Ajit yadav on 01-01-2023

      Ajit yadav Aman Yadav

      ABDHESH Bhai on 19-05-2022

      Mugal samraj ka patan

      Aarti on 03-01-2022

      Ekta pranali ko explain kijiye.25 Marks ka question hai

      Aman malhotra on 08-10-2021

      मुगल साम्राज्य के पतन के कारणों पर प्रकाश डाले


      Devraj kumar on 12-03-2021

      Teepu sultan ki neetiyon pr prakas daliye? 200 word me



      Gangaram soy on 19-03-2020

      निर्मला उपन्यास में प्रेम चन्द्र ने नारी सभ्यता के बारे me सांचेप में बताइए निर्मला का चरित्र करें

      Lovey tiwari on 08-07-2020

      Teepu sultan ki neetiyon pr prakas daliye? 200 words

      Rahul Kumar on 05-08-2020

      Class 12th geography PDF

      Anshika on 17-09-2020

      1707 isvi ke pakshat Mugal Samrajya ka vighatan




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