इत्सिंग एक यात्री एवं बौद्ध भिक्षु था, जो ई. में भारत आया था। वह 675 ई में के रास्ते समुद्री मार्ग से भारत आया था और 10 वर्षों तक में रहा था। उसने वहाँ के प्रसिद्ध आचार्यों से तथा के ग्रन्थों को पढ़ा।
691 ई. में इत्सिंग ने अपना प्रसिद्ध ग्रन्थ भारत तथा मलय द्वीपपुंज
में प्रचलित बौद्ध धर्म का विवरण लिखा। उसने नालन्दा एवं विक्रमशिला
विश्वविद्यालय तथा उस समय के भारत पर प्रकाश डाला है। इस ग्रन्थ से हमें
उस काल के भारत के राजनीतिक इतिहास के बारे में तो अधिक जानकारी नहीं
मिलती, परन्तु यह ग्रन्थ बौद्ध धर्म और संस्कृत साहित्य के इतिहास का
अमूल्य स्रोत माना जाता है।
में आनेवाले तीन बड़े यात्रियों में से इत्सिंग (ईच-चिङ) सबसे बाद में आया। इसका जन्म 635 में में
के शासनकाल में हुआ। ताई पर्वत पर स्थित मंदिर में शन-यू और हुई उसी से
इसने सात वर्ष की अवस्था से ही शिक्षा प्राप्त की। शन-यू की मृत्यु के
पश्चात् सांसारिक विषयों को छोड़कर इसने
शास्त्रों का अध्ययन आरंभ किया। 14 वर्ष की आयु में इसे प्रवज्या मिल गई
और 18 वर्ष की आयु में इसने भारतयात्रा का संकल्प किया जो लगभग 20 वर्ष बाद
ही पूरा हो सका। इसने का अध्ययन की देखरेख में किया और
से संबंधित असंग के दो शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए वह पूर्व की ओर
चला। फिर पश्चिमी राजधानी सी-अन-फूयांग-आन शेन सी पहुँच उसने अभिधर्मकोश और विद्या-मात्र-सिद्धिका का गहरा अध्ययन किया। में कदाचित् के सम्मान और यश से प्रभावित होकर उसने अपनी भारतयात्रा का पूरा संकल्प किया जिसका वर्णन इसने स्वयं किया है।
इत्सिंग का कथन है कि यह 670 ई. में पश्चिमी राजधानी (यंगअन) में अध्ययन
कर व्याख्यान सुन रहा था। उस समय इसके साथ चिंग-यू निवासी धर्म का
उपाध्याय चू-इ, लै-चोऊ निवासी शास्त्र का उपध्याय हुँग-इ और दो तीन दूसरे
भदंत थे। उन सबने
जाने की इच्छा प्रकट की। त्सिन-चोऊ के शन-हिंग नामक एक युवा भिक्षु के साथ
इसने भारत के लिए प्रयाण किया। यहाँ से दक्षिण की यात्रा के लिए एक ईरानी
जहाज के स्वामी से मिलने की तिथि निश्चय की। छह मास की यात्रा के पश्चात्
यह श्रीभोज (श्रीविजय) पहुँचा। यहाँ छह मास ठहरकर शब्दविद्या सीखता रहा।
राजा ने इसे आश्रय देकर मलय देश भेज दिया। वहाँ से पूर्वी भारत के लिए जहाज
पर चला और 673 ई. के दूसरे मास में ताम्रलिप्ति पहुँचा। वहाँ से इसे
ता-तेंग-तेंग ( का शिष्य) मिला। प्राय: 26 वर्ष यह उसके पास ठहरा और सीखी तथा शब्दविद्या का अभ्यास किया। वहाँ से कई सौ व्यापारियों के साथ यह मध्यभारत के लिए चला और क्रमश: , , , , , मृगदाव ( ),
की यात्रा की। यह अपने साथ पाँच लाख श्लोंकों की पुस्तकें ले गया। लगभग 25
वर्ष (671-695) के लंबे काल में इसने 30 से अधिक देशों का पर्यटन किया और
695 में चीन वापस पहुँच गया। इसने 700 से 712 ई. के बीच 230 भागों में 56
ग्रंथों का किया जिनका मूल सर्वास्तिवादी मत संबंध है। 713 ई. में 79 वर्ष की अवस्था में इसका देहान्त हो गया।
Itsig किस के काल मे भारत आया
It Singh kiske kal me Bharat ayaa
विक्रमादित्य
Pla answers
चन्द्रगुप्त
फाहियान भारत में कब आया
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इतसिंग कोनसे काल में आया