उत्तर-- मुगलों को धूल धूसरित करने में मराठों का बहुत हाथ था। उसके पतन के बाद मराठे भारत की सबसे बड़ी शक्ति के रूप में भारतीय राजनीति में उभरे। उनसे आशा की जाती थी कि मुगल सम्राज्य के ध्वंसावेश पर वे अपने राजनीतिक प्रभुत्व की इमारत गढने में सफल होंगे ।इसके लिए उन्होंने प्रयास भी किया परंतु उनकी राजनीतिक प्रभुत्व की इमारत बनने से पहले ही लड़खड़ा कर ताश के पत्ते की भांति बिखर गई। जिस मराठा साम्राज्य को शिवाजी महाराज ने अपनी प्रतिभा और खून से सींचा था वह छिन्न-भिन्न हो कर बिखर गया।
*मराठो के पतन के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित थे---*
*1.* *मराठा राज्य का चारित्रिक दोष:* मराठों के राज्य में कतिपय चारित्रिक दुर्गुण थे, जिन्होंने इनके पतन में अहम भूमिका निभाई। उनमें जाति के आधार पर कोई संगठन नहीं बन सका। उन्होंने सामाजिक उन्नति एवं शिक्षा आदि के विकास के लिए कुछ नहीं किया।
मराठा राज्य के लोगों की एकता स्वाभाविक नहीं बल्कि कृत्रिम एवं आकस्मिक अतएव अनिश्चित थी। यह एकता शासक के असाधारण व्यक्तित्व पर निर्भर करती थी और जब देश ने अतिमानवों को जन्म देना बंद कर दिया तो यह एकता देश से लुप्त हो गई। विशाल मराठा साम्राज्य का संगठन सामंती व्यवस्था के आधार पर हुआ था। जब तक केंद्र शक्तिशाली रहा यह व्यवस्था कार्य करती रही और मराठा संगठित होते रहे । परंतु बाद में जब केंद्र शक्तिहीन हो गया तो विकेंद्रीकरण की प्रवृति जोर पकड़ने लगी।पेशवा धीरे-धीरे इस संघ का नाम मात्र का प्रधान रह गया। सभी सरदार स्वतंत्र राजाओं की तरह आचरण करने लगे। बाजीराव के मरने के बाद मराठों में संगठन एवं एकता का अभाव हो गया। व्यक्तिगत स्वार्थ,कलह,षड्यंत्र आदि के कारण मराठों का नैतिक पतन प्रारंभ हो गया।मराठों ने शिवाजी के आदर्शों को भुला दिया ।एकता एवं संगठन के अभाव में मराठा संघ का पतन अवश्यंभावी हो गया।
*2.* *राष्ट्रीयता की भावना का अभाव-:* मराठों में दिन प्रतिदिन राष्ट्रीयता की भावना का लोप होता गया। उन्होंने शिवाजी के आदर्श मराठा साम्राज्य और 'हिंदू पद पादशाही' को भुला दिया। उनके शत्रु अंग्रेजों में यह भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। कभी-कभी मराठा या उनके सरकार पैसे के लिए निजाम या अंग्रेजों की सेना में भर्ती होकर मराठों के विरुद्ध ही लड़ा करते थे। कतिपय मराठों ने देश से विश्वासघात किया और जमीन तथा पैसे के लालच में, अंग्रेजों की मुखबिरी की। इससे स्पष्ट है कि मराठों में राष्ट्र-प्रेम की भावना का अभाव था। वे धार्मिक एवं जातिगत वफादारी से कभी ऊपर नहीं उठ पाए।
*3.* *अनुशासनहीनता--:*मराठों में अनुशासनहीनता प्रवेश कर गई थी। उन्होंने सहयोग एवं संगठन की भावना को व्यक्तिगत स्वार्थ, अहंकार एवं सम्मान की बलिवेदी पर कुर्बान कर दिया। पेशवा, होल्कर, सिंधिया एवं भोंसले में इतना अधिक मतभेद था कि वे एक दूसरे की कोई बात सुनने के लिए तैयार न थे। वे नेतृत्व के लिए हमेशा आपस में लड़कर अपनी शक्ति का अपव्यय करते थे तथा अपने अहं की तुष्टि के लिए राष्ट्रद्रोह करने के लिए भी तैयार रहते थे।
*4.* *दोषपूर्ण सैन्य संगठन:* मराठों का सैनिक संगठन दोषपूर्ण था। उनके पास आधुनिक ढंग के नवीनतम हथियारों से लैस सेना का अभाव था। उनके लड़ने भिड़ने के हथियार एकदम पुराने थे। कुछ इतिहासकारों के अनुसार मराठों की पराजय का एक मुख्य कारण था। मराठा युद्ध-पद्धति में सिद्धहस्त थे। लेकिन वदली हुई परिस्थिति में गुरिल्ला नीति को जारी रखना असंभव था। उन्होंने पाश्चात्य ढंग से अपनी सेना को सुसंगठित करने का प्रयास किया। पर इसे पूरी तरह नहीं अपना सके। इस प्रकार उनका सैन्य संगठन एवं युद्ध कला ना तो पुराना रहा और ना ही आधुनिकतम बन सका।अपनी सेना को आधुनिक बनाने के चक्कर में वे पुर्तगालियों तथा फ्रांसीसी विशेषज्ञों पर निर्भर रहने लगे।जिन्होंने
आवश्यकता के सभ्य उन्हें धोखा दिया।
*5.* *भौगोलिक ज्ञान का अभाव---:* किसी भी युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए आवश्यक है--- आस-पास के क्षेत्रों का विशद भौगोलिक ज्ञान। लेकिन मराठों को अपने आस-पास के क्षेत्रों का समुचित भौगोलिक ज्ञान नहीं था। इसके अभाव में मराठे युद्ध के समय गंभीर स्थिति में फंस जाते थे। इसके विपरीत अंग्रेजों को मराठा राष्ट्र की भौगोलिक स्थिति का पूरा ज्ञान था। इसी ज्ञान के आधार पर वे अपनी रणनीति निर्धारित करते थे और मराठों को पराजित होना पड़ता था।
अंग्रेजों ने भारतीय भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करके अपनी कूटनीति के द्वारा भी मराठों को पराजित किया। मराठा- ज्ञान विज्ञान के मामले में एकदम पिछड़े थे। अतःवे अंग्रेजों के सामने नहीं टिक सके।
*6.* *दोषपूर्ण आर्थिक व्यवस्था:--* मराठों के पतन का एक महत्वपूर्ण कारण यह था कि उन्होंने अपने विशाल साम्राज्य के आर्थिक उन्नति की ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया। महाराष्ट्र की बंजर भूमि ना तो कृषि र्काय के योग्य थी और ना वहाँ वाणिज्य व्यापार ही चल सकता था।फलतः मराठों के आय के साधन सुदृढ़ एवं सुनिश्चित नहीं थे। इसका बहुत बुरा परिणाम हुआ। मराठों की कोई आर्थिक नीति नहीं थी।वे पैसे की कमी बराबर महसूस करते रहे। फलस्वरूप उन्हें आय के लिए लूट-खसोट से प्राप्त आय अर्थात 'चौथ' व 'सरदेशमुखी' पर निर्भर करना पड़ता था। परंतु इस प्रकार से प्राप्त आमदनी से किसी राष्ट्र को नहीं चलाया जा सकता है। लूट खसोट के कारण मराठों ने जनता की सहानुभूति भी खो दी। वे अपने विजित परदेशों में भी सुदृढ़ शासन एवं खेती तथा व्यापार आदि की उन्नति करने में असमर्थ रहे।अतः
एक दृढ़ आर्थिक व्यवस्था तथा अर्थनीति के अभाव में उनका पतन जरूरी हो गया।
*7.* *देशी राज्यों की शत्रुता -:::* मराठा देश की सबसे बड़ी ताकत समझे जाते थे।उनसे आशा की जाती थी की वे अपने नेतृत्व में देशी शक्तियों का संगठन कर अंग्रेजों को भारत से निकाल बाहर करेंगे। लेकिन यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध में मराठों को किसी विदेशी राज्य यहां तक कि राजपूतों का भी सहयोग या समर्थन नहीं प्राप्त हुआ। इसका कारण यह था कि मराठा आरंभ से ही राजपूतों,सिक्खों तथा अन्य मुसलमान शासकों के राज्य में लूटमार मचाते रहे थे। इस कारण आने के देशी राज्यों ने ईर्ष्यावश मराठों के विरुद्ध अंग्रेजों की सहायता की जिससे मराठों को पराजित करना आसान हो गया।
*8.* *योग्य नेतृत्व का आभाव --:* किसी भी देश या किसी आंदोलन की सफलता योग्य नेतृत्व पर निर्भर करती है। दुर्भाग्य से अपने सुयोग्य नेताओं की आकस्मिक मृत्यु से मराठे कुशल नेतृत्व से वंचित हो गए। 19वीं शताब्दी तक बाजीराव प्रथम, माधवराव प्रथम, मल्हार राव होलकर, महादजी सिंधिया और नाना फड़नवीस जैसे सुयोग्य नेता मराठों के बीच से उठ चुके थे और उनके स्थान पर बाजीराव द्वितीय जैसे स्वार्थी तथा अयोग्य नेता उनके कर्णधार बन गए थे। इस प्रकार योग्य नेताओं का भाव भी मराठों के पतन का एक प्रमुख कारण बन गया।
*9.* *अंग्रेजों की साधन- संपन्नता एवं नीति कुशलता---* मराठों की उपर्युक्त कमजोरियों के विपरीत अंग्रेज हर तरह से सक्षी थे। उनमें एकता थी, संगठन था, उच्चकोटि की सैनिक शक्ति और सबसे बढ़कर राष्ट्रीयता की भावना थी, जिसके कारण मुट्ठीभर अंग्रेजों के सामने मराठा नहीं टिक सके और अंग्रेजोआ ने उन पर अपना आधिपत्य जमा लिया ।
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