भारत में विगत दिनों में नदियों के संरक्षण अविरलता तथा उनके प्राकृतिक अधिकार व कर्तव्य से सम्बन्धित अनेक मूलभूत परिवर्तन देखे गये हैं। ये सारी बातें प्रकृति व पर्यावरण के संरक्षण संवर्धन एवं अधिकारों से भी जुड़ी हैं और इसे प्रगतिशील कानून एवं न्यायादेश के द्वारा और सुगम बनाया जा रहा है। एक विधिक इकाई के रूप में नदी के अधिकार, कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व पर विचार व विमर्श करना आज के परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक है।
नदियों को जीवित प्राणी मानने के बाद इनसे जुड़ी अनेक शंकायें उठती हैं। प्रकृति व पर्यावरण का प्रेमी होने के कारण मैं अपने कुछ अनुभवों को साझा करना अपना धर्म समझता हूं।इस स्पष्टीकरण से आम जन मानस में नदियों को सुरक्षित रखने का भाव पनपेंगा एवं उनमें जन जागरूकता पैदा हो सकेगी। सिर्फ विधिक इकाई घोषित कर देने मात्र से नदी विषयक समस्या का समाधान संभव नहीं है। इसकी निर्मलता एवं अविरलता अक्षुण्ण रखने के लिए और भी कारगर कदम उठाने होंगे।
1.अविरल निर्मल धारा का प्रवाह जारी रहे :- पहले न्यूजीलैंड की संसद ने वहां की वांगानुई नदी को अधिनियम बनाकर एक कानूनी व्यक्तित्व के रूप में मान्यता दी। इस नदी का प्रतिनिधित्व करने के लिए दो अभिभावकों की नियुक्ति का भी प्रावधान भी किया गया। फिर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने इसी राह पर चलते हुए गंगा एवं यमुना नदियों को जीवित प्राणी मानते हुए कानूनी इकाई के रूप में मान्यता देने का आदेश दिया। गंगा एवं यमुना के साथ उनकी सहायक नदियों को सुरक्षित, संरक्षित एवं संवर्धित करने के लिए तीन अभिभावकों की नियुक्ति की, जो इनका प्रतिनिधित्व करेंगे।
नमामि गंगे परियोजना के निदेशक, उत्तराखंड सरकार के मुख्य सचिव और महाधिवक्ता इन नदियों के मानवीय अभिभावकीय चेहरे होंगे जो नदियों के विधिक अधिकारों के प्रति सजग रहेंगे। अब मध्य प्रदेश विधानसभा ने नर्मदा नदी को जीवित इकाई का दर्जा देने का संकल्प लिया है। उत्तर प्रदेश दिल्ली व हरियाणा में इस प्रकार का संकल्प व विधान की आवश्यकता है।
2. अतिक्रमण की स्थिति में व्यापक निगरानी प्रणाली बनें :- नदियों को विधिक व्यक्तित्व प्राप्त होने के बाद मौजूदा हालात में कुछ बदलाव भी देखने को मिलेंगे। सबसे पहले तो अभिभावकों की जिम्मेदारी होगी कि इनके अधिकारों के अतिक्रमण की स्थिति में वे न्यायालय का दरवाजा खटखटाएं। हालांकि प्रकृति के संरक्षण एवं पर्यावरणवाद के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण आज प्रकृति संरक्षण के संबंध में जनहित याचिकाओं की न्यायालय में कोई कमी नहीं है।
अनेक गैर सरकारी संगठन एवं नागरिक समाज के लोग इस क्षेत्र में पहले से ही सक्रिय हैं। नदियों के विधिक इकाई बनाए जाने के बाद व्यावहारिक दृष्टिकोण से क्या परिवर्तन अपेक्षित है, इसमें स्पष्टता लानी होगी। जैसे कि गंगा उत्तराखंड से निकलकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल से गुजरती हुई फिर बांग्लादेश होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है। ऐसे में उत्तराखंड के मुख्य सचिव एवं महाधिवक्ता गंगा एवं यमुना नदियों को अन्य प्रदेशों में होने वाली क्षति को कैसे देख सकेंगे और क्या कार्रवाई कर पाएंगे?
अतः पूरी नदी प्रणाली को समेकित रूप से देखते हुए इसके लिए प्रावधान करने की आवश्यकता है। नदी जिस जिस प्रदेश व जिले से होकर गुजरती है वहां के अधिकारी मुख्य सचिव एवं महाधिवक्ता तथा जिलाधिकारी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाय। कर्तव्य की अवहेलना करने वाले अधिकारी को तब तक नयी तैनाती ना दिया जाय जब तक वह नदी विषयक अपने कर्तव्य का निर्वहन सम्यक रुप से ना कर लिया हो। तब तक उसे प्रतीक्षारत कर दिया जाना चाहिए और नदी विषयक दायित्व को कन्टेम्प्ट की तरह उसी अधिकारी से करया जाना चाहिए।
3. नदियों के कर्तव्य और उत्तरदायित्व संरक्षित व सुरक्षित :- कानूनी व्यक्तित्व के रूप में मान्यता के बाद नदियों के कर्तव्य और उत्तरदायित्व भी होंगे ? मान्यता है कि जब किसी गैर मनुष्य को विधिक इकाई या जीवित प्राणी की मान्यता दी जाती है तो उसे कानूनी रूप से शाश्वत अवयस्क माना जाता है। इसीलिए उसके लिए अभिभावक सुनिश्चित किए जाते हैं।
नदियों के मामले में इनके कर्तव्य या उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना अव्यवहारिक होगा। प्रतिवर्ष आने वाली प्रलयंकारी बाढ़ में करोड़ों रुपये के जान-माल का नुकसान होता है तो फिर इसकी जिम्मेदारी का प्रश्न मामले को और उलझा देता है। अतः देखा जाए तो नदियों को विधिक व्यक्तित्व का दर्जा देने का मूल मकसद इनके अधिकारों को ही सुरक्षित एवं संरक्षित करना है।
4. सहायक नदियों झीलों तालाबों पोखरों तथा खादरों को पुनर्जीवित करना :- बरसात में वृहत स्तर पर जल संचयन किया जाना चाहिए। उस समय जल की उपलब्धता रहती है। इसलिए मूल नदी से इतर हर छोटी बड़ी स्रोतों को संपुष्ट किया जाना चाहिए। इससे मूल नदी में भी पानी की कमी नहीं होने पाती और भूजल का स्तर भी गिरने से बचा रहता है। यदि बरसात पर इसे संपुष्ट ना किया गया तो वह पानी बेकार होकर समुद्र तक पहुंच जाता है और देश में पानी के संकट से निजात नहीं मिल पाती है।
एसे संचयन के अनेक स्तरीय जलाशय बनाये जाने चाहिए , जो एक एक भरकर अतिरिक्त जल दूसरे को पुष्ट करता रहता है। इस प्रकार यह क्षेत्र हरा भरा रहेगा और सूखे से निजात मिलेगी। बड़ी अधिकांश नदियां तो किसी पहाड़ से एक स्रोत के रुप में निकलती हैं। उसके आगे रास्तें में अनेक झरने स्रोत तथा सहायक नदियां मिलकर मूल नदी को पुष्ट करती हैं। इसमें तरह तरह के जल जन्तु पलते हैं जो पानी को प्राकृतिक रुप से परिशुद्ध करते रहते हैं। नमी बराबर रहने पर हरे भरे जंगल उग आते हैं और उस क्षेत्र में पर्याप्त वर्षा के कारक बनते जाते हैं।
एसा ना होने पर वह क्षेत्र अति शाीघ्र रेगिस्तान या नंगे पहाड़ में बदलने लगता है। यमुना मथुरा आगरा में विल्कुल सूख चुकी हैं। परन्तु चम्बल मिलने से आगे यह प्रयाग तक अपना अस्तित्व बचाने में सफल रह जाती है। सरस्वती नदी को यदि संपुष्टि मिली होती तो वह भौतिक रुप में आज दृश्यमान होती। इसलिए पारम्परिक स्रोतों को पुनःजीवित किया जाना नितान्त आवश्यक है। मनरेगा तथा अन्य कल्याणकारी योजनाओं को जल संचयन में उपयोग करके आम जनता तथा प्रकृति संरक्षण दोनों को लाभ पहुंचाया जा सकता है।
5. निर्मलता एवं अविरलता नदी का मूल अधिकार :- सामान्य रूप से किसी नदी के अधिकार उसकी निर्मलता एवं अविरलता ही हैं। ये दोनों चीजें आपस में स्वाभाविक रूप से जुड़ी हुई भी हैं। नदी का जीवन उसका प्रवाह होता है और उसमें बाधा उत्पन्न होने से नदी के टूटने व विलुप्त होने की संभावना बढ़ जाती है। आज सरस्वती नदी मिथकीय स्वरुप में आने का यही कारण है। अविरलता को मानवीय छेड़छाड़ के अलावा मुख्य रूप से नदियों में बनने वाले गाद की समस्या से भी जूझना पड़ता है।
आज सभी नदियां विशेषकर गंगा की धारा तीव्र गति से गाद जमा होने के कारण प्रभावित हो रही हैं। बराजों यानी बांधों के निर्माण से नदियों की सांसे ही रुक जा रही हैं। इसका स्वाभाविक प्रवाह बाधित होता है और गाद जमा होने की दर तेज गति से बढ़ जाती है। इसका ज्वलंत उदाहरण फरक्का बांध का प्रभाव है। फरक्का बांध निर्माण के बाद नदी की तलहटी में भयानक मात्रा में गाद जमा हो चुकी है।
जल ग्रहण करने की इसकी क्षमता भी क्षीण होती जा रही है। इस परिप्रेक्ष्य में नदियों की जिंदगी अविरलता है और इसे सुरक्षित करने के लिए गाद प्रबंधन आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य भी है। निर्मलता का के लिए केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों की तरफ से ऐसी योजनाएं लागू की जानी चाहिए जिसमें नदियों में कचरा, सीवेज का गंदा पानी अथवा अन्य ठोस सामग्रियां डालने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जा सके।
वहीं विभिन्न शहरों की गंदी नालियों का निकास भी इन नदियों में ही होता है। इनके लिए ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के प्रावधान किए गए हैं। इसका कड़ाई से परिपालन किया जाना चाहिए।
6. बांध एवं नदी परियोजनाएँ खत्म हो :- भारत के प्रमुख बांध एवं नदी परियोजनाएँ निम्नांकित हैं-
1.इडुक्की परियोजना- पेरियार नदी, केरल , 2. उकाई परियोजना – ताप्ती नदी, गुजरात, 3. काकड़ापारा परियोजना – ताप्ती नदी , गुजरात ,4. कोलडैम परियोजना – सतलुज नदी , हिमाचल प्रदेश, 5. गंगासागर परियोजना – चम्बल नदी , मध्य प्रदेश, 6. जवाहर सागर परियोजना – चम्बल नदी , राजस्थान ,7. जायकवाड़ी परियोजना – गोदावरी नदी, महाराष्ट्र, 8. टिहरी बाँध परियोजना , उत्तराखण्ड, 9. तिलैया परियोजना – बराकर नदी, झारखंड, 10. तुलबुल परियोजना – झेलम नदी, जम्मू और कश्मीर ,11. दुर्गापुर बैराज परियोजना – दामोदर नदी , पश्चिम बंगाल , 12. दुलहस्ती परियोजना – चिनाब नदी , जम्मू और कश्मीर ,13. नागपुर शक्ति गृह परियोजना – कोराडी नदी, महाराष्ट्र , 14.नागार्जुनसागर परियोजना – कृष्णा नदी , आन्ध्र प्रदेश ,15. नाथपा झाकरी परियोजना – सतलज नदी, हिमाचल प्रदेश ,16. पंचेत बांध – दामोदर नदी, झारखंड ,17. पोचम्पाद परियोजना – महानदी, कर्नाटक ,18. फरक्का परियोजना – गंगा नदी , पश्चिम बंगाल ,
19. बाणसागर परियोजना- सोन नदी, मध्य प्रदेश, 20. भाखड़ा नांगल परियोजना – सतलज नदी, हिमाचल प्रदेश , 21. भीमा परियोजना – पवना नदी, तेलंगाना, 22. माताटीला परियोजना – बेतवा नदी, उत्तर प्रदेश, 23. रंजीत सागर बांध परियोजना – रावी नदी, जम्मू और कश्मीर, 24. राणा प्रताप सागर परियोजना – चम्बल नदी, राजस्थान, 25. सतलज परियोजना – चिनाब नदी, जम्मू और कश्मीर, 26. सरदार सरोवर परियोजना – नर्मदा नदी, गुजरात , 27. हिडकल परियोजना – कर्नाटक, 28. हिराकुड बाँध परियोजना- महानदी ,ओडीशा आदि।
गंगा नदी पर निर्मित अनेक बाँध भारतीय जन-जीवन तथा अर्थ व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनमें प्रमुख हैं फरक्का बाँध, टिहरी बाँध, तथा भीमगोडा बाँध। फरक्का बांध (बैराज) भारत के पश्चिम बंगाल प्रान्त में स्थित गंगा नदी पर बनाया गया है। ग्रीष्म ऋतु में हुगली नदी के बहाव को निरंतर बनाये रखने के लिये गंगा नदी के जल के एक बड़े हिस्से को फरक्का बाँध के द्वारा हुगली नदी में मोड़ दिया जाता है।
गंगा पर निर्मित दूसरा प्रमुख बाँध टिहरी बाँध टिहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है जो उत्तराखंड प्रान्त के टिहरी जिले में स्थित है। यह बाँध गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई 261 मीटर है जो इसे विश्व का पाँचवाँ सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। इस बाँध से 2400 मेगावाट विद्युत उत्पादन, 270,000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर-प्रदेश एवं उत्तरांचल को उपलब्ध कराना प्रस्तावित है। तीसरा प्रमुख बाँध भीमगोडा बाँध हरिद्वार में स्थित है जिसको सन 1840 में अंग्रेजो ने गंगा नदी के पानी को विभाजित कर ऊपरी गंगा नहर में मोड़ने के लिये बनवाया था।
7. वाटर हार्वेस्टिंग पिट तैयार करवाना :- आमतौर पर वर्षा जल संचयन को लेकर सरकारी एजेंसियां गंभीर नहीं नजर आतीं। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि बड़ी मात्रा में वर्षा का जल भूमि में नहीं जा पाता, जिसके कारण भूजल स्तर उठाने में मदद नहीं मिलती और यह लगातार गिरता जा रहा है। लोगों को वर्षा जल संचयन के लिए जागरूक करने और उन्हें इसके लिए तय नियमों का पालन कराने में भी एजेंसियां उदासीन ही नजर आती हैं। सर्वविदित है कि जल स्रोत सीमित होते जा रहे हैं, जबकि मांग बढ़ती जा रही है, ऐसे में पानी के इस्तेमाल में किफायत और जल संचयन दोनों ही समय की मांग हैं। हर नगर कस्बे तथा गांव में तत्काल योजना बनाकर मानसून आने से पहले ही विभिन्न इलाकों में अत्याधुनिक तकनीक वाले वाटर हार्वेस्टिंग पिट तैयार करवा दिए जाने चाहिए।
यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इनका रखरखाव ठीक ढंग से हो। इसके लिए जो एजेंसी इसे तैयार करे उसे इसकी देखरेख का दायित्व भी सौंप दिया जाना चाहिए। इससे जहां तकनीकी रूप से दक्ष लोग इसका रखरखाव करेंगे, वहीं आगे कुछ वर्षों तक इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा। स्थानीय संस्थाओं को वर्षा जल संचयन के लिए बनाए गए नियमों का कड़ाई से पालन कराने के लिए अपने तंत्र को और मजबूत करना चाहिए। इस मामले में लापरवाही बरत रहे लोगों को दंडित किया जाना चाहिए।
सरकार और स्थानीय संस्थाओं को वर्षा जल संचयन के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए भी योजना बनानी चाहिए और उसे अमल में लाना चाहिए। वर्षा जल संचयन सभी का दायित्व है, ऐसे में सरकार और सरकारी एजेंसियों के साथ ही वहां के निवासियों को खुद भी निजी स्तर पर प्रयास करने चाहिए। सब मिलकर प्रयास करेंगे तो निश्चित ही सूरत बदलेगी।
8. प्रदूषण के लिए कानूनी दण्ड का प्राविधान :- वर्तमान में भी नदियों को प्रदूषित करने अथवा उनकी धारा को बाधित करने की स्थिति में विभिन्न अधिनियमों में दंड के प्रावधान किए गए हैं। जैसे-जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम-1974 एवं पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम-1986 में नदियों या किसी जल स्रोत को प्रदूषित करने या क्षति पहुंचाने को गैर कानूनी बताया गया है। इतना ही नहीं भारतीय दंड संहिता की धारा-430 एवं 432 में भी जल स्रोतों को हानि पहुंचाने के लिए दंडात्मक प्रावधान किए गए हैं।
इन अधिनियमों एवं दंड विधान के तहत ही अभी तक नदियों या जल स्रोतों को सुरक्षित एवं संरक्षित करने के प्रयास किए जाते रहे हैं। इन नियमों का कड़ाई से पालन कराया जाय तथा किसी भी दशा में नदी या जल से सम्बन्धित अपराध को हल्के में ना लिया जाय। सजा के तौर पर किसी न्यायिक संरक्षक के अधीन अपराधी को नदी विषयक कार्यो में लगाया जाय।
9. नदियों को जोड़ने की इंटरलिंकिंग परियोजना :- हमारी नदियों का काफी पानी समुद्र में चला जाता है और उसे यदि रोक लिया गया तो पानी की प्रचुरता वाली नदियों से पानी की कमी वाले क्षेत्रों में पानी पहुंचाया जा सकेगा, जिससे देश के हरेक भाग में हर किसी को समुचित जलापूर्ति हो पाएगी। नहरों, तालाबों, कुओं और नलकूपों से एकत्र पानी का महज पांच प्रतिशत हिस्सा ही घरेलू उपयोग में लाया जाता है। नदियों को जोड़ने की परियोजना 158 साल पहले 1858 में आर्थर थॉमस कार्टन ने रखा था।
इसके बाद, सन 1972 में डॉ. के. एल. राव ने गंगा और कावेरी नदी को जोड़ने का सुझाव दिया। साल 1982 में नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) का गठन हुआ। जिसने नदी जोड़ योजना के प्रस्ताव में नौकायन और सिंचाई इत्यादि घटकों को सम्मिलित कर पुनः प्रस्ताव तैयार किया। 1990 के दशक में सरकार ने नदियों को आपस में जोड़ने की संभाव्यता के साथ-साथ जल संसाधन विकास की रणनीति की जांच के निमित्त एक आयोग का गठन किया। अक्टूबर 2002 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार ने सूखे व बाढ़ की समस्या से छुटकारे के लिए भारत की महत्वपूर्ण नदियों को जोड़ने संबंधी परियोजना को लागू करने का प्रस्ताव लाई थी जो पूरी नहीं हो सकी। दमन गंगा पिंजाल लिंक नहर के साथ ही ताप्ती नर्मदा लिंक नहर पर भी काम को आगे बढाया गया है।
इसके साथ ही पंचेश्वर सारदा लिंक नहर पर भी काम किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब अटल वाजपेयी सरकार के दौरान शुरु किए नदी जोड़ो परियोजना के देशव्यापी सपने को पूरा करने का काम शुरु कर दिये है। नर्मदा नदी पर एक भव्य कार्यक्रम का उद्घाटन भी किया है। केन-बेतवा लिंक परियोजना, दमनगंगा-पिंजल लिंक परियोजना और पार-तापी-नर्मदा लिंक परियोजना से संबंधित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार कर ली गई है। केन-बेतवा लिंक परियोजना के प्रथम चरण से जुड़ी विभिन्न मंजूरियां प्रोसेसिंग के अगले चरण में पहुंच गई हैं।
सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के अनुसार यह काम विशेषज्ञों का है, साथ ही यह परियोजना राष्ट्र हित में है, क्योंकि इससे सूखा प्रभावित लोगों को पानी मिलेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने प्रमुख नदियों को जोड़ने की योजना तैयार कर उसे क्रियान्वित करने का केन्द्र को निर्देश दे डाला है। इसके परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री ने न्यायालय के निर्देश के अनुपालन के केन्द्र सरकार के फैसले की घोषणा करते हुए इस योजना का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए एक कार्यबल की नियुक्ति की है।
10. यमुना में ऑक्सीजन नहीं रहा :- यमुना जल में ऑक्सीजन नहीं रहा। यूपीपीसीबी ने मार्च 2017 में बैक्टीरिया के अलावा यमुना जल में मौजूद घुलनशील ऑक्सीजन (डीओ) और बॉयोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का परीक्षण किया। कैलाश घाट आगरा पर यमुना में बीओडी 7.1 पीपीएम मिली।
ताजमहल आगरा के पास बीओडी 4.1 पीपीएम रही। बीओडी 4 पीपीएम से कम होने पर मछलियां मरने लगती हैं। इस बैक्टीरिया का ट्रीटमेंट मुमकिन नहीं है। जीवनी मंडी प्लांट से शहर में प्रतिदिन 150 एमएलडी (15 करोड़ लीटर) पानी की सप्लाई होता है। बैक्टीरिया के ट्रीटमेंट के लिए जलकल विभाग क्लोरीन मिलाता है। परंतु इतनी अधिक संख्या में मौजूद खतरनाक बैक्टीरिया का ट्रीटमेंट बिना विधि के संभव नही। सिकंदरा पर 148 करोड़ रुपये की लागत से एमबीबीआर (मूविंग बैड बायॉलॉजिकलरिएक्टर) स्थापित किया गया।
यमुना जल में मौजूद बैक्टीरिया को ये प्लांट बॉयोलोजिकल रिएक्टर की मदद से नष्ट कर देता है। जीवनी मंडी जल संस्थान में इस तरह के ट्रीटमेंट की कोई व्यवस्था नहीं है।इस पानी से लाखों लोगों पर असाध्य रोगों को खतरा मंडरा रहा है। बैक्टीरिया युक्त पानी से तरह-तरह के सक्रमण हो सकते हैं। ये पानी शरीर के जिस हिस्से में जाएगा, उसे संक्रमित कर देगा।
इसके प्रभाव से एंटी बायोटिक भी रोग से लड़ने में काम नहीं करतीं। बैक्टीरिया का मानक 500 से 5000 है । बैक्टीरिया संख्या- 47,000 से 1,40000 एमपीएन 100 एमएल है। यमुना में 250 से अधिक नाले गिरते हैं ।नालों का यमुना में डिस्चार्ज 600 क्यूसेक है ।शहरों का सीवर खुले नालों में बहता है इसे सामान्य अनुपात में लाने के लिए यमुना को 2000 क्यूसेक पानी रोज चाहिए ।
11.यमुना एक गंदे नाले में तब्दील हो गई हैः- यह विडंबना है देश की पवित्र नदियों में शामिल यमुना दिल्ली में एक गंदे नाले में तब्दील हो गई है। घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट को लेकर गिरने वाले बाइस नालों के अलावा यमुना को गंदा और प्रदूषित करने में धार्मिक आस्था भी कम दोषी नहीं हैं। दुर्गा गणेश व लक्ष्मी पूजा महोत्सव के बाद दुर्गा गणेश व लक्ष्मी प्रतिमाएं एवं निष्प्रयोज्य पूजन सामग्री को यमुना नदी में विसर्जित किए जाने की परंपरा इस नदी की अपवित्रता को बढ़ाने का ही काम कर रही है।
एक अध्ययन के मुताबिक, यमुना नदी में 7.15 करोड़ गैलन गंदा पानी रोज प्रवाहित होता है, किंतु पानी का अधिकांश भाग परिशोधित नहीं हो पाता। यदि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट पर यकीन करें तो आज यमुना का पानी स्नान करने योग्य भी नहीं रहा है। पीना और आचमन करना तो बहुत दूर की बात है।
12.आगरा मथुरा में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की सख्त आवश्यकता:-यमुना में नालों को गिरने से रोकने के लिए नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की सरकारी योजनायें घोषित हुई हैं। यमुना शुद्धीकरण के अभियान को आगे बढ़ाते हुए केंद्र की अमृत योजना के तहत आगरा शहर के 61 नालों को टेप किये जाने की बातें प्रकाश में आई हैं। आगरा शहर में कुल 90 नाले हैं। इनमें अब तक केवल 29 नाले ही टेप हो पाए हैं। बाकी नालों को टेप करने के लिए यमुना एक्शन प्लान के अंतर्गत वृहद योजना बनाई गई है। योजना के अंतर्गत शहर के 61 नालों के पानी को यमुना में गिरने से रोकने को चार बड़े सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और छह छोटे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनानें को सुना जा रहा है।
एसटीपी निर्माण के लिए केंद्र की अमृत योजना से एक तिहाई बजट मिलने की बात सामने आई है। 30 प्रतिशत राशि नगर निकाय से बाकी राज्य सरकार से प्राप्त होने की बात प्रकाश में आई है।
13.वर्तमान समय की बदहाली:- स्वच्छ भारत-सुन्दर भारत अभियान का प्रचलन प्राचीनकाल से ही रहा है। हमारे ऋषि, मुनि, सन्त व कवियों ने अपने साहित्य,संगीत तथा शिल्प में इसके स्वरुपों को भव्य रुप में उकेरा है। आधुनिक काल में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्वच्छता के प्रमुख हिमायती रहे। आगरा में ग्रीन आगरा व क्लीन आगरा का नारा दशकों से लोग सुनते व पढ़ते आ रहे हैं।
इसके बावजूद हम वह गुणवत्ता नहीं हासिल कर पाये हैं जो इस हेरिटेज सिटी को मिलनी चाहिए। देश में अनेक नगरों को हेरिटेज सिटी का दर्जा मिला परन्तु आवश्यक संसाधनों तथा प्रशासन की निष्क्रियता के कारण आगरा इसे प्राप्त ना कर सका। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन की केन्द्रीय सरकार ने स्वच्छता के लिए निरन्तर अभियान चला रखा है। सभी सार्वजनिक व एतिहासिक स्थलों पर स्वच्छता के अनेक प्रयास भी किये गये। इसके बावजूद ना तो आगरा ग्रीन हो पाया और ना क्लीन हो पाया है। आगरा और यमुना दोनों में प्रदूषण निरन्तर बढ़ ही रहा है। यमुना एक सूखी नदी और गन्दे नाले का रुप धारण कर चुकी है। इसके घाटों की बदहाली भी किसी से छिपी नहीं है।
सरकार के प्रयास नाकामी के जिम्मेदार हैं। यहां के निवासी भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। सीवर के गन्दे नाले विना परिशोधन के सीधे यमुना में डाले जा रहे हैं। यमुना तटों पर बेतरतीब झाड़ियां हमारी कमी दर्शा रही हैं। नदी में पुष्प, पत्ते व मूर्तियों का विसर्जन इसे और गन्दा कर रहा हैं। इसे शुद्ध और वैज्ञानिक बनाने के लिए बड़े स्तर पर बड़ा प्रयास करने की आवश्यकता है।
14. अंधाधुंध पेड़ों का कटान रोकना तथा सघन वृक्षारोपण :- आगरा व मथुरा में बन विभाग तथा प्राकृतिक संरचनाओं की बेहद कमी देखी जा रही है। पेड़ों की कमी के कारण यहां अपेक्षाकृत वर्षा कम होती है । जब पूरे देश व प्रदेश में वर्षा हो जाती है तब इस क्षेत्र में आती है। तब तक मानसून का दबाव कम हो जाता है या फिर आगे हिमालय की तरफ बढ़ जाता है। सीेेंमेंट व कंकरीट के भवन बनते जा रहे हैं और शुद्ध व प्राकृतिक हवा इस क्षेत्र में सुलभ नहीं हो पाती है।
15. नदी क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त रखा जाय :- शहरी करण के दबाव के कारण तथा स्थानीय स्वशासन की मिली भगत से इस भूभाग के नदी तटीय क्षेत्र में धड़ल्ले से नयी नयी कालोनियां बन जा रही हैं। इनके सीवर की निकासी हरियाली तथा अन्य आवश्यक जरुरतों पर भी ध्यान नहीं दिया जाता है। एन जी टी तथा ताज ट्रिपेजियम जैसे अनेक दिशा निर्देश जारी होने के बावजूद यह क्षेत्र अतिक्रमण से मुक्त नहीं हो सका है।
16. जल मित्र या नदी सहायक नियुक्ति कर जन सहभागिता बढ़ाना :- आज अनेक क्षेत्रों में मित्रों को जिम्मेदारी देकर सरकारी काम भी करवाया जाता है और जनता की भागीदारी भी करायी जाती है। जल मित्र या जल सहायक का मानद पद देकर जनता के सहयोग से सरकार अच्छा प्रतिफल प्राप्त कर सकता है।
17. शिकार को प्रतिवंधित :- जलचरों के शिकार को प्रतिवंधित किया जाय तथा प्रजनन समय में विशेष रुप से इसकी कड़ी निगरानी किया जाय। जल सहायक जल मित्र तथा रीवर पुलिस इस काम को सहयोग दे सकती है। नदी विषयक नियमों की निगरानी क्षेत्रीय पुलिस तथा उसके द्वारा गठित विशेष रीवर पुलिस को सौपा जा सकता है।
18. महोत्सवों का आयोजन :- नदियों व परम्परागत स्थलों पर महोत्सवों का आयोजन करके जन जागरुकता फैलायी जा सकती है। उस स्थान के मंदिर विद्यालय तथा संस्थाओं से मदद ली जा सकती है। क्षेत्र के जन प्रतिनिधि तथा संभ्रान्त जनों का इस काम में उपयोग लिया जा सकता है। प्रतीक स्वरुप सामूहिक आरती, हवन तथा चुनरी महोत्सव आदि कार्यक्रम को भी अपनाया जा सकता है।
ऐसे ना जाने कितने प्रयास करके हम जल की शुद्धता के लिए प्रयास कर सकते हैं। इसमें जितनी ज्यादा लोगों की सह भागिता होगी उतनी ही ज्यादा यह योजना कारगर सिद्ध हो सकती है। यदि लोग इसे पुण्य तथा धर्म संस्कृति के अंग के रुप में अपनायेगें और इसमें कुछ ना कुछ अपना अंशदान भी करेंगे तो यह ज्यादा प्रभावी हो सकता है। इस प्रयास में सहयोग ना करने वाले को सामाजिक वहिष्कार तथा निन्दा प्रस्ताव लाकर इस तरफ आकृष्ट किया जा सकता है।
भारत में विगत दिनों में नदियों के संरक्षण अविरलता तथा उनके प्राकृतिक अधिकार व कर्तव्य से सम्बन्धित अनेक मूलभूत परिवर्तन देखे गये हैं। ये सारी बातें प्रकृति व पर्यावरण के संरक्षण संवर्धन एवं अधिकारों से भी जुड़ी हैं और इसे प्रगतिशील कानून एवं न्यायादेश के द्वारा और सुगम बनाया जा रहा है। एक विधिक इकाई के रूप में नदी के अधिकार, कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व पर विचार व विमर्श करना आज के परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक है।
नदियों को जीवित प्राणी मानने के बाद इनसे जुड़ी अनेक शंकायें उठती हैं। प्रकृति व पर्यावरण का प्रेमी होने के कारण मैं अपने कुछ अनुभवों को साझा करना अपना धर्म समझता हूं।इस स्पष्टीकरण से आम जन मानस में नदियों को सुरक्षित रखने का भाव पनपेंगा एवं उनमें जन जागरूकता पैदा हो सकेगी। सिर्फ विधिक इकाई घोषित कर देने मात्र से नदी विषयक समस्या का समाधान संभव नहीं है। इसकी निर्मलता एवं अविरलता अक्षुण्ण रखने के लिए और भी कारगर कदम उठाने होंगे।
1.अविरल निर्मल धारा का प्रवाह जारी रहे :- पहले न्यूजीलैंड की संसद ने वहां की वांगानुई नदी को अधिनियम बनाकर एक कानूनी व्यक्तित्व के रूप में मान्यता दी। इस नदी का प्रतिनिधित्व करने के लिए दो अभिभावकों की नियुक्ति का भी प्रावधान भी किया गया। फिर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने इसी राह पर चलते हुए गंगा एवं यमुना नदियों को जीवित प्राणी मानते हुए कानूनी इकाई के रूप में मान्यता देने का आदेश दिया। गंगा एवं यमुना के साथ उनकी सहायक नदियों को सुरक्षित, संरक्षित एवं संवर्धित करने के लिए तीन अभिभावकों की नियुक्ति की, जो इनका प्रतिनिधित्व करेंगे।
नमामि गंगे परियोजना के निदेशक, उत्तराखंड सरकार के मुख्य सचिव और महाधिवक्ता इन नदियों के मानवीय अभिभावकीय चेहरे होंगे जो नदियों के विधिक अधिकारों के प्रति सजग रहेंगे। अब मध्य प्रदेश विधानसभा ने नर्मदा नदी को जीवित इकाई का दर्जा देने का संकल्प लिया है। उत्तर प्रदेश दिल्ली व हरियाणा में इस प्रकार का संकल्प व विधान की आवश्यकता है।
2. अतिक्रमण की स्थिति में व्यापक निगरानी प्रणाली बनें :- नदियों को विधिक व्यक्तित्व प्राप्त होने के बाद मौजूदा हालात में कुछ बदलाव भी देखने को मिलेंगे। सबसे पहले तो अभिभावकों की जिम्मेदारी होगी कि इनके अधिकारों के अतिक्रमण की स्थिति में वे न्यायालय का दरवाजा खटखटाएं। हालांकि प्रकृति के संरक्षण एवं पर्यावरणवाद के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण आज प्रकृति संरक्षण के संबंध में जनहित याचिकाओं की न्यायालय में कोई कमी नहीं है।
अनेक गैर सरकारी संगठन एवं नागरिक समाज के लोग इस क्षेत्र में पहले से ही सक्रिय हैं। नदियों के विधिक इकाई बनाए जाने के बाद व्यावहारिक दृष्टिकोण से क्या परिवर्तन अपेक्षित है, इसमें स्पष्टता लानी होगी। जैसे कि गंगा उत्तराखंड से निकलकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल से गुजरती हुई फिर बांग्लादेश होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है। ऐसे में उत्तराखंड के मुख्य सचिव एवं महाधिवक्ता गंगा एवं यमुना नदियों को अन्य प्रदेशों में होने वाली क्षति को कैसे देख सकेंगे और क्या कार्रवाई कर पाएंगे?
अतः पूरी नदी प्रणाली को समेकित रूप से देखते हुए इसके लिए प्रावधान करने की आवश्यकता है। नदी जिस जिस प्रदेश व जिले से होकर गुजरती है वहां के अधिकारी मुख्य सचिव एवं महाधिवक्ता तथा जिलाधिकारी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाय। कर्तव्य की अवहेलना करने वाले अधिकारी को तब तक नयी तैनाती ना दिया जाय जब तक वह नदी विषयक अपने कर्तव्य का निर्वहन सम्यक रुप से ना कर लिया हो। तब तक उसे प्रतीक्षारत कर दिया जाना चाहिए और नदी विषयक दायित्व को कन्टेम्प्ट की तरह उसी अधिकारी से करया जाना चाहिए।
3. नदियों के कर्तव्य और उत्तरदायित्व संरक्षित व सुरक्षित :- कानूनी व्यक्तित्व के रूप में मान्यता के बाद नदियों के कर्तव्य और उत्तरदायित्व भी होंगे ? मान्यता है कि जब किसी गैर मनुष्य को विधिक इकाई या जीवित प्राणी की मान्यता दी जाती है तो उसे कानूनी रूप से शाश्वत अवयस्क माना जाता है। इसीलिए उसके लिए अभिभावक सुनिश्चित किए जाते हैं।
नदियों के मामले में इनके कर्तव्य या उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना अव्यवहारिक होगा। प्रतिवर्ष आने वाली प्रलयंकारी बाढ़ में करोड़ों रुपये के जान-माल का नुकसान होता है तो फिर इसकी जिम्मेदारी का प्रश्न मामले को और उलझा देता है। अतः देखा जाए तो नदियों को विधिक व्यक्तित्व का दर्जा देने का मूल मकसद इनके अधिकारों को ही सुरक्षित एवं संरक्षित करना है।
4. सहायक नदियों झीलों तालाबों पोखरों तथा खादरों को पुनर्जीवित करना :- बरसात में वृहत स्तर पर जल संचयन किया जाना चाहिए। उस समय जल की उपलब्धता रहती है। इसलिए मूल नदी से इतर हर छोटी बड़ी स्रोतों को संपुष्ट किया जाना चाहिए। इससे मूल नदी में भी पानी की कमी नहीं होने पाती और भूजल का स्तर भी गिरने से बचा रहता है। यदि बरसात पर इसे संपुष्ट ना किया गया तो वह पानी बेकार होकर समुद्र तक पहुंच जाता है और देश में पानी के संकट से निजात नहीं मिल पाती है।
एसे संचयन के अनेक स्तरीय जलाशय बनाये जाने चाहिए , जो एक एक भरकर अतिरिक्त जल दूसरे को पुष्ट करता रहता है। इस प्रकार यह क्षेत्र हरा भरा रहेगा और सूखे से निजात मिलेगी। बड़ी अधिकांश नदियां तो किसी पहाड़ से एक स्रोत के रुप में निकलती हैं। उसके आगे रास्तें में अनेक झरने स्रोत तथा सहायक नदियां मिलकर मूल नदी को पुष्ट करती हैं। इसमें तरह तरह के जल जन्तु पलते हैं जो पानी को प्राकृतिक रुप से परिशुद्ध करते रहते हैं। नमी बराबर रहने पर हरे भरे जंगल उग आते हैं और उस क्षेत्र में पर्याप्त वर्षा के कारक बनते जाते हैं।
एसा ना होने पर वह क्षेत्र अति शाीघ्र रेगिस्तान या नंगे पहाड़ में बदलने लगता है। यमुना मथुरा आगरा में विल्कुल सूख चुकी हैं। परन्तु चम्बल मिलने से आगे यह प्रयाग तक अपना अस्तित्व बचाने में सफल रह जाती है। सरस्वती नदी को यदि संपुष्टि मिली होती तो वह भौतिक रुप में आज दृश्यमान होती। इसलिए पारम्परिक स्रोतों को पुनःजीवित किया जाना नितान्त आवश्यक है। मनरेगा तथा अन्य कल्याणकारी योजनाओं को जल संचयन में उपयोग करके आम जनता तथा प्रकृति संरक्षण दोनों को लाभ पहुंचाया जा सकता है।
5. निर्मलता एवं अविरलता नदी का मूल अधिकार :- सामान्य रूप से किसी नदी के अधिकार उसकी निर्मलता एवं अविरलता ही हैं। ये दोनों चीजें आपस में स्वाभाविक रूप से जुड़ी हुई भी हैं। नदी का जीवन उसका प्रवाह होता है और उसमें बाधा उत्पन्न होने से नदी के टूटने व विलुप्त होने की संभावना बढ़ जाती है। आज सरस्वती नदी मिथकीय स्वरुप में आने का यही कारण है। अविरलता को मानवीय छेड़छाड़ के अलावा मुख्य रूप से नदियों में बनने वाले गाद की समस्या से भी जूझना पड़ता है।
आज सभी नदियां विशेषकर गंगा की धारा तीव्र गति से गाद जमा होने के कारण प्रभावित हो रही हैं। बराजों यानी बांधों के निर्माण से नदियों की सांसे ही रुक जा रही हैं। इसका स्वाभाविक प्रवाह बाधित होता है और गाद जमा होने की दर तेज गति से बढ़ जाती है। इसका ज्वलंत उदाहरण फरक्का बांध का प्रभाव है। फरक्का बांध निर्माण के बाद नदी की तलहटी में भयानक मात्रा में गाद जमा हो चुकी है।
जल ग्रहण करने की इसकी क्षमता भी क्षीण होती जा रही है। इस परिप्रेक्ष्य में नदियों की जिंदगी अविरलता है और इसे सुरक्षित करने के लिए गाद प्रबंधन आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य भी है। निर्मलता का के लिए केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों की तरफ से ऐसी योजनाएं लागू की जानी चाहिए जिसमें नदियों में कचरा, सीवेज का गंदा पानी अथवा अन्य ठोस सामग्रियां डालने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जा सके।
वहीं विभिन्न शहरों की गंदी नालियों का निकास भी इन नदियों में ही होता है। इनके लिए ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के प्रावधान किए गए हैं। इसका कड़ाई से परिपालन किया जाना चाहिए।
6. बांध एवं नदी परियोजनाएँ खत्म हो :- भारत के प्रमुख बांध एवं नदी परियोजनाएँ निम्नांकित हैं-
1.इडुक्की परियोजना- पेरियार नदी, केरल , 2. उकाई परियोजना – ताप्ती नदी, गुजरात, 3. काकड़ापारा परियोजना – ताप्ती नदी , गुजरात ,4. कोलडैम परियोजना – सतलुज नदी , हिमाचल प्रदेश, 5. गंगासागर परियोजना – चम्बल नदी , मध्य प्रदेश, 6. जवाहर सागर परियोजना – चम्बल नदी , राजस्थान ,7. जायकवाड़ी परियोजना – गोदावरी नदी, महाराष्ट्र, 8. टिहरी बाँध परियोजना , उत्तराखण्ड, 9. तिलैया परियोजना – बराकर नदी, झारखंड, 10. तुलबुल परियोजना – झेलम नदी, जम्मू और कश्मीर ,11. दुर्गापुर बैराज परियोजना – दामोदर नदी , पश्चिम बंगाल , 12. दुलहस्ती परियोजना – चिनाब नदी , जम्मू और कश्मीर ,13. नागपुर शक्ति गृह परियोजना – कोराडी नदी, महाराष्ट्र , 14.नागार्जुनसागर परियोजना – कृष्णा नदी , आन्ध्र प्रदेश ,15. नाथपा झाकरी परियोजना – सतलज नदी, हिमाचल प्रदेश ,16. पंचेत बांध – दामोदर नदी, झारखंड ,17. पोचम्पाद परियोजना – महानदी, कर्नाटक ,18. फरक्का परियोजना – गंगा नदी , पश्चिम बंगाल ,
19. बाणसागर परियोजना- सोन नदी, मध्य प्रदेश, 20. भाखड़ा नांगल परियोजना – सतलज नदी, हिमाचल प्रदेश , 21. भीमा परियोजना – पवना नदी, तेलंगाना, 22. माताटीला परियोजना – बेतवा नदी, उत्तर प्रदेश, 23. रंजीत सागर बांध परियोजना – रावी नदी, जम्मू और कश्मीर, 24. राणा प्रताप सागर परियोजना – चम्बल नदी, राजस्थान, 25. सतलज परियोजना – चिनाब नदी, जम्मू और कश्मीर, 26. सरदार सरोवर परियोजना – नर्मदा नदी, गुजरात , 27. हिडकल परियोजना – कर्नाटक, 28. हिराकुड बाँध परियोजना- महानदी ,ओडीशा आदि।
गंगा नदी पर निर्मित अनेक बाँध भारतीय जन-जीवन तथा अर्थ व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनमें प्रमुख हैं फरक्का बाँध, टिहरी बाँध, तथा भीमगोडा बाँध। फरक्का बांध (बैराज) भारत के पश्चिम बंगाल प्रान्त में स्थित गंगा नदी पर बनाया गया है। ग्रीष्म ऋतु में हुगली नदी के बहाव को निरंतर बनाये रखने के लिये गंगा नदी के जल के एक बड़े हिस्से को फरक्का बाँध के द्वारा हुगली नदी में मोड़ दिया जाता है।
गंगा पर निर्मित दूसरा प्रमुख बाँध टिहरी बाँध टिहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है जो उत्तराखंड प्रान्त के टिहरी जिले में स्थित है। यह बाँध गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई 261 मीटर है जो इसे विश्व का पाँचवाँ सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। इस बाँध से 2400 मेगावाट विद्युत उत्पादन, 270,000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर-प्रदेश एवं उत्तरांचल को उपलब्ध कराना प्रस्तावित है। तीसरा प्रमुख बाँध भीमगोडा बाँध हरिद्वार में स्थित है जिसको सन 1840 में अंग्रेजो ने गंगा नदी के पानी को विभाजित कर ऊपरी गंगा नहर में मोड़ने के लिये बनवाया था।
7. वाटर हार्वेस्टिंग पिट तैयार करवाना :- आमतौर पर वर्षा जल संचयन को लेकर सरकारी एजेंसियां गंभीर नहीं नजर आतीं। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि बड़ी मात्रा में वर्षा का जल भूमि में नहीं जा पाता, जिसके कारण भूजल स्तर उठाने में मदद नहीं मिलती और यह लगातार गिरता जा रहा है। लोगों को वर्षा जल संचयन के लिए जागरूक करने और उन्हें इसके लिए तय नियमों का पालन कराने में भी एजेंसियां उदासीन ही नजर आती हैं। सर्वविदित है कि जल स्रोत सीमित होते जा रहे हैं, जबकि मांग बढ़ती जा रही है, ऐसे में पानी के इस्तेमाल में किफायत और जल संचयन दोनों ही समय की मांग हैं। हर नगर कस्बे तथा गांव में तत्काल योजना बनाकर मानसून आने से पहले ही विभिन्न इलाकों में अत्याधुनिक तकनीक वाले वाटर हार्वेस्टिंग पिट तैयार करवा दिए जाने चाहिए।
यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इनका रखरखाव ठीक ढंग से हो। इसके लिए जो एजेंसी इसे तैयार करे उसे इसकी देखरेख का दायित्व भी सौंप दिया जाना चाहिए। इससे जहां तकनीकी रूप से दक्ष लोग इसका रखरखाव करेंगे, वहीं आगे कुछ वर्षों तक इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा। स्थानीय संस्थाओं को वर्षा जल संचयन के लिए बनाए गए नियमों का कड़ाई से पालन कराने के लिए अपने तंत्र को और मजबूत करना चाहिए। इस मामले में लापरवाही बरत रहे लोगों को दंडित किया जाना चाहिए।
सरकार और स्थानीय संस्थाओं को वर्षा जल संचयन के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए भी योजना बनानी चाहिए और उसे अमल में लाना चाहिए। वर्षा जल संचयन सभी का दायित्व है, ऐसे में सरकार और सरकारी एजेंसियों के साथ ही वहां के निवासियों को खुद भी निजी स्तर पर प्रयास करने चाहिए। सब मिलकर प्रयास करेंगे तो निश्चित ही सूरत बदलेगी।
8. प्रदूषण के लिए कानूनी दण्ड का प्राविधान :- वर्तमान में भी नदियों को प्रदूषित करने अथवा उनकी धारा को बाधित करने की स्थिति में विभिन्न अधिनियमों में दंड के प्रावधान किए गए हैं। जैसे-जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम-1974 एवं पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम-1986 में नदियों या किसी जल स्रोत को प्रदूषित करने या क्षति पहुंचाने को गैर कानूनी बताया गया है। इतना ही नहीं भारतीय दंड संहिता की धारा-430 एवं 432 में भी जल स्रोतों को हानि पहुंचाने के लिए दंडात्मक प्रावधान किए गए हैं।
इन अधिनियमों एवं दंड विधान के तहत ही अभी तक नदियों या जल स्रोतों को सुरक्षित एवं संरक्षित करने के प्रयास किए जाते रहे हैं। इन नियमों का कड़ाई से पालन कराया जाय तथा किसी भी दशा में नदी या जल से सम्बन्धित अपराध को हल्के में ना लिया जाय। सजा के तौर पर किसी न्यायिक संरक्षक के अधीन अपराधी को नदी विषयक कार्यो में लगाया जाय।
9. नदियों को जोड़ने की इंटरलिंकिंग परियोजना :- हमारी नदियों का काफी पानी समुद्र में चला जाता है और उसे यदि रोक लिया गया तो पानी की प्रचुरता वाली नदियों से पानी की कमी वाले क्षेत्रों में पानी पहुंचाया जा सकेगा, जिससे देश के हरेक भाग में हर किसी को समुचित जलापूर्ति हो पाएगी। नहरों, तालाबों, कुओं और नलकूपों से एकत्र पानी का महज पांच प्रतिशत हिस्सा ही घरेलू उपयोग में लाया जाता है। नदियों को जोड़ने की परियोजना 158 साल पहले 1858 में आर्थर थॉमस कार्टन ने रखा था।
इसके बाद, सन 1972 में डॉ. के. एल. राव ने गंगा और कावेरी नदी को जोड़ने का सुझाव दिया। साल 1982 में नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) का गठन हुआ। जिसने नदी जोड़ योजना के प्रस्ताव में नौकायन और सिंचाई इत्यादि घटकों को सम्मिलित कर पुनः प्रस्ताव तैयार किया। 1990 के दशक में सरकार ने नदियों को आपस में जोड़ने की संभाव्यता के साथ-साथ जल संसाधन विकास की रणनीति की जांच के निमित्त एक आयोग का गठन किया। अक्टूबर 2002 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार ने सूखे व बाढ़ की समस्या से छुटकारे के लिए भारत की महत्वपूर्ण नदियों को जोड़ने संबंधी परियोजना को लागू करने का प्रस्ताव लाई थी जो पूरी नहीं हो सकी। दमन गंगा पिंजाल लिंक नहर के साथ ही ताप्ती नर्मदा लिंक नहर पर भी काम को आगे बढाया गया है।
इसके साथ ही पंचेश्वर सारदा लिंक नहर पर भी काम किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब अटल वाजपेयी सरकार के दौरान शुरु किए नदी जोड़ो परियोजना के देशव्यापी सपने को पूरा करने का काम शुरु कर दिये है। नर्मदा नदी पर एक भव्य कार्यक्रम का उद्घाटन भी किया है। केन-बेतवा लिंक परियोजना, दमनगंगा-पिंजल लिंक परियोजना और पार-तापी-नर्मदा लिंक परियोजना से संबंधित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार कर ली गई है। केन-बेतवा लिंक परियोजना के प्रथम चरण से जुड़ी विभिन्न मंजूरियां प्रोसेसिंग के अगले चरण में पहुंच गई हैं।
सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के अनुसार यह काम विशेषज्ञों का है, साथ ही यह परियोजना राष्ट्र हित में है, क्योंकि इससे सूखा प्रभावित लोगों को पानी मिलेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने प्रमुख नदियों को जोड़ने की योजना तैयार कर उसे क्रियान्वित करने का केन्द्र को निर्देश दे डाला है। इसके परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री ने न्यायालय के निर्देश के अनुपालन के केन्द्र सरकार के फैसले की घोषणा करते हुए इस योजना का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए एक कार्यबल की नियुक्ति की है।
10. यमुना में ऑक्सीजन नहीं रहा :- यमुना जल में ऑक्सीजन नहीं रहा। यूपीपीसीबी ने मार्च 2017 में बैक्टीरिया के अलावा यमुना जल में मौजूद घुलनशील ऑक्सीजन (डीओ) और बॉयोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का परीक्षण किया। कैलाश घाट आगरा पर यमुना में बीओडी 7.1 पीपीएम मिली।
ताजमहल आगरा के पास बीओडी 4.1 पीपीएम रही। बीओडी 4 पीपीएम से कम होने पर मछलियां मरने लगती हैं। इस बैक्टीरिया का ट्रीटमेंट मुमकिन नहीं है। जीवनी मंडी प्लांट से शहर में प्रतिदिन 150 एमएलडी (15 करोड़ लीटर) पानी की सप्लाई होता है। बैक्टीरिया के ट्रीटमेंट के लिए जलकल विभाग क्लोरीन मिलाता है। परंतु इतनी अधिक संख्या में मौजूद खतरनाक बैक्टीरिया का ट्रीटमेंट बिना विधि के संभव नही। सिकंदरा पर 148 करोड़ रुपये की लागत से एमबीबीआर (मूविंग बैड बायॉलॉजिकलरिएक्टर) स्थापित किया गया।
यमुना जल में मौजूद बैक्टीरिया को ये प्लांट बॉयोलोजिकल रिएक्टर की मदद से नष्ट कर देता है। जीवनी मंडी जल संस्थान में इस तरह के ट्रीटमेंट की कोई व्यवस्था नहीं है।इस पानी से लाखों लोगों पर असाध्य रोगों को खतरा मंडरा रहा है। बैक्टीरिया युक्त पानी से तरह-तरह के सक्रमण हो सकते हैं। ये पानी शरीर के जिस हिस्से में जाएगा, उसे संक्रमित कर देगा।
इसके प्रभाव से एंटी बायोटिक भी रोग से लड़ने में काम नहीं करतीं। बैक्टीरिया का मानक 500 से 5000 है । बैक्टीरिया संख्या- 47,000 से 1,40000 एमपीएन 100 एमएल है। यमुना में 250 से अधिक नाले गिरते हैं ।नालों का यमुना में डिस्चार्ज 600 क्यूसेक है ।शहरों का सीवर खुले नालों में बहता है इसे सामान्य अनुपात में लाने के लिए यमुना को 2000 क्यूसेक पानी रोज चाहिए ।
11.यमुना एक गंदे नाले में तब्दील हो गई हैः- यह विडंबना है देश की पवित्र नदियों में शामिल यमुना दिल्ली में एक गंदे नाले में तब्दील हो गई है। घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट को लेकर गिरने वाले बाइस नालों के अलावा यमुना को गंदा और प्रदूषित करने में धार्मिक आस्था भी कम दोषी नहीं हैं। दुर्गा गणेश व लक्ष्मी पूजा महोत्सव के बाद दुर्गा गणेश व लक्ष्मी प्रतिमाएं एवं निष्प्रयोज्य पूजन सामग्री को यमुना नदी में विसर्जित किए जाने की परंपरा इस नदी की अपवित्रता को बढ़ाने का ही काम कर रही है।
एक अध्ययन के मुताबिक, यमुना नदी में 7.15 करोड़ गैलन गंदा पानी रोज प्रवाहित होता है, किंतु पानी का अधिकांश भाग परिशोधित नहीं हो पाता। यदि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट पर यकीन करें तो आज यमुना का पानी स्नान करने योग्य भी नहीं रहा है। पीना और आचमन करना तो बहुत दूर की बात है।
12.आगरा मथुरा में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की सख्त आवश्यकता:-यमुना में नालों को गिरने से रोकने के लिए नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की सरकारी योजनायें घोषित हुई हैं। यमुना शुद्धीकरण के अभियान को आगे बढ़ाते हुए केंद्र की अमृत योजना के तहत आगरा शहर के 61 नालों को टेप किये जाने की बातें प्रकाश में आई हैं। आगरा शहर में कुल 90 नाले हैं। इनमें अब तक केवल 29 नाले ही टेप हो पाए हैं। बाकी नालों को टेप करने के लिए यमुना एक्शन प्लान के अंतर्गत वृहद योजना बनाई गई है। योजना के अंतर्गत शहर के 61 नालों के पानी को यमुना में गिरने से रोकने को चार बड़े सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और छह छोटे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनानें को सुना जा रहा है।
एसटीपी निर्माण के लिए केंद्र की अमृत योजना से एक तिहाई बजट मिलने की बात सामने आई है। 30 प्रतिशत राशि नगर निकाय से बाकी राज्य सरकार से प्राप्त होने की बात प्रकाश में आई है।
13.वर्तमान समय की बदहाली:- स्वच्छ भारत-सुन्दर भारत अभियान का प्रचलन प्राचीनकाल से ही रहा है। हमारे ऋषि, मुनि, सन्त व कवियों ने अपने साहित्य,संगीत तथा शिल्प में इसके स्वरुपों को भव्य रुप में उकेरा है। आधुनिक काल में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्वच्छता के प्रमुख हिमायती रहे। आगरा में ग्रीन आगरा व क्लीन आगरा का नारा दशकों से लोग सुनते व पढ़ते आ रहे हैं।
इसके बावजूद हम वह गुणवत्ता नहीं हासिल कर पाये हैं जो इस हेरिटेज सिटी को मिलनी चाहिए। देश में अनेक नगरों को हेरिटेज सिटी का दर्जा मिला परन्तु आवश्यक संसाधनों तथा प्रशासन की निष्क्रियता के कारण आगरा इसे प्राप्त ना कर सका। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन की केन्द्रीय सरकार ने स्वच्छता के लिए निरन्तर अभियान चला रखा है। सभी सार्वजनिक व एतिहासिक स्थलों पर स्वच्छता के अनेक प्रयास भी किये गये। इसके बावजूद ना तो आगरा ग्रीन हो पाया और ना क्लीन हो पाया है। आगरा और यमुना दोनों में प्रदूषण निरन्तर बढ़ ही रहा है। यमुना एक सूखी नदी और गन्दे नाले का रुप धारण कर चुकी है। इसके घाटों की बदहाली भी किसी से छिपी नहीं है।
सरकार के प्रयास नाकामी के जिम्मेदार हैं। यहां के निवासी भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। सीवर के गन्दे नाले विना परिशोधन के सीधे यमुना में डाले जा रहे हैं। यमुना तटों पर बेतरतीब झाड़ियां हमारी कमी दर्शा रही हैं। नदी में पुष्प, प
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