एक बार अर्जुन को अपने कृष्ण के सर्वश्रेस्ठ भक्त होने का घमंड हो गया था और वह सोचता है कि कृष्ण ने मेरा रथ चलाया ,सारथी बना | और मेरा हर कदम में मेरा साथ दिया है| इसलिए मै कृष्ण का एक मात्र परम भक्त हु |पर भगवान कृष्ण को तो आप जानते हो वह अपने भक्त का अभिमान (घमंड ) दूर करने और सही रास्ते में लाने के लिए क्या-क्या लीला करते है और उसकी अभिमान का मर्दन करते है और सही रास्ते में लाते है | और अपने सच्चे भक्त का मान बढ़ा देता है |
bhand deval
एक दिन कृष्ण और अर्जुन साधू का वेश धारण करके और अपने साथ एक शेर को ले जाकर राजा मोरजध्वज के राजमहल के द्वार में आते है| जब राजा को ये बात पता चलती है कि उसके द्वार पर दो साधू आये है जो राजा उसके सम्मान में दौड़ कर जाते है | क्युकी राजा परम दानी था और विष्णु भक्त था राजा अपने द्वार पर आये अतिथि को खाली हात नही लौटते थे ) तब राजा ने अतिथि का सम्मान किया और और आग्रह किया कि आप मेरे महल में चलो और भोजन करने का आग्रह करता है|
तब साधू बोलते है कि हमारी कुछ सर्ते है यदि तुम उन सर्तो को मानते हो तो हम तुम्हारे यहाँ जरुर भोजन करेंगे | राजा ने उस साधू कि सभी सर्तो को मान लिया | तब साधू बोला कि हम तो ब्राम्हण है| हमें कुछ भी खिला दो मगर ये जो शेर है वह नर भक्षी है | यदि तुम अपने पुत्र को आरी से काटकर शेर को खिलावोगे तो तभी हम तुम्हारे यहाँ भोजन करेंगे | कृष्ण कि यह बात सुनकर राजा और अर्जुन के होष उड़ जाते है | फिर भी राजा अपना आतिथ्य धर्म नहीं तोड़ना चाहता था तब उसने भगवान से कहा कि प्रभु मुझे मंजूर है पर एक ब़ार मै अपनी पत्नी से से पूछलू तब भगवान से आज्ञा पाकर राजा उदास चेहरा लिये रानी के पास जाते है रानी उदास चेहरा देख कर पुछता है कि क्या बात है स्वामी क्या हुवा है आपकी ये दसा कैसे बना लिया है तब राजा सभी बात को रानी को बताते है रानी कि आखो से अश्रु कि धार फुट पड़ती है परन्तु रानी एक पति व्रता नारी थी वह राजा कि इस दशा को देख नही सकती है |और कहती है कि स्वामी कोई बात नही है आप अपना वचन निभावो आप कि आन पे तो हमारे लाखो पुत्र कुर्बान आप जाके साधू को अन्दर ले आएये ( राजा मन ही मन सोचता है कि ऐसी पत्नी धन्य है जो पति कि मान कि खातिर अपने प्यारे पुत्र को हस्ते हस्ते बलि दे दे)
तभी अर्जुन के मन में ये बात चल रही है कि प्रभु ने ऐशा क्यों किया | तब प्रभु से बोला कि प्रभु ये आप क्या कर रहे है आप ने राजा से ये क्या माग लिया तब कृष्ण बोला अभी तुम शांत रहो और बस देखते जावो
तब राजा तीनो को अन्दर ले जाते है और और भोजन कि तैयारी में जुट जाते है भगवान को 56 भोग दिया गया मगर अर्जुन से भोजन गले से नहीं उतर रहा था तब शेर को खिलाने के लिए राजा अपने पुत्र को लाता है राजा का पुत्र 6 वर्ष का था और वह अपने माता पिता का परम भक्त था उसने भी हसते हसते अपने प्राण दे दिए एक उफ़ तक नहीं बोला ( ऐसे पुत्र पाकर माता पिता धन्य हो गए और पूरी दुनिया के लिए मिशाल कायम किया ) तब राजा ने अपने हातो से उसपर आरी चला कर उसको फाड़ा ( उसके बिच से दो टुकड़े किये ) और शेर को परोसा गया तब भगवान ने भोजन ग्रहण किया तब रानी ने अपने पुत्र के दो हिस्से देखा तो वो रो पड़ी तब भगवान ने इस बात पर गुस्सा कर गए कि लड़के का एक फड़ कैसे बच गया (जबकि राजा ने दोनों हिस्से शेर को दिये थे ) भगवान रुष्ट होकर जाने लगते है | तब राजा रानी ने उसके चरण पकड़ लिये ... अब अर्जुन का घमंड चूर चूर हो चूका था अब अर्जुन भगवान के चरणों में गिर गए और बिलक –बिलक कर रोने लगे और बोला आपने मेरा घमंड तोड़ने के लिए उसके पुत्र को उसी के हाथो मरवा दिया और अब आप रुष्ट हो कर जा रहे हो प्रभु ये कहा का न्याय है |प्रभु आप मुझे क्षमा करने कि कृपा करे प्रभु आप तो करुना निधाण है| और अपने परम भक्त मोरजध्वज का कल्याण करो और उसका दुःख दूर करो पुरे दरबार ने यह घटना देखि पुरे दरबार में सन्नाटा छाया हुवा था | तब भगवान कृष्ण अर्जुन का घमंड टुटा जानकर शान्त हो जाते है| तब भगवान ने रानी से बोला कि अपने पुत्र को आवाज दो ... रानी ने सोचा कि मेरा पुत्र तो मर गया है | अब इसका क्या मतलब .फिर भी साधू कि आज्ञा मानकर अपने पुत्र रतन कंवर को आवाज देती है| तबी उसी समय यह चमत्कार हुवा उसका पुत्र जीवित हो जाता है और हस्ते हस्ते अपने माँ के आचल में लिपट जाता है
तभी उसी समय भगवान राजा – रानी से प्रसन्न होकर अपना वास्तविक चतुर्भुज रूप में प्रगट हो जाते है| दरबार में भगवान कृष्ण कि जय -जय कार से महल गुज उठता है |और देव लोक से सभी देव राजा मोरजध्वज कि नगरी में आते है और उनकी भक्ति का गुणगान करती है और उसको आशीर्वाद देती है| राजा मोरजध्वज भगवान के दर्शन पाकर अपनी भक्ति सार्थक जानकर मोरजध्वज कि आखे भर जाती है | तब भगवान ने वरदान मागने को कहा | तब राजा - रानी ने वरदान मागा और बोला कि प्रभु आप कभी भी इतनी कठोर परीक्षा अपने भक्तो कि ना ले जिस तरह आपने हमारी ली | बस यही वरदान दो कि हम सदा ही आपकी भक्ति में लीन रहे भगवान ने ऐशा वरदान सुनकर प्रसन्न हुवा और उसको सदा सदा के लिए अपना परम भक्त होने का वरदान देते है | 1
Raja modak ka bete ka nam
/ raja mordhwj ki patni or bete ka kya name tha
Raja mordhwjke bete ka kya nam tha
Morajdhvaj ka patni ka Nam vinadharni tha।
राजा मोरध्वज का पत्नी का नाम विनाधरनी था
Name of raja moredjwajs wife
Raja mordhwaj Ki Rani ka kya naam tha
राजा मोरध्वज की पत्नी का क्या नाम है
मोरध्वज की पत्नी का क्या नाम था
राजा मोरधवज की पत्नी का नाम बताओ
Mard ki patni ka kya naam tha
राजा मोरध्वज की पत्नी का क्या नाम था तथा वे कौन से गांव व देश मे रहते थे
Raja mordwaj ki patni ka kya naam tha?
राजा मोरध्वज की पत्नी का नाम
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Mordhwj raja ke patni ka kya nam tha.
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Raja dheer dwaj ki ptni Ka naam