त्तीसगढ़ की राजधानी से करीब 30 किलोमीटर दूर रायपुर-कोलकाता हाईवे पर एक कस्बा है- आरंग। कहा जाता है कि यह कभी राजा मोरध्वज की राजधानी थी और इसकी पहचान एक समृद्ध नगर के रूप में थी। मोरध्वज की कहानी पुराणों में मिलती है जिसे कृष्ण ने आदेश दिया था कि वह अपने बेटे ताम्रध्वज को आरी से चीरकर उसका मांस शेर के सामने पेश करे। आरे से चीरने की कहानी के कारण ही इस नगर का नाम ‘आरंग’ पड़ा।
आरंग में में मौजूद आर्कियोलोजिकल एविडेंस इस बात की गवाही देते हैं कि यह कभी व्यवस्थित नगर रहा होगा। हालांकि, महाभारत काल (कृष्ण काल) का कोई सबूत नहीं मिलता। शायद इसलिए कि अब तक उसके पांच हजार साल से ज्यादा बीत चुके हैं।
जैन मंदिर में इरॉटिक मूर्तियां
आरंग मंदिरों की नगरी है। इनमें 11वीं-12वीं सदी में बना भांडदेवल मंदिर प्रमुख है। यह एक जैन मंदिर है जिसके बाहरी हिस्सों में बनी इरॉटिक मूर्तियां खजुराहो की याद दिलाती हैं। इसके गर्भगृह में काले ग्रेनाइट से बनी जैन तीर्थंकरों की तीन मूर्तियां हैं। महामाया मंदिर में 24 तीर्थकरों की मूर्तियां देखने लायक हैं। यहां के बाग देवल, पंचमुखी हनुमान तथा दंतेश्वरी मंदिर भी प्रसिद्ध हैं। महानदी के किनारे स्थित इस ऐतिहासिक शहर में जल के कटाव से आर्कियोलोजिकल मटेरियल मिलते रहते हैं।
सुवर्ण नदी से मिले ताम्रपत्र से पता चलता है कि छठी-सातवीं सदी में यहां राजर्षि तुल्यकुल वंश का शासन था। वंश के अंतिम शासन भीमसेन ने यह ताम्रपत्र जारी किया था। इतिहासकारों का मत है कि इस वंश के राजा गुप्त ताम्रपत्र में गुप्त सम्राट के अधीन रहे होंगे।
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद कृष्ण अपने भक्त मोरध्वज की परीक्षा लेना चाहते थे। उन्होंने अर्जुन से शर्त लगाई थी कि उनका उससे भी बड़ा कोई भक्त है। कृष्ण ऋषि का वेश बना अर्जुन को साथ लेकर मोरध्वज के पास पहुंचे और कहा, ‘मेरा शेर भूखा है और वह मनुष्य का ही मांस खाता है।’ राजा अपना मांस देने को तैयार हो गए तो कृष्ण ने दूसरी शर्त रखी कि किसी बच्चे का मांस चाहिए। राजा ने तुरंत अपने बेटे का मांस देने की पेशकश की। कृष्ण ने कहा, ‘आप दोनों पति-पत्नी अपने पुत्र का सिर काटकर मांस खिलाओ, मगर इस बीच आपकी आंखों में आंसू नहीं दिखना चाहिए।’ राजा और रानी ने अपने बेटे का सिर काटकर शेर के आगे डाल दिया। तब कृष्ण ने राजा मोरध्वज को आशीर्वाद दिया जिससे उसका बेटा फिर से जिंदा हो गया।
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