त्था, खैर के वृक्ष की लकड़ी से निकाला जाता है। इसका पेड़ बहुत बड़ा होता है और लगभग पूरे भारत में से पाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के खैर शहर मे इसकी अधिक मात्रा पाये जाने के कारण इसका नाम खैर पड़ा। यह भारत के बाहर भी चीन, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, म्यांमार आदि एशियाई देशों में पाया जाता है। इसे अंग्रेजी में black catechu या black cutch कहते हैं।
खैर बबूल की प्रजाति का ही पेड़ है। इसकी टहनियां पतली व सीकों के जुड़ी होती हैं, जिसमें छोटे-छोटे पत्ते लगते हैं। कत्थे की टहनियां कांटेदार होती हैं। इसके फूल छोटे व सफेद या हल्के पीले रंग के होते हैं। पेड़ की छाल आधे से पौन इंच मोटी होती है और यह बाहर से काली भूरी रंग की और अंदर से भूरी रंग की होती है। जब इसके पेड़ के तने लगभग एक फुट मोटे हो जाते हैं तब इसे काटकर छोटे-छोटे टुकडे़ बनाकर गर्म पानी में पकाया जाता है। गाढा होने के बाद इसे चौकोर बर्तन में सुखाया जाता है और वहीं इसे काटकर चौकोर टुकड़ों में काट लिया जाता है। इसे कत्था कहते हैं। पान की दुकान वाले इसे किसी बर्तन में रखकर पानी के साथ मिलाते हैं और फिर पान के पत्तियों पर लगा कर परोसते हैं।
कत्थे का अन्य भाषाओं में नाम
हिंदी-कत्था
संस्कृत -खदिर
अंग्रेजी-कच ट्री( cutch tree )
लैटिन -एकेषिया कटेचु।(Acacia catechu)
कत्था बनाने का काम कुछ संगठित कारखानों में भी किया जाता है। ये कारखाने अधिकतर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में स्थित हैं।
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कत्थे का उपयोग पारम्परिक चिकित्सा मे बतौर औषधि होता है।
मलेरिया : मलेरिया बुखार होने पर कत्था एक बेहतर औषधि के रूप में काम करता है। समय-समय पर इसकी समान मात्रा को गोली बनाकर चूसने से मलेरिया से बचाव किया जा सकता है।
दांतों की बीमारी : कत्थे को मंजन में मिलाकर दांतों व मसूढ़ों पर रोज सुबह-शाम मलने से दांत के सभी रोग दूर होते हैं।
दांतों के कीड़े : कत्थे को सरसों के तेल में घोल कर रोजाना 3 से 4 बार मसूढ़ों पर मलें। इससे खून तथा बदबू आना बंद हो जायेगा।
खट्टी डकार : कत्था का सुबह शाम सेवन करने से खट्टी डकार बंद हो जाती है।
दस्त : कत्थे को पका कर प्रयोग करने से दस्त बंद हो जाता है। साथ ही इसके प्रयोग से पाचन शक्ति भी ठीक होती है।
बवासीर : सफेद कत्था, बड़ी सुपारी और नीलाथोथा बराबर मात्रा में लें। पहले सुपारी व नीलाथोथा को आग पर भून लें और फिर इस में कत्थे को मिला कर पीस कर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को मक्खन में मिला कर पेस्ट बनाएं। इस पेस्ट को रोज सुबह-शाम शौच के बाद 8 से 10 दिन तक मस्सों पर लगाने से मस्से सूख जाते हैं।
गले की खराश : कत्थे का चूर्ण मुंह में रख कर चूसने से गला बैठना, आवाज रुकना, गले की खराश और छाले आदि दूर हो जाते हैं। इसका दिन में 5 से 6 बार प्रयोग करना चाहिए।
कान दर्द : सफेद कत्थे को पीस कर गुनगुने पानी में मिला कर कानों में डालने से कान दर्द दूर होता है।
कुष्ठ रोग : कत्थे के काढ़े को पानी में मिलाकर प्रति दिन नहाने से कुष्ठ रोग ठीक होता है।
की जलन और खुजली : 5 ग्राम की मात्रा में कत्था, विण्डग और हल्दी लेकर पानी के साथ पीस कर पर लगाएं। इससे खुजली और जलन दोनों ठीक हो जाएगी।
खांसी : अगर आप लगातार खांसी से परेशान हैं, तो कत्थे को हल्दी और मिश्री के साथ एक-एक ग्राम की मात्रा में मिलाकर गोलियां बना लें। अब इन गोलियों को चूसते रहें। इस प्रयोग को करने से खांसी दूर हो जाती है।
घाव : किस प्रकार की चोट लगने पर घाव हो जाए, तो उसमें कत्थे को बारीक पीसकर इस चूर्ण को डाल दें। लगातार ऐसा करने पर घाव जल्दी भर जाता है और खून का निकलन भी बंद हो जाता।
प्रदर रोग : कत्थे और बांस के पत्तों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और इसमें 6 ग्राम शहद की मात्रा लेकर पेस्ट बनाकर खाएं। इस प्रयोग को करने से लाभ मिलता है।
दमा रोग : सांस संबंधी समस्याओं के लिए भी कत्था बहुत अच्छी औषधि है। इसे हल्दी और शहद के साथ मिलाकर दिन में दो से चार बार एक चम्मच की मात्रा में लेने से काफी लाभ होता है।
पान का कत्था कैसे बनता है ओर क्या साम्रगी मिलाने से पेस्ट तैयार होता है।
कथा बनाने की विधि
कात कसा बनवायचा व त्यात काय काय टाकावे
Banane ka tarika
मेरी पान कि दुकान है मुझे कत्था बनाने का तरीका बताये
Pal Mein Katta kaise banaye kyu Lal ho jaye aur swadish Ho Jaye
कत्था बनाने मे क्या डाला । हमने बनाया लेकिन कठ्ण नही हो रहा है
मेरी पान कि दुकान है मुझे कत्था बनाने का तरीका बताये
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