Notice: Constant SITE_PATH already defined in /home/gkexams/public_html/ask/question.php on line 3
अश्वमेध यज्ञ का अर्थ - Ashwamedh Yagya Ka Arth -33016 Join Telegram

Ashwamedh Yagya Ka Arth अश्वमेध यज्ञ का अर्थ

अश्वमेध यज्ञ का अर्थ




Notice: Undefined variable: clen in /home/gkexams/public_html/ask/comment_list.php on line 22
GkExams on 11-02-2019

अश्वमेध भारतवर्ष का प्राचीनकालीन एक प्रख्यात यज्ञ का नाम है । 'सार्वभौम राजा' अर्थात् एक चक्रवर्ती नरेश ही अश्वमेध यज्ञ करने का अधिकारी माना जाता था, परंतु ऐतरेय ब्राह्मण (8 पंचिका) के अनुसार इस को संपन्न करने के लिए अन्य महत्वशाली राजन्यों को भी अधिकार था। आश्वलायन श्रौत सूत्र (10। 6। 1) का कथन है कि जो सब पदार्थो को प्राप्त करना चाहता है, सब विजयों का इच्छुक होता है और समस्त समृद्धि पाने की कामना करता है वह इस यज्ञ का अधिकारी है। इसलिए सार्वीभौम के अतिरिक्त भी मूर्धाभिषिक्त राजा अश्वमेध कर सकता था (आप.श्रौत. 20। 1। 1।; लाट्यायन 9। 10। 17)। यह अति प्राचीन यज्ञ प्रतीत होता है क्योंकि ऋग्वेद के दो सूक्तों में (1। 162; 1। 163) अश्वमेधीय अश्व तथा उसके हवन का विशेष विवरण दिया गया है। शतपथ (13। 1-5) तथा तैतिरीय ब्राह्मणों (3। 8-9) में इसका बड़ा ही विशद वर्णन उपलब्ध है जिसका अनुसरण श्रौत सूत्रों, वाल्मीकीय रामायण (1। 13), महाभारत के आश्वमेधिक पर्व में तथा जैमिनीय अश्वमेध में किया गया है।



अश्वमेध का आरंभ फाल्गुन शुक्ल अष्टमी या नवमी से अथवा ज्येष्ठ (या आषाढ़) मास की शुक्लाष्टमी से किया जाता था। आपस्तंब ने चैत्र पूर्णिमा इसके लिए उचित तिथि मानी है। मूर्धाभिषिक्त राजा यजमान के रूप में मंडप में प्रवेश करता था और उसके पीछे उसकी चारों पत्नियाँ सुसज्जित वेश में गले में सुनहला निष्क पहन कर अनेक दासियों तथा राजपुत्रियों के साथ आती थीं। इनके पदनाम थे: (क) महिषी (राजा के साथ अभिषिक्त पटरानी), (ख) वावाता (राजा की प्रियतमा), (ग) परिवृक्त्री (परित्यक्ता भार्या) तथा (घ) पालागली (हीन जाति की रानी)। अश्वमेध के लिए बड़ा ही सुडौल, सुदंर तथा दर्शनीय घोड़ा चुना जाता था। उसके शरीर पर श्याम रंग की आभा होती थी। तालाब जल में उसे विधिवत् स्नान कराकर इस पावन कर्म के लिए अभिषिक्त किया जाता था। तब वह सौ राजकुमारों के संरक्षण में वर्ष भर स्वच्छंद घूमने के लिए छोड़ दिया जाता था। अश्व की अनुपस्थिति में तीन इष्टियाँ प्रतिदिन सवितृदेव के निमित दी जाती थीं और ब्राह्मण तथा क्षत्रिय जाति के वीणावादक स्वरचित पद्य प्रति दिन राजा की स्तुति में वीणा बजा कर गाते थे। प्रतिदिन पारिप्लव (विशिष्ट आख्यान) का पारायण किया जाता था। एक साल तक निविघ्न घूमने के बाद जब घोड़ा सकुशल लौट आता था तब राजा दीक्षा ग्रहण करता था। अवश्मेध तीन सुत्या दिवसों का अहीन याग था (?) । "सुत्या" से अभिप्राय सोमलता को कूटकर सोमरस चुलाने से था (सवन, अभिषव)। इसमें बारह दीक्षाएँ, बारह उपसद और तीन सुत्याएँ होती थीं। 21 अरत्नि ऊँचे 21 यूप प्रस्तुत किए जाते थे।


दूसरा सुत्यादिवस प्रधान और विशेष महत्वशाली होता था। उस दिन अश्वमेधीय अश्व को अन्य तीन घोड़ों के साथ रथ में जोत कर तालाब में स्नान कराया जाता था। ब्रह्मोद्य से तात्पर्य गूढ़ पहेलियों का पूछना और बूझना होता है। तब राजा व्याघ्रचर्म या सिंहचर्म पर बैठता था। तीसरे दिन उपांग याग होते थे और ऋत्विजों को भूरि दक्षिणा दी जाती थी। होता, ब्रह्मा, अध्वर्यु तथा उद्गाता को पूरब, दक्षिण, पश्चिम तथा उत्तर दिशाओं में विजित देशों की संपति क्रमश: दक्षिणा में दी जाती थी और अश्वमेध इस विधि से संपन्न माना जाता था।

महत्व

अश्वमेध एक प्रतीकात्मक 'योग' है जिसके प्रत्येक अंश का गूढ़ रहस्य है। ऐतरेय ब्राह्मण में अश्वमेधयागी प्राचीन चक्रवर्ती नरेशों का बड़ा ही महत्वशाली ऐतिहासिक निर्देश है। ऐतिहासिक काल में भी ब्राह्मण राजाओं ने या वैदिकधर्मानुयायी राजाओं ने अश्वमेध का विधान बड़े ही उत्साह के साथ किया। राजा दशरथ तथा युधिष्ठिर के अश्वमेध प्राचीन काल में संपन्न हुए कहे जाते हैं। द्वितीय शती ई.पू. में ब्राह्मण पुनर्जागृति के समय शंगुवंशी ब्राह्मणनरेश पुष्ययमित्र ने दो बार अश्वमेध किया था, जिसमें महाभाष्यकर पतंजलि स्वयं उपस्थित थे (इह पुष्यमित्रं याजयाम:)। गुप्त सम्राट् समुद्रगुप्त ने भी चौथी सदी ई. में अश्वमेध किया था जिसका परिचय उनकी अश्वमेधीय मुद्राओं से मिलता है। दक्षिण के चालुक्य और यादव नरेशों ने भी यह परंपरा जारी रखी। इस परंपरा के पोषक सबसे अंतिम राजा जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह प्रतीत होते हैं, जिनके द्वारा किये अश्वमेध यज्ञ का वर्णन श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि ने "ईश्वरविलास महाकाव्य" में तथा महानंद पाठक ने अपनी "अश्वमेधपद्धति" में (जो किसी राजेंद्र वर्मा की आज्ञा से संकलित अपने विषय की अत्यंत विस्तृत पुस्तक है) में किया है। युधिष्ठिर के अश्वमेध का विस्तृत रोचक वर्णन "जैमिनि अश्वमेध" में मिलता है।



Comments


Fatal error: Uncaught mysqli_sql_exception: You have an error in your SQL syntax; check the manual that corresponds to your MySQL server version for the right syntax to use near '-7' at line 1 in /home/gkexams/public_html/ask/comment_list.php:111 Stack trace: #0 /home/gkexams/public_html/ask/comment_list.php(111): mysqli_query(Object(mysqli), 'SELECT cid, com...') #1 /home/gkexams/public_html/ask/forum.php(59): include('/home/gkexams/p...') #2 /home/gkexams/public_html/ask/question.php(165): include('/home/gkexams/p...') #3 {main} thrown in /home/gkexams/public_html/ask/comment_list.php on line 111