Lavanniya Mrida Ka Sudhar Kiya Jaa Sakta Hai लवणीय मृदा का सुधार किया जा सकता है

लवणीय मृदा का सुधार किया जा सकता है



GkExams on 28-11-2022


समस्याग्रस्त मिट्टी (Problems of Soil) के बारें में : इसे सरल भाषा में समझे तो इस प्रकार की भूमियों में सोडियम लवणों की अधिकता व जलभराव होने से बोई गई फसलों की वृद्धि सामान्य रूप से नहीं हो पाती है। भूमि की भौतिक व रासायनिक दशा खराब होने के कारण उपजाऊ व उर्वराशक्ति का ह्रास हो जाता है।

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वैसे आपको बता दे की इस तरह की भूमि का निर्माण प्रायः शुष्क, अर्द्ध-शुष्क व अपर्याप्त जल निकास वाले क्षेत्रों में होता है। हमारे देश में प्राय: निम्नलिखित प्रकार की समस्याग्रस्त भूमियां पाई जाती है, जिनका सुधार करके हम उनमें फसल उत्पादन कर सकते है, एवं उन्हें खेती योग्य बना सकत है। ओर खेती कर सकते है...


  • अम्लीय भूमि
  • लवणीय भूमि
  • क्षारीय भूमि
  • जलाक्रान्त भूमि
  • शुष्क भूमि



  • उपरोक्त प्रकार के क्षेत्रों में मिश्रित खेती की काफी प्रबल सम्भावनाएँ हैं। इन क्षेत्रों में समय पर बुवाई अवश्य की जानी चाहिए। अधिक अन्तरण रखते हुए पंक्तियों में बुवाई करनी चाहिए। शुष्क क्षेत्रों में संतुलित मात्रा में उर्वरकों के प्रयोग, खरपतवार नियन्त्रण तथा कीड़ों व बीमारियों की रोकथाम करके भी फसलों के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।


    लवणीय एवं क्षारीय भूमि (importance of soil) विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा,पंजाब तथा राजस्थान इत्यादि राज्यों की प्रमुख समस्या है। तेज रफ्तार से होते नगरीकरण,औद्योगिकीकरण व आधुनिकीकरण की वजह से कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है। निकट भविष्य में कृषि योग्य भूमि के बढ़ने की संभावना लगभग नगण्य है।


    अगर आप भी लवणीय मृदा में सुधार करना चाहते है तो भूमि का समतलीकरण व उचित जलनिकास की व्‍यवस्‍था करें। अच्‍छी गुणवत्‍ता वाले पानी से निछालन द्वारा जड़ क्षेत्र से नमक को बहाने की व्‍यवस्‍था करें। यह सब करने से उपलब्‍धता के अनुसार अच्‍छी गुणवत्‍ता वाले पानी को लवणीय के साथ मिश्रित करके सिंचाई करने से लवणीय मृदा के सुधार में मदद मिलती है।


    समस्याग्रस्त मिट्टी होने के कारण :




    यहाँ हम आपको निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा समस्याग्रस्त मिट्टी (reasons of soil problems) होने के कारणों से अवगत करा रहे है, जो इस प्रकार है...


  • शुष्क जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन।
  • सिंचाई स्रोतों जैसे नलकूप व नहरों के जल की प्रकृति लवणीय व क्षारीय होना।
  • दोषपूर्ण सिंचाई पद्धतियों का प्रचलन।
  • क्षारीय प्रकृति के रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक प्रयेाग।
  • जल निकास की उचित व्यवस्था न होना।
  • बार-बार एक ही गहराई पर खेतों की जुताई करना।
  • नहरी क्षेत्रों में भूमि जल स्तर का ऊंचा उठना।
  • मृदा प्रबंधन में लापरवाही बरतना व दोषपूर्ण कृषि प्रणालियो को अपनाना।





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