पत्रकारिता (अंग्रेजी : journalism) आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, लिखना, जानकारी एकत्रित करके पहुँचाना, सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं। आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं जैसे - अखबार, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता आदि। बदलते वक्त के साथ बाजारवाद और पत्रकारिता के अंतर्संबंधों ने पत्रकारिता की विषय-वस्तु तथा प्रस्तुति शैली में व्यापक परिवर्तन किए।
चूंकि यह एक ऐसा कलात्मक सेवा कार्य है जिसमें सामयिक घटनाओ को शब्द एवं चित्र के माध्यम से पत्रकार रोज दर्ज करते चलते हैं तो इसे एक तरह से दैनिक इतिहास लेखन कहा जाएगा। यह काम ऊपरी तौर पर बहुत आसान लगता है लेकिन यह इतना आसान होता नहीं है। अपनी पूरी स्वतंत्रता के बावजदू पत्रकारिता सामाजिक और नैतिक मूल्यो से जुड़ी रहती है। उदाहरण के लिए सांप्रदायिक दंगो का समाचार लिखते समय पत्रकार प्रयास करता है कि उसके समाचार से आग न भड़के। वह सच्चार्इ जानते हुए भी दंगों में मारे गए या घायल लोगो के समुदाय की पहचान नहीं करता। बलात्कार के मामलो में वह महिला का नाम या चित्र नहीं प्रकाशित करता है ताकि उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा को कोर्इ धक्का न पहुंच।े पत्रकारो से अपेक्षा की जाती है कि वे पत्रकारिता की आचार संहिता का पालन करें ताकि उनके समाचारो से बवे जह और बिना ठासे सबतू के किसी की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को नुकसान न हो और न ही समाज मे अराजकता और अशांि त फैले सामाजिक सरोकारों को व्यवस्था की दहलीज तक पहुँचाने और प्रशासन की जनहितकारी नीतियो तथा योजनाओं को समाज के सबसे निचले तबके तक ले जाने के दायित्व का निर्वाह ही सार्थक पत्रकारिता है।
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है। इसने लोकतंत्र में यह महत्चपूर्ण स्थान अपने आप हासिल नहीं किया है बल्कि सामाजिक जिम्मेदारियो के प्रति पत्रकारिता के दायित्वो के महत्व को देखते हुए समाज ने ही यह दर्जा दिया है। लोकतंत्र तभी सशक्त होगा जब पत्रकारिता सामाजिक जिम्मदेारियो के प्रति अपनी सार्थक भूमिका निर्वाह करे। पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी की भूमिका निर्वाह करे।
समय के साथ पत्रकारिता का मूल्य बदलता गया है। इतिहास पर नजर ड़ाले तो स्वतंत्रता के पवूर् की पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति ही लक्ष्य था। स्वतंत्रता के लिए चले आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम मे पत्रकारिता ने अहम और सार्थक भूमिका निभाइर् है। उस दौर मे पत्रकारिता ने परे देश को एकता के सूत्र मे बांधने के साथ साथ पूरे समाज को स्वाधीनता की प्राप्ति के लक्ष्य से जोड़े रखा।
आजादी के बाद निश्चित रूप से इसमें बदलाव आना ही था। आज इंटरनेट और सूचना अधिकार ने पत्रकाकारिता को बहु आयामी और अनंत बना दिया है। आज कोर्इ भी जानकारी पलक झपकते उपलब्ध करार्इ जा सकती है। पत्रकारिता वर्तमान समय मे पहले से कर्इ गुना सशक्त, स्वतंत्र और प्रभावकारी हो गया है। अभिव्यक्ति की आजादी और पत्रकारिता की पहुंच का उपयोग सामाजिक सरोकारों और समाज की भलार्इ के लिए हो रहा है लेकिन कभी कभार इसका दुरुपयोग भी होने लगा है।
आर्थिक उदारीकरण का प्रभाव भी पत्रकारिता पर खूब पड़ा है। विज्ञापनो से होनवे ाली अथाह कमार्इ ने पत्रकारिता को एक व्यवसाय बना दिया है। और इसी व्यवसायिक „ष्टिकोण का नतीजा यह हो चला है कि उसका ध्यान सामाजिक जिम्मेदारियों से कहीं भटक गया है। आज पत्रकारिता मुद्दा के बदले सूचनाधर्मी होता चला गया है। इंटरनेट एवं सोशल मीडिया की व्यापकता के चलते उस तक सार्वजनिक पहुंच के कारण उसका दुष्प्रयोग भी होने लगा है। इसके कुछ उपयोगकर्ता निजी भड़ास निकालने और आपत्तिजनक प्रलाप करने के लिए इस माध्यम का गलत इस्तेमाल करने लगे हैं। यही कारण है कि इस पर अंकुश लगाने की बहस छिड़ जाती है। लोकतंत्र के हित मे यही है कि जहां तक हा े सके पत्रकारिता को स्वतंत्र और निर्बाध रहने दिया जाए। पत्रकारिता का हित में यही है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग समाज और सामाजिक जिम्मेदारी निर्वाह के लिए र्इमानदारी से निर्वहन करती रहे।
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