तापित को स्निग्ध करे,
प्यासे को चैन दे;
सूखे हुए अधरों को
फिर से जो बैन दे
ऐसा सभी पानी है|
लहरों के आने पर,
काई-सा फटे नहीं;
रोटी के लालच मे
तोते-सा रटे नहीं
प्राणी वही प्राणी है|
लँगड़े को पाँव और
लूले को हाथ दे,
सत की संभार में
मरने तक साथ दे,
बोले तो हमेशा सच,
सच से हटे नहीं;
झूट के डराए से
हरगिज डरे नहीं|
सचमुच वही सच्चा है|
माथे को फूल जैसा
अपने को चढ़ा दे जो;
रूकती-सी दुनिया को
आगे बढा दे जो;
मरना वही अच्छा है|
प्राणी का वैसे और
दुनिया मे टोटा नहीं,
कोई प्राणी बड़ा नहीं
कोई प्राणी छोटा नहीं|
काई सा फटे नहीं,तोते सा रटे नहीं कौनसा अलंकार है
कैसी मृत्यू को हम सार्थक कह सकते है
Is Kavita ka bhawarth bataye
Prani wahi prani hai kavita mai prani ko kaisa hona cahiye
Jyoti kumar
Satya aasatya ke prati sache pardh kin bhav me vidhman hai
माथे को फ़ूल जैसा अपने chada de jo rukati si duniya ko Aage badade jo marna vahi Achha hai Arth batao
sacha prani kaun hai ?
Koi prani chhota nahi kavita ka saar
Bataeye
Kavita me kavi ne kiski kami na hone ki baat batayi hai?
satya aur asatya ke prati sache prani me kya vishetha payi jati hai
प्राणी वही प्राणी है व्याख्या
Thank you
तापित को स्निग्ध करे,
प्यासे को चैन दे
सूखे हुए अधरों को
फिर से जो बैन दे
ऐसा सभी पानी है|
लहरों के आने पर,
काई-सा फटे नहीं
रोटी के लालच मे
तोते-सा रटे नहीं
प्राणी वही प्राणी है|
लँगड़े को पाँव और
लूले को हाथ दे,
सत की संभार में
मरने तक साथ दे,
बोले तो हमेशा सच,
सच से हटे नहीं
झूट के डराए से
हरगिज डरे नहीं|
सचमुच वही सच्चा है|
माथे को फूल जैसा
अपने को चढ़ा दे जो
रूकती-सी दुनिया को
आगे बढा दे जो
मरना वही अच्छा है|
प्राणी का वैसे और
दुनिया मे टोटा नहीं,
कोई प्राणी बड़ा नहीं
कोई प्राणी छोटा नहीं|
Prani aur panime Kya samanta hai
माथे को फूल ज्सजैसा अपने चढ़ा दे जो का क्या अर्थ है
Bhavarth of this poem
Kavi nay paysay ko sukh pauhuchanevale kya kaha
Asha Hai Ko Sahara De
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असाधारण / भवानीप्रसाद मिश्र
भवानीप्रसाद मिश्र »
तापित को स्निग्ध करे,
प्यासे को चैन दे
सूखे हुए अधरों को
फिर से जो बैन दे
ऐसा सभी पानी है|
लहरों के आने पर,
काई-सा फटे नहीं
रोटी के लालच मे
तोते-सा रटे नहीं
प्राणी वही प्राणी है|
लँगड़े को पाँव और
लूले को हाथ दे,
सत की संभार में
मरने तक साथ दे,
बोले तो हमेशा सच,
सच से हटे नहीं
झूट के डराए से
हरगिज डरे नहीं|
सचमुच वही सच्चा है|
माथे को फूल जैसा
अपने को चढ़ा दे जो
रूकती-सी दुनिया को
आगे बढा दे जो
मरना वही अच्छा है|
प्राणी का वैसे और
दुनिया मे टोटा नहीं,
कोई प्राणी बड़ा नहीं
कोई प्राणी छोटा नहीं| hindi me arth
Kavi ne sansar me kis ki kami na hone ki baat batai he
Kavi me sansar me kiski kami n hone ki bat btai h
आत्म त्याग कि कसौटी क्या हैं?
प्यासे को चैन दे का अर्थ क्या हो गा
Mathe ko fool jaisa apne chadha de jo ka bhav spasat kijiye
Prani vahi prani hai ka arth btaiye
Atm tyag ki kasauti kya hai
Prani who prani hai kvita ka poora arth kya hai
Arth btayiye इस poem ka
माथे को फूल जैसा अपने को चढ़ा दे जो रूकती-सी दुनिया को आगे बढा दे जो मरना वही अच्छा है|meaning this paragraph
Prani wahi prani hai ka arth
रात की संभार में मरने तक साथ दे। पंक्ति से कवि क्या कहना चाहता है।
इस कविता की दो पंक्तियां
१. प्राणी का वैसे और दुनिया में टोटा नहीं कोई प्राणी बड़ा नहीं कोई प्राणी छोटा नहीं
२. बोलें तो हमेशा सच ,सच से हटे नहीं झुठ के डराए से हरगिज़ डरे नहीं सचमुच वहीं सच्चा है
इनके भावार्थ और इनकी विशेषता
Prani wahi prani hai kavita mai manushya ke kin guno ke bare mai bataya hai
Mathe Ko phool jaisa apni Chadha de Jo rukti si duniya Ko aage badha de Jo marna vahi achcha hai bapast
likhiye
Mathe Ko phool jaisa apni Chadha de Jo kisi duniya Ko aage badha de Jo manava hi achcha hai iska bhav first likhi samajh mein nahin a Raha hai humko
Pyase ko chain kaun deta hai?
Prani vahi prani hai arth chahie
माथे को फूल जैसा चढ़ा दे जो क्या अर्थ है?
Prani vai prani kavita
Koi prani chota nahi poem ki vakhaya
सत्य और असत्य के प्रति सच्चे प्राणी में किन बातों का विद्यमान होना बताया गया है?
लहरे किसकी प्रतीक है
Koi Pradi chota nahi koi pradi bada nahi ka arth bataie
Aatm tyag ki kasauti kya hai?
कविता की अंतिम पंकितयो मे कवि ने परानी को कया माना है?
Atma tyag ki kashauti kya hai
लहरें किसकी प्रतोक है
लहरें किसकी प्रतीक है
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इस कविता की अंतिम चार पंक्तियों में लेखक ने प्राणी को क्या माना है?