जिस जैविक प्रकिया (Biological Process) द्वारा एक कोशिका विभाजित होकर दो या दो से अधिक कोशिकाएँ उत्पन्न करती हैं उसे कोशिका विभाजन (Cell division) कहते हैं। कोशिका-विभाजन वस्तुतः कोशिका चक्र (cell cycle) का एक चरण है। विभाजित होने वाली कोशिका मातृकोशिका एवं विभाजन के फलस्वरूप बनने वाली कोशिकाएँ पुत्री कोशिका कहलाती हैं। कोशिका विभाजन द्वारा ही जीवों के शरीर की वृद्धि और विकास होता है। इस क्रिया के फलस्वरूप ही घाव भरते हैं। प्रजनन एवं क्रम विकास के लिए भी कोशिका-विभाजन की क्रिया आवश्यक है।
लैंगिक प्रजनन करनेवाला प्रत्येक प्राणी अपना जीवन कोशिका अवस्था से ही आरंभ करता है। कोशिका अंडा होती है और इसके निरंतर विभाजन से बहुत सी कोशिकाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। कोशिका विभाजन की क्रिया उस समय तक होती रहती है जब तक प्राणी भली भाँति विकसित नहीं हो जाता।
कोशिका विभाजन की प्रक्रिया में कोशिका का जिनोम (genome) अपरिवर्तित रहता है। इसलिये विभाजन होने के पूर्व गुणसूत्रों (chromosomes) पर स्थित 'सूचना' प्रतिकृत (replicate) हो जानी चाहिये और तत्पश्चात इन जीनोमों को कोशिकाओं के बीच 'सफाई से' बांटना चाहिये।
कोशिका विभाजन की प्रक्रिया कई प्रकार की होती है। प्रोकैरिओटिक कोशिकाओं का विभाजन यूकैरिओटिक कोशिकाओं से भिन्न होता है।

कोशिका विज्ञान
कोशिका विभाजन – असुत्री, समसुत्री, तथा अर्धसुत्री (Cell Division-Amitosis, Mitosis and Meiosis)
कोशिका विभाजनः- कोशिका विभाजन वह क्रिया हैं, जिसके द्वारा जनक कोशिका(Parent cell) से पुत्री कोशिकाओं (Daughter cells) का निर्माण होता है, उसे कोशिका विभाजन (Cell Division) कहते हैं।
सभी कोशिकाओं में विभाजन की प्रक्रिया पाई जाती हैं परन्तु जन्तुओं की परिपक्व लाल रक्त कणिकाओं(RBC), तंत्रिका कोशिकाओं, रेखित कोशिकाओं तथा नर एवं मादा युग्मको में एक बार विभाजन होने के बाद दुबारा विभाजन नहीं होता है।
कोशिका विभाजन तीन प्रकार का होता हैं:-
असूत्री विभाजन
समसूत्री विभाजन
अर्द्धसूत्री विभाजन
असूत्री विभाजन(Amitosis):- इस प्रकार के विभाजन में बिना तर्कु तंतुओं के निर्माण के ही सीधे केन्द्रक दो असमान भागों में बँट जाता है, उसे असूत्री विभाजन कहते हैं। ऐसा प्रोकैरियोट तथा कुछ शैवालो में होता है।
समसूत्री विभाजन(Mitosis):- इस प्रकार के कोशिका विभाजन के फलस्वरूप जनक कोशिका दो गुणसूत्र संख्या वाली संतति कोशिकाओं का निर्माण करती है।
समसूत्री विभाजन की दो अवस्थायें होती हैं:-
केन्द्रक विभाजन
कोशिकाद्रव्य विभाजन
(A) केन्द्रक विभाजन(Karyokinesis):- इस अवस्था में एककेन्द्रक से दो संतति केन्द्रकों का निर्माण होता है।
केन्द्रक विभाजन निम्न प्रावस्थाओं में संपन्न होता हैः-
(A.1) प्रोफेज या पूर्वावस्था(Prophase):- इस प्रावस्था में गुणसूत्र संघनित होकर तर्कु तन्तुओं से जुडने लग जाते है तथा केन्द्रक झिल्ली एवं केन्द्रिका अदृश्य हो जाते हैं, इसे आद्यावस्था भी कहते हैं।
(A.2) मेटाफेज या मध्यावस्था(Metaphase):- इस प्रावस्था में तर्कतंतु का निर्माण हो जाता है और गुणसूत्र मध्य पटिका पर एकत्रित हो जाते हैं।
(A.3) एनाफेज या पश्चावस्था(Anaphase):- इस प्रावस्था में गुणसूत्र के दोनो अर्धभाग या अर्धगुणसूत्र पृथक होकर अपने-अपने ध्रुवों की ओर जाने लगते हैं।
(A.4) टिलोफेज या अंत्यावस्था(Telophase):- इस प्रावस्था में केन्द्रक झिल्ली तथा केन्द्रिका का फिर से निर्माण हो जाता है जिससे दो संतति केन्द्रकों का निर्माण होता हैं।
(B) कोशिकाद्रव्य विभाजन(Cytokinesis):- कोशिका विभाजन की इस अवस्था में कोशिकाद्रव्य के विभाजन से एक मातृ कोशिका से दो संतति कोशिकाओं का निर्माण हो जाता है।
जन्तुओं मे कोशिकाद्रव्य का विभाजन प्लाज्मा झिल्ली में खाँच के द्वारा तथा पादपो में फ्रैगमोप्लास्ट के द्वारा होता है।
3. अर्द्धसूत्री विभाजन(Meiosis):- इस प्रकार के कोशिका विभाजन में संतति कोशिकाओं में गुणसूत्र की संख्या उनकी मातृ कोशिका की तुलना में आधी हो जाती है।
अर्द्धसूत्री विभाजन के दो चरणों में होता हैं–
अर्द्धसूत्री विभाजन-I
अर्द्धसूत्री विभाजन-II
(A)अर्द्धसूत्री विभाजन-I (Meiosis-I):-
इसकी निम्न चार प्रावस्थाए होती है –
(A.1) प्रोफेज-I (Prophase-I):- अर्द्धसूत्री विभाजन के प्रोफेज-I के पाँच उप-प्रावस्थाए होती हैं–
(A.1.1) लेप्टोटिन (Leptotene):- गुणसूत्र सघनित होते हैं और स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। तारककेंद्र बनकर ध्रुवों की तरफ जाने लगते हैं।
(A.1.2) जाइगोटिन (Zygotene):- समजात गुणसूत्र जोडे (युग्म) बना लेते है जिसे बाइवेलेंट या चतुष्क कहते हैं। ये समजात गुणसूत्र अर्धगुणसूत्र नही होते। प्रत्येक चतुष्क में चार क्रोमैटिड्स होते हैं।
(A.1.3) पैकिटिन (Pechytene):- गुणसूत्रों के युग्मन की प्रक्रिया पुरी हो जाती है और समजात गुणसूत्रो के मध्य जीन विनिमय होता है
जीन विनिमय द्वारा सजातीय गुणसूत्रों में आनुवंशिक सामग्री का विनिमय होता है जिससे आनुवंशिक विविधता बढ़ती है।
(A.1.4) डिप्लोटिन (Diplotene):- समजात गुणसूत्र पृथक होने लगते है जिससे X आकार के काइज्मेटा बनते हैं। इस प्रक्रिया को सीमान्तीकरण या उपान्तीभवन कहते है।
(A.1.5) डायकाइनेसिस (Diakinesis):– समजात गुणसूत्र पृथक हो जाते तथा गुणसूत्र-बिंदु से तर्कु तन्तु जुड जाते हैं।
(A.2) मेटाफेज-I (Metaphase-I):- समजात गुणसूत्र के युग्म मध्य पट्टिका पर आ जाते हैं।
(A.3) एनाफेज-I (Anaphase-I):- सजातीय गुणसूत्र अलग हो जाते है और विपरीत ध्रुवों की ओर चले जाते है लेकिन अर्धगुणसूत्र (Sister Chromatids) अभी भी जुड़े रहते है।
(A.4) टीलोफेज-I (Telophase-I):- विपरीत ध्रुवो अगुणित (haploid) केन्द्रको का निर्माण हो जाता है
(A.5) कोशिकाद्रव्य विभाजन (Cytokinesiskinesis):- साइटोकाइनेसिस पूरा होता है जिससे दो अगुणित कोशिका बन जाती है।
(B) अर्द्धसूत्री विभाजन-II (Meiosis-II):- यह समसुत्री विभाजन के समान होता है
(B.1) प्रोफेज-II (Prophase-II):- केन्द्रक झिल्ली व केन्द्रिका लुप्त हो जाती है, तारक केंद्र बनते हैं और ध्रुवों की तरफ बढ़ने लगते हैं।
(B.2) मेटाफेज-II (Metaphase-II):- गुणसूत्र मध्य पटिका पर एकत्रित हो जाते हैं।
(B.3) एनाफेज-II (Anaphase-II):- गुणसूत्र के दोनो अर्धभाग या अर्धगुणसूत्र पृथक होकर अपने-अपने ध्रुवों की ओर जाने लगते हैं।
(B.4) टिलोफेज-II (Telopase-II):- केन्द्रक झिल्ली तथा केन्द्रिका का फिर से निर्माण हो जाता है जिससे चार संतति केन्द्रकों का निर्माण होता हैं।
(B.5) कोशिकाद्रव्य विभाजनः(Cytokinesis):- कोशिकाद्रव्य के विभाजन से चार अगुणित संतति कोशिकाओं का निर्माण हो जाता है।
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Nice
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