"कुम्भलगढ़ का युद्ध"
15 अक्टूबर, 1577 ई.
* अकबर ने शाहबाज खान के नेतृत्व में एक विशाल सेना मेवाड़ भेजी
* इस बार मुगलों का लक्ष्य कुम्भलगढ़ दुर्ग था
* इस वक्त महाराणा प्रताप मेवाड़ की राजधानी कुम्भलगढ़ में ही थे
* शाहबाज खान ने मुगल फौज के साथ कुम्भलगढ़ से दूर केलवाड़ा में पड़ाव डाला
* महाराणा प्रताप ने अपने थोड़े बहोत सैनिकों को केलवाड़ा में शाही खेमे में भेजा
अचानक हुए इस हमले को शाही फौज समझ ही नहीं सकी
मानसिंह को मारने का प्रयास करने वाले राजपूत को रामपुरा के दुर्गा सिसोदिया ने पकड़ लिया
4 मुगल हाथी लूटकर महाराणा प्रताप को भेंट किए गए
* शाहबाज खान ने केलवाड़ा दुर्ग पर अधिकार कर लिया
* शाहबाज खान ने मानसिंह व भगवानदास को आगरा जाने के लिए कहा, क्योंकि वो राजपूतों का साथ नहीं चाहता था
ये दोनों आगरा पहुंचे | खास बात ये रही कि अकबर ने भी शाहबाज खान के इस फैसले का विरोध नहीं किया |
जयपुर की ख्यातें कुछ और लिखती हैं | उनके अनुसार मानसिंह व भगवानदास खुद अपनी इच्छा से आगरा चले गए, क्योंकि महाराणा प्रताप जैसे वीर के विरुद्ध और लड़ना उन्हें सही नहीं लगा |
मानसिंह और भगवानदास इसके बाद कभी भी महाराणा प्रताप के विरुद्ध लड़ने नहीं आए, इसलिए जयपुर की ख्यातें ज्यादा विश्वसनीय लगती हैं |
* कुम्भलगढ़ का मार्ग बड़ा कठिन था | शाहबाज खान को रास्ता नहीं मिला, पर फूल बेचने वाली एक विश्वासघाती महिला ने उसे कुम्भलगढ़ का मार्ग बता दिया |
* महाराणा प्रताप ने आम लोगों में हुक्म जारी करवाया कि "सभी लोगों को कुम्भलगढ़ से दूर जाना होगा | जो कोई भी कुम्भलगढ़ के आसपास मिला उसे मृत्युदण्ड दिया जावेगा |"
कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार महाराणा प्रताप ने जब कुम्भलगढ़ के पास एक चरवाहे को भेड़ें चराते हुए देखा, तो उसे मृत्युदण्ड दिया गया व उसके शव को पेड़ पर लटका दिया गया
वीरविनोद में कविराज श्यामलदास भी मानते हैं कि महाराणा प्रताप के आदेश बड़े सख्त हुआ करते थे
* शाहबाज खान ने नाडोल-केलवाड़ा का रास्ता बन्द किया व कुम्भलगढ़ पहुंचा
* कुम्भलगढ़ दुर्ग के पास पानी का एकमात्र विशाल स्त्रोत था - नोगन का कुंआ
आबू के एक विश्वासघाती राजपूत ने नोगन के कुंए में विष मिला दिया
* शाहबाज खान ने कुम्भलगढ़ के आसपास कड़ी सुरक्षा कर रखी थी, जिससे महाराणा प्रताप का बचकर निकलना लगभग असम्भव था
* महाराणा प्रताप के पास मुट्ठी भर सैनिक थे व पानी की समस्या के कारण सामन्तों ने महाराणा से दुर्ग छोड़ने की विनती की
* महाराणा प्रताप ने दुर्ग अपने छोटे मामा भाण सोनगरा चौहान को सौंपा
* अब महाराणा के सामने चुनौती थी दुर्ग से बाहर निकलने की
* मेवाड़ी ख्यातों के अनुसार महाराणा प्रताप ने रात के वक्त दुर्ग छोड़ा
* अबुल फजल लिखता है "राणा साधु के भेष में किला छोड़कर शाही फौज को चकमा देने में कामयाब हुआ"
* महाराणा प्रताप ने दुर्ग जरुर छोड़ा लेकिन मन ही मन इरादा किया कि ज्यादा समय तक दुर्ग मुगलों के हाथ में नहीं रहने देंगे | महाराणा प्रताप रामपुरा होते हुए बांसवाड़ा पहुंचे |
* कुम्भलगढ़ दुर्ग में एक विशाल तोप थी, जो अचानक फट गई | इससे काफी नुकसान हुआ |
* आखिरकार बहादुर राजपूतों ने किले के दरवाजे खोल दिये
* शाहबाज खान ने भी हमला बोला
* कुम्भलगढ़ दुर्ग में तैनात सभी मेवाड़ी योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए, जिनमें से कुछ के नाम इस तरह हैं -
भाण सोनगरा
सींधल सूजा
कूंपा भाडावत
मुहतो नरबद
सिद्धावत सींधाल
मांगलिया जैता
3 अप्रैल, 1577 ई.
* कुम्भलगढ़ दुर्ग में रसद सामग्री तक नहीं थी | शाहबाज खान ने एक खाली दुर्ग जीता था |
गुस्से में आकर शाहबाज खान ने कुम्भलगढ़ में कई मन्दिर तुड़वाए व अजमेर से रसद सामग्री मंगवाई
* शाहबाज खान को खबर मिली की महाराणा प्रताप गोगुन्दा या उदयपुर गए हैं, तो उसने किला गाजी खान बदख्शी को सुपुर्द किया व खुद गोगुन्दा पहुंचा
शाहबाज खान ने एक ही दिन (4 अप्रैल, 1577 ई.) में गोगुन्दा और उदयपुर जीतकर वहां काफी लूटमार की
* 3 दिन तक तबाही मचाने के बाद शाहबाज खान सुबह के वक्त कुम्भलगढ़ पहुंचा व एक मन्दिर के उपर बैठकर अजान पढ़ी
* उसी जमाने के एक दोहे के अनुसार -
महाराणा प्रताप ने कुम्भलगढ़ की पराजय का प्रत्युत्तर देना जरुरी समझा व अपने थोड़े बहोत सैनिकों के साथ जालौर कूच किया
जालौर पूरी तरह से मुगलों के अधीन था
महाराणा प्रताप ने जालौर के एक शाही थाने को लूटकर तहस-नहस करके जला दिया
Sahbaj khan kb kb prtap ki virud abhiyan lekr gya tha
कुंभलगढ़ दुर्ग पर मुगलों का अधिकार कब हुआ,,,
किस दिवान को हटाकर भामाशाह को दीवान बनाया गया
मुगलों का अधिकार कब हुआ कुंबल गड़ पर
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Jab shabaj khan ne kumbhalgarh kila jita tha uas yudhda ko karnal jems Tod ne kya name Diya