‘शिक्षा में जातिगत और लिंगगत असमानता’ नामक विषय पर समूह चर्चा कराई। इसमें शामिल प्रत्येक समूह में भिन्न- भिन्न जाति समूहों और कुछ ऊपर-नीचे के आर्थिक वर्गों से आने वाली छात्राएँ शामिल थीं। अपनी चर्चा में लगभग सभी छात्राओं ने न केवल शिक्षा के क्षेत्र में लिंगगत असमानता को स्वीकार किया बल्कि समाज में भी लिंगगत असमानता के विभिन्न रूपों को दिखाया और उस पर चर्चा की। जैसे लड़कियों को लड़कों के मुकाबले स्कूलों में कम भेजा जाता है। उनका स्कूल से ड्रॉप-आउट भी लड़कों के मुकाबले ज्यादा है। प्राइवेट और अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में लड़्कों के मुकाबले लड़कियों का प्रतिशत काफ़ी कम होता है। इस समूह चर्चा में भाग लेते हुए छात्राओं ने इस बात पर भी प्रश्न चिह्न लगाया कि समाज में स्त्रियों और पुरुषों के बीच कामों का बँटवारा क्यों किया गया है? उन्हें केवल घर- परिवार के कामों में ही क्यों लगाए रखा जाता है ? इंजीनियरिंग, आर्मड फ़ोर्सिज़ जैसे क्षेत्रों को उनके लिए निषिद्ध क्यों समझा जाता है? सार्वजनिक स्थानो पर होने वाली ईव-टीज़िंग से लेकर बलात्कार जैसी समस्याओं पर छात्राएँ खुल कर बोलीं। उन्होंने यह भी कहा कि जहाँ तक स्त्री सुरक्षा संबंधी कानूनी अधिकारों का सवाल है, उनका फ़ायदा केवल शहरी पढ़ी-लिखी महिलाओं को ही मिलता है। ग्रामीण और अशिक्षित महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में बताने वाला कोई नहीं। पर विशेष बात यह थी कि इस समूह चर्चा में विषय के दूसरे हिस्से ‘शिक्षा में जातिगत असमानता’ पर मुश्किल से एक या दो छात्राएँ ही बोलीं और वह भी केवल अस्पृश्यता को लेकर। और यहाँ वह आक्रोश नहीं था जो लिंगगत असमानता पर बात करते समय दिखाई दिया था।
इसके साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि आजकल के समाज में अस्पृश्यता की कोई खास उपस्थिति नहीं रह गई है इसलिए शिक्षा में जातिगत असमानता जैसी कोई चीज़ वर्तमान में उपस्थित नहीं है। ये छात्राएँ शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर जातिगत असमानता के विभिन्न रूपों को देख पाने, उन्हें समझ पाने में तथा उन्हें बता पाने में असमर्थ रहीं। जैसे स्कूलों में प्रवेश लेने वाले बच्चों में निम्न जाति के बच्चों का प्रतिशत कितना है? बीच में ही पढ़ाई छोड़ देने वाले विद्यार्थियों में निम्न जाति के बच्चों का प्रतिशत कितना है? प्राइवेट और अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में निम्न जाति के बच्चों का प्रतिशत कितना है? स्कूलों में स्कूल प्रशासन और अध्यापकों का व्यवहार इन बच्चों के साथ कैसा है? स्कूलों में मिलने वाली सुविधाओं का वितरण के समय इन बच्चों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है? विशेष रूप से मिड डे मील जैसी योजनाओं को लेकर। ईंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज इत्यादि में जाति के आधार पर छात्र- छात्राओं के साथ कितना घिनौना और हिंसक व्यवहार होता है इसका उन्हें सिरे से अन्दाजा नहीं था। ऐसे कितने ही प्रश्न हैं जिनपर लगभग सभी छात्राएँ या तो मौन थीं, या उनके संबंध में उनके कोई अनुभव नहीं थे और जिनके अनुभव थे वे शायद बता पाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थीं। दूसरी ओर कॉलेज और नौकरियों में आरक्षण को लेकर छात्राएँ काफ़ी मुखर थीं और उन्होंने पुरजोर इसका विरोध किया। ‘आरक्षण’ को वे जातिगत असमानता के व्यवहार के रूप में देख रही थीं, जिसमें तथाकथित उच्च जातियों के साथ अन्याय हो रहा था। आई0 ए0 एस0 जैसी नौकरियों में उनके हिसाब से आरक्षण का प्रावधान प्रतिभा का हनन है।
पितृसत्ता का अर्ध बताते हुए उसके विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालिए
School ghar or usse aage ki surkchha kya h?
Ling asmnta ko dur karne K liye ajadi K bare bhart me kiye Gaye paryasho ka bardhn kijiye
Partirodh k prakar
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Ladkiyon ki schooli shiksha mein asmanta or patirod