Safed Moosli Ke Beej सफेद मूसली के बीज

सफेद मूसली के बीज



GkExams on 21-01-2019

सफेद मूसली एक बहुत ही उपयोगी पौधा है, जो कुदरती तौर पर बरसात के मौसम में जंगल में उगता है| इस की उपयोगिता को देखते हुए इस की कारोबारी खेती भी की जाती है| सफेद मूसली की कारोबारी खेती करने वाले राज्य हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल व वेस्ट बंगाल वगैरह हैं| सफेद मूसली की जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक और यूनानी दवाएं बनाने में किया जाता है| सफेद मूसली की सूखी जड़ों का इस्तेमाल यौवनवर्धक, शक्तिवर्धक और दवाएं बनाने में करते हैं| इस की इसी खासीयत के चलते इस की मांग पूरे साल खूब बनी रहती है, जिस का अच्छा दाम भी मिलता है|

सफेद मूसली में खास तरह के तत्त्व सेपोनिन और सेपोजिनिन पाए जाते हैं और इन्हीं तत्त्वों की वजह से ही सफेद मूसली एक औषधीय पौधा कहलाता है| सफेद मूसली एक सालाना पौधा है, जिस की ऊंचाई तकरीबन 40-50 सेंटीमीटर तक होती है और जमीन में घुसी मांसल जड़ों की लंबाई 8-10 सेंटीमीटर तक होती है| यौवनवर्धक, शक्तिवर्धक और दवाएं सफेद मूसली की जड़ों से ही बनती हैं| तैयार जड़ें भूरे रंग की हो जाती हैं| सफेद मूसली की खेती के लिए गरम जलवायु वाले इलाके, जहां औसत सालाना बारिश 60 से 115 सेंटीमीटर तक होती हो मुनासिब माने जाते हैं| इस के लिए दोमट, रेतीली दोमट, लाल दोमट और कपास वाली लाल मिट्टी जिस में जीवाश्म काफी मात्रा में हों, अच्छी मानी जाती है| उम्दा क्वालिटी की जड़ों को हासिल करने के लिए खेत की मिट्टी का पीएच मान 7.5 तक ठीक रहता है| ज्यादा पीएच यानी 8 पीएच से ज्यादा वैल्यू वाले खेत में सफेद मूसली की खेती नहीं करनी चहिए| सफेद मूसली के लिए ऐसे खेतों का चुनाव न करें, जिन में कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा ज्यादा हो|

पौधे की जानकारी

  • उपयोग

इसका उपयोग आयुर्वेदिक औषधी में किया जाता है।


जड़ो का उपयोग टॅानिक के रूप में किया जाता है।


इसमें समान्य दुर्बलता को दूर करने का गुण होता है।


इसका उपयोग गाठिया वात, अस्थमा, अधिश्वेत रक्ता, बवासीर और मधुमेह के उपचार में किया जाता है।


इसमें स्पर्मेटोनिक गुण होता है इसलिए नपुंसकता के उपचार में इसका उपयोग किया जाता है।


जन्म संबंधी और जन्मोत्तर रोगों के उपचार में यह सहायक होती है।


वियाग्रा के एक विकल्प के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

  • उपयोगी भाग

जड़

  • उत्पादन क्षमता

15-20 क्विंटल/हे. ताजी जड़े और 4-5 क्विंटल/हे. सूखी जड़े

उत्पति और वितरण

इसकी संभावित उत्पत्ति उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण अफ्रीका मे मानी जाती है। भारत में जड़ी-बूटी यह मुख्य रूप से हिमालय के क्षेत्र, आसाम, म.प्र. राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्, आंधप्रदेश और कर्नाटक में पाई जाती है। मध्यप्रदेश में यह मुख्य रूप से सागौन और मिश्रित वन बघेलखंड और नर्मदा सोन घाटी में पायी जाती है।

  • वितरण

आयुर्वेद में सफेद मूसली को सौ से अधिक दवाओ के निर्माण में उपयोग के कारण दिव्य औषधि के नाम से जाना जाता है। यह एक सदाबहार शाकीय पौधा है। समशीतोष्ण क्षेत्र में यह प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। विश्व बाजार में इसकी बहुत मांग बढी हुई है जो 35000 टन तक प्रतिवर्ष आँकी गई है किन्तु इसकी उपलब्धता 5000 टन प्रतिवर्ष है।

आकृति विज्ञान, बाह्रय स्वरूप

  • स्वरूप

यह एक कंदीय तना रहित पौधा है।


कंदित जड़ों को फिंगर कहा जाता है।


फिंगर गुच्छो के रूप मे बेलनाकार होते है।


जिनकी अधिकतम संख्या 100 होती है। परिपक्व अवस्था में ये 10 से.मी. लंबे होते है।

  • पत्तिंया

पत्तियाँ मौलिक चक्राकार, चपटी, रेखीय, अण्डाकार और नुकीले शीर्ष वाली होती है।


पत्तियों की निचली सतह खुरदुरी होती है।

  • फूल

फूल तारे की आकृति के, सफेद रंग के और बाह्यदल नुकीले होते है। पराग केशर, तंतु से बड़े एवं हरे या पीले रंग के होते हैं।


फूल जुलाई-दिसम्बर माह में आते है।

  • फल

फल लंबाई में खुलने वाले केप्सूल, हरे से पीले रेग के और प्राय: समान लंबाई और चौड़ाई के होते है।


फल जुलाई-दिसम्बर माह में आते है।

  • जड़

जड़े मांसल और रेशेदार गोल होती है एवं कंद जमीन में 10 इंच का गहराई तक होती है।

  • बीज

बीज काले रंग के नुकीले होते है।


परिपक्व ऊँचाई :


इसकी अधिकतम ऊचाई 1-1.5 फीट तक होती है।

बुवाई का समय

  • जलवायु

फसल के लिए दोनों उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु अच्छी होती है।


गर्म और आर्द्र मौसम इसकी अच्छी पैदावार के लिए आदर्श माना जाता है।


उपज के दौरान नमी फसल के लिए अच्छी होती है।

  • भूमि

सभी प्रकार की मिट्टी में इसकी पैदावार की जा सकती है।


जैविक खाद के साथ लाल मृदा इसकी पैदावार के लिए अच्छी होती है।


दोमट और रेतीली मिट्रटी पानी की अच्छी निकासी के साथ होना चाहिए।


भूमि का pH मान 6.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए।


फसल जल भराव की स्थिति को सहन नहीं कर सकती है।


पर्वतीय और ढ़ालदार पर भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है।

  • मौसम के महीना

जून माह का प्रथम या द्वितीय सप्ताह बुवाई के लिए उपयुक्त होता है।

बुवाई-विधि

  • भूमि की तैयारी

खेत की तैयारी अप्रैल – मई माह में करना चाहिए।


बुवाई के पहले एक गहरी जुताई की आवश्यकता होती है।


2-3 बार पाटा चलाकर मिट्टी को भुराभुरा कर देना चाहिए।


क्यारियों के बीच 30-40 से.मी की दूरी रखी जाती है।

  • फसल पद्धति विवरण

इस विधि मे बीजों को सीधे खेत में बोया जाता है।


बुवाई के लिए उत्तम बीज का प्रयोग करना चाहिए।


बुवाई के पहले वीजो को मेकोजेब, एक्सट्रान, डिथोन M-45 और जेट्रान से उपचारित करना चाहिए।


दो पौधो के बीच की दूरी 13 से.मी. रखते हुये बीजों की बुवाई इस प्रकार की जानी चाहिए कि प्रत्येक स्थान में 3-4 बीज की बुवाई हो।


बीज अंकुरण के लिए 12-16 दिन लेते है।


यह विधि व्यापारिक रूप से अच्छी नही मानी जाती है।

उत्पादन प्रौद्योगिकी खेती

  • खाद

सफेद मूसली की खेती के लिए खाद और उर्वरक का उपयोग अच्छा होता है।


अच्छी तरह से सड़ी हुई पत्तियों की खाद मिलाना चाहिए।


NPK की मात्रा 50 : 100 : 50 कि.ग्रा. के अनुपात में देना चाहिए।


फसल लगाते के समय P2O5 और K2O की पूरी खुराक और N की आधी खुराक दी जानी चाहिए।


शेष की खुराक रोपाई के 90 दिनों के बाद दी जाती है।

  • सिंचाई प्रबंधन

यह वर्षा ऋतु की फसल हैं इसलिए इसे नियमित रुप से सिंचाई की आवश्कयता नहीं होती है।


सिंचाई जलवायु और मिट्टी पर भी निर्भर करती है।


वर्षा के अभाव में सिंचाई 10-15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए।

  • घसपात नियंत्रण प्रबंधन

खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवार को हाथों से निकालते हैं।


पौधों और कंदों के अच्छे विकास के लिए एक निश्चित अंतराल से निंदाई करना चाहिए।


मिट्टी की संरध्रता को बनाये रखने के लिए निंदाई 1 या 2 बार की जानी चाहिए।


रोपण के 25-30 दिनों के बाद निंदाई करना चाहिए।

कटाई

  • तुडाई, फसल कटाई का समय

रोपण के 5-6 महीने के बाद फसल परिपक्व हो जाती है।


परिपक्व स्तर पर पत्तियाँ पीली पड़ जाती है और उनके ऊपरी भाग सूख जाते है और वे गिर जाती है।


खुदाई के 2 दिन पहले स्प्रिंक्लिर द्दारा एक हल्की सिंचाई की जानी चाहिए ताकि जड़ो को आसानी से उखाडा जा सके।


नवम्बर – दिसम्बर माह खुदाई के लिए अच्छे होते है।

फसल काटने के बाद और मूल्य परिवर्धन

  • सफाई

पौधे की खुदाई के बाद मांसल जंडों को मिट्टी से उठकार साफ किया जाता है।


जड़ो को पानी से धोया जाता है।

  • धुलाई

जड़ो की धुलाई साफ पानी से करना चाहिए।

  • छाल उतरना

छिलाई के लिए जड़ो को एक हफ्ते के लिए छाया में रखा जाता है।


छिलाई चाकू, काँच या पत्थर के टुकड़े से इस प्रकार की जाती है कि गुणवत्ता या मात्रा में कोई नुकसान न हो।

  • सुखाना

तैयार सामग्री को लगभग 3-4 दिनों के लिए धूप में सुखाया जाता है।


श्रेणीकरण-छटाई: सूखे कंदो की छटाई निम्न आधार पर की जाती है।

  • ताजापन
  • आकार
  • रंग
  • पैकिंग

पैकिंग दूरी के आधार पर की जाती है।


वायुरोधी थैले सबसे अच्छे होते है।


नमी से बचाने के लिए पालीथीन या नायलाँन के थैलो का उपयोग किया जाना चाहिए।

  • भडांरण

बीजों को एकत्रित करके भंडारित कर दिया जाता है।


गोदाम भंडारण के लिए अनुकूल होते है।


शीतल स्थान भंडारण के लिए अच्छे नहीं होते है।

  • परिवहन

सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचता हैं।


दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लाँरियो के द्वारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं।


परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नही होती हैं।

  • अन्य-मूल्य परिवर्धन

सफेद मूसली चूर्ण


सफेद मूसली टॅानिक





Comments कुबेर चंद on 31-05-2023

सफेद मूसली का बीज चाहिए, जिला बांदा उत्तर प्रदेश

Kamlesh dubey on 07-04-2023

Beej bone ke liye jo upyog kiya jata hai ka rate kya hai

Kamlesh dubey on 10-01-2023

Fingers ka kya rate hota hai


Y. B bhatt on 11-05-2022

Bij kana milega

kailashuikey on 12-12-2021

safedmuslikabeejmpmanekahanmelegadistrickanamebataiey

Alakh ram on 05-05-2021

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Sunil kumar Meerut up on 19-03-2020

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