भक्तिकाल Ki Visheshtayein भक्तिकाल की विशेषताएँ

भक्तिकाल की विशेषताएँ



GkExams on 12-01-2019

यद्यपि अन्य युगों की भाँति भक्ति-काल में भी भक्ति-काव्य के साथ-साथ अन्य प्रकार की रचनाएँ होती रहीं, तथापि प्रधानता भक्तिपरक रचनाओं की ही रही। इसलिए भक्ति की प्रधानता के कारण चौदहवीं शती के मध्य से लेकर सत्रहवीं शती के मध्य तक के काल को 'भक्ति-काल' कहना सर्वथा युक्तियुक्त है।
भक्तिकाल सम्वत 1375 से प्रारंभ होकर सम्वत 1700 तक समाप्त हुआ। वीरगाथाकाल की युद्ध विभीषिका से त्रस्त मानव हृदय शांति की खोज में भटकने लगा। लगातार मुस्लिम शासकों के आक्रमण के कारण देशी राज्य शक्तियाँ पराभूत होती गई। जनता को कष्ट एवं विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। मंदिरों में मूर्तियों को तोड़ा गया, धर्मग्रन्थ जलाए गए। ऐसी स्थिति में जनता के सामने भगवान को पुकारने के अतिरिक्त कोई अन्य साधन न था। फलतः देश में ईश्वर भक्ति की लहर दौड़ने लगी। कबीर, तुलसी, सूर, मीरा, जायसी जैसे महान कवि हमें विरासत के रूप में प्राप्त हुए।
यदि भक्तिकाल को विभाजित किया जाए तो हमारे समक्ष दो प्रमुख शाखा उभर कर सामने आते हैं जो निम्न प्रकार से हैं:-



1:-निर्गुण काव्यधारा


(अ):-ज्ञानमार्गी शाखा
(ब):-प्रेममार्गी शाखा
2:- सगुण काव्यधारा
(अ):-रामभक्ति शाखा
(ब):- कृष्णभक्ति शाखा

1:-भक्तिकालीन ज्ञानमार्गी निर्गुण शाखा:-

भक्ति की इस शाखा में केवल ज्ञान-प्रधान निराकार ब्रह्म की उपासना की प्रधानता है। इसमें प्रायः मुक्तक काव्य रचे गये। दोहा और पद आदि स्फुट छंदों का प्रयोग हुआ है। भाषा खिचड़ी एवं सधुक्कड़ी है। प्रमुख रस शांत रस है। इस काल के प्रमुख कवि व उनकी रचनाएँ निम्न हैं:-

प्रमुख कविरचनाएँ
कबीरदासबीजक (साखी,सबद,रमैनी)
दादू दयालसाखी, पद
रैदासपद
गुरु नानकगुरु ग्रन्थ साहब में महला

2:-भक्तिकालीन प्रेममार्गी निर्गुण शाखा:-

इस शाखा में प्रेम- प्रधान निराकार ब्रह्म की उपासना का प्राधान्य था। इस काल में सूफी कवियों ने आत्मा को प्रियतम मानकर हिन्दू प्रेम कहानियों का वर्णन किया है। हिन्दू-मुस्लिम एकता इस शाखा की प्रमुखता है।इस काल के सभी
महाकाव्य प्रेमकथाओं पर आधारित हैं,जो शास्त्रीय कसौटी पर खरे उतरते हैं। इस शाखा के प्रमुख कवि व उनकी रचनाएँ निम्न हैं:-

प्रमुख कविरचनाएँ
मालिक मोहम्मद जायसीपद्मावत, अखरावट, आखरी कलाम
कुतुबनमृगावती
मंझनमधुमालती
उसमानचित्रावली

3:- भक्तिकालीन सगुण रामभक्ति शाखा:-

इस काल में भगवान श्रीराम के सत्य, शील एवं सौन्दर्य प्रधान अवतार की उपासना की गयी है। इस काल में प्रबंध एवं मुक्तक दोनों प्रकार की काव्यों की रचना की गयी। इस काल में प्रमुख रूप से दोनों अवधी और ब्रजभाषा का उपयोग हुआ और कई छन्दों में रचनाएँ हुई। इस काल के काव्य में सभी रसों का समावेश हुआ, किन्तु शांत और श्रंगार प्रधान रस है। इस शाखा के प्रमुख कवि व उनकी रचनाएँ निम्न हैं:-

प्रमुख कवि रचनाएँ
गोस्वामी तुलसीदासरामचरितमानस,विनयपत्रिका
कवितावली, गीतावली
नाभादासभक्तमाल
स्वामी अग्रदास रामध्यान मंजरी
रघुराज सिंह राम स्वयंवर

4:-भक्तिकालीन सगुण कृष्णभक्ति शाखा:-

इस शाखा के कवियों ने भगवान कृष्ण की उपासना की है। इस शाखा में केवल मुक्तक काव्यों की रचना हुई। कृष्ण भक्ति के सभी पद ब्रजभाषा की माधुर्य भाव से ओत-प्रोत है।इस शाखा के कवियों ने मुख्यतः 'पद' छंद में रचनाएँ की हैं। इस काल में कवि सूरदास ने वात्सल्य रस को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया। इस शाखा के प्रमुख कवि व उनकी रचनाएँ निम्न हैं:-

प्रमुख कवि रचनाएँ
सूरदाससूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी
नंददासपंचाध्यायी
कृष्णदासभ्रमर-गीत, प्रेमतत्त्व
कुम्भनदासपद
परमानन्ददासध्रवचरित, दानलीला
चतुर्भुजदासभक्तिप्रताप, द्वादश-यश
नरोत्तमदाससुदामा चरित
रहीमदोहावली, सतसई
रसखानप्रेमवाटिका
मीरा नरसी का माहरा, गीत गोविन्द की टीका, पद

भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ:-

  1. सगुण तथा निर्गुण ब्रह्म की उपासना।
  2. गुरु की महिमा
  3. ईश्वर के नाम की महिमा।
  4. ब्रजभाषा एवं अवधी भाषा का प्रयोग।
  5. समर्पण की भावना।
  6. दीनता की अभिव्यक्ति।
  7. बाह्याडम्बरों का विरोध।
  8. मानवतावादी धर्म की महत्ता।
  9. व्यंग्यात्मक उपालम्भ शैली का प्रयोग।
  10. कविता में स्वान्तः सुखाय की भावना।

स्मरणीय बिंदु

  • भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णकाल कहा जाता है।
  • भक्तिकाल की दो प्रमुख शाखाएँ सगुण व निर्गुण शाखा हैं।
  • 'पद्मावत' व 'रामचरितमानस' जैसे महाकाव्य इसी काल की देन है।
  • इस काल में अवधी व ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
  • वात्सल्य रस भक्तिकाल की देन है।
  • कृष्णभक्ति शाखा के कवियों के काव्य का संग्रह विट्ठलनाथ ने किया, वह 'अष्टछाप' कहलाता है।
  • विप्रलम्भ श्रृंगार का अद्वितीय वर्णन सूरदास के भ्रमरगीत में देखने को मिलता है।
  • कबीरदास की काव्य भाषा 'सधुक्कड़ी' कहलाती है।
  • ज्ञानमार्गी शाखा के कवि संतकवि कहलाते थे।





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