पुराने युग की तरह आज के आधुनिक युग में भी लाख की चूड़ियों का महत्व बरकरार है। आज भी सुहागनों की कलाइयाँ लाख की चूड़ियों के बगैर सूनी व उदास समझी जाती हैं। आज फैशन के इस युग में रोजाना नित नए आकार-प्रकार में ढलकर हाथों की शोभा बनने वाले लाख के ये कंगन अब दूर-दूर तक शहर की पहचान कायम कर रहे हैं।
जिसमें गुजरात में रतलामी कंगन खासे चर्चित है, जिसकी माँग आदिवासी अंचलों से लेकर सभी दूर बनी हुई है। और इस फैशन को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं शहरों में रहने वाले लखारा समाज के वे लोग जो अपनी दुकानों पर परिवार सहित लाख की चूड़ियों के निर्माण में दिन-रात भिड़े रहते हैं।
लाख की इन चूड़ियों का महत्व खास तौर पर करवा चौथ, दीपावली तथा मांगलिक कार्यों में बहुत अधिक रहता है। फिलहाल फैशन में मेहरून, कत्थई, सफेद, लाल व चटनी रंग की चूड़ियों की माँग ज्यादा है। और लाख निर्माण का काम किया जाता है पीपल, बेर, खाखरा और धावड़े के पेड़ों पर पाए जाने वाले एक खास किस्म के कीड़े से। यह कीड़ा पेड़ों की पतली टहनियों पर रेंगते समय हगार के रूप में एक पदार्थ छोड़ता है, जिससे लाख का निर्माण होता है। इसमें धावड़े की लाख मजबूत मानी जाती है, वहीं आरंभिक चरण में कीड़े से उत्पन्न लाख को कुसुम की कच्ची लाख कहा जाता है। इस लाख को कारखानों में ले जाकर धुलवाया जाता है।
क्या कहती हैं लाख की कहानी : भगवान शिव के मैल से बना लाख देने वाला कीट आधुनिक युग में भी अपनी पहचान कायम रखे हुए है। लाख के विषय में कहा जाता है कि विवाह के समय माता पार्वती को उपहार देने हेतु भगवान भोलेनाथ ने स्वयं के शरीर से मैल निकालकर लाख का कीट बनाया था। और तभी से लाख का निर्माण प्रारंभ हुआ है। लाख से कंगन बनाने हेतु लखारा समाज की उत्पत्ति भी उसी समय हुई। पूर्व में कंगनों के निर्माण हेतु भाँग घोटने के पत्थर का उपयोग ज्यादा होता था।
कंगनों का निर्माण : कारखानों में लाख के धुलने के बाद दुकानदार इसे खरीदते है और फिर धुली हुई यह लाख सर्वप्रथम पिसवाई जाती है। पिसने के बाद व्यवसायी अपने घर अथवा दुकान पर इसका मसाला बनाता है और इसे मोटी छड़ जैसा आकार देता है। चपड़ी का रंग इस मोटी छड़नुमा लाख पर लगाया जाता है। इतना होने के बाद इसे गर्म करके साँचे में ढाला जाता है। कंगन निर्माण की यह प्रक्रिया सबसे पहले थप्पे से शुरू होती है। फिर इसे चौकोर करने के लिए बनाली का सहारा लिया जाता है। तत्पश्चात सेल में गोलाकार रूप देकर कंगन पर जयपुर व मुंबई से मँगवाए गए रंगीन नग जड़े जाते हैं।
चूड़ी व कंगन की वैरायटी : फैशन के इस युग में लाख के कंगनों की कई प्रकार की वैरायटियाँ बाजारों में उपलब्ध हैं। जिसमें पक्के नग वाली चूड़ी को शहरवासी अधिक पसंद करते हैं, वहीं आदिवासी युवतियों व महिलाओं में खाचमुठिया (बाजू में पहनने वाली चूड़ी) के प्रति विशेष लगाव रहता है। इसके अलावा 6, 8 व 10 नंबर के कंगन, 2 लेन की पाटली, 3 लेन की गजरी, नवरंगी नग जड़ी चूड़ी व लाख मेटल वाली चूड़ी भी बहुत चलन में है
मशिनि युग ने कितने हाथ काट दिए हैं इस पंकित मे लेखक ने किस वयथा कि ओर संकेत कियाहै
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Laak ki chudiya ki anthar bathao
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Lakhk ke bare mai aap kuch Bata sakte hai
लाख को किस जगह बेचे
लाख के व्यवसाय के बारे मे जानकारी
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Lash ki churiya or kaach ki churiya me anter Batao
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