समाजीकरण की प्रक्रिया तब शुरू हो जाती है जब अबोद्ध बालक का अपने माता पिता , परिवार के सदस्यों तथा अन्य व्यक्तियों के संपर्क में आना शुरू हो जाता है और फिर यह कार्य जीवन भर चलता है | बालक जैसे जैसे बड़ा होता है वैसे वैसे वह सहयोग सहानुभूति तथा सामाजिक मूल्यों एवं नियमों को अच्छी तरह घ्राण कर लेता है | किशोरावस्था के अंत तक बालक में सर्वाधिक परिपक्वता का विकास होता है | इस अवधि में सामाजिक चेतना को प्राप्त करता है , अधिक से अधिक मित्र बनाता है तथा समूह बनता है।
विभिन्न अवस्थाओं में समाजीकरण की प्रक्रिया
जन्म के बाद एक बालक का सामाजिक विकास भिन्न भिन्न अवस्थाओं में भिन्न भिन्न तरीकों से होता है। जनका वर्णन निम्नलिखित है
1. शैवावस्था में सामाजिक विकास इस काल में सामाजिक विकास की विशेषताएं इस प्रकार हैं
१. स्वयं केंद्रित बालक
२. माता पिता पर आश्रित बालक
३. सामाजिक खेल का विकास
४. स्पर्धा की भावना
५. मैत्री और सहयोग
६. सामाजिक स्वीकृति
हरलॉक ने पहले दो वर्ष में होने वाले सामाजिक विकास को निम्न ढंग से प्रस्तुत किया है
1. पहले माह में मानव और अन्य ध्वनि अंतर समझना
2. दूसरे माह में मानव ध्वनि को पाचनना तथा मुस्कान के साथ स्वागत करना
3. तीसरे माह में अपनी माता को पहचानना तथा उस से दूर होने पर दुखी होना।
4. चार माह में व्यक्तियों के चेहरों को पहचानना
5. पांच माह में क्रोध या प्यार की आवाज पहचानना
6. छह-सात माह में परिचितों का मुस्कान से स्वागत करना
7. आठ या नौ अपनी परछाई से खेलना
8. चौबीस माह में बड़ों के काम में हाथ बटाने का प्रयतन करना
बाल्यावस्था में सामाजिक विकास
इस अवस्था में बालक में कई परिवर्तन आजाते हैं प्रकार हैं
1 छोटे समूहों में खेलना
2 दुसरो से स्नेह की अपेक्षा
3 दल के प्रति वफ़ादारी
4 आदतों का निर्माण
5 सहयोग की भावना
6 लिंग विभाजन का समय
7 मित्रों का चुनाव
8 सामाजिक सूझ का विकास
9 नेता बन ने की इच्छा
10 प्रिय कार्यों में रूचि
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किशोरावस्था में सामाजिक विकास
इस अवस्था में किशोर की रूचि परिवार से हैट कर बाहरी दुनिया की तरफ हो जाती है। वह माता पिता से साथियों के लिए लड़ाई कर सकता। बालक उग्र प्रवृति का हो जाता है। इस समाय वह अपने लिए आदर्श चुन लेता है वह अच्छा या बुरा हो सकता है। किशोरावस्था के परिवर्तन निम्न हैं
1 किशोरों की सामाजिक चेतना का विकास तीव्र गति से होता है
2 किशोर अपने वातावरण सजग होता है
3 किशोर के सामाजिक विकास में उनके शरीर का अधिक योगदान होता है
4 जो किशोर कमजोर बीमार तथा शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं उन्हें कोई अपने पास बिठाना पसंद नहीं करता
5 इस अवस्था में किशोर को पता लग जाता है की उनकी सामाजिक मान्यता किस स्थान पर है और किस स्थान पर नहीं है
6 किशोरों को अनुभव होने लगता है की उनके माता पिता उन्हें अच्छी तरह नहीं समझते और उन्हें उचित आजादी नहीं देते।
7 किशोरावस्था में योन विकास के कारन लड़के लड़कियां आपस में मिलना, बात करना और सामाजिक कार्यों में भाग लेना चाहते हैं।
8 समान रूचि वाले किशोरों मित्रता का विकास होने लगता है।
9 माता पिता और परिचितों से अपनी प्रंशंसा सुनना , रूठना और अपनी बात मनवाना उनका ध्येय हो जाता है।
किशोरों के समाजीकरण की विशेषताएं
1 समूहों का निर्माण करना
2 समूहों के प्रति वफ़ादारी
3 विद्रोह की भावना रखना
4 मैत्री भावना का विकास
5 व्यवसाय चयन में रूचि दिखाना
6 सामाजिक परिपक्वता की भावना स्वयं भरना
7 बहिर्मुखी प्रवृति दिखाना
समाजीकरण की प्रक्रिया में योग दान देने वाले कारक
विभिन्न अवस्थाओं में होने वाला समाजीकरण अनेक कारकों से प्रभावित होता है और वे कारक इस प्रकार हैं
1. विद्यालय बालक के सामाजिक विकास में विद्यालय का सर्वाधिक योगदान होता है। विद्यालय में बालकों को अन्य बालको से मिलने जुलने के का अवसर मिलता है तथा विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेने का मौका मिलता है जो उसके सामाजिक विकास की दिशा निर्धारित करते हैं।
टॉमसन के अनुसार विद्यालय बालकों का मानसिक , चारित्रिक , सामुदायिक , राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय विकास करता है तथा स्वाथ्य रहने का प्रशिक्षण देता है।
टी. पी. नन के अनुसार एक राष्ट्र के वद्यालय उसके जीवन के अंग होते हैं , जिनका विशेष कार्य उसकी आद्यात्मिक शक्ति को बढ़ाना है उसकी ऐतिहासिक निरंतरता को बढ़ाना है उसकी भूतकाल की सफलताओं को संभालना और उसके भविष्य की गारंटी देना है।
बालक के विकास में विद्यालय का निम्न लिखित योगदान होता है
1 बालकों को जीवन की जटिल प्रस्थितियों का सामना करने के योग्य बनाता है।
2 सामाजिक सांस्कृतिक तथा सामाजिक विरासत को संजो कर रख ता है और आने वाली पीढ़ियों को हस्तांतरित करता है।
3 बालको को घर तथा समाज से जोड़ने का कार्य करता है।
4 व्यक्तित्व के का विकास करने में सहायता करता है
5 विद्यालयों में शिक्षित तथा जागरूक नागरिकों का निर्माण होता है।
6 विद्यालय बालक को सुचना की बजाय अनुभव देता है।
2 अध्यापक अध्यापक का बालक के जीवन पर बहुत असर पड़ता है। माता पिता के बाद अध्यापक ही बालक के सामाजिक एवं मानसिक विकास की दिशा निर्धारित करता है। अध्यापक बालको को अच्छे व्यक्तित्व को प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है। अध्यापक को चाहिए की वह बच्चो को सामूहिक क्रियाओं में हिस्सा लेने का अवसर प्रदान करे इस प्रकार उसका सामाजिकरण अपने आप हो जाता है। अध्यापक को चाहिए की वह बच्चों से स्नेह एवं सहानुभूति पूर्ण व्यव्हार करे। बच्चे सामाजीकरण के विषय में अधिकतर अपने शिक्षक का अनुकरण करते हैं।
3 परिवार बच्चों के समाजीकरण की प्रक्रिया में परिवार का प्रमुख योगदान होता है। इसका कारण है की हर बच्चे का जन्म किसी न किसी परिवार में ही होता है। जैसा जैसे वो बड़ा होता है वैसे वैसे वह अपने परिजनों से प्रेम , सहानुभूति , सहनशीलता , आदि समाजिकगुणों को सीखता है। और धीरे धीरे वह अपने परिवार के रीतिरिवाज और परम्पराओं को सिख लेता है।
4 पड़ोस पड़ोस भी एक प्रकार का परिवार होता है। बच्चा पड़ोस में रहने वाले लोगों तथा दूसरे बालको से अनेक सामाजिक गुण सीखता है। पड़ोस अच्छा है तो बच्चे का सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास अच्छी प्रकार होगा।
5 सामाजिकरण में खेल की भूमिका
बालक के सामाजिक विकास में खेल की विशेष भूमिका होती है। खेलकूद को बालक का रचनात्मक , जन्मजात , स्वतंत्र , आत्म प्रेरित, तथा स्फूर्तिदायक प्रवृति कहा जाता है। खेल से बालक को आत्माभिव्यक्ति का अवसर मिलता है। जिससे समाजीकरण में सहायता मिलती है। अधिकांश खेलों में अन्य साथियों की आवश्यकता पड़ती है इसलिए उनका स्वभाव मुख्यतः सामाजिक होता है। इस प्रकार खेल से सामाजिक दृष्टिकोण का विकास होता है। अपरिचित बच्चों के साथ खेल कर वह बच्चे अज्ञात लोगों के साथ सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करना तथा उन सम्बन्धों जुडी हुई समस्याओं को सुलझाना सीखते हैं। सामूहिक खेलों के द्वारा बच्चे में आदान प्रदान भावना का विकास होता है। खेल के द्वारा बच्चे में समूह के नेत्रित्व की भावना का विकास होता है। किसी भी खेल में कुछ नियमो और अनुशासन का पालन करना पड़ता है जिससे उसके अनुशाषित होने में सहायता मिलती है। खेल में हर जीत का अनुभव बच्चो में सहनशीलता के गन का विकास करते हैं। जो सामाजिकरण के लिए बहोत ही आवश्यक है।
बालक के सामाजीकरण के बाधक तत्व बताइए?
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समाजीकरण को प्रभावित करने वाले कारक