शाही शादी दरअसल गंभीर राजनीतिक क्रियाकलापों से ध्यान हटाने या कहें कि मन बहलाने की एक घटना थी. जब कंजरवेटिव और लिबरल डेमोक्रेट के बीच गठबंधन के लिए समझौता चल रहा था, तब इसका परिणाम एक ऐसी औपचारिक सहमति के रूप में सामने आया, जिसके आधार पर उनकी सारी नीतियां निर्धारित होने वाली थीं. इसमें लिबरल डेमोक्रेट के लिए सबसे महत्वपूर्ण वह वादा था, जिसमें वोटिंग सिस्टम के संबंध में जनमत संग्रह कराने की बात थी. लिबरल्स वोटिंग सिस्टम को लेकर बहुत पहले से ही आसक्त रहे हैं. इनकी शिकायत रही है कि हर चुनाव में इन्हें मिलने वाले वोट (लगभग 20 फीसदी) के मुताबिक़ सीटें नहीं मिलतीं. इसके लिए वे एफपीटीपी (फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम, जो भारत में भी अपनाया जाता है) को दोष देते हैं. दरअसल इस सिस्टम के तहत सबसे ज़्यादा वोट पाने वाला उम्मीदवार जीत जाता है, भले ही उसे कुल पड़े मतों का एक ख़ास यानी तय हिस्सा न मिले. उनका कहना है कि बहुकोणीय मुक़ाबले में जीतने वाले उम्मीदवार प्राय: 51 फीसदी से कम वोट पाकर जीतते हैं. इसका मतलब यह हुआ कि ज़्यादातर मतदाता जीतने वाले उम्मीदवार के ख़िला़फ हैं, फिर भी वह जीत जाता है. इस वजह से बड़ी पार्टियां ज़्यादा सीटें पा जाती हैं. छोटी पार्टियों में यह संदेश जाता है कि मतदाता उन्हें अपना वोट इसलिए नहीं देते, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका वोट बर्बाद चला जाएगा. ज़ाहिर है, इस सबके पीछे वास्तविक वजह है पार्टियों के आकार एवं चुनाव क्षेत्रों का असमान होना और मतदाताओं के बीच बेतरतीब रूप से पार्टियों को मिलता समर्थन. भारत में भी अगर 1977 का उदाहरण छोड़ दें तो सत्ता पर एक ही दल का क़ब्ज़ा रहा. कांग्रेस को 40 फीसदी वोट और इसके बदले 65 फीसदी से भी ज़्यादा सीटें मिलती थीं.
यह डेविड कैमरन का मास्टर स्ट्रोक ही कहा जाएगा कि उन्होंने लिबरल डेमोक्रेट्स के साथ गठबंधन किया, जोख़िम लिया और इसका फायदा भी उठाया. इस कहानी का संदेश स्पष्ट है. अपने बेटे को पढ़ने के लिए एटन भेजें और वह वहां सीख जाएगा कि देश पर शासन कैसे करते हैं. तो दून स्कूल हमें इस तरह से क्यों आश्वस्त नहीं कर सकता?
जनमत संग्रह के माध्यम से एफपीटीपी और एवी यानी अलटर्नेटिव वोटिंग में से किसी एक का चुनाव किया जाना है. अलटर्नेटिव वोटिंग का अर्थ है कि आप उम्मीदवारों को एक क्रम में चुनते हैं. यदि सबसे ऊपर के उम्मीदवार को प्रथम वरीयता के तौर पर 51 फीसदी मत नहीं मिलते हैं तो सबसे कम मत पाने वाले उम्मीदवार को हटाकर एक बार फिर यह सारी प्रक्रिया दोहराई जाती है. यानी फिर से उम्मीदवारों को वरीयता के आधार पर चुनने की प्रक्रिया. यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है, जब तक किसी उम्मीदवार को 51 फीसदी से ज़्यादा मतदाता प्रथम वरीयता के आधार पर चुन नहीं लेते. जनमत संग्रह का अभियान काफी पेचीदा है. गठबंधन के सहयोगियों ने निर्णय लिया है कि हर कोई अपने तरीक़े से वोट करने के लिए स्वतंत्र होगा. कंजरवेटिव अलटर्नेटिव वोटिंग को पसंद नहीं करते. लेबर पार्टी में इस मामले पर विभाजन दिख रहा है. उसने चुनाव से पहले जनमत संग्रह का वादा किया था, लेकिन चुनाव हारने के बाद वह आधिकारिक रूप से इस मसले से अलग हो गई. इनमें से कुछ, जैसे मिलिबैंड अलटर्नेटिव वोटिंग का समर्थन करते हैं, लेकिन कई लोग ऐसे हैं, जो इसका समर्थन नहीं करते. दोनों ओर काफी गर्माहट दिखी. नहीं का विकल्प जीत की स्थिति में होने की वजह से आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चला. लिबरल डेमोक्रेट नेता और उप प्रधानमंत्री निक क्लेग ने अलटर्नेटिव वोटिंग के विरोधियों पर आरोप लगाया कि वे दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी षड्यंत्र को बचाए रखना चाहते हैं.
लिबरल डेमोक्रेट्स की लोकप्रियता भी घटी है, क्योंकि उनकी छवि प्रगतिशील वामपंथी की थी, लेकिन जब उन्होंने कंजरवेटिव के साथ हाथ मिलाया तो लोग आश्चर्य में पड़ गए. उन्हें मुफ्त उच्च शिक्षा जैसा अपना महत्वपूर्ण एजेंडा तक छोड़ना पड़ा. निक क्लेग की लोकप्रियता कम होने के पीछे एक वजह यह भी थी और इसने अलटर्नेटिव वोटिंग के समर्थन में वोट पड़ने की संभावना को भी कम कर दिया. अलटर्नेटिव वोटिंग के ख़िला़फ पड़ने वाले वोटों की संख्या ज़्यादा होने की स्थिति में लिबरल डेमोक्रेट को अपनी पार्टी के भीतर भी आंतरिक विद्रोह का सामना करना पड़ सकता है. उन्हें यह समझ में आ जाएगा कि सत्ता में रहने के कारण उनका एजेंडा किस तरह ख़त्म होता जा रहा है. संभव है कि वे सरकार से बाहर भी निकल जाएं और अगले चुनाव की संभावना बन जाए. यदि ऐसा होता है तो इस बात की संभावना है कि कंजरवेटिव साधारण बहुमत से सरकार बनाने की स्थिति में आ जाए. अभी स़िर्फ टोरीज ही ऐसे हैं, जिनके पास चुनाव लड़ने के लिए पर्याप्त धन है. लेबर पार्टी कर्ज में डूबी हुई है (ब्रिटिश राजनीतिक दलों को अपना अकाउंट सार्वजनिक करना पड़ता है, यहां काले धन की कोई गुंजाइश नहीं है).
बहरहाल, यह डेविड कैमरन का मास्टर स्ट्रोक ही कहा जाएगा कि उन्होंने लिबरल डेमोक्रेट्स के साथ गठबंधन किया, जोख़िम लिया और इसका फायदा भी उठाया. इस कहानी का संदेश स्पष्ट है. अपने बेटे को पढ़ने के लिए एटन भेजें और वह वहां सीख जाएगा कि देश पर शासन कैसे करते हैं. तो दून स्कूल हमें इस तरह से क्यों आश्वस्त नहीं कर सकता?
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